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मंगलवार, 26 जनवरी 2016

67वाँ गणतंत्र दिवस- आत्मसंवीक्षा की जरूरत

          आज का गणतंत्र दिवस हमारे लोकतंत्र के पुनरावलोकन का भी दिन है। लोकतंत्र की यह विशेषता है कि यह आम राय के आधार पर कार्य करता है। जहाँ आम राय नहीं बन पाती वहाँ बहुसंख्या के आधार पर निर्णय होता है। निर्णय हो जाने के बाद बहुसंख्या के निर्णय को अल्पसंख्या को भी स्वीकार करना पड़ता है। पर बहुसंख्या का निर्णय अल्पसंख्या को भी स्वीकार्य हो इसके लिए आवश्यक है कि उसकी संवेदनशीलता का ध्यान बहुसंख्या रखे और दूसरी ओर अल्पसंख्या भी यह ध्यान रखे कि लोकतंत्र के आधारभूत तत्व के अनुसार बहुसंख्या को निर्णय करने और उन्हें कार्यान्वित करने का अधिकार है। बहुसंख्या और अल्पसंख्या के इस प्रकार के पारस्परिक आदरभाव के द्वारा ही लोकतंत्र का समन्वय बिंदु मिलता है जो लोकतंत्र का संतुलन केन्द्र होता हैं। नि:संदेह मतभेद लोकतंत्र का अनिवार्य तत्व है पर लोकहित और देशहित के लिए बहुसंख्या एवं अल्पसंख्या दोनों को समन्वय बिंदु तलाशने ही पड़ते हैं और कई बार इन्हें देखते हुए दोनों कई मसलों पर एकराय भी हो जाते हैं।

          पर पिछले कुछ अरसे से ऐसा प्रतीत होने लगा है कि जैसे हमारे लोकतंत्र के बहुसंख्या और अल्पसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले पक्षों के बीच से समन्वय का बिंदु और इस प्रकार लोकतंत्र का संतुलन केन्द्र गायब हो गया है । दोनों के बीच शत्रुता का भाव अपने चरम पर है और यह लोकतांत्रिक पद्धति के निर्बाध संचालन में भी बाधा पहुँचाने वाला सिद्ध हो रहा है। संभवतः पिछले आम चुनाव में दक्षिणपंथ का अप्रत्याशित रूप से बहुमत प्राप्त कर लेना, वामपंथ और स्वयं को वामपंथी रुझान वाला प्रदर्शित करने वाले मध्यमार्गियों के लिए झटका देने वाला सिद्ध हुआ है और इस झटके ने उन्हें इतना हिला दिया है कि वे दक्षिणपंथ को किसी भी प्रकार का कोई कंसेशन देने के लिए तैयार नहीं हैं तथा दक्षिणपंथ के उभार को रोकने के लिए अतिरिक्त आक्रामकता का अपनी नीतियों के साथ समावेश करना ही उन्हें एकमात्र उपाय दिखता है । दूसरी ओर दक्षिणपंथी पक्ष उतनी ही तत्परता और दोगुने जोश के साथ वामपंथी और वामपंथी रुझान वाले मध्यमार्गियों का मुकाबला करने के लिए कटिबद्ध है। परिणामस्वरूप दोनों ही पक्षों के बीच कोई भी meeting ground नहीं दिखाई दे रहा है। राज्यसभा को, जहाँ विपक्ष बहुमत में है,सत्तापक्ष की योजनाओं को कार्यान्वित होने से रोकने का जरिया बना लिया गया है । जहाँ विपक्ष ललित मोदी, दादरी,असहिष्णुता और रोहित वेमुला के मामलों लेकर आक्रामक रहा है और इन मुद्दों के आधार पर संसद को न चलने देने की धमकी देता रहा है, वहीं सत्ता पक्ष की तरफ से कुछ संसद सदस्य और कभी-कभी मंत्रिगण आपत्तिप्रद बयान दे देते हैं। राज्यसभा की स्थिति ऐसी है कि मुझे लगता है कि जब कभी भी कोई सत्तापक्ष दो-तिहाई बहुमत प्राप्त कर लेगा , वह इसके अधिकारों में कटौती की बात करेगा।

          वर्तमान प्रवृत्तियों को देखते हुए मुझे लगता है कि शायद अब भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में वह समय नहीं आएगा जब कोई प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू किसी अटल बिहारी वाजपेयी का परिचय किसी विदेशी मेहमान से देश के भावी प्रधानमंत्री के रूप में कराएगा, कोई विपक्षी नेता अटल बिहारी वाजपेयी किसी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को दुर्गा बताएगा, विपक्ष के नेता के तौर पर कोई लालकृष्ण आडवाणी किसी नरसिम्हाराव की सरकार के बारे में अमेरिका दौरे के समय यह कहेगा कि वह देश की समस्याओं को सुलझाने में सफल होगी, कोई प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव विपक्षी अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेता बनाकर उसे संयुक्त राष्ट्र संघ के फोरम पर पाकिस्तान के काश्मीर संबन्धी प्रोपोगंडा का प्रतिकार करने की जिम्मेदारी सौंपेगा। हम अब एक ऐसा समय देख रहे हैं जब प्रधानमंत्री विदेशों में विपक्ष पर चुटकी लेने का मौका नहीं छोड़ते हैं और दूसरी ओर विपक्षी पार्टी का एक नेता पाकिस्तान में जाकर वहाँ के टी वी चैनल पर पाकिस्तानियों से भारत की चुनी हुई सरकार के बारे में कहता है कि उन्हें हटाकर हमें लाइए तब भारत और पाकिस्तान के संबन्ध सुधरेंगे।

        67वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत के दक्षिणपंथ और वामपंथ, सत्तापक्ष तथा विपक्ष दोनों को इस बात की जरूरत है कि वे आत्मसंवीक्षा करें तथा एक दूसरे के विचारों का आदर करके हुए उन्हें सहन करने की आदत डालें । वे एक दूसरे की संवेदनशीलता को समझें और संवेदनशील मुद्दों पर समझ-बूझकर सावधानीपूर्वक इस तरह अपने विचार व्यक्त करें कि कोई दूसरा उनसे आहत न हो। देशहित में और लोकहित में समन्वय के किसी बिंदु पर पहुँचने की चेष्टा करें ताकि लोकतंत्र संतुलित रहे। भारतीय राजनीति के सभी पक्षों की यह जिम्मेदारी है कि अति को छोड़कर मध्यमार्ग को वरीयता देते हुए भारतीय लोकतंत्र को देशहित में संतुलित करें ताकि भारतीय लोकतंत्र की गाड़ी जो इन दिनों चरर-चूँ करते हुए चल रही है विकास के पथ पर निर्बाध दौड़ सके।




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