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बुधवार, 18 दिसंबर 2013

जमीन देखने और दिखाने की कोशिश!

          आखिरकार देवयानी खोब्रागडे के मामले ने भारत सरकार को अमेरिका को इस बात का   अहसास कराने के लिए मजबूर कर दिया  कि भारतीय रीढविहीन समुदाय का प्रतिनिधित्व नहीं करते.  सवाल यह है कि किसने आपसे कहा था कि गौरांग बंधुओं को देख  कर जमीन पर बिछ-बिछ  जाइए जो अब आप उनके दूतावासों के कर्मचारियों तथा राजनायिकों  को दी गई विशेष रियायतों को वापस लिए जाने की घोषणा  करते फिर रहे हैं,ऐसी रियायतें जो वे हमारे राजनायिकों को नहीं  देते.  अब तक इनका दिया जाना  हमारी "माई-बाप" मानसिकता और साथ ही हमारी हीनभावना को दर्शाता है.

           अमेरिका में भारतीयों तथा भारतीय राजनायिकों  के साथ दुर्व्यवहार का यह पहला वाकया नहीं है. इसके पहले भारत के पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम की एक बार न्यूयॉर्क के जे.एफ. के. हवाईअड्डे पर तथा एक बार कॉन्टिनेंटल एयरलाइंस के स्टाफ द्वारा    नई दिल्ली एयरपोर्ट पर फ्रिस्किंग के साथ तलाशी  ली जा चुकी है.  रक्षामंत्री रहते हुए श्री जार्ज फर्नांडीज की दो बार स्ट्रिप सर्चिंग की गई. अमेरिका  में तत्कालीन भारतीय राजदूत मीरा शंकर को रोककर कर उनकी शारीरिक तलाशी ली जा चुकी है.  संयुक्त राष्ट्र संघ  में भारत के स्थाई प्रतिनिधि हरदीप पुरी को पगडी खोलने से मना करने पर बॉडी-पैट के लिए रोका गया. अभिनेता  शाहरुख खान  ने  भले ही व्यंग्य में कहा हो, पर यह कहते हुए असलियत बयान की है कि जब भी उनके ऊपर स्टारडम ज्यादा हावी होने लगता है तो  उससे मुक्ति पाने के  लिए वे अमेरिका चले जाते हैं तथा अमेरिका वाले  उन्हें जमीन पर ले आते हैं. अमेरिकियों द्वारा इस प्रकार के व्यवहार से उनकी नजरों में हमारे देश की स्थिति और साथ ही गौरांग समुदाय में श्यामवर्णी लोगों को लेकर स्वयं की श्रेष्ठता की भावना (सुपीरियारिटी काम्प्लेक्स)  झलकती है.  शायद आज भी वे 'व्हाइट  मैंस बर्डेन' की ग्रंथि से पीडित हैं अन्यथा भारतीय राजनायिकों को जाहिल समझ कर उन पर अपना कानून थोपने और उन्हें मनुष्य बनाने के प्रयास में लगे रहने की जुर्रत नहीं करते .ऐसा  वे  यूरोपीय अथवा चीनी राजनायिकों के साथ तो नहीं करते.दूसरे नस्लवाद( रेशियलिटी) के किसी भी प्रकार के आरोप से बचने के लिए उन्होंने प्रीत भरारा तथा निशा देसाई बिस्वाल को खडा कर दिया है. कहते हैं कि नया मुल्ला पाँच बार नमाज जरूर पढता है. प्रीत भरारा तथा निशा देसाई बिस्वाल ऐसे ही मुल्ले हैं जो  भारतीय राजनायिक के साथ दुर्व्यवहार के पीछे अमेरिकी कानून की दुहाई देते  हैं. अमेरिका का कानून क्या यही कहता है कि भारतीय राजनायिक को नौकर  को कम तनख्वाह देने तथा गलत ढंग से वीसा पर उसे अमेरिका ले आने  जैसे संगीन जुर्म (अमेरिकी कानून के  अनुसार)  उस समय हथकडी लगाकर गिरफ्तार किया जाए जब वह बच्चों को स्कूल  छोडने आई हो. फिर  उसकी स्ट्रिप सर्चिंग की जाए,डी.एन.ए. स्वैब लिया जाए तथा कैविटी सर्चिंग की जाए  और इस सबके दौरान उसे भयानक अपराधों के दोषी लोगों के  साथ रखा जाए तथा यह सब करने के बाद ;जुर्म इतना भयंकर होने(अमेरिकी कानून के  अनुसार) के बावजूद उसे दो घंटे  के बाद जमानत पर रिहा भी कर दिया  जाए. स्पष्ट रूप  से  यह जमीन पर ले आने या फिर जमीन दिखाने का मामला है.  देर से ही सही कम से कम हमारी सरकार ने भी अमेरिकियों को जमीन दिखाने की कोशिश  की. चलिए देखते हैं कि वे कितनी जमीन देखने को तैयार होते हैं.

         एक अन्य बात यह है कि हम आज भी सामंतवादी मानसिकता से पीडित हैं. अन्यथा क्या कारण है कि हमारी सरकार आई.एफ.एस. अफसरों को विदेश पोस्टिंग पर साथ में नौकर ले जाने की सुविधा प्रदान करती  है. क्या इसलिए कि उन्हें "माई-बाप" होने का अहसास विदेश में भी बना रहे. अमेरिका में  राजनायिकों के  नौकरों को लेकर उन पर आरोप लगने का यह तीसरा प्रमुख मामला है. इसके पहले वहाँ  पर नीना मलहोत्रा तथा प्रभुदयाल भी ऐसे मामलों में फंस चुके हैं. कम  से कम एक दलित आई.एफ.एस. अफसर ने ऐसे मामलों में सरकार को आइना देखने के लिए मजबूर किया,यह एक  अच्छी बात है.


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