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शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2016

वसंत के आगमन के द्योतक सेमल के फूल


        मेरे आवास के दरवाजे पर लगा हुआ सेमल का वृक्ष वसंत के आगमन के साथ- साथ पुष्पित हो मुझे हर्ष से भर देता है। ग्रीष्म के आरंभ के साथ-साथ यह वृक्ष सेमल के श्वेत-उजले सितारे बिखेरना आरंभ कर देता है। लगभग एक मास तक वृक्ष नित्यप्रति दिन-रात इस दान प्रक्रिया को संपन्न करता रहता है। इसके बाद जैसे किसी औघड दानी का खजाना चुक जाए यह महाशय भी शांत हो बैठ जाते हैं।

        जब वर्षा का आगमन होता है तो वृक्ष पुन: कुछ हर्षित दिखाई देता है । पावस के प्रभाव में कभी-कभी झूमता भी दिख जाता है। पर जैसे दानवीर राजा हर्ष अपना सब धन चुकने के बाद अपने वस्त्रों का भी दान कर दिया करते थे , वैसे ही सेमल का वृक्ष जैसे अपने पल्लव-पत्तों को भी वर्षा की समाप्ति के बाद दान करने पर लग जाता है। राजा हर्ष की बहन राजश्री , उनके द्वारा वस्त्र-आभरणों का भी दान कर दिए जाने के बाद वस्त्रादि अपने पास से प्रदान करती थी पर हमारे इन मित्र की बहन सदृश वसंत ऋतु है जिसके आगमन के लिए इन्हें लगभग तीन मास प्रतीक्षा करनी पड़ती है। शीत के आगमन के साथ लगता है जैसे यह तपस्यारत हो जाते हैं और अंत में एकाकी,शांत-क्लांत दिखाई देने लगते हैं।

        जब बसंत ऋतु का आगमन होता है तो वह जैसे अपने इन भइया को लाल- सुर्ख फूलों से सज्जित कर फाल्गुन के लिए पहले से तैयार करना आरंभ कर देती है। इनकी नई वेशभूषा देखकर आकर्षित हो पंछी इनके पास आने लगते हैं । इनमें से कई इनके पुष्पों में कुछ खाद्य ढूँढते हैं और उसका सेवन कर उड़ लेते हैं। इनके पुष्प गौओं और बकरियों को बड़े सुस्वादु लगते हैं और वृक्ष महोदय उनके लिए रोज भूमि पर पुष्पों की लाल-सुर्ख चादर बिछा दिया करते हैं। बच्चों को इनके पुष्प बड़े प्रिय हैं । वे भी इन्हें बीनने चले आते हैं। इस प्रकार यह अपने सारे पुष्पों का फाल्गुन के बाद भी तब तक दान करते रहेंगे जब तक इनका फूलों का यह खजाना चुक नहीं जाता। पर यह ऐसे दानी हैं कि इस दान के बाद और समृद्ध हो जाते हैं। हर दान किए फूल के बदले प्रकृति इन्हें अनमोल राशि से भरी एक फली देती है । फलियाँ धीरे-धीरे बड़ी होने लगती है और जैसे-जैसे गर्मी बढ़ने लगती है सूख कर काली पड़ने लगती हैं। इसके साथ-साथ यह सेमल वृक्ष महाशय एक बार फिर दान के लिए तैयार हो जाते हैं। काली पड़ी फलियाँ पक-पक कर फूटने लगती हैं और उनके भीतर का लुटने के लिए तैयार कोष सफेद गोल सितारों के रूप में उड-उड़ कर चारों तरफ छाने लगता है। लोग कई बार थैले लेकर इन्हें बटोरने आते हैं तो बच्चे शौकिया इन्हें बीनने आ जाते हैं और यह अपना यह खजाना तब लुटाते रहते हैं जब तक वह पूरा का पूरा फिर से खाली नहीं हो जाता।

       मैं पिछले कुछ महीनों से ऐसा व्यस्त हो गया हूँ कि मुझे अपने इन मित्र की तरफ देखने का भी अवसर न मिला और कार्यालय की समस्याओं ने दिमाग में ऐसा घर किया कि प्रकृति एवं ऋतु की तरफ ध्यान देने का अवसर न रहा। कोलकाता में जाते हुए इनके एक भाई पर निगाह पड़ी जो पुष्प सज्जित था। सहसा मुझे अपने इन मित्र का ध्यान हो आया और मन में कौंधा कि क्या इस वर्ष मेरे मित्र के लिए वसंत ऋतु का आगमन नहीं हुआ। क्या यह अभी भी शांत-क्लांत-गंभीर तपस्वी की मुद्रा में हैं या फिर कोलकाता का इनका यह भ्रातृ वृक्ष ही समय से पूर्व पुष्पित हो गया है। आखिर कोलकाता जनसंख्या और प्रदूषण के कारण गर्म भी तो है, गंगा के कूल पर स्थित मेरे घर पर तो मौसम अभी भी ठंडा है, मैंने सोचा। घर लौटा तो रात्रि हो चुकी थी। आज प्रात: बरामदे में निकल कर मैंने प्रथम साक्षात्कार अपने इन मित्र का किया। मेरे लिए सुखद आश्चर्य रूप सेमल वृक्ष महाशय लाल रक्तिम पुष्पों से सजे खड़े थे।

       यानी कि तुम्हारे लिए भी बसंत का आगमन हो गया है, आज तो सरस्वती पूजा है ! सरस्वती - पूजा यानी कि वसंत ही तो! चलो अब जब तक अपनी दान-प्रक्रिया फिर से न पूरी कर लो, यूँ ही खिले-खिले रहना मेरे मित्र!

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