hamarivani.com

www.hamarivani.com

सोमवार, 6 जनवरी 2014

कांग्रेस का हाथ किसके साथ?

          एक आकलन के अनुसार कांग्रेस  का एक तबका अब यह मान रहा है कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में सत्ता का उनके  पास बने रह पाना मुश्किल है. इस तबके को दिल्ली के राज्य चुनावों में आशा की किरण दिखाई दी है और यह तबका आर्किमिडीज की तरह आह्लादित होकर "यूरेका-यूरेका" जैसा कुछ चिल्लाना  चाहता है. यह तबका मैच को जीतने के लिए नहीं बल्कि ड्रा कराने के लिए खेलना चाहता है  और उसे लग रहा है कि इस चैम्पियनशिप की बाजी मुख्य विपक्षी टीम से छीन  लेने में   केजरीवाल और उनकी आम आदमी टीम महत्वपूर्ण भूमिका  निभा  सकती है. कुछ को  तो यह भी उम्मीद है कि "आप" ने यदि बैटिंग और बालिंग दोनों ही क्षेत्रों में कुछ जौहर दिखाए तो मुख्य विपक्षी टीम धराशाई भी हो सकती है और जो उन्हें असंभव लग रहा है(सत्ता में दोबारा आना) वह भी संभव हो सकता है. इसके लिए इस तबके के लोग एक दूसरे के कानों में फुसफुसा कर कह रहे हैं( पर फिर भी और लोग उसे सुन पा रहे हैं )- "कांग्रेस पार्टी का हाथ आम आदमी नहीं आम आदमी पार्टी के साथ". इस तबके का मानना है कि केजरीवाल ही वह आलराउंडर है जिसके पास मुख्य विपक्षी टीम के सारे दाँव-पेंचों की काट है और वह उनके बल्लेबाजों को कम रन के चलते,चलता कर सकता है. इसलिए यह तबका चाहता है कि केजरीवाल ताल ठोंककर  पूरे दमखम से लडे.,पूरे देश में लडे. बहुत पहले किसी को एक कहावत कहते सुना था-' हमारी एक आँख जाए तो जाए, दुश्मन की दोनों आँख फूटे'. पर शायद इन्हें इस बात का इमकान नहीं है कि हो सकता है  केजरीवाल ऐसा खिलाडी निकले  जो इनकी भी दोनों आँख ले जाए.

          अरे भाई इस बात को तो समझो कि अपनी लडाई दूसरों के कंधे के सहारे नहीं, खुद लडी जाती है. आज का मुख्य विपक्षी दल भी इसी तरह के मुगालते में धोखा खा चुका है. मई-जून 1995 में कल्याण  सिंह ने बार-बार आगाह किया था कि मुलायम सिंह की सरकार गिराने के लिए मायावती को गले मत लगाओ, कुछ दिन इंतजार  करो.पर भाजपा ने मायावती की  ताजपोशी बतौर मुख्यमंत्री करा दी और मायावती इतनी चतुर खिलाडी निकली कि उसने सबके पर कतर दिए. आज भी उत्तर प्रदेश में लोग अखिलेश के  विकल्प के तौर पर मायावती का नाम लेते हैं,भाजपा के किसी नेता का नहीं. हो सकता है कि आगे दिल्ली में भी दो मुख्य दल "आप" और"भाजपा" ही रह जाएं (भले ही दूर की कौडी लगे पर अगर केजरीवाल जनता की उम्मीदों पर खरे उतरते हैं तो  यह संभव  है)  और भले ही आज यह कोरी कल्पना लगे पर आगे चलकर केंद्र में भी दुहराई जा सकती है  क्योंकि भारतीय राजनीति इस बात की गवाह है कि केंद्र से थोडा  वामपंथ   और थोडा दक्षिणपंथ की तरफ झुकाव रखने वाली केवल दो ही पार्टियाँ केंद्र की राजनीति में प्रमुखता पाती हैं. इसलिए कांग्रेस को अपना स्थान दूसरे को गँवा देने के प्रति सावधान रहना चाहिए. ब्रिटेन की लिबरल पार्टी जो एक लंबे अरसे से वहाँ की तीसरे नम्बर की   शक्ति है कभी वहाँ की सत्ताधारी पार्टी  हुआ करती थी. 

           खानवा के युद्ध के समय राणा साँगा की फौज को देखकर जब बाबर के सैनिक घबरा गए और कुछ उसे बिना लडे ही वापस काबुल चले चलने की सलाह देने लगे  तो उसने उन्हें समझाया और हौसला बँधाया. फिर भी उसे अपने सैनिकों की घबराहट देखकर यह लगा कि इनमें से कुछ  पलायन  न  करने लगें  तो उसने उन्हें कुरान हाथों पर रखकर लडने की कसम खिलाई और कहा कि अगर जीतोगे तो हिंदुस्तान का साम्राज्य मिलेगा और अगर शहीद हुए तो बहिश्त में जगह पाओगे. नतीजतन तदबीर के साथ तकदीर ने भी उसका साथ दिया.राहुल "आप" से सीख लेने की बात  कह ही चुके हैं,बाबर जैसा ही कुछ उन्हें अपने अनुयाइयों  के साथ  पेश आना चाहिए-" अरे  जीते तो जीते,  नहीं तो पाँच साल बाद दोबारा मौका मिलेगा." लडाई वही दमदार और कारगर होती है जो  अपने बूते लडी जाती है.दूसरे के कंधे के सहारे लडाइयाँ नहीं लडी जा सकतीं.  हार और जीत जिंदगी की तराजू के दो पलडे हैं जिनमें से कभी एक भारी हो जाता है तो कभी दूसरा, पर बिल्कुल अंत में देखने पर आप यही पाएंगे कि  कुल मिलाकर दोनों का संतुलन बराबर रहा है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें