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मंगलवार, 14 मई 2013

असफलता का प्रबंधन


        13अप्रैल को मैंने एक समाचार  पढा कि आई. ए.एस.  में चयन होने के लिए आशान्वित एक 24  वर्षीय नवयुवक वी.वाई.मंजुनाथ ने आत्महत्या कर ली क्योंकि चयनित अभ्यर्थियों की सूची में उसका रोल नं. 264वें क्रमांक पर मेरिट में होने के बावजूद नाम उसका न होकर किसी आश्विन बी. का था  और इस बारे में जब उसने यू.पी.एस.सी.से संपर्क किया तो उसे समुचित और संतोषप्रद उत्तर  नही मिला था.मंजुनाथ इंजीनियरिंग डिग्री  प्राप्त था. यू.पी.एस.सी. की परीक्षा के लिए यह उसका प्रथम प्रयास था.उसने कोई कोचिंग नही की थी.उसके पिता सरकारी क्लर्क हैं और बहुत अच्छी आर्थिक स्थिति में नही हैं.उन्होने मंजुनाथ की इंजीनियरिंग की पढाई के लिए कर्ज लिया था.

        इसी समाचार के बारे में मैंने आज  दिनांक 14 अप्रैल को यू.पी.एस.सी का स्पष्टीकरण पढा कि मंजुनाथ  वास्तविकता में प्रारंभिक परीक्षा  (प्रिलिम.)में ही असफल रहा था तथा इस कारण मुख्य परीक्षा में वह बैठा ही नही था.संभवत: उसने अपने घर में झूठ बोला था तथा घर वालों को अपना रोल नं. गलत बताया था जो एक सफल उम्मीदवार का था.

        यह समाचार पढने के  बाद जब मैं कल घर आया तो  मैंने सबसे पहले अपने बेटे से इस बारे में बात की  क्योंकि मुझे लगा कि यह आवश्यक है कि हम अपने बच्चों को असफलता का प्रबंधन करना सिखाएं.गत वर्ष भी मुझे इसी प्रकार के एक समाचार ने बहुत उद्वेलित किया था.कोलकाता के एक इंजीनियरिंग ग्रेजुएट ने  बंगलौर में नौकरी से हटा दिए जाने के बाद आत्महत्या  कर ली थी.

        सफलता,सफलता कैसे पाई जाए,सफलता पाने के उपाय,...आदि,....आदि क्षेत्रों में सफल कैसे हों,  सफलता और  उससे संबंधित इन विषयों पर सैकडों  नहीं हजारों- हजार पुस्तकें हैं .पर कोई भी पुस्तक आपको यह नही बताती कि असफलता   का प्रबंधन कैसे करें जबकि आज के गलाकाट प्रतियोगिता के युग में उसकी जरूरत ज्यादा है.


  असफलता के प्रबंधन के मेरे विचार से दो पहलू हैं-

                       1.आत्मप्रबंधन-स्वयं यह समझना कि एक असफलता से मेरे लिए दुनिया नही खत्म हो गई.जिस भी  क्षेत्र में असफलता मिली है उससे आगे मेरे लिए जहाँ और भी है और मुझे उस जहाँ के लिए,उसे बेहतर बनाने के लिए, उसे पाने के लिए जीना है.मेरे अंदर यदि  कुछ कमी है तो उसे दूर करँगा,मैं खुद को और बेहतर बनाने की कोशिश  करता रहूँगा और खुद  को बेहतर साबित करूँगा.मुझमें अगर बहुत कुछ कर पाने की नही, तो कुछ कर पाने की क्षमता जरूर है जिसे मैं अंजाम तक पहुँचाऊँगा.उसके लिए मैं पुरजोर कोशिश करँगा.अगर जीवन में कुछ नही मिल पाया तो  कोई बात नही, पाने को अभी बहुत कुछ और भी है.अगर आज कुछ मेरे अनुकूल नही था तो इसका यह मतलब नही कि कल भी मेरे अनुकूल नही होगा.मैं हार नही मानूँगा और कोशिश करता रहूँगा.

                       2.असफलता के विभिन्न पहलुओं,उसके परिणामों और उपलब्ध विकल्पों का  विश्लेषण कर अपने लिए सबसे उपयुक्त रास्ता चुनना और उस पर दृढता के साथ चलना.


      मेरे विचार से मंजुनाथ को या अन्य किसी को भी जो उस स्थिति में हो खुद से निम्नलिखित सवाल करने और खुद को उनके जवाब देने चाहिए थे-

क्या इस असफलता के साथ मेरे लिए दुनिया में सब कुछ खत्म हो गया है?
-नही

क्या मेरे लिए सारे रास्ते बंद हो चुके हैं?
-नहीं

क्या मैं एक कोशिश और नही कर सकता?
-हाँ,मै कर सकता हूँ?

क्या मुझे सफलता प्राप्त होनी ही चाहिए थी?
-नही यह जरूरी नहीं. क्योंकि देश में आयोजित होने वाली सर्वोच्च स्तर  की  परीक्षाओं में से यह एक है,जिसमें तमाम सारे बच्चे बैठते हैं.इनमें सर्वोत्कृष्ट मेधा वाले और अथक  परिश्रम करने वाले बच्चे ही लिखित परीक्षा में चयनित हो पाते हैं.साक्षात्कार स्तर पर भी एक-एक  सीट के लिए कम  से छ: बच्चे ऐसे होते हैं जो हर दृष्टि से समान होते हैं.एक-एक अंक के भी  अंतर से मेरिट में बहुत अंतर आ  जाता है.जहाँ भी समान योग्यता के लोगों में प्रतियोगिता होती है वहाँ गौण समझा जाने वाला बिंदु भी महत्वपूर्ण हो जाता है तथा  न चाहते हुए स्वीकार करना पडता है कि भाग्य की अपनी एक भूमिका का निर्माण हो  जाता है.

क्या मुझे और विकल्पों के बारे में भी सोचना चाहिए?
-निश्चय ही जब आप उच्च  स्तरीय प्रतियोगिता में बैठते हैं तो आपको असफलता की संभावना के बारे में सोचकर अपने लिए कुछ अन्य विकल्पों के बारे में सोचना तथा उन्हे खुला रखना चाहिए.

क्या असफल रहने पर मैं एक और कोशिश कर सकता हूँ?
-क्यों नहीं?मैं अपना विश्लेषण करूँगा तथा देखूँगा कि मेरे स्तर पर क्या कहीं कमी  रह गई?क्या मैं किसी  भी  प्रकार, किसी भी तरह अपने प्रयत्न को और बेहतर बना सकता हूँ?यदि हाँ तो मैं वह कोशिश जरूर करूँगा.यदि मैं नही भी कर सकता हूँ  तो भी एक और कोशिश करने में कोई हर्ज  नही है.क्या पता कल भाग्य मेरे साथ हो.

अगर आज का दिन मेरा नही था तो क्या कल का दिन भी मेरा नही होगा?
-नही,बिल्कुल नही. क्योंकि हो सकता है कि कल परिस्थितियाँ बिल्कुल मेरे  अनुकूल हो जाएं.

अगर फिर भी सफलता नही मिलती है तो?
तो कोई बात नहीं,मैं अन्य उन विकल्पों की दिशा में प्रयास करँगा जो मेरे लिए खुले हैं.

        असफलता प्रबंधन का महत्व उन बच्चों के लिए ज्यादा है जो पूरी तरह से सेक्योर वातवरण में पले-बढे हैं,जिन्होने कभी तकलीफ देखी नही और किसी समस्या का सामना नही किया.अगर अब तक उनके हाथ सफलता ही लगती रही है और उन्होने असफलता का मुंह ही नही देखा है तो ऐसे मेधावी बच्चों को  हिला देने के लिए एक ही असफलता काफी है.इसलिए बच्चों को बताएं कि असफलता भी हमारे जीवन का एक हिस्सा है और मजबूत चरित्र के हार न मानने वाले लोग असफलताओं की बुनियाद पर ही सफलताओं  के महल खडे करते हैं.उनके सामने उनका उदाहरण रखें जो सी.पी.एम.टी.में सफल  नही हो पाए पर आज उच्च कोटि के विश्वविद्यालय में फैकल्टी हैं.जो इंजीनियरिंग की परीक्षा में असफल रहे पर सिविल सर्विस की परीक्षा में सफल रहे  या फिर वैज्ञानिक हैं.मैं व्यक्तिगत  तौर पर ऐसे लोगों को जानता हूँ.

        प्रतिकूल परिस्थितियों में भी संघर्ष कर अपने लिए रास्ता बनाने वाले महापुरूषों के उदाहरण दें.शिवाजी कई किले हार जाने के बाद जब जयसिंह के समझाने पर औरंगजेब से संधि करने गए तो उसने उन्हे नजरबंद कर दिया.पर उन्होने हार नही मानी.वहाँ से भाग निकलने की जुगत निकाली और फिर से लडाई कर  अपने सारे किले वापस ले लिए.हुमायूँ भारत का साम्राज्य शेरशाह के हाथों गवाँ बैठा था.पर जीवन के सांध्यकाल में अपनी कोशिशों से वह अपना खोया हुआ साम्राज्य वापस पाने में सफल रहा.महाराणा प्रताप  को जंगलों की खाक छाननी पडी पर एक  दिन भामाशाहस्वरूप जैसे स्वयं भगवान प्रकट हुए.महाराणा प्रताप ने फिर से अपनी सेना खडी की और चित्तौड छोडकर शेष राज्य अकबर से वापस छीनने में सफल रहे.

हरिवंश  राय बच्चन की निम्नलिखित पंक्तियों और ऐसे ही अन्य उद्धरणों से बच्चों को प्रेरणा प्रदान करें-

असफलता एक चुनौती है ,इसे स्वीकार करो
क्या कमी रह गई ,देखो और सुधार करो.
जब  तक न सफल हो ,नींद चैन को त्यागो तुम
संघर्ष का मैदान छोडकर मत भागो  तुम.
कुछ किए बिना ही जय-जयकार नही होती,
कोशिश करने वालों की हार नही होती.

इति!


 
   


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