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रविवार, 12 अप्रैल 2015

नेताजी सुभाषचंद्र बोस के घर की निगरानी के संभावित कारण

          महाराष्ट्र सिविल सेवा के अधिकारी एवं मराठी के सुविख्यात लेखक  विश्वासराव पाटिल की "महानायक",  जो उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस के बारे में छ: वर्षों तक शोध करने के बाद लिखी है, पढ़ने के बाद मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कभी जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस घनिष्ठ मित्र तथा वैचारिक रूप से एक दूसरे के नजदीक थे। नेहरूजी जब भी कोलकाता आते थे प्राय:  सुभाषचंद्र बोस के घर पर पधारते थे और कई बार उनके घर पर ही रुकते थे। सन 1939 में सुभाषचंद्र बोस जब गाँधीजी की बात न मानते हुए उनके उम्मीदवार पट्टाभि सीतारामैय्या को हराने में सफल रहे और हरिपुरा अधिवेशन में कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिए गए तो गाँधीजी का बर्ताव सुभाषचंद्र बोस के प्रति सद्भावनापूर्ण नहीं रहा। सुभाषचंद्र बोस ने अंततोगत्वा अपना अलग रास्ता चुन लिया। नेहरूजी ने इस सबमें अपने मित्र का साथ छोड दिया और गाँधीजी के पीछे खडे रहे। पर इस सबके बावजूद आपसी कटुता इस हद तक नहीं बढ गई थी कि आपसी सामान्य शिष्टाचार भी खत्म हो जाता। नेताजी ने अपनी आजाद हिंद फौज की एक रेजीमेंट का नाम गाँधीजी के नाम पर गाँधी रेजीमेंट रखा था। 18 अगस्त, सन 1945 में नेताजी के एयर क्रैश में तथाकथित  देहावसान के बाद भी नेहरूजी सुभाषचंद्र बोस के  घर पर पधारे थे। नेताजी के सबसे बडे भाई शरत बोस की सुपुत्री चित्रा घोष के अनुसार उस अवसर पर नेहरूजी अपने साथ एक हाथघडी लाए थे जिसका पट्टा जला हुआ था। उन्होंने शरत बोस से कहा कि क्रैश के समय सुभाष ने यह घडी पहनी हुई थी। इस पर शरत बोस ने कहा कि मैं क्रैश की कहानी में विश्वास नहीं करता हूँ और सुभाष यह घडी नहीं पहनते थे बल्कि माँ की दी हुई गोल डायल की घडी पहना करते थे। इस पर नेहरूजी चुप रहे।

          जबसे यह समाचार आया है कि आजादी के पहले 1923 से शुरू हुई खुफिया एजेंसियों की चौकसी से लेकर बाद में सन 1968 तक आई.बी. द्वारा नेताजी के परिवार और कोलकाता में स्थित उनके वुडबर्न पार्क और एल्गिन रोड स्थित घर पर निगरानी रखी जाती रही है, तबसे इस बारे में तरह-तरह के विचार प्रकट किए जा रहे हैं। नेताजी के परिवार के सदस्य कह रहे हैं कि उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा क्यों किया जा रहा था। चित्रा घोष और शरत बोस के पौत्र एवं सांसद सुगत बोस का कहना है कि एक कारण यह हो सकता है कि शरत बोस सन 1949 में और शिशिर बोस सन 1957 में आजाद हिंद फौज के सदस्यों और प्रमुख सदस्यों से संपर्क करने का प्रयास कर रहे थे। यह खबर आने के बाद उन्हें और आश्चर्य इस कारण हो रहा है कि इस सबके दौरान भी नेहरूजी से परिवार के आत्मीय संबंध थे।

          कोई भी भला आदमी अपने मित्र के साथ लाख राजनीतिक विरोध हो जाने के बाद भी विशेषकर तब जब उसके पूरे परिवार के साथ उसके आत्मीय संबंध हैं , उसका बुरा नहीं चाहेगा। अत: नेताजी के परिवार की निगरानी करवाने के पीछे एक कारण यह हो सकता है कि आजादी के बाद नेहरूजी के नेतृत्व में शायद तत्कालीन सरकार भी सुभाषचंद्र बोस के बारे में जानकारी को लेकर आश्वस्त नहीं थी और उसे यह उम्मीद रही हो कि सुभाषचंद्र बोस के परिवार के माध्यम से उसे कुछ जानकारी उनके बारे में मिल सकेगी। 

        मुझे लगता है कि यदि मोदीजी के नेतृत्व में हमारे देश की वर्तमान सरकार सरकार सुभाषचंद्र बोस को लेकर पूरी तरह ईमानदार है तो उनसे संबन्धित 41 हाइली क्लासीफाइड फाइलों (जिनमें से सिर्फ 2 डिक्लासिफाई की गई हैं) सहित सभी 202 फाइलें ( इनमें से 91 फाइलें डिक्लासिफाई की जा चुकी हैं)  बिना किसी मित्र देश की नाराजगी की परवाह किए डिक्लासीफाई की जानी चाहिए। इस देश की जनता को नेताजी से संबंधित सच्चाई जानने का हक है। सवाल यह है कि  सरकार ने  केवल दो फाइलें जिनके द्वारा नेहरू को कटघरे में खडा किया जा रहा है,  ही क्यों डिक्लासीफाई क्यों की हैं?  मेरा अपना विश्वास है कि किसी पर दोषारोपण तब किया जाना चाहिए जब पूरे तथ्य आपके संज्ञान में हों अन्यथा यह चरित्रहनन का एक प्रयास मात्र रह जाता है। केवल दो फाइलों को डिक्लासीफाई किए जाने से स्थिति ऐसी ही बन रही है।

           सुब्रह्मण्यम स्वामी का कहना है कि स्टालिन ने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को साइबेरिया में कैद में रखा था तथा उन्हें लेकर वह नेहरूजी को ब्लैकमेल करता रहा एवं अंततोगत्वा उसने उनकी हत्या करवा दी। यदि सुब्र्ह्मण्यम स्वामी की बात मान ली जाए तो यह स्वयं में एक तथ्य है कि 5 मार्च 1953 को स्टालिन की मृत्यु हो गई थी। अतः यदि उसने सुभाषचंद्र बोस की हत्या करवाई होगी तो उसकी तिथि 5 मार्च 1953 के पहले ही हो सकती है।

         सुभाषचंद्र बोस के अन्य जीवनीकार अनुज धर ने अपनी पुस्तक India's Biggest Cover up के लिए जो कागजात प्राप्त किए हैं उनमें उन्होंने नेहरूजी के द्वारा हस्ताक्षरित 20/11/1957 का तत्कालीन विदेश सचिव सुबिमल दत्त को लिखा गया पत्र उद्धृत किया है जिसमें वे नेताजी के भतीजे अमियनाथ बोस की टोक्यो यात्रा के दौरान उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कहते हैं। खास बात यह है कि नेहरूजी इस बात की रिपोर्ट करने के लिए कहते हैं कि अमियनाथ बोस रेंकोजी टेम्पल जाते हैं  अथवा नहीं। मेरी समझ में इसका एकमात्र कारण यह हो सकता है कि नेहरूजी यह जानना चाहते थे कि नेताजी के परिवार के सदस्य क्या इस बात को मानते हैं कि रेंकोजी टेम्पल में रखे हुए अवशेष नेताजी के हैं।  यहाँ यह बात ध्यान देने योग्य है कि नेहरूजी को इस बात की रिपोर्ट की गई कि अमियनाथ बोस रेंकोजी टेम्पल नहीं गए थे।

           जैसाकि ऊपर कहा गया है , टी वी और समाचारपत्रों में आई रिपोर्ट के अनुसार सन 1968 तक आई बी नेताजी के परिवार की गतिविधियों पर निगाह रखे हुए थी । सवाल यह है कि यदि स्टालिन द्वारा सन 1953 या उसके पहले नेताजी की हत्या करवाई जा चुकी थी तो नेताजी के परिवार से क्या नेहरूजी या फिर कांग्रेस को किसी प्रकार का भय था? यदि नेताजी दिवंगत हो चुके थे तो मुझे इस प्रकार के भय का कोई कारण नहीं दिखाई देता। मेरा अपना विवेक कहता है कि नहीं ,सुब्रह्मण्यम स्वामी की बात गलत है। अगर निगरानी करवाई जा रही थी उसका एकमात्र कारण यह हो सकता है कि सरकार को इस प्रकार की आशंका थी कि नेताजी जीवित हैं और सरकार नेताजी के परिवार की निगरानी कर उस बारे में सूचना प्राप्त करने का प्रयास कर रही थी।

            फैजाबाद के तमाम लोगों का मानना है कि वहाँ रहने वाले गुमनामी बाबा ही सुभाषचंद्र बोस थे। अनुज धर ने अपनी पुस्तक में नेताजी के सोयियत रूस से गायब होने और 1960 से फैजाबाद में एक साधु के रूप में रहने की संभावना का जिक्र किया है। गुमनामी बाबा के सुभाषचंद्र बोस होने की संभावना को मुखर्जी आयोग ने भी पूरी तरह खारिज नहीं किया। पर अनुज धर इस बात से सहमत हैं कि इसके लिए स्पष्ट साक्ष्यों का अभाव है।

         यदि गुमनामी बाबा संबंधी तथ्य में कहीं सत्यता हो सकती है तो सुभाषचंद्र बोस का इस तरह छिप कर रहना बिना तत्कालीन सरकार की जानकारी और सहयोग के संभव न था। इस तथ्य को छिपा कर रखने के पीछे तत्कालीन सरकार और सुभाषचंद्र बोस दोनों की ही मजबूरी का कारण यह हो सकता है कि धुरी राष्ट्रों और नाजी ताकतों के साथ रहकर लड़ने के कारण अमेरिका,इंग्लैंड एवं कुछ अन्य पश्चिमी देशों के लिए सुभाषचंद्र बोस द्वितीय विश्वयुद्ध के वारक्रिमिनल थे और अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत भारत सरकार को उन्हें मुकदमा चलाने के लिए विदेशी ताकतों को सौंपना पड़ता। ऐसी कोई भी स्थिति तत्कालीन भारत सरकार के लिए विषम स्थिति पैदा कर देती। इसलिए उनका छिपकर रहना तत्कालीन सरकार के अनुकूल था, दूसरे वे इस प्रकार रहने पर द्वितीय विश्वयुद्ध का अपराधी बनने से बचे रहे। 

          पर ये सारी बातें जब तक प्रमाण के साथ न कही जा सकें तब तक दूर की कौडी ही हैं। दूसरे नेताजी के अधिकांश जीवनीकार इस बात पर सहमत हैं कि अधिकतर साक्ष्य नेताजी के एयरक्रैश में मारे जाने की तरफ इशारा करते हैं। हालांकि इनमें से कई उस क्रैश से उनके बच निकलने की संभावना को भी नहीं नकारते। पर उनका कहना है कि उसके बाद जो भी संभावनाएं बनती हैं उनके लिए पर्याप्त साक्ष्यों का अभाव है। यदि सरकार सुभाषचंद्र बोस से संबन्धित सारी फाइलें डिक्लासीफाई कर दे तभी इस बारे में स्थिति साफ होने की आशा की जा सकती है।

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