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शनिवार, 14 नवंबर 2015

क्या इतिहास हमारे लिए वर्तमान की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है ?

क्या इतिहास हमारे लिए वर्तमान की अपेक्षा अधिक महत्वपूर्ण है ?
          कर्नाटक में टीपू सुल्तान को लेकर संग्राम छिड़ा हुआ है। इसके कारण तीन लोग कालकवलित हो चुके हैं और साम्प्रदायिक संघर्ष की स्थिति पैदा हो गई है।
          एक वर्ग का कहना है वह महान देशभक्त और योद्धा था। दूसरे वर्ग का कहना है कि वह निरंकुश साम्प्रदायिक अत्याचारी शासक था।
          दो सौ वर्ष पूर्वकाल के इस राजा ने उस समय क्या किया था , वह अचानक आज हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण हो गया है कि उसके पीछे हम आज आपसी सद्भाव को नष्ट करने पर आमादा हैं। हर व्यक्ति में गुण- अवगुण होते हैं। शायद टीपू के साथ भी ऐसा रहा होगा। किसी के भी अवगुण अनुकरणीय नहीं हो सकते। पर इससे उसके गुण उपेक्षणीय नहीं हो जाते। मेरी यह चेष्टा होती है कि मेरे अधीनस्थ या साथ जो भी लोग काम करते हैं ,मैं उनके गुण और अवगुण दोनों ही समझूँ। फिर मेरा यह प्रयास रहता है कि उनके अवगुण कार्य- कलाप को कम से कम प्रभावित करें तथा उनके गुणों का अधिक से अधिक लाभ उठाया जाए। अठारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में जब एक के बाद एक भारतीय रियासतें अँगरेजों के आगे दम तोड़ रही थीं, टीपू सुल्तान को इस बात का श्रेय है कि उसने उनसे बीस वर्षों तक लोहा लिया । उसकी बहादुरी को उसके विरोधी भी स्वीकार करते थे।
          टीपू के समय न तो धर्मनिरपेक्षता के नारे लगते थे और न ही मानवाधिकारों की बात करने वाली संस्थाएँ थीं। भारतीय इतिहास के मध्य युग में मुगल शासकों का युग अपेक्षाकृत उदारता का समझा जाता है । पर औरंगजेब एवं कुछ अन्य छुटभैये मुगल शासकों के अलावा जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में भी छिटपुट घटनाएँ हुईं जिन्हें हिन्दुओं के ऊपर अत्याचार की श्रेणी में रखा जा सकता है। पर पहले तो यह घटनाएँ छिटपुट थीं, दूसरे कई बार ऐसी घटनाओं के पीछे प्रजा का विद्रोही हो जाना या ऐसे राजा का अधीन होना जो मुगल सत्ता को चुनौती दे रहा हो, जैसे राजनीतिक कारण होते थे। पुनश्च इस्लाम राज्याश्रित धर्म था ही, हिन्दू धर्म का उस युग में यह दर्जा नहीं था।शायद यही कारण है कि इतिहास का आकलन करते समय जहाँगीर और शाहजहाँ को औरंगजेब की श्रेणी में नहीं रखा जाता। मेरे अपने विचार से टीपू सुल्तान ने जहाँ भी हिन्दुओं का दमन किया- नायरों का या फिर कूर्गों का तो उसके पीछे धार्मिक से अधिक राजनीतिक कारण थे। यह जरूर है कि इस दमन के लिए अपनाए गए तरीकों को सभ्य या न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। पर सवाल यह है कि क्या मात्र इन घटनाओं के आधार पर टीपू का मूल्यांकन किया जाना उचित है। इतिहास जब भी किसी का मूल्यांकन करता है तो निरपेक्ष रूप से करता है, हिन्दू या मुस्लिम का चश्मा चढ़ाकर नहीं।
          यदि हम दो सौ,चार सौ, हजार और दो हजार साल पुराने झगड़े लेकर बैठने लगेंगे तो शायद इस देश में कोई शांति से बैठ नहीं पाएगा। फिर तो सबसे पहले लोगों को प्रधानमंत्री मोदी जी के इंग्लैंड जाने का विरोध करना चाहिए था क्योंकि अँगरेजों से हमें इतिहास पर आधारित अनेक शिकायतें हैं, फिर अब उनसे दोस्ती क्यों। दलितों को ब्राह्मणों और क्षत्रियों पर पिल पडना चाहिए। वेदों में जिन्हें धृतवर्ण:,अनासः,मृगयु कहा गया है उन्हें ऐसा कहने वाले के वंशजों के खिलाफ मोर्चा खोल देना चाहिए। वस्तुत: शास्त्रों में अनेक जातियों और समूहों के लिए ऐसी बातें कही गई हैं जो उनके लिए शिकायत का कारण हो सकती हैं।इनमें आज की कुछ प्रतिष्ठित जातियाँ भी हैं। फिर महिलाएँ पुरुषों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दें। उनके पास इतिहासगत आधार पर ऐसा करने के लिए अनेक कारण हैं। कल मेरे किसी पूर्वज ने यदि कुछ किया था जो आज किसी को नागवार गुजरता है क्या आज उसका दंड मुझे मिलना चाहिए इसके बावजूद कि मैं उसका समर्थन नहीं करता?
         हमें अपना वर्तमान सुधार कर अपना भविष्य सँवारना चाहिए या भूतकाल में जीते रहकर अपना वर्तमान बिगाड़ना और भविष्य चौपट करना चाहिए, यह विचार करने का विषय है। कल मैंने किसी की टिप्पणी पढ़ी कि बच्चे विज्ञान पढ़ना चाहते हैं पर हम उन्हें इतिहास पढ़ाना चाहते हैं। वस्तुत: उपर्युक्त वाक्य का अंतिम हिस्सा होना चाहिए कि हम उन्हें इतिहास के आधार पर आपस में भिड़ाना चाहते हैं। आज वेंकैया नायडू जी का कथन पढ़ा- Tipu row uncalled for. यदि किसी को टीपू की जयंती मनाया जाना पसंद नहीं है तो वह विरोध वैचारिक और चर्चा गत आधार पर होना चाहिए न कि इसे एक नए सांप्रदायिक संघर्ष का रूप दिया जाना चाहिए। जैसाकि प्रधानमंत्री जी कहते हैं हमारी लड़ाई आपस में नहीं गरीबी के खिलाफ है, विकास के लिए है ; फिर क्यों हम बार-बार आपस में लड़ने के लिए तत्पर हो जाते हैं और क्यों नहीं सत्तारूढ़ दलों समेत समस्त राजनीतिक दल इसके खिलाफ एक स्वर में बोलते हैं। क्यों वे भी एक बाँटने वाली सीमारेखा के इधर या उधर खड़े दिखाई देते हैं - Just to score political points?

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