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रविवार, 9 जून 2013

संघ खेमे की राजनीति एक नए मुकाम पर!

        भारतीय राजनीति में संप्रदाय की अपेक्षा जाति की भूमिका कहीं अधिक प्रभावी रही है.जाति के आधार पर राजनीतिज्ञ रणनीति बनाते रहे और वोट माँगते रहे हैं. आज जब पिछडी जाति से संबंध रखने वाले नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी (बी .जे.पी.) में नं 1 के रूप में प्रतिष्ठित करने की कवायद चल रही है तो बहुत पहले की एक घटना याद आ रही है.चौधरी चरण सिंह ने जब 1967 में कांग्रेस को अलविदा कहने का निश्चय किया तो श्री बलराज मधोक ने उन्हे बी जे पी  के पूर्व संस्करण भारतीय जनसंघ को ज्वाइन करने के लिए मनाने की बहुत कोशिश की पर चौधरी साहब  का कहना था कि संघ और जनसंघ दोनों में ही शीर्षस्थल पर पहुँचने के लिए ब्राह्मण होना जरूरी है और इस आधार पर वे भारतीय जनसंघ में शामिल होने के लिए सहमत नहीं हुए .बलराज मधोक ने चौधरी साहब को लाख आश्वस्त करने का प्रयास किया कि जनसंघ में उन्हे पूरा मान-सम्मान दिया जाएगा पर चौधरी साहब अपनी बात पर अडिग रहे.

       आज जब भारतीय जनता पार्टी के कुछ बुजुर्ग नेताओं ,उनके अनुयाइयों और मध्य वय के कुछ नेताओं/नेत्रियों (जिन्हे मोदी अपना स्थान छीनते हुए दिख रहे हैं ) के समूह को छोड कर पूरी भारतीय जनता पार्टी मोदी को वोट-कमाऊ राजनीतिज्ञ मानते हुए उनके सहारे चुनाव की वैतरणी को पार करने की आशा में है तो चौधरी साहब के विचारों के परिप्रेक्ष्य में भारतीय राजनीति और साथ ही संघ खेमे की राजनीति एक नए मुकाम तक पहुँच गई दिख रही है. अटल बिहारी बाजपेयी और आडवाणीजी के बाद  अगली पीढी के नेताओं में भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखे जा रहे प्रमोद महाजन के असामयिक निधन के बाद अरूण जेटली और सुषमा स्वराज को प्रमोट करने की कोशिशें की गईं. पर यह दोनों ही जनहृदयों के नायक/नेत्री के रूप में बाजपेयी या आडवाणी के कद के कहीं नजदीक भी नही पहुँच सके हैं.आडवाणीजी  अभी भी भारतीय राजनीति में सक्रिय हैं पर पिछले चुनाव में "मजबूत नेता मजबूत पार्टी" के नारे को जनता ने तवज्जो नहीं दी और उनका आभामंडल तिरोहित हो गया है. कुशल प्रशासक के रूप में शिवराज सिंह चौहान का नाम भी आगे करने की कोशिश की गई पर वे मोदी जैसे शातिर राजनीतिज्ञ नही हैं और कार्पोरेट जगत तथा मीडिया पहले से मोदी को विकल्प के तौर पर प्रचारित कर रहा है.यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि मोदी के विकल्प के रूप में बी. जे. पी. में शिवराज का नाम आगे लाया गया और वे भी पिछडे वर्ग से ही हैं.ले देकर भारतीय जनता पार्टी को मोदी के अलावा और कोई नहीं दिख रहा जिसके नाम पर वोट मिल सकें.

        मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में अपने शासन के दौरान एक ऐसी छवि बनाई कि गुजरात में बी.जे.पी.के सभी दिग्गजों की छुट्टी हो गई.मोदी ने जो चाहा उसे कार्यान्वित किया और जो भी रास्ते में आया उसे किनारे लगा दिया ,वह चाहे भारतीय किसान संघ रहा हो या फिर प्रवीणभाई तोगडिया रहे हों.हिंदुत्व के पोस्टर-ब्वाय के रूप में प्रचारित किए जा रहे मोदी ने रास्तों पर बनाए गए दो सौ मंदिरों को भी स्थानांतरित करने में किसी की परवाह नहीं की.मोदी की इंदिरा गाँधी जैसी व्यक्तिवादी राजनीति की शैली जिसमें लोग उनकी सभाओं में उनका मुखौटा लगाए दिखाई देते हैं उनके राजनीतिक विरोधियों की तो बात ही छोड दीजिए; बी,जे.पी. के कुछ वरिष्ठ नेताओं के साथ-साथ संघ को भी रास नहीं आती.फिर भी अन्य किसी करिश्माई व्यक्तित्व के अभाव में संघ और बी जे पी दोनों की ही मजबूरी मोदी हैं.भ्रष्टाचार में डूबे राजनीतिज्ञों और नौकरशाही वाले इस देश की जनता का एक वर्ग  सलीम-जावेद लिखित फिल्मों के अमिताभ बच्चन जैसे ऐंग्री यंगमैन की तलाश में है जो व्यवस्था को दुरुस्त कर दे ,भले ही उसमें अधिनायकवाद के तत्व हों.पहले भी तो वह इंदिरा गाँधी को सर-आँखों पर बिठा चुका है.

        मोदी का यह उभार राजनीति के पूर्व जजमानी सिस्टम जिसमें अगडों या ब्राह्मणों के हाथ में सत्ता रहती थी और शेष जातियाँ जजमान के तौर पर उनके संरक्षण में रहती थीं,के राष्ट्रीय राजनीति से भी विदाई का संकेत दे रही है.प्रदेशों की राजनीति से तो यह पद्धति काफी पहले विदा हो चुकी है. अगर आज चौधरी चरण सिंह होते तो उनकी इस डेवलपमेंट पर क्या प्रतिक्रिया होती,सोचने लायक है.

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