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सोमवार, 29 दिसंबर 2014

पी के फिल्म क्या हिन्दू धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है?

         पी के  फिल्म क्या हिन्दू धार्मिक भावनाओं के खिलाफ है?

          मैं फिल्में बहुत कम देखता हूँ। साल में एक या दो से अधिक फिल्में मेरे खाते में नहीं आतीं वह भी प्राय: तभी देखता हूँ जब मेरी श्रीमतीजी द्वारा किसी फिल्म को देखने की इच्छा व्यक्त करते हुए उसकी अनुशंसा की जाती है। तद्नुसार विगत रविवार को मैं राजकुमार हिरानी की फिल्म 'पी के' देखने गया। मुझे फिल्म बहुत ही अच्छी लगी । फिल्म में एक एलियन चरित्र के माध्यम से जिसे आमीर खान द्वारा निभाया गया है , व्यंग्यात्मक शैली में धर्म के नाम पर होने वाले व्यवसाय को कटघरे में खडा किया गया है।धार्मिक अंतर्विरोधों, अंधश्रद्धा और धर्म के नाम पर होने वाली ठगी को फिल्म बखूबी चित्रित करती है।फिल्म धार्मिक कार्य-व्यवहार तथा विश्वास पर बुनियादी सवाल खडे करती है जो पूरी तरह वाजिब हैं। मुझे फिल्म में कुछ दृश्य और डायलाग जरूर ऐसे लगे जिन्हें मेरे संस्कार बच्चों की उपस्थिति में देखने- सुनने की इजाजत नहीं देते। पर मुझे और मेरी पत्नी को फिल्म की मुख्य स्टोरीलाइन में कोई बात आपत्तिजनक नहीं लगी। जबकि यहाँ यह बताना वाजिब होगा कि मेरी पत्नी धार्मिक प्रवृत्ति की हैं तथा काफी पूजा-पाठ करती हैं।फिल्म आज की तिथि तक रूपए 236 करोड से अधिक का व्यवसाय कर चुकी है (जो वर्ष 2014 में किसी भी हिन्दी फिल्म द्वारा अब तक किया गया अधिकतम व्यवसाय है) और निश्चित रूप से यह राशि खर्च कर फिल्म देखने वाली अधिसंख्य जनता हिन्दू है और इन अधिसंख्य हिन्दुओं में से अनेक को मैंने फिल्म के डायलागों पर ताली बजाते हुए भी पाया।

          पर कुछ हिन्दूवादी संगठनों,धार्मिक हस्तियों तथा नेताओं ने फिल्म का विरोध शुरू कर दिया है। सुब्रमण्यम स्वामी तो यहाँ तक कह बैठे कि फिल्म आई एस आई द्वारा फाइनेंस की गई है। भोपाल और अहमदाबाद में फिल्म के खिलाफ प्रदर्शन की खबरें भी आई हैं। कुछ लोग आमीर खान को कठघरे में खडा कर रहे हैं और तुर्रा यह कि उसके मुसलमान होने का हवाला दे रहे हैं। पर यह लोग इस तथ्य को नजरअंदाज करते हैं कि आमीर खान ऐक्टर भर है और उसका काम निर्देशक के बताए अनुसार ऐक्टिंग करना मात्र है।फिल्म के निर्माता और निर्देशक (करण जौहर एवं राजकुमार हिरानी) हिन्दू हैं।

          ऐसे लोगों द्वारा फिल्म का विरोध करना स्वाभाविक है जिन्हें यह लगे कि फिल्म उनके पेट पर लात मारती है क्योंकि धर्म के नाम पर चल रही उनकी दूकान पर इस फिल्म के कारण असर पडेगा।पर जिन धर्म आधारित संगठनों की ऐसी कोई दुकानदारी नहीं है,उनके द्वारा फिल्म के विरोध का क्या कारण है? एक कारण तो मेरी समझ में यह आया कि फिल्म में एक हिन्दू लडकी को मुस्लिम लडके और वह भी पाकिस्तानी से प्यार करते हुए दिखाया गया है ।इस प्रकार यह तथाकथित 'लव जेहाद' की धारणा के अनुरूप है जिसे पिछले कुछ समय से यह संगठन उछालने की कोशिश कर रहे हैं। यह संगठन उन फिल्मों का विरोध नहीं करते जिनमें हिन्दू लडके को पाकिस्तानी मुस्लिम लडकी से प्यार करते हुए दिखाया जाता है।वी एस नयपाल ने पाकिस्तानी सेना की पृष्ठभूमि वाली मुस्लिम लडकी से शादी की है तो भी वे अटलजी की सरकार के सम्माननीय अतिथि थे।  प्रत्यक्ष तौर पर हिन्दू संगठन लव जेहाद की बात न कहकर हिन्दू धार्मिक भावनाएं आहत होने ,देवी-देवताओं के अपमान और हिन्दू धर्म के उपहास की बात कर रहे हैं। ऐसे लोग शायद इस बात को नजरअंदाज कर रहे हैं कि हिन्दू धर्म में धर्म के नाम पर ठगी करने वाले बाबाओं की बाढ आई हुई है और फिल्म देखने वालों की भारी संख्या यह बताती है जनमत इन बाबाओं के खिलाफ है।यदि वास्तव में लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत हुई होतीं तो वे इतनी बडी संख्या में अपने बाल-बच्चों को लेकर यह फिल्म देखने नहीं जाते। यह तथ्य भी काबिले गौर है कि एकाध वर्ष पहले आई फिल्म 'ओ एम जी' के ऊपर इन संगठनों ने आपत्ति नहीं की थी जबकि उसे देखने पर मुझे वाकई लगा था कि कुछ दृश्य तथा डायलाग हिन्दू भावनाओं को आहत करने वाले हैं।इस कारण यह संभावना बलवती दिखाई देती है कि बदली हुई राजनैतिक परिस्थितियों में इन संगठनों का साहस बढा हुआ है तथा येन केन प्रकारेण यह तत्व अपने एजेंडा को केन्द्र में रखना चाहते हैं। पर यदि ऐसा होता रहता है तो यह प्रधानमंत्री द्वारा प्रशस्त किए जा रहे विकास और सुशासन के मुद्दे को प्रभावित करेगा।

          एक अन्य बात जो ध्यान देने योग्य है वह यह कि फिल्म में कुछ दृश्य और डायलाग ऐसे हैं जिन पर मुस्लिम और ईसाई आपत्ति कर सकते थे पर इन समुदायों ने अब तक फिल्म पर कोई आपत्ति नहीं की है। तो क्या हिंदू जो ऐसे धर्म से ताल्लुक रखते हैं जो यदि जाति प्रथा को छोड दें तो अपने स्वरूप से लोकतांत्रिक हो चुका है,जो स्वभावतया इतना उदार है कि आत्मालोचना उसके लिए नई वस्तु नहीं है अब अनुदार हो चले हैं? निश्चय ही ऐसा नहीं है पर उन्हें ऐसा बनाने की कोशिश हो रही है और ऐसा करते हुए कुछ संगठन भारतीय जनता पार्टी के भीष्म पितामह सदृश लाल कृष्ण आडवानी को भी नजरअंदाज करने के लिए तैयार हैं जिनके अनुसार पी के में कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है तथा पी के अच्छी फिल्म है।


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