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बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

~ मुख पर कालिख पोतने के खेल की महत्ता (व्यंग्य)~          

~ मुख पर कालिख पोतने के खेल की महत्ता (व्यंग्य)~
          मुख पर कालिख पोतने का खेल छूत की बीमारी की तरह मुंबई से दिल्ली पहुँच गया वैसे ही जैसे डेंगू महामारी के रूप में पहले दिल्ली में फैला फिर मुंबई पहुँच गया । मुंबई किसी का अहसान अपने सर पर नहीं रखती तुरंत अहसान चुका कर हिसाब बराबर करती है। दिल्ली से गिफ्ट में डेंगू मिला था सो मुंबई ने उसे बदले में कालिख पोतो खेल का गिफ्ट दे दिया।
        लोकसभा चुनावों के कुछ पहले जूता फेंक और फिर पर थप्पड मार खेलों का दौर चला था। जूता फेंक खेल का प्रेरणास्रोत ईराक का पत्रकार था जिसने बुश पर जूता फेंका था। विदेशी प्रेरणास्रोत वाले इस खेल में हमारे खिलाड़ी निपुण नहीं थे । इसलिए इसका लक्ष्य जो भी होते थे, वे दाएं- बाएं या ऊपर- नीचे झटके से इधर-उधर हो, झुक कर बच लेते थे। यही कारण था कि यह खेल लोकप्रिय नहीं बन सका और जल्दी ही अवसान को प्राप्त हो गया।
         थप्पडमार खेल, जूता फेंक खेल की अपेक्षा अधिक लोकप्रिय हुआ। गाहे-बगाहे इसका नमूना अभी भी देखने को मिल जाता है। लोकसभा चुनावों के पहले इसकी लोकप्रियता का आलम ये था कि जब एक केन्द्रीय मंत्री को किसी ने थप्पड मारा तो अन्ना हजारे सदृश पुण्यात्मा कह बैठा- बस एक ही थप्पड! पर इस खेल के साथ एक समस्या यह है कि कई बार लक्ष्य के साथी, खिलाड़ी के सफल या असफल प्रयास के बाद उस पर आफत बन कर बरस पड़ते हैं और इस बरसात से खिलाड़ी के अधमरा हो जाने के बाद पुलिस की गिरफ्तारी का छाता ही बचा पाता है। दूसरे कई बार जो लक्ष्य होता है वह खिलाड़ी के घर उसकी कुशल-क्षेम पूछने पहुँच जाता है और इस प्रकार मसीहा की ख्याति प्राप्त कर लेता है या फिर उस श्रेणी में आने का प्रयास करता है। इससे खिलाड़ी की सारी मेहनत व्यर्थ हो जाती है और उसका असर उल्टा हो जाता हैं। 
          खैर कुछ भी हो, यह तो मानना पड़ेगा कि जूता फेंक और थप्पड मार दोनों ही खेलों में हिंसा का समावेश है। इसलिए इन विधाओं में हाथ आजमाने वाले खिलाड़ी नए वैकल्पिक खेल की तलाश में थे और यह मिला है कालिख पोतने के खेल के रूप में।हमारे देश में राजनीति में परम्परा बन गई है कि जिन सिद्धांतों की दुहाई दी जाए, उनका उल्टा किया जाए। सो ऐसे राजनीतिक दल और संगठन जिन्हें तोड-फोड़ और हिंसा से कोई परहेज नहीं है, कह रहे हैं कि कालिख पोतने के नायाब खेल को उन्होंने इसलिए शुरू किया है कि यह अहिंसक है। बिना किसी प्रकार की हिंसा का प्रयोग किए इसके द्वारा विरोध प्रकट किया जाता है। उनका मानना है कि यदि गाँधीजी होते तो इस अहिंसक विरोध प्रदर्शन के लिए उनकी सराहना करते। उनका कहना है कि इस शांतिपूर्ण प्रयास के लिए उनके संगठन का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी प्रस्तावित किया जाना चाहिए। दूसरे इस खेल के प्रतिपादकों का कहना है कि यह बड़ा ही फेयर यानी कि निष्पक्ष खेल है। इसमें कालिख पोतने वाले को तो ख्याति मिलती ही है, जिसके कालिख पोती जाती है वह भी कालिख लगाए-लगाए प्रेस-कांफ्रेंस करता है या स्टेटमेंट देता है और इस प्रकार उसे भी ख्याति मिलती है। इस खेल के समर्थक इसके पक्ष में यह दलील भी देते हैं कि इसकी प्रेरणा उन्हें देश के सर्वाधिक लोकप्रिय त्योहार होली से मिली है। इस तरह इस खेल को अपनाना देश की सांस्कृतिक परंपरा के अनुकूल है। इसलिए भारतीय संस्कृति का अनुसरण करने वाले सभी लोगों को इस खेल से कोई परहेज नहीं करना चाहिए और इसकी सराहना करनी चाहिए। उनका कहना है कि वे इस खेल को ओलिम्पिक खेलों में शामिल करने का प्रस्ताव करेंगे और विभिन्न देशों की सरकारें तथा स्पोर्ट्स एसोसिएशन उन्हें इसके लिए समर्थन प्रदान करें। वे इस खेल को देश में इतना लोकप्रिय बना देना चाहते हैं कि सभी लोग एक-दूसरे के कालिख पोतने के प्रयास में लग जाएं और सदैव लगे रहें। इससे यह लाभ होगा कि देश के सारे लोगों में एकरूपता आएगी और सभी एक ही रंग के दिखेंगे। इस प्रकार सामाजिक भेदभाव को मिटाने में सफलता मिलेगी। इस खेल के एक अन्य पक्षधर ने कहा कि चूँकि कालिख और आई एस आई एस के झंडे का रंग एक ही है इसलिए एक बडा लाभ यह है कि तमाम सारे कालिख पुते लोगों को आई एस आई एस अपना समर्थक समझेगा और भारत पर हमले की बात नहीं सोचेगा । कालिख पोतने के इतने सारे लाभ सुनकर इस खेल के प्रतिपादकों और अनुयाइयों दोनों के प्रति मैंने अपना सर श्रद्धावनत कर दिया हैं। मेरे विचार से कालिख पोतने के खेल में हमारी परंपरागत निपुणता देखते हुए इसे राष्ट्रीय खेल बना देना चाहिए। वर्तमान राष्ट्रीय खेल हाकी में वैसे भी इन दिनों हम हारते ही रहते हैं। जब यह खेल हमारे राष्ट्रीय खेल और साथ ही ओलम्पिक खेल का गौरव प्राप्त कर लेगा तो एक बड़ा लाभ यह होगा कि विदेशों में इस खेल के कोच की भारी माँग होगी और यह कार्य हमारे ही देश के लोग करेंगे। फिर विभिन्न देशों में कालिख पोतने के लीग टूर्नामेंट शुरू होंगे जिसमें हमारे देश के लोगों की निपुणता देखते हुए उन्हें खिलाड़ी के रूप में खेलने का मौका मिलेगी। इस प्रकार हमारे देश के तमाम लोगों के लिए रोजगार का सृजन होगा।
         एक खबर यह भी है कि पूर्वी भारत के एक राज्य में पुनः ब्रिटिश भारत की पुरानी राजधानी को देश की राजधानी बनाने की माँग उठाई जाने वाली है। इस माँग के समर्थकों का कहना है कि देश की राजधानी को छुआछूत के रोगों से विरत रहना चाहिए पर हाल में छुआछूत के रोग फैलने से पता चलता है कि दिल्ली और मुंबई इस पैमाने पर खरे नहीं उतरते। ब्रिटिशकालीन भारत की पुरानी राजधानी ने कालिख पोतने के खेल से विरक्ति दिखाई है और इस प्रकार उक्त पैमाने पर यह नगर खरा उतरता है। इसलिए माँग की जाएगी कि अंग्रेजों द्वारा स्थापित ब्रिटिशकालीन भारत की पहली राजधानी को पुन: देश की राजधानी के रूप में उसका गौरव वापस किया जाए। इस पूर्वी राज्य के पड़ोसी देश के साथ पोरस बॉर्डर के कारण पड़ोसी देश के रास्ते अवैध रूप से भारत आने -जाने वालों को काफी सुविधा रहती है । इसलिए भारत से अवैध प्रेम की चाह में भारत आने-जाने की इच्छा रखने वाले लोग भी इस माँग के पक्षधर हैं क्योंकि अपने कारनामों को अंजाम देने के लिए दिल्ली तक का सफर करने में इन्हें अनेक खतरे उठाने पड़ते हैं। मुहब्बत के सफर को आग का दरिया बनाकर और उसमें डूबकर जाने से फिर इन्हें छुट्टी मिलेगी और इनका सफर आसान हो जाएगा। जब चाहा बॉर्डर के इधर राजधानी में और जब चाहा उधर राजधानी में । फिर अवैध मुहब्बत का ये कारोबार निर्बाध गति से चल सकेगा।-संजय त्रिपाठी

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