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शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद (कविता)

-मेरे घर का दुआर-



मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

पूस-माघ में सेमल-वृक्ष था दिखता एकाकी सा
अंक में भर लाल- सुर्ख फूलों को अब लहलहा उठा
कभी शाखाओं पर गुंजार करती
कभी फूलों में चोंच मारती
चिड़ियों के लिए वृक्ष है किलोल-स्थली
लाल घूँघट से ज्यों नवोढ़ा हो झाँकती
या कि बच्चों से हो नववधू घिरी
बक्से से निकाल ज्यों उन्हें कुछ देती

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

चकोतरे का वृक्ष श्वेत पुष्पों से भर गया है
उनकी महक से ओसारा गमक गया है
प्रात: लाल चादर सा पड़ा रहता है आच्छादन
सेमल के गिरे रक्तिम फूलों ने किया ज्यों रात्रिशयन
बीनने आ जाती हैं कभी बच्चों की टोलियाँ
कभी चरने के लिए गाय और बकरियाँ
नीचे भीड़ देख वृक्ष प्रफुल्लित दिखता है
चिड़ियों संग समवेत स्वर में गाता सा लगता है

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

आम्रवृक्ष श्रंगारित हो गया है
आम्रमंजरियों से खूब लद गया है
कोयल समय-असमय कूकती है
कभी आम तो कभी सेमल पे फुदकती है
किसी विरहिणी के हिय पे सर्पिणी सी गुजरती है
कोयल है कि बस कूकती है और कूकती है
कूकती कोयल सुना है कि नर है
सुमधुर गान से प्रेयसी को लुभाने में रत है

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

चैत- बैसाख में लग जाएंगी सेमल में फलियाँ
पकने  पर छा जाएगी उन पर कालिमा
उस कालिमा से होगा उजास का उदय
फलियाँ फूटेंगी और बिखरेंगे उजले रेशमी फाहे
उड़- उड़ कर वे घर के चतुर्दिक फैल जाएंगे
घर के सहन से लेकर सामने गंगा तक पहुँच जाएंगे
बिछेगी यूँ सामने उजले रेशमी फाहों की चादर
जैसे कि उतर आएं हों आसमान से सफेद बादल

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

महकते फूलों की जगह ले लेंगे हरे गोल चकोतरे
आम्र-मंजरियों की जगह ले लेंगे आम के टिकोरे
बच्चों के साथ बड़ों के भी मन हुलसते रहेंगे
लोग उजले-रेशमी सितारे बीनने आते रहेंगे
बच्चे चकोतरों को कन्दुक बना खेलते रहेंगे
टिकोरों पर डंडे और पत्थर चलते रहेंगे
चैत-बैसाख में यहाँ अलग नजारा दिखेगा
धवल सेमल से ये हिमाच्छादित सा दिखेगा

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

'डंडे-पत्थर मत चलाओ बच्चों
पेड़ पर चढ़ जाओ बच्चों
हमारी तरह ये भी प्राणवान होते हैं
चोट से ये भी परेशान होते हैं'
बच्चों को समझाना चलता रहेगा
पर उनकी समझ में आना मुश्किल रहेगा

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद
- संजय त्रिपाठी

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