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गुरुवार, 22 जनवरी 2015

सोचता है तू मैं रेजा-रेजा होकर बिखर जाऊँगा (गजल)

                          गजल

सोचता है तू मैं रेजा-रेजा होकर बिखर जाऊँगा

कलम कर दे मुझे, मैं और भी निखर  जाऊँगा।।

मुझे मिटाने की  तदबीरों में भी फूल खिला लाऊँगा
बन के उनकी महक आबोहवा में छितर जाऊँगा ।।

नाहक  फिर रहा है तू मेरे डूबने की ख्वाहिशें लिए
कँवल बनकर गर्काब में भी नुमू हो निथर जाऊँगा।।

तारीकियों में रोशनी बन छा जाने का हुनर है मुझमें
क्यों परेशां है तू ये सोचकर कि मैं किधर जाऊँगा।।

तेरी ये बनिगाहे इताब, ये मज्लिम तुझे मुबारक
ये दिल और मताए आखिरत लेकर उधर जाऊँगा।।
-संजय त्रिपाठी

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