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शनिवार, 5 मार्च 2016

~ लोकतांत्रिक पूँजीवाद बनाम साम्यवादी अधिनायकवाद ~

~लोकतांत्रिक पूँजीवाद बनाम साम्यवादी अधिनायकवाद~

         लोकतांत्रिक पूँजीवाद में कम से कम वस्तुओं की शेल्फ लाइफ कम होने के कारण नए-नए नायक लांच होते रहते हैं । इस प्रकार इसमें नए प्रयोगों के लिए स्थान है।

         पर साम्यवादी व्यवस्था में तो एक बार नायक जम जाए तो उसके मरने या बीमार पड़ कर अशक्त हो जाने तक या किसी षडयंत्र के सफल हो जाने तक दूसरे नायक के लिए कोई स्थान नहीं रहता था । चीन ने इस साम्यवादी परंपरा को तोड़ा है परंतु यहीं यह भी ध्यान देने योग्य है कि उसने पूँजीवाद के बहुत से तत्व अपना लिए हैं। 

        लोकतांत्रिक पूँजीवाद कम से कम हर नायक को कुछ दिनों के बाद उसकी औकात बता देता है और उसे वास्तविकता के धरातल पर उतार देता है। 

        विशुद्ध पूँजीवाद और विशुद्ध साम्यवाद दोनों ही व्यवस्थाएँ मानव के हित में नहीं हैं । यदि पूँजीवाद के साथ साम्यवाद के मूल में जो जन चिन्तन है वह समाहित हो जाए(और यह जनचिन्तन साम्यवाद के अंतर्गत स्थापित होने वाले अधिनायक तंत्र में तिरोहित हो जाता है क्योंकि अधिनायकवाद भले ही वह पूँजीवादी हो या साम्यवादी, अंततोगत्वा स्वहितवाद में तब्दील हो जाता है) तो वह मानव के लिए हितकारी होगा। 

       बिल गेट्स जिन्होंने पूँजीवादी व्यवस्था में पैसा कमाया और फिर अपनी कुल सम्पत्ति का लोकहित के लिए दान कर दिया है स्टालिन, माओ, चाऊ-एन-लाई, ख्रुश्चेव, ब्रेझनेव और फिडेल कास्ट्रो जैसे साम्यवादियों से लाख बेहतर हैं। डेग-शियाओ-पेंग को मैं इन साम्यवादी नेताओं की सूची में नहीं रख रहा हूँ क्योंकि वह साम्यवादी की खाल ओढे हुए पूँजीवादी थे।

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