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मंगलवार, 8 मार्च 2016

~ वामपंथी मित्रों के साथ राष्ट्रवाद पर बहस ~

~ वामपंथी मित्रों के साथ राष्ट्रवाद पर बहस ~

रघुवंशमणि : "जिभकट्टू राष्ट्रवाद" - इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम मैंने किया है।देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए लगता है इस शब्द का प्रयोग भविष्य में बहुत अधिक होना है । इसलिए मैं इस शब्द को पेटेंट करा लेना चाहता हूँ।भाषाशास्त्री यदि भविष्य में इस शब्द पर चर्चा करें तो इस बात का जिक्र अवश्य करें कि इस शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम रघुवंशमणि ने 7-3-2016 को किया था।इस शब्द का प्रयोग कोई भी कर सकता है। मुझे इस पर कोई आपत्ति नहीं। यदि राजनीति विज्ञान के विद्वान इस पर कार्य करेंगे तो मुझे विशेष प्रसन्नता होगी।

स्वप्निल श्रीवास्तव : यह कट्टर के आगे का शब्द है । कुछ हिंसक जैसा भाव है।

दिनेश चौधरी ः गलकटराष्ट्रवाद का पेटेंट मेरे नाम करें।

डा राधेश्याम सिंह : हलकट राष्ट्रवाद बनाम गलकट राष्ट्रवाद

मेरी टिप्पणी- डा राधेश्याम सिंह ने हलकट शब्द का प्रयोग किया है तो संभवतः उन्हें यह जानकारी भी हो कि मराठी में इसे abusive term समझा जाता है और मुंबई में इस शब्द का प्रयोग गाली देने के लिए किया जाता है!

रघुवंशजी : हलकट का शाब्दिक अर्थ क्या है? "हलकट जवानी" जैसा कोई गीत है जो खुले आम बजता है।

मेरी टिप्पणी- फिल्मों में तो बहुत कुछ हो रहा है । भाग डी के बोस डी के...... जैसे गाने भी बन चुके हैं । एक जमाना ऐसा भी आएगा, मैंने सोचा नहीं था। बहरहाल मुझे लगता है कि राष्ट्रवाद मजाक का विषय नहीं होना चाहिए, न ही इसका ठेका किसी पार्टी या संगठन विशेष के पास होना चाहिए। वे वामपंथी भी राष्ट्रवादी ही थे जिन्होंने राष्ट्रवाद के लिए फांसी के फंदे को चूमा- भगत सिंह, राजगुरू और सुखदेव। वो जिसने जनेऊ नहीं छोड़ा था पर हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी का सेनापति था। सुभाषचंद्र बोस भी वामपंथी थे भले ही अपने राष्ट्रवाद के कारण उन्होंने धुरी राष्ट्रों से मदद लेने में संकोच नहीं दिया। वामपंथ और राष्ट्रवाद का आपस में कोई विरोध नहीं है। दिग्भ्रमित नक्सली वामपंथियों का भले राष्ट्रवाद से विरोध हो।मैं नहीं समझ पाता हूँ कि क्यों दोनों को एक दूसरे के विरोध में खड़ा किया जा रहा है। भले ही मार्क्स ने सार्वभौमिक साम्यवाद को सिद्धांतत: प्रतिपादित किया हो; लेनिन, स्टालिन, माओ और चाऊ एन लाई से लेकर डेंग शियाओ पेंग और फिडेल कास्ट्रो तक सभी राष्ट्रवादी थे।

जनविजय- जिस देश में डेढ़ सौ से ज़्यादा राष्ट्रीयताओं के लोग रहते हों, वहाँ राष्ट्रवाद की बात करना बेवकूफ़ी है। भूमण्डलीकरण के इस ज़माने में तो जापानी और जर्मन राष्ट्रवाद भी ख़त्म हो रहे हैं।

मेरी टिप्पणी- संभव है जन विजय जी कि मैं मूर्ख होऊँ। पर मेरा विचार है कि निश्चय ही जिस देश में विभिन्न राष्ट्रीयताओं के लोग रहते हों वहाँ उन्हें आपस में जोड़ने के लिए कुछ चाहिए और यह भारतीयता है जो हम सबको जोड़ती है।यदि आप 130 करोड़ भारतीयों के हित की बात सोचते हैं तो मेरी नजर में यही राष्ट्रवाद है और आप राष्ट्रवादी हैं। मैं किसी पार्टी या संगठन के आइने के अनुसार राष्ट्रवाद को नहीं देखता हूँ।यदि आप विभिन्न राष्ट्रीयताएं जिन्हें आपने इंगित किया है,के बीच जुड़ाव नहीं चाहते हैं तो बात दूसरी है । मुंबई में मेरे एक मित्र एस पी चक्रवर्ती हैं जो ट्रेड यूनियन लीटर और die-hard communist हैं । सोवियत रूस के विघटन के बाद मेरी उनसे उसी तर्ज पर विभिन्न राष्ट्रीयताओं वाला देश होने के कारण भारत के विघटन की संभावना के बारे में चर्चा हुई। चक्रवर्ती जी ने मेरी बात का पुरजोर विरोध किया और परिचर्चा के दौरान बहुत उत्तेजित हो गए। एस पी चक्रवर्ती जी ने सोवियत रूस के विघटन की परिस्थितियों से भारत की परिस्थितियों को भिन्न बताते हुए और उन तत्वों को इंगित करते हुए जिन्होंने भारत को जोड़ रखा है, ऐसी किसी भी संभावना को खारिज किया । 

जहाँ तक भूमण्डलीकरण की बात है यदि वह उस सीमा तक वास्तविकता बन गई है कि राष्ट्रीयता गौण हो गई है तो विभिन्न देशों को borderless हो जाना चाहिए, विभिन्न देशों की सीमाओं पर सेना नहीं होनी चाहिए, दुनिया में कहीं भी आने-जाने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, वीजा-पासपोर्ट की कोई जरूरत नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा नहीं है तो ग्लोबलाइजेशन की सारी बातों के बावजूद राष्ट्र और राष्ट्रीयता एक वास्तविकता है तथा अपने राष्ट्र के हित की बात सोचना राष्ट्रवाद है। ग्लोबलाइजेशन के नाम पर संपन्न राष्ट्र अपने लिए बड़ा बाजार चाहते हैं पर कुछ देने को तैयार नहीं हैं। मात्र संचार संबन्धी उपलब्धता को या कुछ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कार्यक्रमों को ग्लोबलाइजेशन कहना कहाँ तक समुचित है यह विचारणीय है। जापान में यदि राष्ट्रवाद समाप्त हो रहा है तो जापान अमेरिका और आस्ट्रेलिया के साथ मिलकर प्रशान्त महासागर और चाइना-सी की निगरानी की योजना क्यों बना रहा है और उसमें भारत को भी शामिल करने का प्रयास क्यों कर रहा है(भारत ने इससे इनकार कर दिया है), पुनश्च जापान अपना रक्षा बजट क्यों बढ़ा रहा है?जर्मनी में यदि राष्ट्रवाद समाप्त हो गया है तो जर्मनी में सीरिया से आने वाले शरणार्थियों की संख्या नियंत्रित करने और उन्हें जर्मन संस्कृति से परिचित कराने की बात क्यों हो रही है? आदर्श और वास्तविकताएं अलग-अलग हैं। राष्ट्रवाद एक उत्कृष्ट भावना है जिसे राजनैतिक मुद्दा बनाने का कुछ लोग अवसर ढूँढ रहे थे और इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं उन्हें यह अवसर प्रदान कर रही हैं।

डा राधेश्याम सिंह : ए हलकट भी हलक काट का मुखसुख संक्षेपीकरण लगता है।मेरा अभिप्राय दोनों ही पक्ष के संशुद्धतावादी राष्ट्रवादियों का निषेध करना था।आशा है संजय जी और रघुवंश जी ने मेरे दुख को समझा होगा।

रघुवंशजी : संजयजी कुछ ज्यादा ही अकादमिक हैं। लेकिन हलकट का मराठी अर्थ साफ़ नहीं हुआ।

मेरी टिप्पणी : रघुवंशजी हर चीज का शाब्दिक अर्थ खुले मंच पर लिखने लायक नहीं होता। बहरहाल अगर कोई तमाशा देखना चाहे तो मुंबई में किसी मराठीभाषी के आगे यह शब्द उच्चारित कर दे और फिर तमाशा देखे। डा राधेश्याम सिंह की व्याख्या से स्पष्ट हुआ कि उन्हें भी इसका अर्थ ज्ञात नहीं है। मुझे लगा था कि हो सकता है कि वे मराठी से परिचित हों या मुंबई में रहे हों और अर्थ जानते हों।

रघुवंशजी : राष्ट्रवाद कोई पवित्र चीज नहीं जिस पर बहस न की जाए। हिटलर के दौर में भी एक राष्ट्रवाद था और मुसोलिनी के समय में  भी। भारत में आज राष्ट्रवाद का उपयेग अपने विरोधियों से निपटने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में इस प्रकार के राष्ट्रवाद की आलोचना करना जरूरी हो गया है।

मेरी टिप्पणी : पवित्र वस्तु भी आलोचना के दायरे से बाहर नहीं कही जा सकती।पर कोई भी आलोचना सोद्देश्य होनी चाहिए महज राजनैतिक विरोध के लिए नहीं। राष्ट्रवाद एक अवधारणा है। यह अवधारणा क्या हो कैसी हो यह विवेचन का विषय हो सकता है। यह अवधारणा ही न हो यह भी विवेचन का विषय हो सकता है। पर मुझे लगता है कि आपका उद्देश्य इस अवधारणा का दुरुपयोग करने वालों को कटघरे में खड़ा करना है। ऐसे में जब आप राष्ट्रवाद की आलोचना करने में लग जाते हैं तो अपने मूल उद्देश्य से भटक जाने की संभावना है। फिर आप राष्ट्रवाद के नाम पर आज तक जो भी हुआ है यहाँ तक कि हमारी स्वतंत्रता की पूरी लड़ाई पर भी प्रश्न खड़ा कर रहे हैं। आप उन पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं जिन्होंने राजनैतिक दलों और श्रमिक संगठनों के साथ राष्ट्रीय शब्द लगा रखा है क्योंकि वह भी राष्ट्रवाद को ही द्योतित करता है। उन समस्त पूर्ववर्ती महापुरुषों पर भी सवाल खड़ा कर रहे हैं जिन्होंने राष्ट्र, राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद की बात की। पर नि:संदेह प्रश्न आप किसी पर भी खड़ा कर सकते हैं और उसका आपको अधिकार है । पर आपको यह भी बताना चाहिए कि कुछ लोगों या संगठनों के कारण आप पहले की राष्ट्रवाद संबन्धी पूरी धरोहर को क्यों खारिज कर देना चाहते हैं।


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