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शनिवार, 21 नवंबर 2015

नितीश : चुनौतियाँ और संभावनाएं

          वोटिंग पैटर्न का विश्लेषण तर्कसंगत रूप में करना दुष्कर कार्य है। पर कई बार चुनाव की एक थीम बन जाती है जिसे चुनाव विश्लेषक प्रायः लहर का नाम दे देते हैं और जब इसका प्रभाव होता है तो जाति,धर्म जैसे मुद्दे गौण हो जाते हैं। अनेक चुनाव इसके साक्षी हैं। पर थीम या लहर जैसा कुछ बिहार के इस चुनाव में दिख नहीं रहा था। नि:संदेह बिहार चुनाव में लालू यादव का स्ट्राइक रेट नीतिश से बेहतर रहा है। पर फिर भी यह मानना होगा कि जनता के सामने यह स्पष्ट था कि मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ही होंगे। इसलिए लालू की छत्रछाया बाधा नहीं बनी और नीतिश के गुड गवर्नेंस के रिकार्ड के कारण उनके विरुद्ध एंटी इन्क्यूम्बेन्सी का फैक्टर नहीं था। अतः जीत का श्रेय तो उन्हें देना पड़ेगा । लालू का एक कमिटेड वोट बैंक है और शायद इस कारण लालू एवं नीतिश समझौते के बड़े गेनर लालू प्रसाद रहे हैं।
        मैंने अपने पूर्व ब्लाग में बात की है बिहार के चरित्र और उस परिप्रेक्ष्य में नीतिश की महत्वाकांक्षाओं की। नीतिश में क्षमता और योग्यता है । सुशील मोदी जब साथ थे तो नरेन्द्र मोदी का प्रोजेक्शन शुरू हो जाने के बावजूद नीतिश कुमार को प्राइम मिनिस्टीरियल मैटेरियल बताया करते थे। यह तो जब ऊपर से अलग होने के निर्देश आ गए तो उन्हें अलग होना पड़ा और फिर जबान भी बदल गई। 
          पर अब नीतिश ने जिस आदमी का साथ पकड़ा है वह पूरी कीमत वसूलना जानता है और तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री तथा तेजप्रताप को मंत्री बनाकर नीतिश ने उसकी अदायगी की शुरुआत भी कर दी है। इस कीमत अदायगी को मैनेज करना और लालू को बिहार में महाराष्ट्र के बाला साहब ठाकरे की जैसी भूमिका अख्तियार करने से रोक पाना नीतिश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौतियाँ हैं। अगर वे इसमें सक्षम रहते हैं तो नि:संदेह विपक्ष के लिए वे एक समन्वय का बिन्दु बनकर उभर सकते हैं। नीतिश कुमार यह महत्वाकांक्षा रखते भी हैं। उन्होंने राहुल गाँधी,केजरीवाल और ममता बनर्जी से बार-बार संपर्क कर यह भूमिका पाने का प्रयास भी किया है। भारतीय राजनीति में राजनीतिज्ञ की सर्वाधिक उपयोगिता वोट कैचर राजनीतिज्ञ के रूप में समझी जाती है और अगर नीतिश इस रूप में औरों को उपयोगी लगेंगे तो वे उन्हें रास्ता देने के लिए तैयार रहेंगे। फार्रूख अब्दुल्ला ने तो उनकी इस भूमिका का समर्थन भी कर दिया हैं। जहाँ तक राहुल गाँधी की बात है, एक तो उन्होंने अब तक एक राजनीतिज्ञ के रूप में मैच्योरिटी नहीं दर्शाई है, दूसरे जब भी जिम्मेदारी सर पर आती दिखती है तो वे उससे भागते हुए दिखाई देते हैं । इसलिए मुझे नहीं लगता कि वे नीतिश के रास्ते में कंटक बनेंगे।   
            किसी भी प्रकार के झगड़े की स्थिति में लालू प्रदेश में और लालू तथा मुलायम की जोड़ी राष्ट्रीय स्तर पर उनका रास्ता अवरुद्ध करेगी। पर भविष्य के गर्त में क्या छिपा है यह तो कोई कह नहीं सकता। वैसे भारतीय राजनीति को नरेन्द्र मोदी के एक काउन्टर मैग्नेट की जरूरत तो है ही क्योंकि absolute power का परिणाम कभी भी अच्छा नहीं होता।

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