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शनिवार, 28 फ़रवरी 2015

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद (कविता)

-मेरे घर का दुआर-



मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

पूस-माघ में सेमल-वृक्ष था दिखता एकाकी सा
अंक में भर लाल- सुर्ख फूलों को अब लहलहा उठा
कभी शाखाओं पर गुंजार करती
कभी फूलों में चोंच मारती
चिड़ियों के लिए वृक्ष है किलोल-स्थली
लाल घूँघट से ज्यों नवोढ़ा हो झाँकती
या कि बच्चों से हो नववधू घिरी
बक्से से निकाल ज्यों उन्हें कुछ देती

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

चकोतरे का वृक्ष श्वेत पुष्पों से भर गया है
उनकी महक से ओसारा गमक गया है
प्रात: लाल चादर सा पड़ा रहता है आच्छादन
सेमल के गिरे रक्तिम फूलों ने किया ज्यों रात्रिशयन
बीनने आ जाती हैं कभी बच्चों की टोलियाँ
कभी चरने के लिए गाय और बकरियाँ
नीचे भीड़ देख वृक्ष प्रफुल्लित दिखता है
चिड़ियों संग समवेत स्वर में गाता सा लगता है

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

आम्रवृक्ष श्रंगारित हो गया है
आम्रमंजरियों से खूब लद गया है
कोयल समय-असमय कूकती है
कभी आम तो कभी सेमल पे फुदकती है
किसी विरहिणी के हिय पे सर्पिणी सी गुजरती है
कोयल है कि बस कूकती है और कूकती है
कूकती कोयल सुना है कि नर है
सुमधुर गान से प्रेयसी को लुभाने में रत है

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

चैत- बैसाख में लग जाएंगी सेमल में फलियाँ
पकने  पर छा जाएगी उन पर कालिमा
उस कालिमा से होगा उजास का उदय
फलियाँ फूटेंगी और बिखरेंगे उजले रेशमी फाहे
उड़- उड़ कर वे घर के चतुर्दिक फैल जाएंगे
घर के सहन से लेकर सामने गंगा तक पहुँच जाएंगे
बिछेगी यूँ सामने उजले रेशमी फाहों की चादर
जैसे कि उतर आएं हों आसमान से सफेद बादल

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

महकते फूलों की जगह ले लेंगे हरे गोल चकोतरे
आम्र-मंजरियों की जगह ले लेंगे आम के टिकोरे
बच्चों के साथ बड़ों के भी मन हुलसते रहेंगे
लोग उजले-रेशमी सितारे बीनने आते रहेंगे
बच्चे चकोतरों को कन्दुक बना खेलते रहेंगे
टिकोरों पर डंडे और पत्थर चलते रहेंगे
चैत-बैसाख में यहाँ अलग नजारा दिखेगा
धवल सेमल से ये हिमाच्छादित सा दिखेगा

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद

'डंडे-पत्थर मत चलाओ बच्चों
पेड़ पर चढ़ जाओ बच्चों
हमारी तरह ये भी प्राणवान होते हैं
चोट से ये भी परेशान होते हैं'
बच्चों को समझाना चलता रहेगा
पर उनकी समझ में आना मुश्किल रहेगा

मेरे घर का दुआर फगुना कर हुआ आबाद
सेमल के फूल झरते रहें, रहेगा ये आबाद
- संजय त्रिपाठी

गुरुवार, 26 फ़रवरी 2015

माँ सचमुच महान होती है ! ( इसे व्यंग्य/Satire कहने की मेरा विवेक अनुमति नहीं देता)

माँ सचमुच महान होती है

पुत्र भले ही कुपुत्र हो
माता कभी भी कुमाता नहीं होती

पुत्र हठ कर बैठा-

मैंया मैं तो तेरो मुकुट ही लैहों
जो न मानी तू
तोहें छोड़ वन को चले जैहों
यह ले अपनी लकुटि कमरिया

और पुत्र वन को चल दिया
माँ 'बेटा-बेटा' चिल्लाती रही
आखिर माँ बोली-ठीक है बेटा
ये मुकुट तेरा ही है,
घर लौट आ ,मुकुट ले - ले

लाल। ने जल्दी ही लौट आने का वादा किया और मान गया!

मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

गाँव का वह घर (कविता)

-गाँव का वह घर-

गाँव का वह घर
अकेला-अकेला उदास सा रहता है
उसमें रहने वाले परिंदे
कोसों दूर चले गए हैं

कोई दूर तो कोई पास
कोई देश में तो कोई परदेश में
कोई सात नदियों के पार
तो कोई सात समुंदरों के पार
घर में रह गए हैं सिर्फ बूढ़ी माँ और काका

एक दिन घर की उदासी
अचानक भाग गई
घर हँसने लगा,इठलाने लगा
परिंदे लौट कर वापस आ रहे थे
दूर-पास,देश-परदेश सभी जगह के परिंदे
उनके साथ थे चिहुँकते बच्चे
कोई छोटे तो कोई बड़े
उन बच्चों में थी एक बड़ी गुड़िया
उसमें थी अलग एक रवानी
घर ने सोचा पीछे है कोई कहानी

अगले दिन घर की झाड़ -पोंछ हुई
बुहारन- सजावट जोर-शोर से हुई
घर हतप्रभ था,चमत्कृत था
पर आखिर घर खुश था
बंदनवार सज गए
कलश गोंठे गए
कोहबर भी बन गए

एक ढोलक आई और थापें पड़ने लगीं
घर को सुनाई दिए बन्ना-बन्नी गीत
घर के मन में कौंधी विषाद की रेखा
एक वो मिलना,एक ये मिलना
गुड़िया क्या तू मुझे छोड़ जाने वाली है
पर घर गुड़िया के लिए खुश था
शाम को बैंड-बाजे की आई आवाज
घोड़ी पर था दुल्हा सर पे लिए ताज
वाह क्या ठाट हैं सोच घर हँस दिया

सुबह गुड़िया हँसते-रोते विदा हो गई
घर में सबने अपनी आँखें पोंछीं
घर की आँखें भी नम थीं
पर अगले दिन से घर होने लगा और उदास
परिंदे फिर से उड़ने के लिए हो रहे थे तैयार
एक हफ्ते बाद घर में रह गए
बस केवल बूढ़ी माँ और काका

गाँव का वह घर फिर से
अकेला-अकेला उदास सा रहता है
न जाने अब परिंदे फिर कब वापस आएँगे
अपने चिहुँकते बच्चे साथ लाएंगे
तब एक बार फिर घर की उदासी दूर होगी
एक बार फिर घर हँसेगा- मुस्कराएगा
-संजय त्रिपाठी

शुक्रवार, 20 फ़रवरी 2015

बापू और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की मुलाकात (कविता- काल्पनिक संवाद)

-बापू और मार्टिन लूथर किंग जूनियर की मुलाकात-

स्वर्गलोक में प्रातः भ्रमण पर निकले थे बापू आज
मार्टिन लूथर किंग जूनियर से हो गई मुलाकात
किंग ने जब पूछा कुशल क्षेम, बापू ने कहा
मैं दु:खी हूँ किंग, निश्चय ही मैं दु:खी हूँ
किस तरह मेरे भारत में लोग
धर्म को झगड़े का विषय बना रहे हैं
रामराज्य के मेरे सपने को झुठला रहे हैं

धर्म को मुहरा बना कर
रोज कोई न कोई नया शिगूफा छोड़ देता है
लोग गलियों में, चाय की दुकानों पर,बसों में
कॉलेज में, आफिस में और रेलगाड़ियों में
काम-काज छोड़ बहस में उलझ जाते हैं
टीवी चैनलों को मिल जाता है एक मुद्दा
फिर कुछ लोग टीवी स्क्रीनों पर
आपस में भिड़े नजर आते हैं

किंग ने कहा मैं समझ गया बापू
आप लोगों के आचरण से दु:खी हैं
पर शायद उतना ही
 किसी की वक्तृता से पीड़ित हैं
अपनों की करतूतों से जब
दूसरों को हँसने का मौका मिलता है
निश्चय ही ऐसा क्षण बहुत दु:खमय होता है
पर एक बात बताइए बापू
अपनों की हरकतों पर दु:खी होने का
सिलसिला क्या कोई नया है
क्या इससे पहले कभी
आपको दु:ख नहीं हुआ है

बापू बोले तुमने दु:खती रग पर
हाथ रख दिया है किंग
सन उन्नीस सौ सैंतालिस की गर्मियाँ
मेरे लिए बेहद दु:खभरी थीं
मेरे भारत के दो टुकड़े करने के निर्णय पर
मेरे ही शिष्यों ने मुहर लगा दी थी
मेरी कही बात अनसुनी कर दी थी
अब्दुल गफ्फार खाँ और मौलाना आजाद ने
मेरी बात सुनी और रखी थी
पर उनकी भी न एक चली थी
भारत माँ की लाज न रह गई थी
मुझे जीने की चाह न रह गई थी
हिंसा का भयंकर तांडव छिड़ गया था
अपनों को बचाने के लिए
मुझे जीवित रहना पड़ गया था

पर आशा का बीज कहीं पनप रहा था
मैंने अपने मन में एक सपना जीवित रखा था
देश के दोनों टुकड़े एक दिन करेंगे गलती का अहसास
दोनों फिर से मिलकर एक हो जाएंगे थी यही आस
कुछ लोगों के लिए मेराअस्तित्व बेमानी हो चला था
दोनों नए देशों के एक होने का सपना मेरे लिए संजीवनी था
वही संजीवनी ले ये बूढ़ा इधर-उधर फिरता था
अशांत हो चले लोगों को शांत कराता फिरता था

फिर एक दिन सिरफिरे नाथू ने
भारतभू पर मेरी भूमिका का अंत कर दिया
मैं भी अपने सपने वहीं छोड़ बैकुंठ आ गया
पर दु:खी होने-हवाने का सिलसिला जारी है
दुनिया अब भी न चेती किंग तो आने वाले दिन भारी हैं

किंग ने कहा आप सच कहते हैं बापू
मैं भी दु:खी हूँ बापू, निश्चय ही मैं दु:खी हूँ
आप्रवासियों के मेरे देश अमेरिका में
धर्म और नस्ल के नाम पर घृणा का खेल
अब भी जारी है
बलबीर सिंह सोढ़ी की हत्या
एरिक गार्नर और माइकेल ब्राउन की हत्या
सुरेशभाई पटेल को अपंग कर देने वाला हादसा
चैपल हिल में बरकत परिवार के तीन प्यारे सदस्यों की हत्या
# ब्लैक लिव्ज मैटर के बाद
# मुस्लिम लिव्ज मैटर और इसके बाद आएगा
# हिन्दू लिव्ज मैटर और # सिख लिव्ज मैटर
सच है बापू दु:खी होने-हवाने का सिलसिला जारी है
दुनिया अब भी न चेती तो आने वाले दिन भारी हैं
-संजय त्रिपाठी

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

Modi at crossroads!

          Prime Minister Modi has completed nearly eight months at office. I find some critical evaluation of him only in the national newspapers.
          So far as general public is concerned, I find people or either on this side of line or on the other side of line. I find either they are his fierce supporter or they are Modi haters. Last month I was travelling to Lucknow from Kolkata. I had a few defence personnel as my fellow travellers.They were from Army, Air Force and Defence Production. They all were upbeat about the Prime Minister. The Army Man told me regarding border skirmishes that  Army has been given free hand to make a reply to Pakistan   while during UPA rule response always used to be restrained. Army was also being reequipped with best weapons and equipments. He was also hopeful of better salary and allowances. Similar views were expressed by the Air Force Personnel . The HAL personnel was expecting that the Govt. would start new productions, procure new advanced technology with foreign collaboration and it would usher in a new era in the field of Defence Production. At Lucknow, I met Shri Kunj Bihari, a chai wala who told me that he was a Modi supporter as Modi came from a humble background and intended to do something good for the poor.
          In the Offices I've found people supporting Modi's moves but I find some people in the Govt. Offices now feeling the pinch due to biometric  cumpolsary  attendance . Late comers are at the recieving end.
           Some of my leftist friends are ardent critics of Modi. In their view Modi has been dismantling the welfare apparatus of the nation.He is patronising communal elements as he keeps mum on their actions and venomous  utterances. First of all I fail to understand why my leftist friends expect Modi to fit into leftist shoes. That is not expected of him. I can't remember name of any worthwhile Gujarati Socialist or Communist. Gujaratis ,by tradition , believe  in bringing prosperity through enterprise and same is true of Modi also. I find the second point made by them valid. Silence may be seen as a tacit approval if it is not due to any sort of compulsion. Modi must speak against Hindu Brigade paratroopers.
          For sometimes I've been feeling that now Modi is at crossroads where he has to take a decision which way he has to go. Things can no longer be kept pending or pushed under the carpet.
(ABOVE PARAGRAPHS WERE WRITTEN ONE MONTH AGO)

(TODAY AFTER ONE MONTH))-
          After Delhi election results suddenly the aura of invincibility around PM seems to have gone.People are speaking like- 'I said so'. Smile has returned on the faces of Modi opponents who now think that the PM is vulnerable (leaving aside the Congress which is unable to capitalize due to its own weaknesses). His socalled Rs.9-10 lacs suit is being criticized although his dress sense has been appreciated when he had visited U S A.
          As I said earlier , the PM is at crossroads and now he has to make decisive moves as time is running fast. As the world renowned economist Professor Jagadish Bhagawati says Modi has grown out of the RSS shadow but he ought to speak against the Hindu hardliners as they may undermine his economic agenda.
         Professor Bhagawati says the PM sees growth as a way to accumulate resources, give people gainful employment by spending that money. Whatever adds to growth and prosperity, lifting poor out of the poverty is part of his vision. Modi is different from Reagan or Thatcher in that he is using growth to pull people up. And it requires a lot of action.Modi believes that the benefit of growth must reach the poor.But here the point is that the poor has also to feel that he has benefited.And in this direction Modi has to act fast.
          PM has made PMO centre of his action plan but he believes in decentralizing power and action to the states. He has taken right action in this direction by shaping up the NITI AYOG. But NITI AYOG has just started working and its direction as well as action plan should be defined at earliest.
          PM has somewhat shaken up bureaucracy and files are moving but it has not to be limited to Central Secretariat only. Bureaucracy as a whole, all over the country has to be shaken up further and be told that old lethargy of moving at a snails pace would not do.
          PM should try to develop a sort of collective leadership in the Govt. as well as party and delegate his authority. It will leave him free for better direction,coordination and decision making. For example, since the new Govt. has come into power,despite of a foreign minister being there, PM seems to be working like a foreign Minister. Regarding foreign affairs Foreign Minister should be in limelight and not the PM.
          The most important of all the tasks for the PM is to develop a working relationship with the opposition so that he may not have to resort to ordinances for each and everything and it may be tough but not impossible. If the bonhomie that has been  visible in his meeting with Kejriwal continues, it may act as an example for others.
         

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

सात समंदर पार का मेहमान ! (व्यंग्य/Satire)

          एक साहब सात समंदर पार से हमारे मेहमान बनकर आए थे। हमने उनकी खातिरदारी में कोई कसर नहीं छोडी। हमारे प्रधानमंत्री सारी रस्में तोडकर उनकी अगवानी करने गए। जनाब को सलामी गारद ने सशस्त्र सलामी दी । उन्हें 56 तो क्या 84 किस्म के पकवान परोसे गए। हमारे गणतंत्र दिवस पर जनाब खास मेहमान बनकर आए थे। पर हमारे राष्ट्रपति की गाडी में नहीं बैठे, इसके लिए वो अपनी खुद की बख्तरबंदगाडी साथ लेकर आए थे। सिक्यूरिटी पर इतना जोर था कि आम पब्लिक की जान सांसत में थी। गोया कि वे हिंदुस्तान में नहीं ,अफगानिस्तान या इराक जैसे किसी मुल्क में आए हों जो दहशतगर्दी से त्रस्त हैं। हमारे प्रधानमंत्री ने मेहमाननवाजी मेें कोई कमी नहीं रखी , यहाँ तक कि चाय तक अपने हाथों से बनाकर पिलाई। पर जाते-जाते जनाब सिरीफोर्ट स्टेडियम में कुछ ऐसा बोल गए जो कहीं चुभ सा गया। वो बता गए कि जब तक मजहबी झगडों से हिंदुस्तान दूर रहेगा  तभी तक उसकी बरक्कत है। वे यह भूल गए कि हिंदुस्तानी सभ्यता सिन्धु घाटी के समय से चली आ रही है और हजारों वर्षों से समय-समय पर तमाम मुश्किल हालात आने के बावजूद आज तक कायम है। गोया कि यहाँ रोज मजहबी फसाद ही होते रहते हैं! अगर चंद सिरफिरे कुछ उलूल-जुलूल बकते रहते हैं तो इसका मतलब जनाब ओबामा ने यह निकाल लिया हमारा देश मजहबी फसादात के दौर में है। जनाब ओबामा को इस मुल्क की वो तमाम जनता नहीं दिखाई दी जो अमनपसंद है और उलूल- जुलूल बकने वालों को इस देश में पनपने नहीं देती।

         बात यहीं खत्म नहीं हुई। जनाब ओबामा जब वापस अमेरिका पहुँच गए तो एक दिन यह कह डाला कि  हिंदुस्तान में पिछले दिनों हर कौम पर हमले हुए हैं और अगर आज महात्मा गाँधी  जिंदा होते तो  बहुत दु:खी होते। शायद ओबामा को इतिहास का वो दौर मालूम या याद नहीं जब गाँधी जी के रहते हुए ब्रिटिश तत्वावधान में हिदुस्तान और पाकिस्तान का बँटवारा हुआ था , लाखों लोग विस्थापित हुए और तमाम लोग मजहबी जहालत का शिकार हुए । लाशों के उन ढेरों के बीच जब आजादी और सत्ता का जश्न मनाया जा रहा था , गाँधीजी नोआखाली और कोलकाता में दंगे शांत कराने के लिए घूम रहे थे। हिंसा के  उस तांडव के सामने आज का दौर कुछ भी नहीं है। जनाब ने हिंदुस्तान की गिनती सीरिया,इराक और अफगानिस्तान के साथ कर डाली। पाकिस्तान का नाम वो साथ में लेना भूल गए। वैसे भी पाकिस्तान को लेकर अमेरिका को समय-समय पर मोतियाबिन्द हो जाता है और उसे सुधर रहा बालक मानते हुए वो भारी इमदाद मुहैया कराता रहता है। ओबामा वाकई में अगर इस बारे में संजीदा थे तो उन्हें इधर-उधर बात करने के बजाय प्रधानमंत्री मोदी से इस बारे में बात कर उन्हें अपनी शंकाओं का समाधान करना चाहिए था।

           मोदी तो इस मेहमान को बुलाकर और उसके सामने तथाकथित नौ-दस लाख का सूट पहन कर फँस गए पर हमारे देश के वो तमाम लोग जो जनाब को बुलाने और यौमे जम्हूरियत पर मेहमान-ए-खुसूसी बनाने पर एतराज जता रहे थे अब बडे खुश हैं। उन्हें लग रहा है कि ओबामा ने एक मेहमान का सच्चा फर्ज अदा कर दिया है।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2015

गडबड पॉलिटिकल मैथ ! (व्यंग्य/Satire)

          दिल्ली और यहाँ की जनता की करामात देखिए ! अभी कुछ समय पहले बी जे पी ने अमित शाह को पॉलिटिकल मैथ का बहुत माहिर आदमी मान लिया था और अपना चीफ मैथमेटीशियन नियुक्त कर दिया। अ‍ॅमित शाह धडाधड पॉलिटिकल मैथ लगाने लगे और बी जे पी किले पर किले फतह करने लगी। पर दिल्ली पॉलिटिकल मैथ का वो समीकरण निकली जिसे हल करने में अमित शाह नाकामयाब रहे। गरीब तबका, अल्पसंख्यक और मध्यम वर्ग का एक बडा हिस्सा इस गणित के वो क,ख एवं ग निकले जिनके बारे में यह कहा जाना कि अमित शाह ने उन्हें नजरंदाज कर दिया था ; गलत होगा। अमित शाह ने ये क, ख, ग देख लिए थे और उन्हें इस बात का अंदाजा हो गया था कि सवाल का हल गलत दिशा में जा रहा है। इसीलिए  किसी जादूगर की तरह उन्होंने सिम-सिम करते हुए किरण बेदी को अचानक प्रकट कर दिया। आप और कांग्रेस छोडकर आने वालों को पार्टी में जगह और टिकट दिया। पहले चुनाव को किरण केंद्रित किया और फिर भी जब लगा कि अभी भी प्रश्न का हल गलत दिशा में जा रहा है तो चुनाव को फिर से मोदी केंद्रित करने की कोशिश की। पर वस्तुत: चुनाव अरविंद केंद्रित हो चुका था और राजनीति की ज्यामिति में इस केंद्र को बदल कर किरण या मोदी पर ले आने में अमित शाह असफल रहे।

          इस जनता का जब मन बदलता है या जब ये पलटती है तो बडे-बडे राजनीतिक महारथियों की गणित को गलत साबित कर देती है। बी जे पी के लिए नए पॉलिटिकल मैथ फार्मूले तलाशने का वक्त आ गया है । बी जे पी को मोदीजी की इमेज को प्रो-कार्पोरेट से प्रो - गरीब बनाना होगा। अपनी पार्टी और संघ के आनुषंगिक संगठनों के उन लोगों की जुबान पर ताला डालना होगा जो अल्पसंख्यकों को शंकालु और भयाक्रांत कर देने वाले बयान समय-समय पर देते रहते हैं । अगर ये एकजुट होकर तराजू के किसी पासंग पर बाट गिरा देंगे तो उसके ही झुकने की संभावना ज्यादा रहेगी।

          शाह का पॉलिटिकल मैथ का कैलकुलेशन तो खैर पहली बार गडबड हुआ है पर हमारे देश के एक और राजनीतिज्ञ हैं जिनका यह कैलकुलेशन प्राय: गडबड रहता है। वो हैं श्री नितीश कुमार जिन्हें उनके आज के धुर विरोधी सुशील मोदी ने कभी प्राइम मिनिस्टीरियल मैटेरियल बताया था। नितीश कुमार ने नरेंद्र मोदी से अपनी एलर्जी के चलते उन्हें प्रमुखता दिए जाने पर बी जे पी से अपने सारे रिश्ते तोड लिए। उन्हें  लगा था कि इससे उनके मुस्लिम वोट सुरक्षित रहेंगे। पर नरेंद्र मोदी उनके जले पर जैसे नमक छिडकते हुए प्रधानमंत्री बन गए। ये मंजर देखकर नितीश कुमार को सबसे सहूलियत भरा ये लगा कि उसूल और शहादत का जामा ओढ लिया जाए। उन्होंने  हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया और बिहार का मुख्यमंत्री बनाने के लिए एक रबर स्टाम्प जैसा दिखने वाला आदमी ढूँढना शुरू कर दिया ( कम से कम वे लालू यादव से इस मायने में अच्छे निकले कि उन्हें यह छवि अपनी पत्नी में नहीं दिखाई दी)। घूमते-घूमते उनकी निगाहें जीतनराम माँझी पर टिक गईं। नितीश बाबू को लगा कि उनकी खोज पूरी हो गई क्योंकि पॉलिटिकल मैथ के इस फार्मूले में महादलित का कांन्सटैंट भी फिट हो जा रहा था। उनको लगा कि ये नया फार्मूला जो उन्होंने खोजा है बिहार के राजनीतिक समीकरण को उनके पक्ष में सही कर देगा।

          पर नितीश बाबू की पॉलिटिकल मैथ शुरू से कमजोर रही है।  कभी वे बिहार में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के दौरान लालू यादव के साथ-साथ इस आंदोलन का युवा चेहरा थे । पर आगे चलकर लालू के आगे इनकी सारी गणित फेल रही । लालू मुख्यमंत्री बन गए और कैलकुलेशन के गडबड रहते इनको पीछे रहना पडा। वो तो भला हो जॉर्ज फर्नांडीज का जिनका साथ इन्होंने पकडा। उन्होंने इनका नाता बी जे पी से जुडवाया। इसके चलते आगे चलकर एन डी ए सरकार में  नितीश कुमार मंत्री बने। एन डी ए शासनकाल के दौरान लालू के खिलाफ तरह-तरह के पॉलिटिकल मैथ के फार्मूले आजमाए गए पर बंदा अंगद की तरह ऐसा पाँव जमाए हुए था कि टस से मस नहीं होता था। आखिरकार होते-होते एक फार्मूला सफल हुआ और नितीश बाबू  की मुख्यमंत्री बनने की इच्छा पूरी हो सकी। बीमारी के चलते जब फर्नांडीज राजनीति के वीतरागी बन गए तो नितीश कुमार ने पॉलिटिकल मैथ के अपने प्रयोगों को शुरु कर दिया। पाँच साल मुख्यमंत्री रहने के बाद बिहार के अगले चुनाव के समय अपने साथ नरेंद्र मोदी का नाम देखकर ये बेहद खफा हो गए। उन्हें लगा कि लालू के पाले से मुस्लिमों को छुडाकर अपनी तरफ ले आने का यही सुनहरा फार्मूला है। बिहार में एन डी ए की भारी जीत के बाद नितीश को लगा कि उनका कद और बडा हो गया है। वे समय-समय पर नरेंद्र मोदी के नाम पर हल्ला मचाते रहे। आखिरकार बी जे पी द्वारा  नरेंद्र मोदी को नम्बर एक दर्जा दिए जाने पर नितीश बाबू ने अलग हो जाने का ऐलान कर दिया।  पर नितीश बाबू की सारी पॉलिटिकल मैथ फिसड्डी साबित हुई और पार्लियामेंट के चुनावों में इनकी पार्टी औंधे मुँह गिरी।

          नितीश बाबू ने माँझी को पतवार थमाकर जो अपना लेटेस्ट पॉलिटिकल कैलकुलेशन किया था वह भी गलत ही साबित हो रहा है। माँझी के थोडे ही दिनों में पर निकल आए और उन्होंने पतवार को आडा-तिरछा घुमाना शुरु कर दिया। नितीश बाबू को जब लगने लगा कि नौका डगमगा रही है तो वे माँझी से पतवार फिर से अपने हाथ में लेने लगे। पर माँझी है कि पतवार देने को राजी नहीं । आखिर नितीश बाबू ने माँझी को नाव से ही नदी में धक्का दे दिया । कंबख्त माँझी है कि नदी में गिरकर भी नाव पकडकर लटका हुआ है और पतवार छोडने को राजी नहीं। अगर नाव डूबी तो नितीश बाबू एक बार फिर पॉलिटिकल मैथ में फिसड्डी ही साबित होंगे। नितीश बाबू के लिए बेहतर यही होगा कि अब वे जॉर्ज फर्नांडीज वाला स्थान लालूजी को दे दें जो पॉलिटिकल मैथ के पुराने धुरंधर हैं। उन्ही की अगुआई में उनका कुछ कल्याण हो सकेगा। बडी जालिम है ये दुनिया और यहाँ रहने वाली जनता । ये जिसको देती है उसे छप्पर फाड कर देती है और जिससे लेती है उसके तन पर कपडे भी नही छोडती। इसलिए पॉलिटिकल मैथ लगाने वालों इससे संभल कर रहना सीखो!


शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

'रबरमैन' केजरीवाल 'आयरन लेडी' किरण पर भारी!

         
          दिल्ली के चुनावों की आज जो रिपोंर्टिंग आ रही है उसके मुताबिक दिल्ली में 'आप' की सरकार बन जानी चाहिए। बहुत खराब स्थिति में यह हो सकता है कि आप की बहुमत से एक- दो सीटें कम पड़ जाएं । पर उस स्थिति में भी 'आप' को सरकार बनाने में दिक्कत शायद नहीं आएगी।

          दिन भर मतदान की प्रक्रिया क्रिकेट के किसी वन डे गेम की तरह चली जिसमें 'आप' का प्रदर्शन सुबह से ही अच्छा रहा है। दोपहर के बाद के खेल में बी जे पी ने कुछ अच्छा प्रदर्शन किया पर ऐसा लगता है कि आखिरी ओवरों में 'आप' ने बैटिंग करते हुए चौके- छक्के जड़ दिए हैं।

          इस चुनाव के आने वाले नतीजे बी जे पी को आत्ममंथन के लिए मजबूर करेंगे। मेरे विचार से बी जे पी को निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए-

1. चुनाव जीतने के बाद मोदी जी ने कहा था कि यह गरीबों की सरकार है। यह बातों तक नहीं सीमित रहना चाहिए , वास्तविकता में दिखना चाहिए।

2. मोदी जी को विदेशनीति सुषमा स्वराज के कंधों पर छोड़कर देश के भीतर स्थिति को बेहतर करने की तरफ ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी महत्वाकांक्षा विश्वनेता बनने की हो गई है। पर सच्चे अर्थों में विश्व नेता बनने के लिए पहले देश की स्थिति अच्छी करनी होगी।

3.आर्थिक सुधारों को तेजी से कार्यान्वित किया जाए ताकि देश को उसका लाभ मिले। बी जे पी ने एक साल से कुछ कम का समय यूँ ही गँवा दिया हैं। कमोबेश कांग्रेस की ही बहुत सी नीतियाँ नया मुलम्मा चढ़ा कर चल रही हैं ।

4. सत्ता में आने के बाद बी जे पी को अपने काम से समाज के विभिन्न समुदायों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास करना चाहिए था। पर इसके विपरीत संघ और बी जे पी से जुड़े एक वर्ग के आचरण ने कुछ समुदायों में भय पैदा किया है। इन समुदायों ने फीयर साइकोलाजी के चलते एकजुट होकर बी जे पी के खिलाफ वोटिंग की हैं।

5. पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रोत्साहित किया जाता रहे और ऊपर से लोगों को थोपा न जाए। निर्णय प्रक्रिया एक- दो व्यक्तियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, उसमें पार्टी के अग्रणी जनों की सामूहिक भागीदारी होनी चाहिए। ऐसी कोई पार्टी जिसमें निर्णय प्रक्रिया एक-दो लोगों तक केन्द्रित हो जाती है, अंदर से घुना जाती है और खोखली होने लगती है। कांग्रेस का हश्र सामने है।

6. भारत में लोगों की आर्थिक स्थिति में बेहतरी हुई है। फिर भी समाज का एक बड़ा तबका कठिनाई से जीवनयापन करता है। एक नेता की जीवनशैली से यह लगना चाहिए कि उसने भी उनके लिए त्यागमय जीवन का वरण किया है। बहुत अधिक Pomp और Show उन्हें नेता से विरत करता है।

          दिसंबर 2014 में 'आप' ने देश की जनता को बड़ी उम्मीदें बँधाई थीं जो दो महीने के बाद धराशायी हो गई थीं। जनता केजरीवाल को यदि एक मौका और दे रही है तो उन्हें अपने काम से यह साबित करना चाहिए कि जनता के लिए एक बेहतर विकल्प मौजूद है। नरेंद्र मोदी को इस बात का श्रेय है कि उन्होंने देश के Political discourse को एक नई दिशा दी है तथा विकास और सुशासन को राजनीति का मुख्य एजेंडा बना दिया है। इसलिए सत्ता में कोई भी दल आए उसे स्वयं को इन नए मानदंडों पर साबित करना होगा। धर्म,जाति और भावनात्मक मुद्दों को भुनाने वाली राजनीति अब नहीं चलने वाली है।

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

क्या केजरीवाल नए वी पी सिंह बनेंगे ?

           पूरा विपक्ष पिछले नौ महीनों से मोदी से आक्रांत है । मोदी पर कितने भी हमले किए गए , हर प्रादेशिक चुनाव के बाद मोदी और ताकतवर बनकर उभरे । जनता परिवार को आखिरकार मोदी  रूपी ज्वर का इलाज मर्जर  में नजर आया पर अमीबा की प्रकृति से ग्रस्त जनता परिवार में मर्जर को कार्यरूप देने के पहले ही बिखराव के लक्षण प्रकट होने लगे हैं।  राजपरिवार की मानसिकता से ग्रस्त  कांग्रेस मोदी के मुकाबले के लिए स्वयं कुछ करने के बजाय मोदी सरकार द्वारा किए जाने वाले सेल्फ गोलों का इंतजार करते हुए सोच रही है कि ऐसी स्थिति में आम स्वयं आकर उसके मुँह में टपक जाएगा।

          पर इस सबके बीच एक आदमी और उसके अनुयाई चुपचाप दिल्ली में काम करते रहे हैं। अत: स्वाभाविक है कि दिल्ली के आम चुनावों में यह व्यक्ति और उसके अनुयाई न सिर्फ बी जे पी को टक्कर दे रहे हैं बल्कि उनकी सरकार बन जाने की भी संभावना नकारी नहीं जा रही है और कुछ सर्वे तो 'आप' की सरकार बनने की ही बात कर रहे हैं।

          ऐसे में मोदी से त्रस्त विपक्ष को उक्त व्यक्ति यानी कि अरविंद केजरीवाल में आशा की एक किरण दिखाई दी है। कम से कम मोदी के बाद देश में एक ऐसा आदमी है जिसके नाम पर कहीं जनता वोट देने को तैयार है । आप पार्टी एवं अरविंद केजरीवाल के लिए मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी, ममता दीदी, नितीश कुमार ,  शरद यादव आदि ने दिल्ली के चुनावों में समर्थन की घोषणा एवं अपील की है।  नरेंद्र मोदी और अमित शाह की बढ -चढ कर बातें करने की अपेक्षा केजरीवाल का सहूलियत और विनम्रता भरा तरीका कुछ लोगों को भा रहा है। अरविंद केजरीवाल में अब  विपक्ष के कुछ नेताओं को वह व्यक्ति दिख रहा है जो मोदी के विजय-अभियान  रथ को थामने की क्षमता रखता है। विपक्ष को जैसे अर्जुन के मुकाबले के लिए कर्ण की तलाश अरविंद केजरीवाल में पूरी होती दिखाई दे रही है। बी जे पी ने भी अरविंद की चुनौती को गंभीरता से लेते हुए 'आयरन लेडी' किरण बेदी को मैदान में उतार दिया है। पर सवाल ये है कि क्या ' रबरमैन' (आम आदमी रबरमैन ही होता है जिसके प्रतिनिधित्व का दावा अरविंद केजरीवाल करते हैं) 'आयरन लेडी' पर भारी पडेगा? यदि रबरमैन ऐसा करने में सफल रहता है तो निश्चय ही यह भारतीय राजनीति का एक और निर्णायक क्षण होगा। यह अरविंद केजरीवाल को विपक्षी भारतीय राजनीति के केन्द्र में लाने में सहायक होगा और यदि अरविंद केजरीवाल ने अपने पत्ते ठीक से खेले तो वे सन दो हजार उन्नीस में होने वाले आम चुनावों में सन उन्नीस सौ नवासी के बाद विपक्ष के दूसरे वी पी सिंह बन सकते हैं क्योंकि मोदी अपना कद बढाते हुए विपक्ष को अपने सामने बौना सिद्ध करने में लगे हैं और इस स्थिति में विपक्ष को एक फोर्स मल्टीप्लायर की जरूरत शिद्दत से महसूस हो रही है। अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में होने वाले आम चुनावों में कुछ हद तक अपने को वह मैग्नेट सिद्ध करते हैं जिसमें जनता को खींचने की क्षमता है तो विपक्षी खेमा स्वाभाविक तौर पर यह समझ कर उन्हें अपने केन्द्र में रखना चाहेगा कि वे उसके लिए फोर्स मल्टीप्लायर हो सकते हैं। भारतीय राजनीति नेहरूजी से लेकर इंदिरा गाँधी , राजीव गाँधी,अटल बिहारी बाजपेयी, सोनिया गाँधी और नरेन्द्र मोदी तक प्राय: वोट कैचर राजनीतिक व्यक्तित्वों के इर्द- गिर्द घूमती रही है। मोदी भी बी जे पी में अपने समकक्ष अन्य नेताओं से इसीलिए आगे निकल कर स्वयं को स्थापित कर सके कि उनमें वोटों को खींचकर ले आने की जो क्षमता है, वह वर्तमान में अन्य किसी बी जे पी नेता में नहीं है।

          इतिहास गवाह है कि वक्त किसी को बार-बार मौके नहीं देता। एक मौका गंवा देने के बाद दूसरा तो कतई नहीं। पर केजरीवाल पर वक्त कुछ हद तक मेहरबान दिखाई दे रहा है और शायद उन्हें दूसरा मौका मिल जाए। पर अगर यह मौका भी उन्होने सेल्फगोल करके खो दिया तो न तो उन्हें इतिहास माफ करेगा और न ही वक्त माफ करेगा। संभावनाएं अपार हैं पर राजनीति के गंदे  खेल में सफलता के लिए जनलोकप्रियता के साथ - साथ चतुराई, सजगता और एक सीमा तक मौकापरस्ती मददगार होती हैं। फिलहाल भारतीय राजनीति में इस खेल का सबसे चतुर खिलाडी नरेंद्र मोदी है जो स्वयं को दूसरे इंदिरा गाँधी के तौर पर स्थापित करने में लगा है। वी पी सिंह तक का सफर तय करने के लिए अरविंद केजरीवाल को भी उपर्युक्त गुणों का सहारा लेना पडेगा। अंततोगत्वा सन दो हजार उन्नीस ही यह निर्णय करेगा कि कौन इंदिरा गाँधी बनेगा या फिर कौन वी पी सिंह बनेगाा। पर यदि अरविंद केजरीवाल वी पी सिंह बनने में सफल हो जाते हैं तो मैं चाहूँगा कि वे अपना रास्ता थोडा बदलेंगे ताकि वे भी वी पी सिंह की गति को न प्राप्त हों विशेषकर यह देखते हुए कि उनमें भी शहादत का जामा ओढने की प्रवृत्ति वी पी सिंह की तरह ही मौजूद है। अंतिम रूप से सफल होने के लिए उन्हें एक राजनेता के साथ- साथ एक राजनीतिक प्रशासक के गुणों का प्रदर्शन करते हुए कार्य करना पडेगा।


बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

नियति से हार क्यूँ मानी जाए ( कविता )

जावेद उस्मानी जी की नियति पर चार पंक्तियों की प्रेरणा से प्रतिक्रयास्वरूप -

                - नियति से हार क्यूँ मानी जाए -

ऐ दोस्त नियति से हार आखिर  क्यूँ  मानी जाए।
जीत का इरादा कर, क्यूँ न रार उससे ठानी जाए।
वक्त हो भले ही गुलाम नियति का, हम तो नहीं।
नाचीज की शहजोरी भी तो दुनिया में जानी जाए।।

खुद बना ले राह अपनी , बह ऐसा भी पानी जाए।
कोशिश करो तो तदबीर से तकदीर बन भी जाए।
दुनिया के इस इंकिलाब में मर भी गए गर।
नियति अपनी एक बहादुर की सी जानी जाए।।

फटी चादर भी ढक ले सर , ठीक से जो तानी जाए ।
न जाने कब तेरी भी तकदीर बदल ही जाए।
बुरे दिन भी आएं तो हौसला रख ऐ इंसान।
फानी जान हिम्मत दिखा फातिहे आलम जानी जाए।।                            -संजय त्रिपाठी