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शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

लघुकथा-स्वावलम्बन(संस्मरण पर आधारित)

            आज से पैंतीस वर्ष पूर्व मैं सियादलह एक्सप्रेस के जंनरल डिब्बे में बैठ कर बरेली से फैजाबाद  जा  रहा

था.डिब्बे में हाकर अपना सामान बेचने के लिए चढ‍ और उतर रहे थे.एक अंधा व्यक्ति मूँगफली बेचने के लिए

चढा और " मूँगफली ले लो,मूँगफली ले लो" जैसी कुछ आवाज लगाते हुए मूँगफलियाँ बेचने लगा.मेरे  आस-

पास बैठे कुछ लोगों ने उससे मूँगफलियाँ खरीदीं  तभी पीछे से एक अन्य अंधा व्यक्ति "सूरदास की मदद

करो,एक  रूपया-आठ आना दो,भगवान भला करेंगे "जैसी कुछ आवाज लगाते हुए आया.जब उसने मूँगफली-

मूँगफली की आवाज सुनी तो आवाज लगाई- "मूँगफली वाले भैया,जरा सूरदास को भी चार मूँगफली दे

दो".पहले वाला व्यक्ति यात्रियों को मूँगफलियाँ बेचने में व्यस्त था.दूसरा अंधा व्यक्ति कुछ देर मूँगफली का

इंतजार करता रहा फिर आगे निकल गया.पहला अंधा व्यक्ति जब सभी ग्राहकों को उस तरफ मूँगफली दे चुका

तो उसने आवाज लगाई-"सूरदास,मूँगफली ले लो."किसी ने कहा-"वह तो आगे चला गया".अब उस अंध-

मूँगफली विक्रेता ने जोरों से आवाज लगाई-"सूरदास-सूरदास,मूँगफली ले लो".वह तब तक आवाज लगाता रहा

 जब तक वह दूसरा अंधा व्यक्ति वापस नही आया और उसने मूँगफलियाँ नहीं ले लीँ.इस घटना ने मेरे हृदय

को छू लिया.एक व्यक्ति ने अपंगता को सामान्य व्यक्ति का जीवन जीने में बाधक  नही समझा और अपने

जैसे दूसरे व्यक्ति की सहायता भी की और यह जताया भी नही कि वह भी उसके जैसा ही है जबकि दूसरा वैसा

ही व्यक्ति स्वावलम्बन की भावना के अभाव में भीख माँग रहा था.

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी पहली पोस्ट से ही, आपके संवेदनशील व्यक्तित्व का परिचय हुआ है ..
    शुभकामनायें संजय जी !

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  2. संवेदनाओं से ओत-प्रोत प्रेरणात्मक प्रसंग! हार्दिक शुभकामनाएँ!

    जवाब देंहटाएं
  3. Arj hai...

    Dono khare the
    ek hi dharatal par
    magar
    ek ki nigahen neechi thin
    to hantheli bhi neechi rahi
    wahi dusre ka
    sar utha raha
    kyonki usme jajba tha
    hatheli upar rakhane ka //

    sachhi baat!

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