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शुक्रवार, 21 मार्च 2014

अधूरा होली-मिलन (व्यंग्य-Satire)

          नीचे दी गई परिस्थितियाँ और पात्र पूरी तरह काल्पनिक हैं जिनका उद्देश्य सहज हास्य है. वास्तविकता से इनका कोई लेना- देना नहीं है. किसी पात्र  या परिस्थिति के साथ इनकी किसी तरह से साम्यता महज संयोग है जिसके लिए लेखक जिम्मेदार नहीं है
        
           राजधानी में आयोजित राजनैतिक होली मिलन समारोह  में प्राय: सभी प्रमुख राजनैतिक दलों के प्रतिनिधि आमंत्रित हैं.सर्वप्रथम एक द्वार  से तुरगेंद्रजी तुरग (घोडे) पर सवार होकर आते दिखाई देते हैं. उनके पीछे फाँसवानजी, श्रीमती फुरंदेश्वरी, तमिल हीरो 'कैप्टन', श्री मुदितराज, श्री मुदिमुरप्पा, खल्यान सिंह, दगदम्बिकापाल आदि वे सभी नेता हैं जो पिछले कुछ अरसे  के दौरान बह जल पार्टी  में शामिल हुए या फिर लौटकर वापस आए हैं.

         तुरगेंद्रजी हाथ से अपने पीछे की तरफ इशारा करते हैंं और पत्रकारों से कहते हैं-" देख लो! सारे पत्ते उड-उड कर किस तरफ आ रहे हैं, हवा किस तरफ बह रही  है."
एक पत्रकार- " सो तो है, पर क्या हम कुछ सवाल उन लोगों से पूछ लें जो आपके पीछे-पीछे आ रहे  हैं "
तुरगेंद्रजी-" हाँ-हाँ! पूछो जिससे जो भी पूछना हो."

  एक पत्रकार फाँसवानजी से-" आपके अनुसार तो तुरगेंद्रजी साम्प्रदायिक थे ,फिर आप उनके  साथ कैसे आ गए?"
फाँसवानजी- "सच बताऊँ?"
पत्रकार-"अवश्य"
फाँसवान-"आप जहाँ जाइएगा, हमें वहाँ  पाइएगा."
पत्रकार-" पर आप तो हमेशा तुरगेंद्रजी के साथ नहीं रहे हैं.  आपने  तो उनके और गुजरात के सवाल पर ही गठबंधन छोडा था."
फाँसवानजी-‌" यहाँ आप से मेरा मतलब सत्ता से है. जहा सत्ता रहती है वहाँ  हम रहते  हैं. तुरगेंद्रजी के पास सत्ता आती दिख रही है इसलिए हम  उनके साथ आ गए हैं."
पत्रकार-"लेकिन साम्प्रदायिकता के मुद्दे का और ओसामा बिन लादेन के उस डुप्लीकेट का क्या  हुआ जिसे आप साथ लेकर घूमा करते थे?"
फाँसवानजी-" जैसे बालीवुड में फिल्म बनाने वाले अपनी फिल्म को हिट करने के लिए नए-नए फार्मूले आजमाते रहते हैं,वैसे ही हम भी करते हैं. पिछले इलेक्शन में इन फार्मूलों ने नहीं काम किया तो नया फार्मूला आजमा रहे हैं"
पत्रकार - "लेकिन तुरगेंद्रजी क्या  अब आप के लिए साम्प्रदायिक नहीं रह गए?""
फाँसवानजी-" देखिए कहावत है कि दुनिया अपनी औलाद से हारती है. सो जब मेरा कुलदीपक कह रहा है कि न्यायालय ने तुरगेंद्रजी को दंगों के आरोप से मुक्त कर दिया है तो मेरे सामने इसके सिवाय चारा क्या है कि मैं भी इसी बात को दुहराऊँ. "
पत्रकार - "यानी कि अब आप तुरगेंद्रजी को साम्प्रदायिक न तो कहते हैं और न ही मानते हैं"
फाँसवानजी - "बिल्कुल ठीक." 
पत्रकार - "यानी कि अब आपने अपनी जबान पलट रहे हैं!"
फाँसवान- "जबान पलटने का सवाल ही कहाँ  है? मेरी तो जबान दोनों तरफ एक  जैसी है. लीजिए देखिए "
फाँसवानजी अपनी जीभ बाहर निकालकर दिखाते हैं.फिर जीभ को पलट कर दिखाते हैं. दोनों तरफ  जीभ बिल्कुल एक जैसी है. फोटो पत्रकार क्लिक-क्लिक करते  हुए उनके जीभ की फोटो खींचने में  लग जाते  हैं


एक अन्य पत्रकार तमिल हीरो 'कैप्टन' की तरफ मुखातिब होता और प्रश्न करता है-" सर तमिल फिल्म इंडस्ट्री के डायलागों में आपको 'सत्यवादी ' का पडोसी बताया जाता है. पर सत्य का ठेका इन दिनों राजा  हरिश्चंद्र  के पास नहीं है.इसे 'आप यहाँ आए किसलिए पार्टी'  ने ले रखा है. फिर आप "आप यहाँ..." के साथ न जाकर बह जल पार्टी के साथ क्यों आ गए?"
कैप्टन- "लगता है  तुमने चाणक्य का मंडल सिद्धांत नहीं पढा. "
पत्रकार-"सर मैंने पढा भी नहीं है और  आप  क्या कहना चाहते हैं वह भी मैं नहीं समझ पा रहा हूँ."
कैप्टन-" मंडल सिद्धांत के अनुसार पडोसी पडोसी का शत्रु होता है और पडोसी का पडोसी जो आपका पडोसी नहीं है वो आपका मित्र होता है. फिर अगर सत्यवादी होने की वजह से"आप यहाँ..." मेरी पडोसी है तो मैं उनके साथ कैसे जा  सकता हूँ  और दिल्ली में 'बह जल पार्टी' , 'आप यहाँ.. " की पडोसी है पर मेरी पडोसी नहीं है; इसलिए मेरी मित्र हुई."
पत्रकार-"सर आप तो महान डिप्लोमैट हैं, लगता है विदेश मंत्री आप ही बनेंगे."
कैप्टन' -"मैं  कैप्टन हूँ.मुझे  थलैवर कहो वरना इल्लै-इल्लै पो (तमिल में-कुछ नहीं,जाओ)."
     
एक अन्य पत्रकार खल्यान सिंह की तरफ मुखातिब होता  और प्रश्न करता है-" सर आपने तो भूतकाल  में बह  जल पार्टी को मटियामेट कर देने की घोषणा की थी. फिर अब आप अपनी उस अखंड प्रतिज्ञा को भूल कैसे गए."
खल्यान सिंह-" छोडो कल की बातें,कल की बात पुरानी। नए दौर में लिखेंगे फिर  से नई कहानी."
पत्रकार-"सर पर आप तो फिर-फिर से नई कहानियाँ लिखने  में लग जाते हैं. इस बात का क्या भरोसा कि  आप कल फिर से एक नई  कहानी लिखना नहीं शुरू कर देंगे."
खल्यानजी-" बस अब यही आखिरी कहानी है. जनता  का मुझ  पर से भरोसा इतना उठ चुका  है कि अब मैं कोई नई कहानी लिखने  की स्थिति में नहीं  हूँ."
पत्रकार-" दगदम्बिकाजी के शातिर दिमाग का तो आपको अनुभव है. आपका तख्तापलट कर  वे एक दिन के लिए ही सही राजा बन  बैठे थे. इस बात का  क्या भरोसा  कि वे कल फिर इसे दुहराने से बाज आएंगे."
खल्यानजी-"उनका मामला भी मेरी तरह ही है. होशियार है! अपनी सांसदी बचा ले जाएगा. फिलहाल तो हम  दोनों मिल कर कुछ दिनों के लिए ही सही कल्याणजी-आनंदजी की जोडी  बनाएंगे और राजनैतिक संगीत का सृजन करेंगे."
पत्रकार-" यानी कि यह सुनिश्चित है कि यह कानफोडू  संगीत जनता की श्रवणशक्ति को क्षीण करेगा."
खल्यानजी-"एवमस्तु"

 एक पत्रकार तुरगेंद्रजी से-" सर हवा के साथ  उडकर आए इन पत्तों की मदद से आप कैसे देश  की व्यवस्था को सुधारेंगे?"
तुरगेंद्रजी-"मुगल फौज में बेगार भी भर्ती किए जाते थे. इनमें से  कितनों को मैं बाद में पैदल सैनिक का भी ओहदा दूँगा या नहीं,वो तो मेरे ऊपर  है. वैसे एक राज की बात बताऊँ? "
पत्रकार- "हाँ-जरूर , वही जानने के लिए तो हम आए हैं."
तुरगेंद्रजी-" बाहर से आए यही बेगार कल  पैदल सैनिक  बन कर मेरी ढाल बनेंगे. ये जितने संख्या में अधिक रहेंगे उतने ही  तगडे बफर जोन  का काम मेरे लिए करेंगे. वरना, मेरी पार्टी के  बूढे कब मेरे खिलाफ कौन सा नया बखेडा खडा कर दें  इसका कोई भरोसा नहीं."

         तभी   एक अन्य द्वार से बिगुलजी अपनी माँ मैनियाजी और तनदोहनजी के साथ दल-बलसहित प्रवेश करते हैं. उनके पीछे पय्यरजी, दुरविजय सिंह और रेडनेसजी अन्य अनुयाइयों के साथ तुरही बजा रहे हैं. तुरगेंद्रजी बिगुलजी को देखकर उन्हें एक उंगली दिखाते हैं. बिगुलजी उन्हें दो अंगुलियाँ दिखाते हैं. 
 पय्यरजी - "सर , आप विक्टरी साइन दिखा रहे हैं?"
बिगुलजी - " पय्यरजी जब आप समझ नहीं पाते हैं तो बोला मत किया करिए. "
दुरविजय सिंह - "अरे पय्यरजी! सर कह रहे हैं कि तुम मेरी एक आँख फोडोगे तो मैं तुम्हारी दोनों आँखें फोड दूँगा. है न सर! "
बिगुलजी मुस्कुराते हैं और न में सिर हिलाते हैं.
एक पत्रकार पूछता है - " सर क्या आप दोनों आध्यात्मिक वार्तालाप में निमग्न हैं. तुरगेंद्रजी कह रहे हैं कि एक परमात्मा  है और आप कह रहे हैं कि आत्मा और  परमात्मा दो हैं ?"
बिगुल - " अरे मूर्खों! वे अंकलजी यह कह रहे हैं कि हमारी ग्रेस पार्टी  100 सीटों के अंदर सिमट जाएगी और मैं  कह रहा हूँ कि हमारी दो सौ के  ऊपर सीटें आएंगी . "
पय्यरजी - "सर , आप महान हैं ! "
बिगुलजी अपना हाथ ऊपर उठाकर अँगूठा और शेष चारों उँगलियाँ जोडकर हथेली दिखाते हैं और इसे देखकर तुरगेंद्रजी मुट्ठी बाँधकर दिखाते हैं .
पय्यरजी - " क्या सर ! आपने थप्पड़ दिखाया तो उसने घूँसा दिखा दिया! "
बिगुल - "अगर बात नहीं समझ पाते हो तो चुप रहो !  "
दुरविजय सिंह - " अरे, सर अपनी पार्टी का निशान दिखा रहे हैं और वो हाथ से  फूल बनाने की कोशिश कर रहा था पर फूल बना नहीं पाया , घूँसे की  शक्ल में मुट्ठी बँध गई. ओल्ड  हैबिट्स डाई हार्ड "
पत्रकार - " क्या वास्तव वास्तव में ऐसा है , सर ?"
बिगुलजी फिर मुस्कराते  हैं और न में सिर हिलाते हैं .
पत्रकार - " तो फिर सर! मुझे तो ये विद्योत्तमा और कालिदास वाला मामला लगता है. आपने कहा कि तत्व पाँच है और वे कह रहे हैं कि इनके मिलने से ही सृष्टि बनी  है."
राहुल - "अरे मैं हाथ दिखाकर कह रहा हूँ -'अपना हाथ  जगन्नाथ' और अंकलजी कह रहे हैं दुनिया मेरी मुट्ठी में  "
पय्यरजी - "सर , आप महान हैं ! "

         मैनियाजी और तनदोहनजी पीछे से आगे आ जाते हैं.
तनदोहनजी - " सामने गुजराती आदमी है तो इसका ये मतलब नहीं  है पुत्तर, कि पहले वाले शेयर बाजार की भाषा में  बात करो. अब तो शेयर बाजार भी ऑनलाइन चलता है "
मैनियाजी - "अरे , हम साइन लैंगुएज सीखने नहीं होली मिलन के लिए आए हैं. चलो होली मिलन शुरू करते हैं. "

         इसी समय एक दरवाजे से टोपी लगाए हुए और मफलर बाँधे हुए बकरीवालजी प्रवेश करते हैं. वे चिल्ला कर कहते हैं - " दिल्ली में आयोजित होली  मिलन में पहला अधिकार दिल्लीवासियों का होना चाहिए. फिर किस अधिकार से कौन गुजराती आदमी को यह अधिकार दे रहा है. मैं अभी-अभी गुजरात घूमकर आया हूँ. पूरा गुजरात ही फ्राड है. असली गुजरात तो भगवान कृष्ण के बाद ही द्वारिका के साथ समुद्र में समा चुका है. होली मिलन पर पहला हक मेरा है. अगर किसी ने मेरा यह अधिकार छीना तो मैं तुरंत धरने पर बैठ जाऊँगा. "
बिगुल हाथ जोडकर - " अरे हमने तो पहले भी आपके साथ मिलन किया है और आगे भी मिलन करने को तैयार हैं, इतने उत्तेजित क्यों  हो जाते हो?"
बकरीवाल- " क्योंकि यहाँ बंबानी की साजिश चल रही है. "
राहुल - " वो कैसे बकरीवालजी ? "
बकरीवाल - " अरे ये तो 
बंबानी का नारा था-'कर लो दुनिया मुट्ठी में' .ये तुरगेंद्र मुट्ठी दिखा कर उसी नारे को दुहरा रहा है   "
राहुल - "अरे नहीं भाई.वो अंकलजी कह रहे हैं - दुनिया मेरी मुट्ठी में "
बकरीवाल - " मुझे पता है तुम भी बंबानी के आदमी हो. बंबानी ही इस देश को चला रहा है , मैं  सब समझता हूँ. "
एक पत्रकार बकरीवालजी से- "सर , पिछले कुछ दिनों से आप तुरगेंद्रजी और उनकी पार्टी पर हमलावर हो गए हैं. ग्रेस पार्टी को आपने छुट्टा छोड दिया है.ऐसा क्यों?"
बकरीवालजी - "
ईमानदारी से बताऊँ "
पत्रकार - " अरे सर आप तो स्वयं साक्षात ईमानदारी का अवतार हैंं,फिर ईमानदारी से तो बताएंगे ही."
बकरीवाल - " जब मैं इंजीनियरिंग पढता था तो मेरे एक साथी ने एक दिन कालेज के डाइरेक्टर के चपरासी को थप्पड मार दिया. मैंने अपने उस साथी से पूछा कि तुमने उस बेचारे गरीब चपरासी पर हाथ क्यूँ उठाया. इस पर उसने मुझे एक रहस्य की बात बताई. "
पत्रकार - " वो क्या  सर? "

बकरीवाल - " पहले तुम मेरे साथ उस  दावत में शामिल होने का  वायदा करो जहाँ मेरे साथ खाना खाने के लिए दस हजार का भुगतान करना  पडता है, फिर मैं रहस्य बता दूँगा"
पत्रकार - "सर ये तो मीडिया के साथ नाइंसाफी है "
बकरीवाल - "  मुझे सब मालूम है. पूरा मीडिया बिका हुआ है. मुझे पावर में  आने दो.फिर तुम सब मीडिया वालों से जेल में चक्की पिसवाऊँगा. "
पत्रकार - " सर मैं दस हजार देकर भोजन करने और आम आदमी बनने के लिए तैयार हूँ. ठीक है  सर! अब मुझे रहस्य की बात  बताइए. "
बकरीवाल - " तो ठीक है,सुनो! मेरे इंजीनियरिंग के दिनों के उस साथी ने मुझसे कहा कि देखना कल से ही लोग उस शख्स की बातें शुरू करेंगे और उसे ढूढेंगे जिसने डाइरेक्टर के सेवक पर हाथ उठाने की जुर्रत की और मैं कालेज की मशहूर हस्ती बन जाऊँगा. वाकई बाद में ऐसा ही हुआ. तबसे ही मैंने यह बात गाँठ  बाँध ली और कई मौकों पर ये फार्मूला आजमा चुका हूँ. बडा ही  अचूक और कारगर नुस्खा है ये शोहरत पाने का."    

         इसी समय नैपथ्य से घोषणा होती है - " हमारे सभी राजनीतिक मेहमान आ चुके हैं और हम  होली मिलन कार्यक्रम शुरू कर रहे हैं . "


         तभी लट्ठधारी महिलाओं का एक समूह पंडाल में प्रवेश करता है और नैपथ्य में जाकर घोषणाकर्ता से माइक छीन लेता है. उनमें से एक महिला घोषणा करती है - "हम बरसाने से आई हैं. पैले म्हारे संग लट्ठ्मार होली खेलियो  फिर होली मिलन करियो . " . महिलाओं का दस्ता अपनी-अपनी लाठियाँ लिए हुए राजनीतिक नेताओं की तरफ बढता है. तुरगेंद्रजी अपने तुरग ( घोड़े ) को ऐंड लगाते हैं वह तेजी से हवा में कुलांचें भरने लगता है . उनके पीछे - पीछे उनकी वाहिनी भी दौडने लगती है .

बिगुलजी चिल्लाते हैं - "महिला सशक्तिकरण - महिला सशक्तिकरण! हमें  इलेक्शन लडने के लिए और संसद में ऐसी ही मजबूत महिलाओं की जरूरत है . "
रेडनेसजी - " चोप बचवा! अरे सरेआमकिरपाल  लाठी लैके आओ भाई! धुत !अरे ई सरेआमकिरपला हमरे  दिमाग से निकल नहीं पाय रहा है. अरे घरैतिन तुमहीं लाठी लै के  आओ. हमैं ई मौके पे लाठी की बडी  जरूरत है. "
बकरीवालजी - " हमारे हाथ में पावर आने दो. हम लट्ठ लेकर कूदने वाली इन सब छोकरियों को जेल भिजवा देंगे. इनके खिलाफ फरमान के लिए खाप पंचायत से भी संपर्क करेंगे.फिलहाल तो कोई झाडू लेकर ही  आ जाओ. उसी  से काम चलाना पडेगा.अरे जोगेंद्र,रक्षाबंधनी कोई सुन रहा है. ".


               इसी समय बिजली बंद हो जाती है और अंधेरा छा जाता है . कोई चिल्लाता है-"इस बिजली -कटौती के  लिए बकरीवाल जिम्मेदार है." इस पर बकरीवाल  की आवाज आती  है-"अरे कंबख्तों देश की हर खुराफात  की जड में एक उद्योगपति है."


          " पावर - पावर" का कोलाहल कोरस में गूँजता है और फिर चटाक-चटाक लाठियों की  आवाज सुनाई देती है. चीख-पुकार तेज हो जाती है और थोडी  देर में शांत हो जाती है.


          इसके पश्चात बिजली आ जाती है. पर केवल  लट्ठधारी महिलाएं ही दिखाई दे रही हैं. एक महिला अपनी लाठी फेंककर कहती है-"भाज गयो सब. हो गयो होली मिलन."


         

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