hamarivani.com

www.hamarivani.com

रविवार, 3 मार्च 2013

सहारा-एक दूसरे का

                      कल शनिवार 2 फरवरी के दिन मैं आर्थोपेडिक क्लीनिक पर अपनी माँ के लिए दवा लेने के लिए गया था.वहाँ एक दृश्य ने बरबस मेरा ध्यान आकर्षित किया और भविष्य की एक लंबी अवधि के लिए मेरे मनोमस्तिष्क पर अंकित हो गया.एक वयोवृद्ध दम्पति क्लीनिक से बाहर निकल रहे थे.दोनो की वय अस्सी वर्ष के लगभग रही होगी.शायद इसमेँ आपको कोई अनहोनी बात नही लग रही होगी.पर आगे सुनिए.दोनो ने एक दूसरे का हाथ थामा हुआ था.वैसे ही जैसे प्रणयावधि के दौरान युगल अथवा शादी के  बाद कुछ समय तक नवदम्पति एक दूसरे का हाथ थामे दिख जाते हैं .शायद आप सोच रहे हैं कि वयोवृद्ध दंपति मे  अभी भी प्रेम तरुण बना हुआ था.दरअसल उनमेँ से एक  दूसरे को सहारा दे रहा था,  पर उनकी अवस्था और चेहरे की झुर्रियोँ को देख कर यह कहना मुश्किल था कि उनमेँ से कौन किसको सहारा दे  रहा था.मैँ भी कुछ देर तक असमंजस के साथ दोनों को देखता रहा.बाद में मैने देखा- वृद्धा अपना पैर कुछ घसीट रही थी.इस आधार पर  मैँने यह निष्कर्ष निकाला कि पत्नी के पैर में कुछ समस्या थी जिसके निदान के लिए वह आर्थोपेडिस्ट के पास आई थीं और यह  पति थे जो उन्हे सहारा दे रहे थे .पति उनका हाथ  थामे हुए रिक्शे तक गए फिर एक दूसरे को सहारा देते हुए दोनो रिक्शे पर बैठे और चले गए.

                    इस दौरान मेरा मनोमस्तिष्क स्थिति का विश्लेषण करने में लगा हुआ था.शायद इन दम्पति की संतानेँ कहीं दूर रहती होंगी अथवा हो सकता है कि कोलकाता और्  मुंबई आदि मेट्रो शहरों के बहुतायत दम्पतियों की तरह इनकी एक ही संतान होगी जो  यदि लडका होगा तो बहू और सास की खट-पट के कारण अलग रह रही होगा और यदि लडकी होग़ी तो अपने पति के साथ कहीं अलग रह रही होगी.एक क्षीण सम्भावना दम्पति के नि:संतान होने की भी हो सकती थी. कम से कम यहाँ एक दूसरे को सहारा देने के लिए दो व्यक्ति तो थे पर कई बार तो इनमेँ से एक के चले जाने के कारण दूसरा अकेला रह जाता है.  इन दिनों मेट्रो शहरों ही नही कई अन्य दूसरे शहरों मे भी अनेक वृद्ध दम्पति इसी प्रकार परिस्थितिजन्य कारणों से अकेले रह रहे हैं.प्रसिद्ध इतिहासकार रामशरण शर्मा के विषय में मैंने पिछले वर्ष समाचारपत्र मेँ पढा था कि वे पटना में अपने आवास में अपनी पत्नी के साथ एकांतवास कर रहे थे.दोनो ही पति-पत्नी चलने-फिरने में असमर्थ तथा वृद्धावस्था के कारण जर्जरित थे.समाचारपत्रों से  खबर मिलने के बाद बिहार सरकार ने उनके पास अपने प्रतिनिधियों को भेजा.पर हर किसी को तो सरकारी प्रतिनिधियोँ का सहारा नही मिल सकता.तो क्यों न  हम कम से कम  अपने आस-पास ऐसे वृद्ध दम्पतियोँ को तलाशें,उनकी खोज-खबर रखें,जरूरत होने पर उनकी सहायता करें और उन्हे भावनात्मक संबल प्रदान करने का प्रयास करेँ.

8 टिप्‍पणियां:

  1. very nicely written sir.
    aaj kal ye halat bahut aam ho chle hein.

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...

    जवाब देंहटाएं
  3. सहारे लिए हाथ थामना इस उम्र में , बस यही प्रेम है मेरे विचार से तो

    जवाब देंहटाएं
  4. अगर हम इन्हें सहारा नहीं देंगे तो हमारा हाल और भी बुरा होगा !
    बेहतरीन पोस्ट !
    मंगल कामनाएं आपके लिए !

    जवाब देंहटाएं
  5. सामाजिक चेतना को जागृत करती बेहतरीन प्रस्तुति...हमें निश्चित ही ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए...

    जवाब देंहटाएं
  6. "सहारा एक दूसरे का' पढ़ा।

    आप ने जीवन की एक सच्चाई को अत्यन्त सुन्दर ढ़ंग से प्रस्तुत किया है।

    सच में आप की अभिव्यक्ति उम्दा है।

    आप बधाई के पात्र हैं।

    संजय जी, कभी समय निकाल कर मेरे ब्लाग, "Unwarat.com "पर आइये।

    मैंने कुछ समय पूर्व एक कहानी लिखी है-रेखाओं की करवट "उसे पढ़्ने के बाद अपने विचार कहानी के बारे में अवश्य लिखियेगा। मुझे बहुत अच्छा लगेगा।

    विन्नी

    जवाब देंहटाएं