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सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

~ गजल ~  (गीता की वतन वापसी पर)


~गजल  (गीता की वतन वापसी पर ) ~

बिछड़ी दुख्तर को फिर से घर मिले
जलावतन को उसका वतन मिले ।।

इस नीले अंबर की छत के तले 
गर चाँद ढले तो सूरज निकले ।।

नफरत की धूप से जो धरती जले
तन-मन पर कोई चंदन आन मले ।।

कुछ इधर बदले कुछ उधर बदले 
चलो फिर से मुहब्बत की बात चले ।।

इंसानियत का रुतबा सबसे पहले 
सारे मजहब इसी की छाँव पले ।।

लोगों के दिलों में गरमाहट फैले
मुल्की रिश्तों पे जमी बर्फ पिघले ।।

चलो कहीं  तो कोई शजर हिले
यहाँ कुछ फूल गिरें कुछ हवा चले ।।

हो अमावस  की काली रात भले
'संजय' चाँद-सितारों की भी बात चले ।।
           - संजय त्रिपाठी 



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