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शुक्रवार, 26 जून 2015

आपातकाल के वो दिन!

          26 जून 1975 की शाम मुझे आज भी याद है। उस समय मेरी उम्र लगभग 13 वर्ष की थी। उन दिनों मैं फैजाबाद में था जहाँ मेरे पिताजी तैनात थे । मेरे पिताजी बाजार गए हुए थे और जब लौटकर आए तो स्थानीय 'जनमोर्चा' समाचारपत्र का प्रकाशित विशेष संस्करण लेकर आए जिसमें 25 जून की रात से देश में आपातकाल की घोषणा और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किए जाने का समाचार था। बाद में इस समाचारपत्र के संपादक को गिरफ्तार कर लिया गया। प्रेस सेंसरशिप लगा दी गई थी तथा नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया। देश के वे सभी विपक्षी नेता जिनका तनिक भी उल्लेख योग्य अस्तित्व था गिरफ्तार कर लिए गए। स्थानीय नेताओं की भी धर-पकड़ हुई। आर एस एस और जमायते इस्लामी के लोगों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। 

          गुजरात में कांग्रेस के विरुद्ध ' नव निर्माण आंदोलन' 1973 से 1974 तक चलने के बाद सफल रहा था तथा इससे ही प्रेरणा लेकर जयप्रकाश नारायण ने पहले तो मार्च-अप्रैल 1974 में बिहार में छात्र आंदोलन का समर्थन किया और फिर संपूर्ण क्रांति का नारा देते हुए सभी विपक्षी पार्टियों को एकजुट कर कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन को तेज किया । निःसंदेह इस सबसे प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी विदग्ध रही होंगी पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय में उनके निर्वाचन के खिलाफ समाजवादी नेता राज नारायण द्वारा दायर मुकदमा 12 जून 1975 को हार जाने ने आग में आहुति का काम दिया। न्यायालय ने उनका निर्वाचन अवैध ठहराते हुए उनके छः साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी। कहा जाता है कि श्रीमती इंदिरा गाँधी ने इस्तीफा देने का मन बनाया था पर विपक्षियों के उग्र विरोध को देखते हुए सत्ता बचाए रखने के लिए सिद्धार्थ शंकर राय और अपने पुत्र संजय गाँधी के कहने में आकर उन्होंने इमरजेंसी लगा दी।

          आपातकाल का कोई तीव्र प्रतिकार या विरोध नहीं हुआ। शुरू में जो थोड़े बहुत विरोध के स्वर उभरे वे भी जल्दी शांत होगए। प्रशासन और पुलिस को असीमित अधिकार मिल गए। " Power corrupts and absolute power corrupts absolutely " की तर्ज पर उन्होंने तमाम जगह इन शक्तियों का दुरुपयोग किया। मैं दसवीं कक्षा का छात्र था । एक दिन मेरी कक्षा के दो छात्र हँसी- मजाक और आपस में धौल-धुप्पा करते हुए शहर कोतवाली के आगे से जा रहा थे और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। पर लोग चुप थे और जीवन चल रहा था। विपक्षी दलों के उन नेताओं को, जो शांत हो गए या जिन्होंने ऐसा करने का वायदा किया आगे चलकर छोड़ भी दिया गया। पर इस दौरान तमाम लोगों पर अत्याचार और अमानवीय बर्ताव किए जाने की बातें प्रकाश में आईं।

          सरकारी कर्मचारी और सरकारी ट्रेनें समय से आने लगे और इसमें कुछ लोगों को अनुशासन दिखने लगा । विनोबा भावे ने आपातकाल को "अनुशासन पर्व" की संज्ञा दे डाली।

          श्रीमती इंदिरा गाँधी के छोटे सुपुत्र संजय गाँधी अनधिकृत तौर पर सत्ता का एक केन्द्र बनकर उभरने लगे। कांग्रेस पार्टी में उन लोगों का महत्व बढ़ गया जो संजय गाँधी के नजदीक थे। ऐसा होने के साथ ही आपातकाल के माध्यम से प्राप्त अधिकारों का बेजा इस्तेमाल बढ़ गया। 1975 में श्रीमती इंदिरा गाँधी का बीस सूत्रीय कार्यक्रम आया और इसके बाद 1976 में संजय गाँधी का चार सूत्रीय कार्यक्रम आया जिसमें परिवार नियोजन एक था। संजय गाँधी को "युवा हृदय सम्राट" कहकर प्रचारित किया जाने लगे। चाटुकारिता अपनी चरमसीमा पर पहुँच गई । चारों तरफ संजय गाँधी की जय-जयकार होने लगी।

          उत्तर भारत में अधिकारियों ने परिवार नियोजन के कार्यक्रम को जोर-शोर से लागू करने के प्रयास शुरू कर दिए और इसमें जबर्दस्ती का भी समावेश हो गया। जिला स्तर के शिक्षा अधिकारी विद्यालयों का दौरा कर शिक्षकों को नसबंदी के केस लाने के लिए कहने लगे। मुझे ज्ञात हुआ कि इसी प्रकार के एक दौरे के दौरान जब विद्यालय के शिक्षकों ने इस पर आपत्ति की तो शिक्षा अधिकारी ने कहा कि यह सरकार आप लोगों की ही चुनी हुई है तो अब सरकार जो कहती है आपको उसका पालन करना पड़ेगा। मेरे एक परिचित शिक्षक मोहल्ले के कुछ मुस्लिम परिवारों के पास अपने अधिकारियों के निर्देशानुसार परिवार नियोजन अपनाने की बात कहने गए । इस पर उन लोगों ने कहा "मास्टर साहब हम लोग आपकी इज्जत करते हैं इसलिए कुछ नहीं कह रहे हैं। पर यह जान लीजिए कि यह हमारे मजहब के खिलाफ है और हम लोग किसी भी हाल में नसबंदी नहीं कराएँगे। आइंदा हम लोगों से इस तरह की बात नहीं करिएगा।" आपातकाल में बहुत से लोगों की जबर्दस्ती और कुछ की धोखे से भी नसबंदी की गईं इसमें हिन्दू-मुसलमान सभी थे। सरकारी कर्मचारी और अध्यापक बख्शे नहीं गए। जिनके भी दो या अधिक बच्चे थे उनकी कई स्थानों पर तनख्वाह रोक दी गईं और तभी दी गई जब उन्होंने नसबंदी करवा ली। फैजाबाद जी आई सी के कुछ मुस्लिम अध्यापकों ने 'जबरन नसबंदी ' के खिलाफ बयान दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और तभी छोड़ा गया जब उन्होंने नसबंदी करवा ली। कांग्रेस समर्थकों को छोड़कर आम जनता, मुस्लिम समुदाय, सरकारी कर्मचारी सहित समाज के तमाम चेहरों में भय और असंतोष का वातावरण व्याप्त हो गया। 1975 में मेरे पिताजी का स्थानांतरण कानपुर हो गया था और 1976 में पुनः फैजाबाद हो गया। जब मेरे पिताजी मेरी बहन का प्रवेश एक विद्यालय में करवाने गए तो उनसे कहा गया कि नसबंदी का केस लाइए तब प्रवेश मिलेगा। इस दौर में कहा जाता है कि कई स्थानों पर कुँवारों तक की नसबंदी कर दी गई।

          सन 1976 के आखिरी पाँच महीनों के दौरान देश के विभिन्न भागों में स्कूलों- कॉलेजों को बाकायदा निर्देश देकर संजय गाँधी के समर्थन में रैलियाँ आयोजित की गईं। इनमें भाग लेने के लिए छात्रों को निर्देश जारी किए गए। इन रैलियों की भीड़ के आधार पर यह मान लिया गया कि संजय गाँधी युवा हृदय सम्राट बन गए हैं। संजय गाँधी के विभिन्न शहरों में दौरे आयोजित किए गए। इनमें भी स्कूल- कॉलेजों में छुट्टी देकर छात्रों को संजय गाँधी की सभा में जाने के निर्देश दिए गए। मुझे भी इस प्रकार की रैली और सभा में भाग लेना पड़ा था। मुझे एक तो यह याद है कि संजय गाँधी ने उन लोगों से हाथ उठाने को कहा था जो दहेज नहीं लेंगे। लोगों द्वारा हाथ उठाए जाने पर उन्होंने उन्हें अपने विवाह के वक्त यह बात याद रखने के लिए कहा था। दूसरे उन्होंने कम्युनिस्टों को देश का दुश्मन और जनसंघियों को फासिस्ट बताया था। वर्ष 1976 के अंतिम महीने में तत्कालीन सरकार को यह खुफिया रिपोर्ट दी गई कि चुनाव होने पर कांग्रेस पुनः आराम से सत्ता में आ जाआएगी। इसी आधार श्रीमती इंदिरा गाँधी ने 18 जनवरी 1977 के दिन नए चुनाव कराने की घोषणा की।

          मार्च 1977 में यह चुनाव आयोजित हुए। यह चुनाव जनता और विपक्षी दलों के लिए मुँहमाँगी मुराद की तरह था। कांग्रेस के विरोधी प्रमुख दलों ने आपस में विलय कर जनता दल बनाया । दूसरी तरफ आपातकाल के कांग्रेसी शासन से क्षुब्ध, देश विशेषकर उत्तर भारत की जनता कांग्रेस को सत्ता से हटाने के लिए कटिबद्ध थी। मुस्लिम समुदाय भी नसबंदी अभियान के कारण विशेषकर कांग्रेस के पूरी तरह विरुद्ध हो चुका था।

          नतीजा यह हुआ कि मार्च 1977 में आयोजित आम चुनाव में कांग्रेस की बुरी तरह हार हुई । श्रीमती इंदिरा गाँधी और संजय गाँधी दोनों ही अपने-अपने चुनाव क्षेत्रों से चुनाव हार गए। मैं एक मुस्लिम बहुल मोहल्ले के पास रहता था। वहाँ ट्रान्ज़िस्टर पर चुनाव बुलेटिन सुनते हुए लोगों को मैंने हर परिणाम आने पर खुशी से उछलते, एक दूसरे के हाथ पर हाथ मारते और हाथ मिलाते हुए देखा। मैंने एक व्यक्ति को दूसरे के हाथ पर हाथ मारकर कहते हुए सुना-"लाख से नीचे बात मत करो यार " अर्थात प्रत्येक उम्मीदवार कम से कम एक लाख वोटों से हार रहा था।

          चुनाव में कांग्रेस की हार हो जाने के बाद 23 मार्च 2015 के दिन आपातकाल की समाप्ति की घोषणा गईं। इसके साथ ही स्वातंत्र्योत्तर भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय समाप्त हो गया। इसे कुछ लोगों ने दूसरी आजादी की भी संज्ञा दी। 

          पर जनता पार्टी के शासनकाल में पनपी अनुशासनहीनता, विभिन्न घटकों की आपसी सिर फुटौव्वल और दंगों के कारण जनता का जनता पार्टी से मोहभंग होने लगा। 1979 के मध्यकाल में जनता पार्टी का विभाजन हो गया। मोरारजी देसाई की सरकार गिर गई और चौधरी चरण सिंह की सरकार बनी। यह सरकार इंदिरा गाँधी की सफल रणनीति के कारण एक भी दिन संसद का सामना किए बगैर गिर गईं। जनता पार्टी की अकर्मण्यता से क्षुब्ध जनता ने इंदिरा गाँधी की आपातकाल संबन्धी गलती को भुलाकर एक बार फिर सन 1980 में इंदिरा गाँधी को देश का प्रधानमंत्री चुन लिया। जनता पार्टी की असफलता को लेकर जनता सरकार में विदेश मंत्री रहे श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने निम्नलिखित गीत लिखा- 
      दीप जलाया रची दीवाली ।
      फिर भी मिटी न अमावस काली।। 
      हुआ आवाहन स्वर्ण सवेरा रूठ गया। 
      एक सपना देखा था मैंने, सपना मेरा टूट गया।।

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