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बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

सात समंदर पार का मेहमान ! (व्यंग्य/Satire)

          एक साहब सात समंदर पार से हमारे मेहमान बनकर आए थे। हमने उनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडी। हमारे प्रधानमंत्री सारी रस्में तोडकर उनकी अगवानी करने गए। जनाब को सलामी गारद ने सशस्त्र सलामी दी । उन्हें 56 तो क्या 84 किस्म के पकवान परोसे गए। हमारे गणतंत्र दिवस पर जनाब खास मेहमान बनकर आए थे। पर हमारे राष्ट्रपति की गाडी में नहीं बैठे, इसके लिए वो अपनी खुद की बख्तरबंदगाडी साथ लेकर आए थे। सिक्यूरिटी पर इतना जोर था कि आम पब्लिक की जान सांसत में थी। गोया कि वे हिंदुस्तान में नहीं ,अफगानिस्तान या इराक जैसे किसी मुल्क में आए हों जो दहशतगर्दी से त्रस्त हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने मेहमाननवाजी मेें कोई कमी नहीं रखी , यहाँ तक कि चाय तक अपने हाथों से बनाकर पिलाई। पर जाते-जाते जनाब सिरीफोर्ट स्टेडियम में कुछ ऐसा बोल गए जो कहीं चुभ सा गया। वो बता गए कि जब तक मजहबी झगडों से हिंदुस्तान दूर रहेगा  तभी तक उसकी बरक्कत है। वे यह भूल गए कि हिंदुस्तानी सभ्यता सिन्धु घाटी के समय से चली आ रही है और हजारों वर्षों से समय-समय पर तमाम मुश्किल हालात आने के बावजूद आज तक कायम है। गोया कि यहाँ रोज मजहबी फसाद ही होते रहते हैं! अगर चंद सिरफिरे कुछ उलूल-जुलूल बकते रहते हैं तो इसका मतलब जनाब ओबामा ने यह निकाल लिया हमारा देश मजहबी फसादात के दौर में है। जनाब ओबामा को इस मुल्क की वो तमाम जनता नहीं दिखाई दी जो अमनपसंद है और उलूल- जुलूल बकने वालों को इस देश में पनपने नहीं देती।

         बात यहीं खत्म नहीं हुई। जनाब ओबामा जब वापस अमेरिका पहुँच गए तो एक दिन यह कह डाला कि  हिंदुस्तान में पिछले दिनों हर कौम पर हमले हुए हैं और अगर आज महात्मा गाँधी  जिंदा होते तो  बहुत दु:खी होते। शायद ओबामा को इतिहास का वो दौर मालूम या याद नहीं जब गाँधी जी के रहते हुए ब्रिटिश तत्वावधान में हिदुस्तान और पाकिस्तान का बँटवारा हुआ था , लाखों लोग विस्थापित हुए और तमाम लोग मजहबी जहालत का शिकार हुए । लाशों के उन ढेरों के बीच जब आजादी और सत्ता का जश्न मनाया जा रहा था , गाँधीजी नोआखाली और कोलकाता में दंगे शांत कराने के लिए घूम रहे थे। हिंसा के  उस तांडव के सामने आज का दौर कुछ भी नहीं है। जनाब ने हिंदुस्तान की गिनती सीरिया,इराक और अफगानिस्तान के साथ कर डाली। पाकिस्तान का नाम वो साथ में लेना भूल गए। वैसे भी पाकिस्तान को लेकर अमेरिका को समय-समय पर मोतियाबिन्द हो जाता है और उसे सुधर रहा बालक मानते हुए वो भारी इमदाद मुहैया कराता रहता है। ओबामा वाकई में अगर इस बारे में संजीदा थे तो उन्हें इधर-उधर बात करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी से इस बारे में बात कर उन्हें अपनी शंकाओं का समाधान करना चाहिए था।

           मोदी तो इस मेहमान को बुलाकर और उसके सामने तथाकथित नौ-दस लाख का सूट पहन कर फँस गए पर हमारे देश के वो तमाम लोग जो जनाब को बुलाने और यौमे जम्हूरियत पर मेहमान-ए-खुसूसी बनाने पर एतराज जता रहे थे अब बडे खुश हैं। उन्हें लग रहा है कि ओबामा ने एक मेहमान का सच्चा फर्ज अदा कर दिया है।

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