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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

भारत माता के लिए संविधान के अनु.।।। में संशोधन की माँग

         उत्तरी मुंबई से भाजपा के संसद सदस्य श्री गोपाल चिनय्या शेट्टी ने लोकसभा में एक प्राइवेट मेम्बर बिल पेश किया है जिसमें संविधान के तीसरे अनुच्छेद में संशोधन की माँग करते हुए निर्वाचित होने वाले जन प्रतिनिधियों के लिए शपथग्रहण के समय भारत माता की जय बोलना अनिवार्य करने के लिए कहा गया है।

         राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत के इस बयान पर कि सभी विद्यार्थियों को बाल्यकाल से ही 'भारत माता की जय' बुलवाया जाना चाहिए, मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष श्री असदुद्दीन ओवैसी ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कह दिया था कि यदि उनके गले पर चाकू रख कर भी भारत माता की जय बोलने को कहा जाए तो वे नहीं बोलेंगे। सरसंघचालक के बयान पर श्री ओवैसी की प्रतिक्रिया ही ऐसी थी कि इसने एक विवाद को जन्म दे दिया। स्वयं को सच्चा देशभक्त कहने और समझने वालों ने इस पर तीव्र प्रतिक्रिया व्यक्त की। भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह ने कहा कि भारत माता की जय बोलना किसी भी विवाद या चर्चा का विषय नहीं हो सकता। उनकी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने भी इसका समर्थन किया। पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने यह कह कर एक प्रकार से विवाद को समाप्त करने का प्रयास किया कि भारत माता की जय जबर्दस्ती कहलाए जाने की जरूरत नहीं है। लोग स्वेच्छा से इसे बोलें ऐसा वातावरण बनाया जाना चाहिए। पर उन पक्षों को जो हमला करने के लिए तैयार रहते हैं, एक मुद्दा मिल गया और वे इसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। श्री गोपाल चिनय्या शेट्टी का लोकसभा में प्रस्तुत प्राइवेट मेम्बर बिल भी इसी का एक उदाहरण है।

          श्री ओवैसी यह भी कह सकते थे कि वे भारत माता की जय अपने धार्मिक कारणों से नहीं बोल सकते पर भारत की जय/ जय हिंद/ हिन्दुस्तान जिन्दाबाद बोल सकते हैं। इससे संभवत: विवाद नहीं पैदा होता। पर उन्होंने जिस प्रकार की प्रतिक्रिया दी उसका जैसे उद्देश्य ही विवाद पैदा करना था। भारत माता की जय के समर्थक और उसका विरोध करने वालों दोनों ही जोर-शोर से बयानबाजी करने लगे । विरोध करने वालों के साथ तथाकथित सेक्यूलरिस्ट भी मैदान में उतर गए। कुछ लोग भारत माता की जय बोलने को अनिवार्य किए जाने पर जोर देने लगे और कुछ कहने लगे कि जबर्दस्ती करने पर अथवा भाजपा नेताओं के कहने पर वे भारत माता की जय नहीं बोलेंगे। देवबंद ने भारत माता की जय बोलने के खिलाफ फतवा भी जारी कर दिया जिस पर मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि राजनैतिक रूप से विवादास्पद विषयों पर फतवा जारी करने से बचा जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के विवाद का उद्देश्य राजनैतिक लाभ उठाना है। मैंने कहीं आरिफ जकारिया का कथन पढ़ा कि इस्लाम केवल खुदा के सामने सज्दे की इजाजत देता है और जहाँ सज्दे की बात नहीं है, जय शब्द जिंदाबाद के अर्थ में प्रयुक्त हो रहा है वहाँ जय बोली जा सकती है,इसमें कोई हर्ज नहीं हैं। अगर जावेद अख्तर जी ने कई बार भारत माँ की जय बोल दी तो क्या वे मुसलमान नहीं रह गए। फिर हम मादरे वतन की बात क्यूँ करते हैं और इस पर आज तक किसी ने धार्मिक कारण बताकर आपत्ति क्यों नहीं की।

        हमारे जो देशभक्त यह कह रहे हैं कि भारत माता की जय बोलने को अनिवार्य बनाया जाए उनसे मैं कहना चाहता हूँ कि यदि कोई भारत की जय,हिन्दुस्तान की जय, जय हिंद या हिंदुस्तान जिंदाबाद बोलने के लिए राजी है तो आप क्यों उसे उसमें माता शब्द जोडने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। उसकी भावना भी वही है जो आपकी है।यदि आप अपने धार्मिक विश्वासों के कारण मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं तो दूसरे की धार्मिक भावनाओं की भी कद्र करना सीखिए। उसे इतनी छूट देने के लिए तैयार रहिए कि वह बिना माँ शब्द जोड़े भारत या हिंदुस्तान की जय या जिंदाबाद बोले। अपने उस लोकतंत्र में उसका भरोसा कायम रखिए जहाँ सबके धार्मिक विश्वासों की कद्र की जाती है और सभी को धार्मिक स्वतंत्रता है।

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

जगमगाहट ने छुपा रखे हैं कितने पैबन्द !

   


           मेरे फ्लैट के सामने इस बहुमंजिली इमारत में एक उद्योगपति निवास करते हैं। पर जब आप नीचे सड़क के किनारे फुटपाथ पर देखेंगे तो नीचे तमाम लोग ऐसे मिलेंगे जिनका निवास स्थान फुटपाथ ही है। वहीं शाम को ईंटें लगाकर चूल्हा जला लिया जाता है जिन पर खाना पकता है। पटरी पर ही रात में और दोपहर में भी सोने की व्यवस्था हो जाती है। गुदडी में लिपटा लाल और पास ही लेटी उसकी माँ दिखाई दे जाती है। कहीं 80 वर्ष की कोई वृद्धा लेटी नजर आती है जिससे लगता है कि समाज के इस तबके को शायद वृद्धाश्रमों की जरूरत नहीं है।जो ज्यादा भाग्यशाली हैं उनके पास तख्त या दीवान जैसा कुछ है जिस पर दिन में धन्धे-पानी का काम हो जाता है और रात में सोने का। सर पर छत के लिए खुला आसमान है।हो सकता बारिश में फुटपाथ के निवासी अपने लिए अस्थाई कुछ छत जैसा लगा लेते हों जिसकी कोई संभावना मुझे दिखाई नहीं देती । बारिश आएगी तभी पता चल सकेगा। थोड़ी दूर पर सुलभ शौचालय भी है। प्रशासन ने एक अच्छा काम किया है कि सड़क और फुटपाथ के बीच लोहे की रेलिंग लगा दी हैं। इससे मुंबई में सलमान खान की गाड़ी से जैसा हादसा हुआ वैसा यहाँ होने की संभावना कम है। हमारे प्रधानमंत्री ने 2022 तक प्रत्येक भारतवासी के सर पर छत उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। पर इन तमाम लोगों के सर पर छत मयस्सर हो पाएगी मुझे इसमें संशय है।

          यहाँ कोलकाता में मैंने हाथी बागान क्षेत्र में देखा है कि सड़क के किनारे फुटपाथ पर लोगों ने छोटे-छोटे कमरे ( 4'x6'. 6' x 6', 6'x 8' के बना लिए हैं ( संभवत: स्थानीय रूप से रसूख रखने वालों की कृपा से) जिसमें उनकी पूरी गृहस्थी सिमटी रहती है। शायद जब वे लोग गाँव जाते होंगे तो कहते होंगे कि कलकत्ते में हमारा अपना घर है। पर तमाम लोग हैं जो इतने भी भाग्यशाली नहीं हैं। ऐसी व्यवस्था कर दी गई है कि शहर रात में रोशनी से जगमगाता है। पर इस जगमगाहट को देखकर मैं यही सोचता हूँ कि इसने कितने पैबन्द छुपा रखे हैं।

- डाँस बार (संस्मरण पर आधारित) -

                          डाँस बार
        दो दिन पहले समाचार पत्र में सुप्रीम कोर्ट की एक टिप्पणी महाराष्ट्र सरकार के साथ चल रहे डांस बार के मामले में पढी कि भीख माँगने की अपेक्षा डांस कर पैसा कमाना ज्यादा ठीक है। महाराष्ट्र सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि वह डाँस पर रोक नहीं लगा रही बल्कि उनका नियमन कर रही है ताकि डाँस की आड में अश्लीलता न हो। मैं एक सच्ची कथा प्रस्तुत कर रहा हूँ जो बताती है कि डाँस बार जाने की लत लग जाने पर मध्यमवर्गीय व्यक्ति का हश्र क्या हो सकता है।

          श्री वरेकर मेरे संस्थान में कार्य करते थे । उनसे परिचय कराते हुए मेरे कार्यालय के एक सहकर्मी ने बताया कि उनका अपना फ्लैट है और पत्नी भी वोल्टास में नौकरी करती हैं तथा बहुत अच्छा वेतन पाती हैं जितना कि उन दिनों सरकारी कर्मचारियों को मयस्सर नहीं था। कुछ वर्ष गुजर गए। फिर सुना कि श्री वरेकर ने अपना फ्लैट बेच दिया और वे मेरे पास स्थित एक सरकारी आवास में रहने आ गए। एक दिन श्री वरेकर ने मुझसे कुछ धनराशि उधार माँगी। कुछ दिनों के बाद उन्होंने पुन: मुझसे कुछ धनराशि उधार माँगी। इस बार मैंने इस बात का जिक्र अपने कार्यालय के उन सहकर्मी से किया जिन्होंने मेरा परिचय श्री वरेकर से कराया था। मैंने कहा कि आपने बताया था कि श्री वरेकर और उनकी पत्नी दोनों नौकरी करते हुए कुल मिलाकर बहुत अच्छा वेतन पाते हैं, वे फिर भी उधार माँगते हैं, आखिर बात क्या है। उन सहकर्मी ने मुझे श्री वरेकर को उधार देने से मना किया और कहा कि उनमें यह आदत बढ़ गई है। इसी कारण कुछ दिन पहले उन सहकर्मी ने श्री वरेकर द्वारा पैसा माँगने पर मना कर दिया था। एक दूसरे विभाग के व्यक्ति ने बताया कि श्री वरेकर को डांस बार जाने की लत लग गई है तथा वे रुपयों की माला बनाकर वहाँ ले जाते हैं और नर्तकियों को पहनाते हैं। उस दिन के बाद से श्री वरेकर द्वारा पैसा माँगने पर मैं मना करने लगा।
          फिर एक दिन सुना कि श्री वरेकर ने कार्यालय के काम से लिया गया पैसा कहीं खर्च कर दिया और वह उनकी तनख्वाह से कट रहा था। फिर यह भी सुना कि श्री वरेकर नौकरी दिलाने के नाम पर या लोगों का कोई काम करा देने के नाम पर भी उनसे पैसा ले लेते हैं। 

        एक दिन मैं अपने परिचित एक मिश्रजी के यहाँ मिलने के लिए गया। उन्होंने अपने गाँव से आए एक व्यक्ति से मेरा परिचय करवाते हुए उसे अपना भतीजा बताया और साथ ही यह भी कि उसकी नौकरी लगवाने के लिए उन्होंने श्री वरेकर को 5000 रुपए दिए हैं। मैंने श्री वरेकर की कहानी उन्हें सुनाई और सलाह दी कि वे अपना पैसा वापस पाने का प्रयास करें। खैर कुछ दिनों के बाद पुन: मुलाकात होने पर उन्होंने बताया कि श्री वरेकर को डरा-धमका कर उन्होंने अपना पैसा वापस ले लिया है। श्री वरेकर के पड़ोस में रहने वाली एक बालिका ने बताया कि एक दिन कोई पुरुष और नेवारी साड़ी पहने एक महिला श्री वरेकर के घर में मोटरसाइकिल पर सवार होकर आए थे। फिर उनके घर से झगडने की आवाज आ रही थी। फिर रोने की आवाज भी आ रही थी। आखिर में वे पुरुष और महिला वरेकर और उनकी पत्नी को डरा-धमका कर चले गए।

        कुछ दिनों बाद मेरा वहाँ से स्थानांतरण हो गया । पर मैं जब तक वहाँ रहा श्री वरेकर के बारे में इसी प्रकार की बातें सुनता रहा। 

         अब आप ही बताइए कि डांस बार आम जनता के लिए कितने लाभदायक हैं। क्या वे भी शराबखानों की तरह परिवारों की बर्बादी का कारण नहीं बनते।

सोमवार, 25 अप्रैल 2016

~ सद्भावना अभियान की जरूरत~

          सन 2012 में गुजरात के अपने मुख्यमंत्रित्वकाल के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार में सद्भावना यात्रा आरंभ कर पूरी की थी । इस यात्रा के माध्यम से उन्होंने अल्पसंख्यकों विशेषकर मुस्लिम समुदाय तक संपर्क और पहुँच बनाने की कोशिश की थी। इसमें कितनी सफलता मिली इसे वे बेहतर जानते होंगे। पर मैंने इस विषय पर उनका ब्लाग पढ़ा है जहाँ उन्होंने यात्रा का मकसद पूरा होने और अतिशय संतोष मिलने की बात कही है।

          मुझे लगता है कि इन दिनों जब मोदी सरकार को सहिष्णुता के मुद्दे पर बार- बार कटघरे में खड़ा करने के प्रयास चल  रहे हैं , उन्हें देश की जनता विशेषकर मुस्लिमों की आश्वस्ति के लिए पुन: सद्भावना मिशन आरंभ करने की जरूरत है। बेहतर हो कि वे प्रत्येक वर्ष कुछ समय इस प्रकार के सद्भावना अभियान के लिए रखें ।

           किसी को शत्रु समझने वाले उस पर वार वहीं करते हैं जो उसका कमजोर पक्ष दिखाई देता है। मुस्लिम समाज से दूरी और मुस्लिमों के साथ भाजपा,संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों के शिथिल या अनुपस्थित संपर्कसूत्र और कहीं-कहीं विरोधी भाव के कारण असहिष्णुता और सांप्रदायिकता के आरोप अभी आगे भी भाजपा और उसकी सरकार पर लगते रहेंगे। अटलजी ने इस स्थिति को बदलने का प्रयास किया था और उन्हें इस दिशा में आंशिक सफलता भी मिली थी। पर पहले तो गुजरात दंगों और फिर सत्ता जाने के बाद अटलजी के अस्वस्थ हो जाने के कारण यह प्रयास गौण हो गए। उसके बाद से इस दिशा में भाजपा की तरफ से कोई गंभीरता नहीं दिखाई गई हैं।

          भाजपा के कुछ नेता निरन्तर इस प्रकार की बयानबाजी करते रहे हैं जिससे दल की सार्वदेशिक स्वीकार्यता प्रभावित होती रही है और उसे नुकसान होता रहा है। अरुण जेटली ने भी बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद इस बात को स्वीकार किया ।किसी भी राजनैतिक दल के राजनीतिक लाभ तब तक स्थाई नहीं हो सकते जब तक कि उसकी अपील सार्वदेशिक, सार्ववर्गिक न हो। पर भाजपा ने केन्द्र में शासन में आ जाने के बाद इस पक्ष को तवज्जो नहीं दी है।भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इस तरफ ध्यान देने और आवश्यक उपाय करने की जरूरत है।

रविवार, 24 अप्रैल 2016

~ Sonnet of a winter morn! ~

I had, as an 18 years old, written this sonnet wherein I used a different meter system than usual. However when shown to my English lecturer , he advised me to write and improve my prose instead of trying to write poems.


     ~ Sonnet of a winter morn! ~

Look over the Margosa, the newly born sun in heaven

How much he looks happy and gay!

The singing peasant with his hale and hearty oxen

Is going on his usual way.



Pair of sparrows on the mango tree  in the chilly weather

Is sweetly twittering as ever.

How smoothly with its constant spontaneous flow

Is flowing Saryu ,the pious river.



Like a dancing maid Eucliptus marvellously swings.

Awake dear ,participate in the mirth of natural beauty!

All these are committed to their daily routines

With punctuality and dedication for duty.


Come darling! In learning a lesson,there is no infidelity

Enjoy the nature that is the Almighty !  - Sanjay Tripathi

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

आँखें तुम्हारी (कविता)

                     आँखें तुम्हारी
          ( 12 वर्ष पहले लिखी गई कविता )

झील सी गहरी आँखें तुम्हारी इस दिल में घर कर गईं।
चपल आँखें तुम्हारी सरे महफिल क्या-क्या कह गईं।
हिरणी सा जादू समाया है तुम्हारे कजरारे नैनों में।
अपनी आँखों से तुम इस काफिर को निष्प्राण कर गईं।।

यायावरी आँखें तुम्हारी इन आँखों से टकराती रहीं।
सागर सा इक लहराता रहा, मौजें भिगो-भिगो जाती रहीं।
हीरे सी आँखें तुम्हारी ,हैं खुदा की दी हुई अनमोल नेमत।
हूँ मैं खुशकिस्मत जो नैनों की दौलत तुम लुटाती रहीं।।

समंदर सी आँखों में तुम्हारी यह दिल डूबता उतराता रहा।
उन आँखों से अमृत छक कर यह नई जिंदगी पाता रहा।
खुदा की कसम है तुम्हें, न धोना कभी आँखों का काजल ।
खंजन से श्वेत- श्याम नैनों पर किसी का दिल है जाता रहा ।।
     - संजय त्रिपाठी

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

~ गजल (साल्टलेक,सेक्टर-5, कोलकाता पर ) ~





~ गजल (साल्टलेक,सेक्टर-5, कोलकाता पर)~

शहर के इस हिस्से में कहीं धूप तो कहीं छाँव है
भीतर मैकडोनाल्ड तो पटरी पे चाय की दुकान है

भटकने की जरूरत नहीं जेब में हैं कितने पैसे
उसके अनुकूल ही हर समस्या का समाधान है

सड़क के इस पार खड़ी है बहुमंजिली इमारत
उस पार सुकूँ देता 'नलबन' का सरोवर-उद्यान है

बस में मैले- कुचैले कपड़ों में भारत माँ की बेटी
गोद में उसकी दूध को मचलता अधनंगा नादान है

सोनमुहर के वृक्ष के नीचे बतलाता प्रेमी जोड़ा
हाथों में लिए हाथ दिली लहरों का करता बयान है

उस शहर के बरक्स जहाँ हर तरफ धूप ही धूप है
यह लगता जैसे किसी मरुभूमि में नखलिस्तान है

धूप के लश्कर से मुहब्बत भरे मुकाबले को तैयार
'संजय' मौजे सबा और आमों से लदा सायबान है
         - संजय त्रिपाठी