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रविवार, 5 जनवरी 2014

दिल्ली कांड की एक वर्ष बाद कोलकाता में पुनरावृत्ति

          विगत 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में बलात्कारियों के एक गैंग की यातना की शिकार एक  वयस्क बच्ची की 29 दिसंबर को मौत हो जाने के साथ उसका फिजियोथिरैपिस्ट बनने का सपना टूट  गया था. उक्त घटना के ठीक एक वर्ष के बाद  उपर्युक्त घटना की जैसे पुनरावृत्ति के  तौर पर  दिसंबर 2013 का अंत होते-होते  कोलकाता में भी एक बच्ची जो अभी बालिग भी नहीं हुई थी और शिक्षिका बनना चाहती थी; का सपना  भी महज सोलह वर्ष की उम्र में 25 अक्टूबर को बलात्कारियों के एक गैंग की यातना का और फिर 26 अक्टूबर को पुन: थाने में शिकायत दर्ज कराने के बाद लौटते समय उन्हीं बलात्कारियों के  गैंग का शिकार होने के बाद और 23 दिसम्बर को रहस्यमय तरीके से जल जाने के कारण 31 दिसंबर को मौत हो  जाने  के साथ टूट गया.

दोनों ही मामलों में कई समानताएं हैं-


  • दोनों ही घटनाएं महानगरों में घटित हुई हैं. 
  • दोनों ही बालिकाएं समाज के गरीब तबके का प्रतिनिधित्व करती हैं. 
  • दोनों ही के परिवार स्लम एरिया में निवास कर रहे थे.
  • दोनों ही बालिकाएं प्रवासी परिवारों से संबंध रखती हैं जो देश के दो पिछडे राज्यों उत्तर प्रदेश और बिहार से क्रमश: दिल्ली और कोलकाता महानगरों के प्रवासी बने थे. 
  • दोनों ही परिवार अपनी बच्चियों को इन महानगरों में अच्छी  शिक्षा दिलाकर उनका भविष्य बनाने के विचार  से लाए थे.
  • दोनों ही बच्चियाँ अच्छी शिक्षा प्राप्त कर अपने परिवारों को गरीबी के दायरे से बाहर निकालना चाहती थीं. कोलकाता की बच्ची अपनी माँ के साथ महज पाँच महीने पहले समस्तीपुर से स्थाई  रूप से इसी उद्देश्य को लेकर कोलकाता आई थी.उसके पिता उसे कुछ स्थानों  पर ट्यूशन पढने के लिए भेज रहे थे ताकि उसे किसी अच्छे स्कूल में दाखिला दिला सकें.
  • दोनों ही अस्पताल के बिस्तर पर  भी अपने भविष्य तथा शिक्षा को लेकर चिंतित थीं तथा इस विषय में अपने परिवारों से बात कर रही थीं.
  • दोनों ही अस्पताल के बिस्तर पर भी दोषियों  को सजा दिलाने के लिए कटिबद्ध थीं .
          यहाँ आकर  दोनों मामलों मे समानताएं समाप्त हो जाती हैं.  क्योंकि  दिल्ली के मामले में जहाँ पुलिस ने तत्परता से काम किया,  वहीं कोलकाता में  ऐसा नहीं हुआ. उल्टे पुलिस पर यह भी आरोप लग रहा है कि उसने लीपापोती की कोशिश की. जब बच्ची पुलिस के पास  25 अक्टूबर की घटना के बाद शिकायत दर्ज कराकर अपने पिता के साथ लौट रही  थी  तो उस दुस्साहसी गैंग का साहस इतना बढा हुआ था कि  उसने उसके पिता के सामने ही बच्ची का अपहरण कर उसके साथ दोबारा सामूहिक बलात्कार किया.इसके पश्चात अपराधी गिरफ्तार हुए पर उनके गिरोह के सदस्य  बच्ची, उसके पिता तथा परिवार को धमकाते रहे. जब बच्ची और उसके परिवार ने घर बदल लिया तथा दूसरे घर पर चले गए तो गिरोह के सदस्यों ने वहाँ भी पहुँच बना ली तथा अपनी धमकाने की कार्रवाई जारी रखी. बच्ची तथा उसके परिवार को किसी प्रकार की सुरक्षा मुहैया नहीं हुई न ही किसी से कोई सहायता मिली. यह भी कहा जा रहा है कि बच्ची को आग अपराधियों के गिरोह के सदस्यों ने ही लगाई थी. कहा जा रहा है कि बच्ची ने इस बारे में पुलिस को स्टेटमेंट भी दिया पर  उसे दबा दिया गया तथा इसे आत्महत्या के मामले के रूप में प्रचारित किया गया. अब बच्ची की मौत हो जाने के बाद ही मामले ने तूल  पकडा है तथा आग लगाने के जुर्म में दो अपराधी गिरफ्तार किए गए हैं. यह भी कहा जा रहा है कि पुलिस ने बच्ची के शव को अगवा करने तथा  परिवार से जबर्दस्ती मृत्यु-प्रमाणपत्र  हासिल कर बच्ची का शवदाह करने का प्रयास किया जो बच्ची के  परिवार वालों की सजगता  के कारण सफल नहीं हो पाया.

          यह सब हो जाने के बाद  कोलकाता के बुद्धिजीवियों, विचारकों और संभ्रांत नागरिकों तथा वामपंथियों को लगा कि कोलकाता  की मर्यादा का हनन हो रहा है और वे सडकों पर उतरे पर यह स्वत: उद्भूत नहीं दिखा और इसमें  नौजवानों तथा विद्यार्थियों की भागीदारी नगण्य थी जबकि दिल्ली में वे ही आंदोलन चला  रहे थे. शायद इसका कारण नया वर्ष रहा हो और यह कि 'सिटी आफ ज्वाय' सेलिब्रेशन में कभी पीछे नहीं रहता.एक अन्य बात यह है कि बंगाल में बलात्कार अब खबर नहीं बनते. एक खबर के मुताबिक बंगाल  इस मामले में देश में  दूसरे स्थान पर  है.

          शायद ममता के राजनीतिक विरोधियों को छोडकर कोई  राजनीतिक पार्टी  इस मामले पर उस तरह  नहीं बोलेगी जिस तरह वे दिल्ली के मामले पर बोली थीं क्योंकि सभी जानते हैं कि कुछ महीनों के बाद केंद्र में गठबंधन सरकार   बनने की स्थिति में ममता का समर्थन पाना महत्वपूर्ण होगा  और ममता दी इस मुगालते को पाले रहना चाहती हैं कि राज्य में सब कुछ ठीक चल रहा है. कानून  और व्यवस्था के मामले और  इनके बारे में किसी का भी बोलना उन्हें वामपंथियों का षडयंत्र दिखाई देता है .


           लेकिन दिल्ली में निर्भया कांड  के एक वर्ष बाद उसी प्रकार के हादसे की एक अन्य महानगर  में पुनरावृत्ति हमारे सामने कुछ अहम सवाल खडे करती है-
  • क्या बेटे और बेटियों के समान होने का नारा निरा नारा ही है और वास्तविकता में हम उसे निरर्थक  मानते हैं ?
  • क्या गरीबों की बेटियों को शिक्षा पाने,  सपने देखने और उन्हें साकार करने का हक नहीं है?
  • क्या नगरों में गुंडा एवं गैंगस्टर गिरोहों के विकास पर रोक लगाने और उनका  दमन करने का काम सक्रियता से और प्रथम प्राथमिकता के तौर पर नहीं किया जाना चाहिए.
  •  क्या हम चाहते हैं कि हमारा देश विश्व में बलात्कारियों के देश के रूप में जाना जाए  और अन्य देशों के लोग  यहाँ आने के नाम से ही खौफ खाएं.
          अगर इन सवालों का जवाब नहीं है तो कृपया आप जहाँ भी हैं स्वयं सजग हों,अपने पडोसियों को सजग करें तथा अपने समीप के राजनीतिज्ञों पर इस बात के लिए दबाव बनाएं कि वे प्रशासनतंत्र को इस प्रकार के मामलों  में त्वरित एवं कठोर कार्रवाई के लिए बाध्य करें अन्यथा फिर उक्त सवालों का जवाब 'हाँ' ही हो सकता है.

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