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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

चलो कीचड उछालें ! (व्यंग्य-Satire)

          "आप" ने  फाल्गुन तो कौन कहे, बसंत आने के पहले ही फगुहा खेलना शुरू कर दिया. जब सभी कीचड उछाल राजनीति कर रहे हैं तो "आप" क्यों पीछे रहे और पच्चीस भ्रष्ट राजनीतिज्ञों की सूची कर दी. जिसे चिल्लाना है चिल्लाते रहो, तथ्य साबित करने की,  कानूनी नोटिस भेजने की और  न्यायालय जाने की  धमकी देते रहो. होली में कुछ लोग रंग के पैसे बचाने के लिए नाली का कीचड और गोबर फेंक कर होली खेलने का शौक पूरा करते  हैं. सो अगर "आप" ने गाँवों और शहरों दोनों जगह प्रचलित इस परम्परा का अनुसरण किया तो क्या बुरा किया. फिर इसका तो चुनाव-चिह्न ही झाडू है. इसलिए इसके पास कचरा सदैव स्टाक में रहता है.

         मोदी और सोनिया बच रहे थे तो अगले दिन  उनके ऊपर भी कालिख  फेंकने का इंतजाम कर लिया गया. कह दिया गया कि कार्यकर्ताओं की माँग पर और उनकी सहमति से इनके भी नाम शामिल कर दिए गए हैं क्योंकि ये भ्रष्ट फौज का नेतृत्व कर रहे  हैं . अगर ऐसे ही लिस्ट जारी कर निर्णय कर दिए जाएंगे तो शायद भारतवर्ष के न्यायालयों पर बढा हुआ बोझ काफी कम हो जाएगा. आपको मालूम नहीं है क्या कि "आप" बात-बात पर रेफरेंडम कराती रहती है और सारे महत्वपूर्ण फैसले रेफरेंडम के बूते ही करने की पक्षधर है . यह रेफरेंडम क्या-क्या गुल खिलाएगा पता नहीं. मैं तो काफी  सहम  गया  हूँ. कहीं ऐसा न हो कि किसी दिन मुझे  मुहल्ले से निकालने का  फरमान सुना दिया जाए और कहा जाए कि मुहल्ला समिति ने एक रेफरेंडम में यह निर्णय लिया है. अब मैं लाख दुहाई देता  रहूँ कि मुहल्ले का मेरा यह घर मेरी पुश्तैनी जायदाद है और इस पर मेरा कानूनी हक है.  जैसे किसी जमाने में कांग्रेस के ओसारे में यह कहावत प्रचलित थी -" खाता न बही जो सीताराम केसरी कहें वही सही "  वैसे ही अब "आप" की कृपा से -"खाता न बही जो रेफरेंडम कहे वही सही". फिर जनमत के आगे कानून क्या है. दस आदमी आपके आगे- पीछे हैं तो जनमत आपके साथ है.किसी के भी घर में आधी रात को घुस जाइए और कह दीजिए कि वो ड्र्ग पेडलर है, अगर जनाना है तो वेश्यावृत्ति का आरोप लगा दीजिए. मुहल्ले में आपका रसूख बना रहेगा और वाहवाही मिलेगी सो अलग. आखिरकार "आप" के मुख्यमंत्री को गर्व है कि लोग उन्हें अराजकतावादी कह रहे हैं. इसलिए अगर "आप" की लोकतांत्रिक प्रणाली के अंतर्गत विरोधी स्वर व्यक्त करने वाले  को शाउटिंग ब्रिगेड द्वारा बैठक  में  चुप होने के लिए मजबूर कर दिया जाता है तो इसमें हर्ज क्या है. अराजकतावाद और जनमत दोनों का ही अनुकरण किया जा रहा है. जिसके पीछे लोग ज्यादा आवाज  में चिल्लाएं वही लोकतंत्र का झंडाबरदार है, वहीं जनमत है.

         इस देश में तमाम लोग तमाम चीजों के ठेकेदार हैं. किसी ने धर्मनिरपेक्षता का ठेका ले रखा है तो किसी ने राष्ट्रवाद का. किसी ने समाजवाद का ठेका लेकर उसे परिवारवाद में तब्दील कर दिया है. सबका अपना-अपना यू.एस.पी.है. ईमानदारी का बीडा "आप" ने उठाया है. इसलिए वह ईमानदारी की स्वयंभू ठेकेदार है.  वह जिसे चाहे बे‌ईमान  बताए और जिसे चाहे ईमानदारी का तमगा दे-दे. इस परम्परा की शुरुआत तो  औरों ने की थी. "आप" तो बस उसे आगे बढा रही है. अंग्रेजी की कहावत -" Give  the  dog  a bad  name   and  kill  him" का अनुपालन करते हुए सभी अपना- अपना मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं सो "आप" भी यही कर रही है तो इतनी अकुलाहट क्यों, इतनी  चिल्लाहट क्यों?

          दिल्ली के देश  की राजधानी होने के कारण उस पर पूरे देश का हक है यह कहने वालों को थोडे दिनों में अपनी औकात का  पता चल जाएगा. महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जैसी किसी पार्टी की दिल्ली में कमी थी सो तथाकथित अराजकतावादी,समाजवादी,मार्क्सवादी और संघवादी के गठजोड नेतृत्व वाली  "आप" ने क्षेत्रवाद का भी ठेका   ले लिया है. दिल्लीवासियों के लिए दिल्ली की संस्थाओं में आरक्षण की माँग कर "आप" उस कमी को भी पूरा कर रही है जो अब तक थी. आप विश्वास मानिए पूर्वोत्तर भारत के लोगों पर दिल्ली में हमले इस क्षेत्रवाद का परिणाम नहीं बल्कि दुर्घटनामात्र हैं. आप का सर ऐसी घटनाओं पर शर्म से झुक जाता  है तो झुकाए रहिए.

         इन राजनैतिक तौर-तरीकों को अपनाने वालों को सर-आँखों पर बैठाने वाले तो हम ही हैं.  इसलिए हमने जो बोया है वही  हम  काटेंगे .

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