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गुरुवार, 25 फ़रवरी 2016

~ मेघदूत से मुलाकात (व्यंग्य) ~      

              ~ मेघदूत से मुलाकात ~
        वायुयान अपनी संपूर्ण गति से अग्रसर था। दूर कहीं क्षितिज का अहसास भर हो रहा था गोया कि वह वायुमंडल के अथाह सागर में नीचे कहीं था जहाँ से उसका दिखना दुर्लभ था । क्षितिज के ऊपर बादलों ने जैसे एक दीवार बना रखी थी जो वायुयान की खिड़की से दूरस्थ नजर आ रही थी । नीचे भूमि चौकोर, आयताकार, वर्गाकार हरे, भूरे और खाकी टुकड़ों में नजर आ रही थी। मैंने अंदाज लगाया कि जो हरे टुकड़े दिख रहे हैं वे खड़ी फसल के हैं जो अभी पकी नहीं है, भूरे और कत्थई टुकड़े पक चुकी फसल के हैं। खाकी टुकड़े वे हैं जहाँ फसल कट चुकी है। इन आकृतियों के बीच- बीच कहीं चौड़ी, कहीं पतली और बारीक रेखाएँ जो कहीं सीधी तो कहीं टेढ़ी- मेेढ़ी थीं,आती- जाती हुई दिखाई दे रही थीं। यह शायद नदियाँ, नाले, सड़कें और पगडंडियाँ हैं जिन्हें ऊपर से पहचानना मुश्किल है, मैंने सोचा। बीच-बीच में कुछ छोटी-छोटी आकृतियाँ का समूह सा दिखता जो शायद इंसानी बस्तियाँ थीं।

       तभी मुझे खिड़की के पास बादल का एक टुकड़ा दिखाई दिया जो बड़ी जल्दी में कहीं जा रहा था। मैंने उससे बातचीत शुरू कर दी-
 "मेघ भाई इतनी शीघ्रता में कहाँ चल दिए? कौन सी विरहिणी  प्रियतमा ने तुम्हें अपने प्रिय के पास संदेश लेकर भेजा है?"

"तुम अभी भी कालिदास के जमाने में हो? मेघों से ये ड्यूटी कब की छिन चुकी है । अब मोबाइल है, एस एम एस है, व्हाट्स ऐप है, फेसबुक है जहाँ एक वर्चुअल दुनिया है और लोग वर्चुअल प्रेम तक कर डालते हैं। सो अब हमें कहीं कबाब में हड्डी बनने की जरूरत नहीं है।"

"मेघ जी वो फिल्मी गीत आपने सुना नहीं- बादल का टुकड़ा एक चला झूमते,चाँद भी छुप गया उसके आगोश में।। तो कहीं ऐसे ही किसी मिशन पर किसी के छुपने-छुपाने के चक्कर में तो आप नहीं निकल पड़े हैं?"

"ये फिल्म वाले हैं जो चाँद और बादल का प्रेम कराते फिरते हैं। ठंड के मौसम में तो मेढक-मेढकी भी नहीं पूछते हमें। फिर मियाँ इस समय तो दिन है रात नहीं। चाँद अभी कहाँ मिलेगा, सूरज के पास गए तो कंबख्त हमें सुखा ही डालेगा ! "

"तो फिर कहाँ निकल पडे ? क्या किसी गाँव के बाहर बरस कर किसी की पीड़ा को हरा-भरा करने वाले हो, बकौल किसी शायर के- रोज उठते हैं यहाँ झूम के बादल पर सब के सब गाँव के बाहर ही बरस जाते हैं।"

"देखो भइया, हमको जहाँ बरसना होता है बरस जाते हैं । बिना भेदभाव के बरसते हैं कोई किसी धर्म का हो,किसी जाति का हो,गरीब हो या अमीर हो सबको भिगोते हैं। गाँव-शहर का भेद नहीं करते । हमें किसी से वोट थोड़े लेना है कि शहर-गाँव देखें।"

"तो देख क्या रहे हो बरस जाओ, यूँ ही उडते रहोगे तो कोई विरहन गाने लगेगी- आखिर साजन मिले भी हमसे तो ऐसे मिले कि हाय, सूखे खेत से बादल जैसे बिन बरसे उड़ जाय"

"किसान की खड़ी फसल नीचे देख रहे हो। अगर बरस जाऊँ तो किसान के साथ- साथ तुम भी मुझे गाली दोगे।"

"तो फिर क्या दूर क्षितिजस्थ बादलों के समूह ने आपको देशनिकाला दे दिया है जो आप अकेले-अकेले चले जा रहे हो ?"

"देशनिकाला हो देश के दुश्मनों का , मुँह से जरा शुभ-शुभ बोला करो ! "

"अरे आप तो कोई संघी भाई लगते हो। देश के दुश्मनों के देशनिकाले की बात करते हो!"

"क्यों देशभक्ति और राष्ट्रवाद पर किसी की बपौती है क्या? इसके बारे में और कोई नहीं बोल सकता?"

"मेघ सर जी इसके बारे में बोलना अब पाप समझा जाने लगा है। आप को तुरंत प्रतिक्रियावादी ,संघी, भाजपाई बता दिया जाएगा। अब तो देश के टुकड़े करने की बात करना,अलगाववादियों के समर्थन में नारे लगाना ही प्रगतिशीलता है, ऐसा करने को मिले यही बोलने की आजादी है। इसके समर्थन में हमारे बडे-बड़े नेता भी सड़क पर उतर आए है"

"इसी का उपाय करने जा रहा हूँ"

"आप तो बड़े देशभक्त निकले मेघजी, पर आप इसका उपाय कैसे करोगे। "

" देखो हम क्या कर सकते हैं, बस बरस ही तो सकते हैं। दिल्ली- हरियाणे जा रहा हूँ, वहाँ का माहौल बड़ा गरम है। राहुल गर्म हैं, केजरीवाल गर्म हैं, लेफ्टिस्ट गर्म हैं, राइटिस्ट भी गर्म हैं , संघी-भाजपाई गर्म हैं, जाट भाई भी गर्म हैं। खूब जमकर बरसूँगा, लोगों को ठंडा करूँगा, उनके दिलो दिमाग में ठंडक लाऊँगा ताकि लोग ठंडे दिमाग से देश की तरक्की के बारे में सोचें । जैसे हम बिना भेदभाव के हर तबके पर बरसते हैं, वैसे ही राजनीति छोड़ देश के हर वर्ग की प्रगति की बात हमारे राजनीतिज्ञ सोचें।"

" दशरथ माँझी की तरह आपने बड़ा कठिन काम ठान लिया है मेघ जी। मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं। बहुत दिनों के बाद वायुयान में विंडो सीट मिली थी । सो आपसे मुलाकात हो गई और आपने मेरे ज्ञानचक्षु खोल दिए। खैर मेरे विमान में सुरक्षापेटी बाँधने का संकेत कर दिया गया है क्योंकि गंतव्य स्थल आने वाला है। दिल्ली यात्रा के लिए आपको शुभकामनाएँ । चलिए फिर कभी ऐसे ही आते- जाते मुलाकात हो जाएगी। फिलहाल विदा लेते हैं !"

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