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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

"आप" की खातिर !

          राजनीतिक परिदृश्य पर दिल्ली विधानसभा में 28 सीटों के साथ 'आप' (आम आदमी पार्टी) की धमाकेदार एंट्री  ने अपनी सफलता के आगे तीन राज्यों में बी. जे. पी. की भारी जीत को भी जैसे फीका कर दिया है. राहुल ने जहाँ 'आप' से सीख लेने की जरूरत पर जोर दिया है,  वहीं दिल्ली में बी.जे.पी.के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हर्षवर्धनजी ने 'आप' को अप्रत्याशित सफलता के लिए बधाई दी है.  'आप'  ने इससे उत्साहित होकर लोकसभा चुनावों में भी जोर आजमाने की मंशा जताई है. चुनावों के टिकटार्थी भी 'आप' की तरफ मुखातिब हो रहे हैं.

          पर यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि 'आप' एक आंदोलन का परिणाम है.यह आंदोलन  भ्रष्टाचार और अनैतिकता के खिलाफ था जिसका नेतृत्व अन्ना ने  किया था. भले ही चुनावी राजनीति में आस्था न रखने के कारण अन्ना ने 'आप' के रूप में किए जा  रहे प्रयोग से स्वयं को अलग कर लिया है  तो भी 'आप' के उसी आंदोलन का प्रतिफल होने से इंकार नहीं किया जा सकता  और आप की सफलता वस्तुत: भ्रष्टाचार और अनैतिकता के खिलाफ जनसंघर्ष की सफलता है ;यह वही जनसंघर्ष था जिसके साथ जनता स्वत:उद्भूत प्रेरणा के साथ जुडी थी और जिसका एक रूप उस समय भी देखने में आया था जब दिल्ली बलात्कार कांड के विरोध  में जनता सडकों पर  उतर आई थी और राजनीतिक नेताओं  के हमदर्दी दिखाने के लिए आने पर   जनता ने उन्हें जनसंघर्ष के मंच का प्रयोग राजनीतिक उद्देश्यों के लिए करने  से रोक दिया था.

         पर कोई भी आंदोलन जब चुनावी  राजनीति का भाग बन जाता है  तो उसके अपने उद्देश्य से भटक जाने की संभावना सदैव बनी रहती है जिसे शायद अन्ना बहुत अच्छी  तरह समझते हैं. बहुजन समाज पार्टी भी एक आंदोलन का परिणाम थी जिसे कांशीराम ने डी. एस.- 4 के रूप में शुरू किया था. बहुजन समाज पार्टी के आरंभिक दिनों में ऐसे  बहुत से लोग जिन्हें मुश्किल  से दो जून की रोटी नसीब होती थी, पार्टी की बैठक के लिए अपना समय देते थे और अपनी आय का अंश पार्टी के लिए कष्ट उठाकर भी देते थे. पर चुनावी राजनीति के दल-दल में फंसकर आज बहुजन समाज पार्टी उस रास्ते से अलग  चली गई है जिस पर कांशीराम  ने उसे आगे बढाया था.  ऐसे तमाम लोग जो जनहित के लिए नहीं बल्कि स्वयं के हित के लिए राजनीति के साथ जुडे हुए हैं; आज बहुजन समाज पार्टी का हिस्सा हैं. राजनीतिक सफलता प्राप्त होने के बाद ऐसे तत्वों  के 'आप' के साथ जुडने की संभावना  सदैव बलवती रहेगी;  पर ऐसे  लोग जब भी पार्टी के साथ जुडेंगे पार्टी के अपने मूल उद्देश्यों से हटकर अलग रास्ते पर जाने लगेगी. अत: 'आप' के कर्णधारों को इस दृष्टि से सजग  रहना होगा.

          अरविंद केजरीवाल को इस बात का श्रेय देना होगा कि उन्होंने  उच्च एवं निम्न मध्यम वर्ग के साथ-साथ गरीब तबके की जनाकांक्षाओं को भी पहचाना  है तथा विशेषकर बिजली और पानी के साथ जुडी आंदोलनात्मक सक्रियता के बल पर 'आप' को उनके साथ जोडा है. इन अलग-अलग वर्गों को एक बिंदु पर ले आना और एक साथ जोडना ही उनकी सबसे बडी सफलता है.  जब लोगों को लगा कि कोई उनके दिल और  दिमाग से जुडे मुद्दों की बात कर रहा है तो वे अपनी जातीय,धार्मिक और वर्गीय  पहचान स्वत: भूल गए.

          पर  राष्ट्रीय राजनीति की बात करते समय 'आप' को यह समझना होगा कि विभिन्न स्तरों पर विभिन्न तबकों के लोगों को उनके स्वयं के हित , जिसमें वे अपने जातीय और धार्मिक हितों को भी शामिल समझते हैं,से ऊपर उठकर राष्ट्रीय और सामाजिक हितों की बात सोचने के लिए और उस कारण स्वयं से जुडने के लिए प्रेरित  करने हेतु अपना स्वरूप राष्ट्रीय आंदोलन का बनाए रखना होगा तथा स्थानीय के साथ-साथ राष्ट्रीय और सामाजिक मुद्दों को भी सक्रियतापूर्वक उठाते रहना होगा. एक अन्य बात यह है कि पार्टी को लोगों को जनता को यह विश्वास दिलाना होगा कि उनके पास इस देश के लिए एक "विजन" है,एक "आर्थिक दृष्टिकोण" है  तथा उसे कार्यरूप देने के लिए निर्धारित योजना और सक्षम व्यक्तियों का समूह  है.
      
        कम से कम ऐसे लोगों के लिए जो साफ-सुथरी राजनीति देखना चाहते हैं और अपने राजनीतिज्ञों को भी साफ-सुथरा ही देखना चाहते हैं  'आप' के रूप  में एक विकल्प दिखाई पडा है और ऐसा लगता है कि स्वच्छ राजनीति का सपना पूरा भी हो सकता है. पर  सपनों के टूटने में और मोहभंग होने में समय नहीं लगता और इस कसौटी पर खरा उतरना ही 'आप' के लिए सबसे बडी चुनौती है.

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