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बुधवार, 31 जुलाई 2013

ईमान की आँच!

          ईमान की आँच बडी तेज होती है.जिसके साथ  ईमान रहता है वह तो सुशांत दिखता है -प्रफुल्लित,संतोष से भरा हुआ. पर जिनके पास ईमान का कवच नहीं  होता, उन्हें उस सुशांत  चेहरे से इतना तेज निकलता दिखाई  देता है कि वे उसकी आँच में झुलसने लगते हैं.जब वे झुलसने लगते हैं तो उस सुशांत, संतुष्ट ,प्रफुल्लित   चेहरे को भी अपने  जैसा बना देना  चाहते हैं.उस पर हर  तरह से आक्रमण करते हैं .देखिए न, नवनियुक्त आई.ए.एस.अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल और उत्तर प्रदेश के शासन  को. दुर्गाशक्ति ने बालू माफियाओं को  टक्कर  देने का बीडा उठाया था. बालू माफिया ने उसे पहले प्रलोभन  देने और फिर डराने-धमकाने की कोशिशें  कीं. पर दुर्गाशक्ति ने किसी धमकी की परवाह नहीं की और दृढतापूर्वक ईमानदारी के  साथ अपना कर्तव्य करती गई.आखिरकार उसकी आँच उत्तरप्रदेश के प्रशासनिक केंद्रबिंदु तक पहुँच गई. और, जब इस केंद्रबिंदु पर उसकी आँच भारी पडने लगी तो  ईमानदार व्यक्ति   के ऊपर लगाने के लिए आरोप  खोज निकाला गया-एक अवैध धार्मिक निर्माण को  ढहा देने का और उसे मुअत्तल कर दिया गया.इस प्रकार प्रशासनिक केंद्रबिंदु ने तीन संदेश देने की कोशिश की है-
          1. प्रशासन में लगे हुए सभी अधिकारी हमारे राजनीतिक हितों का और हमारे सरमाएदारों का ख्याल                   रखें,जो इससे हटा उसकी खैर नहीं.
         2. राजनीतिक  आकाओं और उनके पिट्ठुओं के हित सर्वोपरि हैं,उनकी अनदेखी कर कर्तव्यनिष्ठा और                  ईमानदारी की परवाह करने की  कोई जरूरत नहीं.
         3.धार्मिकस्थल से जुडे निर्माण को, भले ही वह अवैध था, ढहाने का आरोप लगाकर इसके साथ-साथ एक             धार्मिक समुदाय को भी  साधने की कोशिश कर ली गई है.हिंदुस्तान में धर्म एक ऐसा नुस्खा  है                         जिसकी आड में आप कुछ भी अवैध कर उसे वैध बनाने का प्रयास  कर सकते हैं.

         ईमानदारी की राह कठिन है दुर्गा!इसमें पग-पग पर अग्निपरीक्षाएं हैं.तुम्हारे ईमान की मार जिसे लगेगी वह  इससे ऐसा तिलमिलाएगा कि तुम पर तुरंत प्रहार करने को  उद्यत होगा.पर सीता ने तो जीवन भर अग्निपरीक्षा दी थी,तुमने तो अभी पहली ही दी है.फिर तुम तो सीता नहीं दुर्गाशक्ति हो!इन असुरों से घबराना नहीं दुर्गा!बडे जनों की  -"जरा दुनिया  देखकर चलना चाहिए" -जैसी सीखों को सुनकर व्यथित नहीं होना.ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति की सबसे बडी पूँजी उसका अपना संतोष होता  है.जब वह पीछे की तरफ नजर डालता है तो पीछे का साफ-सुथरा रास्ता जो उसने अब तक तय किया  है उसके मन को आहलाद से भर देता है. अब तक  किया गया संघर्ष उसके मन को गर्व से भर  देता है. उसके उसूल उसका सबसे बडा संबल होते हैं.चोरों और बे‌ईमानों को जब मालूम हो जाता है कि यह आदमी बिकाऊ नहीं है तो वे संभलकर चलने लगते हैं और तुम्हारे सामने खडे होने का साहस भी नहीं कर सकते हैं.गुलाब की बगिया लगाने  पर रास्ते में  काँटे भी आते हैं, संभलकर  चलना पडता है, कभी-कभी  काँटों को बीन कर अलग भी करना पडता है,हाथ लहुलुहान हो जाते हैं.पर जब बीडा उठाया है तो गुलाब खिलाकर रहना.दूसरों के लिए वह आइना  बनना जिसमें उन्हें सच्चाई की सूरत नजर आए और वे खुद  को भी बदलने पर मजबूर हो  जाएं.हमारे समाज को ऐसे आइनों की बहुत जरूरत है.दुर्गाशक्ति! तुम्हारे ऐसे लोग ही इस समाज के लिए उम्मीद की किरण हैं.यह किरण  सिर्फ सितारा नहीं, चाँद नहीं,सूरज बन कर चमकनी चाहिए.

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