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रविवार, 29 दिसंबर 2013

उम्मीद की एक नई किरण!


          28 दिसंबर 2013 का दिन स्वतंत्र भारत के राजनैतिक इतिहास के एक महत्वपूर्ण  पडाव के रूप में सदैव याद किया जाएगा. जब हम राजनीति को भ्रष्टाचार, बे‌ईमानी, जातिवाद,परिवारवाद तथा साम्प्रदायिकता के पर्याय और विभिन्न प्रकार के  माफिया गिरोहों और उनके सरगनाओं की शरणस्थली के रूप में देखने के आदी हो गए थे;उस समय अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के राजनीतिक दृश्यपटल पर आगमन के बाद दिल्ली विधानसभा के चुनावों में उनकी अप्रत्याशित सफलता तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद का  शपथग्रहण  उम्मीद की एक नई किरण लेकर आया है. ईमानदार आदमियों के साथ ईमानदारी के पैसे से चुनाव लडना असंभव माना जाने लगा था, पर केजरीवाल की 'आम आदमी पार्टी' ने इसे संभव कर दिखाया है.

           कुछ समय पहले तक यह कहा जा रहा  था कि मोदी आज की भारतीय राजनीति  में एजेंडा सेट कर रहे हैं तथा  कांग्रेस उनके पीछे-पीछे  नाच रही है. पर, आज निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि इस एजेंडे का एक हिस्सा अरविंद केजरीवाल सेट करने लगे हैं जिसकी नोटिस लेने के  लिए कांग्रेस और बी.जे. पी.दोनों विवश हैं. चूँकि अरविंद जो एजेंडा सेट कर  रहे हैं वह राजनीतिक- सामाजिक क्षेत्र में स्वच्छता और शुचिता को स्थान देने के साथ जुडा हुआ है, इसलिए नि:संदेह  इसमें समस्त भारतीय समाज का हित निहित है. इस बात को शायद बहुत से लोग मानेंगे कि बी.जे.पी. के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हर्षवर्धनजी का मार्ग प्रशस्त करने में "आप" की नैतिकतापरक राजनीति की भूमिका अहम रही है अन्यथा विजय गोयल इतनी आसानी से मानने  वाले  नहीं थे. अरविंद  इस मायने में भाग्यशाली हैं कि उन्हें विपक्षी दल के  नेता के तौर पर हर्षवर्धन जैसे स्वच्छ,सौम्य और शिष्ट  व्यक्ति का सामना करना होगा. कांग्रेस की बैसाखी ही अरविंद के पैरों की बेडी है अन्यथा अरविंद और हर्षवर्धन  के आमने-सामने रहते हुए दिल्ली के  लोग दिल्ली के विकास के साथ-साथ   दिल्ली के बाह्य पर्यावरण तथा नैतिक पर्यावरण दोनों में ही अप्रत्याशित सुधार की आशा कर सकते थे.  

         नवंबर, 2013 के महीने में  मैं  उत्तरप्रदेश गया था. मेरा वहाँ अपने ननिहाल में जाना हुआ जहाँ चुनावी माहौल था, क्योंकि जिला पंचायत के सदस्य पद संबंधी कुछ रिक्तियों को  भरने के लिए चुनाव आयोजित किए गए थे. ग्रामीण क्षेत्र में भी उम्मीदवारों के बडे-बडे कटआउट तथा पोस्टर लगे हुए थे. जिस दिन नामांकन होना  था उस दिन उम्मीदवारगण बडे भारी-भरकम  जुलूसों के साथ जिनमें कई-कई  वाहन शामिल थे, अपना नामांकनपत्र दाखिल   करने जिला कचहरी पहुँचे. हर उम्मीदवार ने अपने-अपने साथ क्षेत्र के अधिक से अधिक बाहुबलियों को  लाने की चेष्टा की थी. मैंने यह सब देखकर अपने एक भतीजे से जो राजनीतिक  रूप से सक्रिय है,इस  सब पर होने वाले खर्च के बारे में पूछा. वह विलेज डिफेंस कमेटी के सदस्य का  चुनाव लड चुका है. उसने मुझे बताया कि उस इलेक्शन में उसके दो-ढाई लाख रूपए खर्च हो गए  थे ,फिर इस चुनाव में तो लोगों को कहीं ज्यादा पैसा खर्च करना पडेगा. लोग पैसा  खर्च ही इस आशा में करते हैं कि वे बाद में इससे कुछ अधिक गुना कमा  सकेंगे. उसने मुझे बताया कि समाजवादी पार्टी का जो उम्मीदवार है उसने सरे आम फरसे से किसी का सर काट दिया था तथा  बी जे पी के उम्मीदवार ने हथौडी से सर कूँच कर किसी को मार दिया था.  अगले दिन बी.जे.पी.के उम्मीदवार  का पर्चा उसके खिलाफ आपराधिक मामला होने के कारण खारिज हो  गया.पर उसकी पत्नी ने रिजर्व उम्मीदवार के रूप में पर्चा दाखिल कर रखा था तथा अपने पति के  बदले में वह उम्मीदवार हो गई.  मेरे दिमाग में  स्वत: यह प्रश्न उठा कि मोदी द्वारा भ्रष्टाचार  और परिवारवाद को खत्म करने के सारे वादों एवं आवाह्न के बावजूद वह ऐसी स्थिति  में कहाँ तक कामयाब हो पाएंगे .पर यदि "आप" को दिल्ली जैसा ही प्रतिसाद देश के अन्य भागों में मिलता है तो निश्चय ही हम इस प्रकार की स्थिति में सुधार की आशा कर सकते हैं क्योंकि सबको "आप"  के एजेंडे के अनुसार सुधरना पडेगा. आखिरकार देखिए राहुल ने भी अपराधी राजनैतिक उम्मीदवारों  के पक्ष में लाए जा रहे विधेयक तथा आदर्श सोसाइटी के मामले में नैतिकता के अलमबरदार की  भूमिका निभाई है.


          आगे केजरीवाल और "आप" की सफलता दिल्ली का प्रशासन चलाने में उनकी निपुणता,  लोगों  की उम्मीदों पर खरा उतरने और चुनावी वायदों को पूरा करने पर निर्भर करेगी. पर यहाँ यह भी याद रखना आवश्यक है कि दिल्ली एक सिटी स्टेट की तरह है तथा पूरे देश में सफलता पाने के लिए केजरीवाल एवं "आप" को विविध समुदायों के हितों में सामंजस्य साधने के साथ-साथ उद्योग,कृषि तथा व्यापार संबंधी नीतियों, व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण  और राष्ट्रीय तथा सामाजिक महत्व के बिंदुओं के बारे में, जिसमें रक्षा और विदेश नीति भी शामिल हैं,  अपनी कार्ययोजना तथा दृष्टिकोण को जनता के सामने स्पष्ट करना आवश्यक है. "आप" को जनता नैतिकता के लिए आंदोलन का पर्याय समझती  है तथा दिल्ली के आज के मूमेंटम का लाभ उठाने के लिए  केजरीवाल  एवं उनकी टीम  को अपनी पार्टी के साथ-साथ  इस आंदोलन को पूरे देश में विस्तार देना आवश्यक है.

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