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शनिवार, 19 सितंबर 2015

दिल में एक हूक सी उठती है!

          अगस्त माह के प्रारंभ में यह महाशय एक दिन यूँ प्रात: मेरे सुपुत्र की पुस्तकों के ऊपर विश्राम करते हुए मिले। मैंने कहा शायद यह पूर्वजन्म के कोई पुस्तक प्रेमी होंगे। इन्हें मेरे घर से और हम लोगों से जाने कैसा लगाव हो गया कि बस जब देखो तब घर में ही मंडराने लगे। एक-दो दिन बाद घर के सामने के बरामदे में सफाई करने आई श्यामा को एक सांप दो टुकड़ों में मिला। श्यामा का कहना था कि उसे इन महाशय ने ही मारा होगा।यदि मेरी श्रीमतीजी इन्हें भगातीं तो मेरे पास आकर अपनी भाषा में कुछ शिकायत सी करते। यदि श्रीमती जी आगे से भगातीं तो पीछे की तरफ से आ जाते। श्रीमतीजी इनके इंटेलीजेन्स का लोहा मान गईं। उन्होंने भी इनसे बातचीत करना शुरू कर दिया । ये अपनी भाषा में बोलते और वो अपनी भाषा में बोलतीं। पर एक दिन इन्होंने हद कर दी। इन्होंने श्रीमती जी के पूजाघर में जाकर पॉट्टी कर दी। उस दिन से श्रीमती जी इन्हें भगाने पर कुछ ज्यादा ही लग गईं। पर यह मानने वाले कहाँ थे ,जब देखो तब चले आते थे। 

           14 अगस्त को जीजाजी आए हुए थे। मैं और वो एक ही कक्ष में सो रहे थे। रात में लगभग 1 बजे इनके म्याऊँ-म्याऊँ के स्वर से नींद खुल गईं। मैंने कह- अच्छा हुआ यहाँ आए हो वरना मालकिन के पास जाकर बोलते तो अभी तुम्हें बाहर करतीं, डिस्टर्ब मत करो और सो जाओ। इसके बाद मैं पुनः सो गया। 

           अगले दिन दोपहर में जब मैं दोपहर में कार्यालय से घर खाना खाने आया तो श्रीमतीजी मुझसे शोक संतप्त स्वर में बोलीं- 'सुनिए जी,वो बिल्ली का बच्चा मर गया ',  मैं अवाक रह गया।  ' पर वो रात में तो कमरे में था' - मैंने कहा। 'हाँ, पर श्यामा उसे रोटी देने गई तो वह पेड़ के पास मरा पड़ा था। श्यामा कह रही है कि उसे कुत्तों ने मार दिया।'  मैंने कहा कि हो सकता है कि वो कोई और हो पर अगले दिन से जब यह महाशय कई दिन तक नहीं दिखाई दिए तब यह सुनिश्चित हो गया कि श्यामा द्वारा दी गई खबर सही थी।अब इनकी यह तस्वीर ही स्मृति रूप में शेष है जिसे देख कर दिल में हूक सी उठती है।

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