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मंगलवार, 11 मार्च 2014

अरविंद और "हार की जीत"

          इंटरनेट पर वाइरल हुए एक वीडियो को कल देखकर मुझे बचपन में पढी हुई "सुदर्शन" की सुप्रसिद्ध कहानी "हार की जीत " फिर एक बार याद आ गई.  पढने के बाद कहानी मन पर छा गई थी . बाबा भारती,उनका घोडा सुल्तान और डाकू खड्ग सिंह जैसे आकर्षक चरित्र और फिर बाबा से सुल्तान को छीनने के लिए डाकू खड्ग सिंह का दीन  दुखियारे अपाहिज का रूप धारण करना जैसा रोमांचकारी कारनामा और अंत में बाबा का मानवता के हित में खडग सिंह से निवेदन  मस्तिष्क में चलचित्र की तरह घूमते रहे थे और वहाँ अमिट रूप से अंकित हो गए.  यह कहानी मुझे क्यों याद आई इस संदर्भ की चर्चा बाद में करेंगे, पहले एक   बार पूरी कहानी संक्षेप में उन लोगों के लिए दुहरा लेते हैं जिन्होने इसे पढा नहीं है अथवा भूल चुके हैं-

          माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत को देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था. भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता. वह घोड़ा बड़ा सुंदर और ताकतवर था. उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में नहीं था. बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कह कर पुकारते, अपने हाथ से उसे खिलाते-पिलाते. बाबा ने भौतिक मोह - माया का परित्याग कर दिया था और गाँव के बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते तथा भगवान का भजन करते थे.पर वे सुल्तान का मोह नहीं त्याग सके थे.  सुल्तान की चाल के बारे में वे कहते कि ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो. वे रोज संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर लगा लेते थे .
          खडगसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था. लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे. सुल्तान की ख्याति उस तक  पहुँची.  उसे देखने के लिए अधीर हो खडग सिंह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने खडगसिंह से  हाल-चाल और आने का कारण पूछा. खडग सिंह ने बताया कि वह सुल्तान की तारीफ सुनकर उसे देखने की अभिलाषा से आया है. इस पर बाबा भारती गदगदायमान हो गए तथा उन्होने सुल्तान की चाल और  उसके सौंदर्य का बखान खडग सिंह से कर डाला. फिर वे उसे साथ लेकर अस्तबल गए. बाबा  ने गर्वपूर्वक घोडे को दिखाया. खडग सिंह अचरज में पड गया  क्योंकि उसने ऐसा  बाँका घोडा पहले कभी नहीं देखा था. उसने सोचा कि ऐसा घोडा उसके पास होना चाहिए था,साधु को घोडे का क्या काम. उसने बाबा से घोडे की चाल दिखाने के लिए निवेदन किया. घोडे की हवा में उडने  सदृश चाल देखकर खडग सिंह ईर्ष्या से भर उठा.  डाकू होने के कारण जो भी वस्तु पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था. वापस जाते समय वह बाबा से यह कह कर गया कि वह घोडे को बाबा के पास न रहने देगा.
          बाबा भारती डर गए और रात को नींद के अभाव में जाग-जाग कर अस्तबल की रखवाली करने लगे। पर कई माह बीत गए और खडग सिंह नहीं आया . धीरे-धीरे बाबा भारती का भय मिट  सा गया और वे पुन: पूर्ववत हो गए. एक दिन संध्या के समय बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर, आँखों में चमक और मुख पर प्रसन्नता लिए घूमने जा रहे थे. वे घोड़े के शरीर और रंग-रूप  को देखकर मन में फूले नहीं समा रहे थे. अचानक एक तरफ से आवाज़ आई- बाबा, इस कंगले की सुनते जाना. करूणाभरी आवाज़ सुनकर बाबा ने घोड़े को रोक लिया और एक अपाहिज को वृक्ष की छाया में पडे कराहते पाया. बाबा ने अपाहिज के  कष्ट का कारण पूछा. अपाहिज ने हाथ जोड़कर अपने को दुखी बताते हुए दया की प्रार्थना की और तीन मील दूर रामवाला गाँव तक पहुँचा देने की प्रार्थना की जहाँ उसके सौतेले भाई दुगार्दत्त वैद्य रहते थे. 
          बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे. सहसा उन्हें झटका लगा और लगाम हाथ से छूट गई. उनके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है.  भय, विस्मय और निराशा से वे चीख उठे. वह अपाहिज वास्तव में डाकू खडग सिंह था।
           कुछ देर तक चुप रहने के बाद बाबा भारती ने पूरे बल से चिल्लाकर खडग सिंह से रुकने के लिए कहा.खडग सिंह ने  कहा कि बाबाजी  घोड़ा अब न दूँगा. बाबा भारती ने उससे सिर्फ एक बात सुनने के लिए निवेदन किया. इस पर खडग सिंह ठहर गया.बाबा भारती ने खडग सिंह से कहा कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है, मैं  इसे वापस करने के लिए नहीं कहूँगा। परंतु  एक प्रार्थना है इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा. खडग सिंह ने बाबा से  कहा कि वे उसे दास  समझ कर आज्ञा दें पर घोडे को वापस करने की बात छोडकर. बाबाजी ने कहा घोडे का नाम न लो। मैं  इस बारे में कुछ नहीं कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना. खडग सिंह बाबा की बात सुनकर कर चक्कर में पड  गया और उसने पूछा कि बाबाजी इसमें आपको क्या डर है.सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया कि लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास नहीं करेंगे. यह कह कर वे इस  तरह  मुँह मोड़ कर चले गए जैसे उनका सुल्तान से  कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो.
         बाबा भारती चले गए. परंतु उनके शब्द खडग सिंह के कानों में गूँज रहे थे. बाबा को केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दें. डाकू को लगा कि ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है.   अंततोगत्वा दूसरे दिन रात्रि के अंधकार में खडग सिंह बाबा भारती के मंदिर पर सुल्तान को लेकर पहुँचा .  अस्तबल का फाटक खुला पड़ा था.  खडग सिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया. उस समय उसकी आँखों में  आँसू थे. 
         रात के चौथे पहर बाबा भारती उठने के बाद  अपनी कुटिया से बाहर निकले और स्नानादि से निवृत्त होकर जैसे  स्वप्न में  हों,  अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल का अहसास हुआ और  घोर निराशा ने पाँवों को जैसे रोक सा दिया। पर घोड़े ने अपने स्वामी की पदचाप को पहचान लिया था और वह भीतर ज़ोर से हिनहिनाया. अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़कर  अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो. फिर वे संतोष से बोले-अब कोई दीन-दुखियों से मुँह नहीं  मोड़ेगा.
         अरविंद केजरीवाल के पुण्यप्रसून बाजपेयी द्वारा साक्षात्कार के दौरान उनकी आफ रेकार्ड बातचीत का  वीडियो बहुत से लोगों ने देखा, मैंने भी कल देखा और उसे देखने के बाद ही मुझे सुदर्शन की यह  कहानी याद आ गई. साक्षात्कार के दौरान अरविंद केजरीवाल पुण्यप्रसून से यह अनुरोध करते हुए दिखाई देते हैं कि वे प्राइवेट सेक्टर के बारे में उनके विचारों को न प्रसारित करेंं ताकि मिडिल क्लास उनके खिलाफ न जाए. साथ ही वे "हाशियों पे अस्सी प्रतिशत  समाज" सबंधी अंश को असली वोट बैंक से संबंधित होने के कारण प्रसारित करने तथा भगत सिंह को 14 फरवरी के दिन फाँसी दिए  जाने एवं स्वयं द्वारा 14 फरवरी को इस्तीफा दिए जाने को पुण्यप्रसून द्वारा क्रांतिकारी बताए  जाने पर उसे बार-बार चला कर दिखाए जाने के लिए कहते   हैं . एक आदमी को लोगों ने सच्चा समझा ,तमाम लोगों ने उम्मीद बाँधी कि वह राजनीति को बदल देगा.इंटरनेट पर ही दो महीने पहले देखा कि किसी ने उसकी  तुलना गाँधी से कर डाली. पर आखिर में यदि लोगों को यह पता चलता है कि उसने भी एक मुखौटा लगा रखा है तो लोग क्या इसके बाद फिर दोबारा किसी ऐसे व्यक्ति पर यकीन करेंगे जो यह कहेगा कि वह सच्चाई की राह पर चलने वाला है और तमाम बुराइयों को मिटा देने के लिए राजनीति में अवतरित हुआ है. इस प्रश्न का जवाब निश्चय ही  अरविंद  केजरीवाल के  पास हो सकता है. पर मुझे कभी अपने द्वारा लिखी गई कुछ पंक्तियाँ याद आ गई हैं-
गर बबूल के बीज बोए हैं
                               काँटे ही होंगे आम की उम्मीद नहीं रखना ।
गर किसी का भरोसा तोडा है
                                जफा ही मिलेगी वफा की उम्मीद नहीं रखना ॥

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