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सोमवार, 28 अप्रैल 2014

'डुबोया मेरे होने से,जो मैं न होता तो क्या होता!' (व्यंग्य/Satire)


          लोकसभा के लिए होने वाले आमचुनाव का सातवाँ चरण आगामी 30 अप्रैल को समाप्त हो जाएगा. जैसे - जैसे चुनाव का अंतिम चरण  और नजदीक आ रहा है जुबानी तलवारें खींची जा रही हैं ,जोर-शोर से हमले किए जा रहे हैं,मर्यादाएं तोडते  हुए प्रहार   किए जा रहे हैं  और फिर  उतना ही तीखा जवाबी हमला किया जा रहा है. एफ आई आर लिखी जा रही हैं,लोग जमानत के लिए घूम रहे हैं ,चुनाव आयोग चेतावनियाँ दे रहा है और पाबंदियाँ लगा रहा है पर हमारे नेतागण "युद्ध और प्रेम में सब कुछ जायज है" इसका अनुसरण पूरी  तत्परता से कर रहे हैं. ऐसे में कुछ हँस लेने के उद्देश्य  से यहाँ हमारे नेताओं के कुछ  वक्तव्य और उन पर  टिप्पणियाँ प्रस्तुत हैं-
  • विकास का गुजरात माडल टाफी माडल है.-राहुल गाँधी                                                                       --  पर लोग इस टाफी को चूसने पर आमादा हैं राहुलजी.
  • मैं फकीर हूँ.मेरे  पास  कोई पूँजी नहीं  है. मैं आपके पैसे से चुनाव लडूँगा.-अरविंद केजरीवाल                  - अगर 2.07 करोड की कुल घोषित परिसंपत्तियों के साथ आप फकीर हैं तो इस देश के तमाम लोग        आप जैसा फकीर जरूर बनना चाहेंगे अरविंदजी.
  • देश में कोई मोदी लहर नहीं है- मनमोहन सिंह                                                                                      -पर लोगों के अनुसार मँहगाई और भ्रष्टाचार विरोधी लहर  जरूर है प्रधानमंत्रीजी.
  • जो मोदी के विरोधी हैं उन्हें पाकिस्तान चले जाना चाहिए-गिरिराज सिंह                                                 -गिरिराजजी आपका वक्तव्य पढकर मुझे एक किताब का शीर्षक याद आ गया है-"कितने                 पाकिस्तान और". आखिर कब तक आप लोग हिंदुस्तान को छोडकर पाकिस्तान की बात करते         रहेंगे.
  • "सब बडे  हो गए हैं.उन पर मेरा  कोई नियंत्रण नहीं है.इस प्रकरण में मैं बहुत दु:खी हूँ"- भाई दलजीत सिंह के भा ज पा की सदस्यता ग्रहण करने पर मनमोहन सिंह.                                                             -दु:खी न होइये प्रधानमंत्रीजी! प्रियंका के अनुसार उनका भाई वरूण भटक गया है तो यदि आपका भाई   भटक गया  तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं.इस चुनावी  मौसम में  तमाम भाइयों के भटक जाने की संभावना  है, इसलिए सबको अपने-अपने भाई पकड कर रखने चाहिए. वैसे मैं जानता हूँ कि आप मन ही मन  मना रहे हैं कि ये नरेंद्र भाई कहीं भटक जाए.
  • मून देखते हुए हनी  खाने की बात- योगगुरू रामदेव                                                                               -बाबाजी आप ब्रह्मचारी आदमी,कहाँ ये गृहस्थ जीवन के आरंभिक कार्यक्रम की बात ले बैठे.जिन बातों  का तजुर्बा आदमी को न हो वह नहीं करना चाहिए. वैसे अगर भूखे आदमी को रोटी मिल जाए तो वही  उसे मून लगती है और खाने में हनी का मजा आता है.
  • जो मोदी को वोट देंगे उन्हें समंदर में डूब जाना चाहिए-फार्रूक  अब्दुल्ला                                               -फार्रूक साहब बकौल किसी शायर के : 'यह चुनाव नहीं आसां बस इतना ही समझ लीजे कि एक आग    का दरिया है और डूब के जाना है.' सो आपकी सलाह नेक है पर यह  सिर्फ मोदी ही नहीं  किसी को भी  वोट देने वाले के ऊपर लागू होती  है यहाँ तक कि आपको वोट देने वाले के ऊपर भी, और काश्मीर की  जनता इस बात को अच्छी तरह जानती है. अब चुनाव आयोग ने डूबने के विकल्प के तौर पर  नोटा का प्रावधान कर दिया है.
  • काश्मीर को डुबाने वाले दूसरों को  डूबने को न कहें-नरेंद्र मोदी                                                               -मोदीजी आपका वक्तव्य पढकर एक और शेर याद आ गया है (अरे वो नहीं जो आपने बतौर गिफ्ट  अखिलेशजी को दिए हैं,  बल्कि मुझे गालिब का एक शेर याद आ गया है )- 'डुबोया मेरे  होने से,जो मैं  न होता तो क्या होता.'  हम डूबने-डुबाने की बात क्यों करें,हम क्यों न जीवन की बात करें,इस देश को एक  नई ऊँचाई पर ले जाने की बात करें.

मंगलवार, 22 अप्रैल 2014

The P.M. aspirant must show his intent!

          P.M. aspirant of the BJP  Shri  Narendra Modi has since last September 13,2013 been declaring  what he wants to achieve for the country - development,high growth rate, pro industry and business atmosphere, infrastructural development, pro farmer policies, making the country corruption free,employment generation on a large scale etc., etc. His detractors have been painting him as a demon responsible for Gujarat riots of 2002 who is hell bent upon destroying the social fabric of country. His supporters have been claiming him to be a  performer par excellence who is a quick and tough decision maker. Public has become so much fed up with the non-performing image of the present regime that it has fallen for the charm of said tough & resolute Shri Narendra Modi. As the various serveys show, a large number of people have started disregarding the warnings about Shri Narendra Modi isssued by various quarters even beyond boundaries of our nation in  hope of a performing Govt. at the center.  As KPS Gill ,who was appointed adviser of Gujarat CM at the time of 2002 Gujarat riots, denied complicity of Shri Narendra Modi in the riots and said that  he was new as CM and didn't have grip on the Gujarat administration; many people may have agreed with him. Lately Shri Narendra Modi has been assuring that he would be non partisan, would not act out of any ill will towards anyone and would  be non vindictive . He has been giving example of prospering Gujarat Muslims as an evidence of  his non partisan and all embracing regime . Still a few days ago while comparing Shri Rajnath Singh with Ex-PM Shri Atal Bihari Bajpeyi,  Maulana Kalbe Jawwad said that Muslims are fearful of Modi. It does make it clear that his behaviour towards Muslims will always be under watch and as soon as due to any faltering on this count an opportunity is there,  he would be under attack.

           On saturday last a demagogue has given this opportunity to detractors of Shri Modi by openly threatening Muslims and targeting a Muslim family in Bhavnagar  of Gujarat. Whenever a person or group of persons considers itself closer to or on on the right side of  power that be, it is emboldened to twist or  take law in its own hands. This has happened earlier. When Congress last power in 1977, attacks on SC and ST communities increased and ultimately Janata Govt. of that time had to take tough measures.Similarly when BSP Govt. came into power in U.P., a lot of upper castes felt harassed under the SC/ST Act .  Mayawati had to take remedial measures to address their discontent. It is also one of the reasons Muslims may be fearful of Shri Modi as said by Maulana Kalbe Jawwad. So Gujarat CM needs to be cautious of  such elements  and act tough against them. If he doesn't crush them now, they may wreck havoc in the future which is not good for the country. So the PM aspirant must show that he means business by what he says and  must show his intent by crushing such elements.

रविवार, 20 अप्रैल 2014

रणनीतिक कौशल का अस्त्र - चरणस्पर्श ! (व्यंग्य/Satire)

           हमारी भारतीय संस्कृति में चरणस्पर्श की महिमा अपरम्पार है. सहज श्रद्धावश जब हम अपने से किसी  बडे का  पैर छूते हैं तो नि:संदेह वह हमारी अंतरंग भावनाओं का परिचायक होता है. पर मैंने कई बार देखा है कि चरणस्पर्श का इस्तेमाल किसी को  खुश करने के लिए और काम साधने के लिए सर्वाधिक प्रभावी अस्त्र  के तौर पर किया जाता है.   इसका उपयोग बडे-बूढों को मनाने के लिए भी किया जाता है. कई बार प्रयोगकर्ता कूटनीतिक तौर पर इसका इस्तेमाल करता है. मेरे पिताजी कहते थे कि जो  ज्यादा झुक कर पैर छुए उससे सदैव सावधान रहना चाहिए और भक्तिकाल के किसी कवि का इस आशय  का एक दोहा सुनाते थे जो अब  मुझे याद नहीं  है. मुझे ऐसे कुछ मामले मालूम हैं जहाँ लोगों ने सर्वोच्च नेताओं के पैरों पर  गिरकर एम एल ए और एम पी के टिकट तक ले लिए. एक विभाग में मैंने कुछ दिनों तक काम किया. इस विभाग में चाटुकारिता  का बडा महत्व था.यहाँ कुछ अफसर सार्वजनिक रूप से बडे साहब का पैर  छुआ करते थे क्योंकि अच्छी सीट मिलना उनकी कृपा से ही संभव होता था. मैं ऐसा नहीं करता था. इसलिए यदि कभी ऐसे किसी अफसर के साथ बडे साहब के सामने होता था तो बडी असमंजस की स्थिति पैदा हो जाया करती थी. वह तो बडे साहब के पैर छूता और मैं  सामान्य रूप से नमस्कार कर खडा रहता था और मन में सोचता कि बडे साहब शायद मन ही मन मेरी  तुलना उस अफसर से कर रहे होंगे और मुझे अकडू,विनम्र भाव से रहित या निकृष्ट समझ रहे होंगे. लेकिन मैं तब आश्चर्य से भर जाता जब इन चरण स्पर्श करने वालों को  अन्यत्र बडे साहब के  लिए भला-बुरा कहते हुए सुनता और मेरे मन में होने वाली प्रतिक्रिया उन्हें निकृष्ट जीव समझने लगती  . 

          भाजपा में नरेंद्र मोदी की ताजपोशी की प्रक्रिया जब से शुरू हुई  है तब से ही पार्टी के कुछ बूढे उनके लिए सिरदर्द बने हुए हैं. पहले तो आडवाणी जी ने शिवराज सिंह चौहान को अटलबिहारी की  श्रेणी का और प्रधानमंत्री बनने के सर्वथा योग्य बताया, फिर राष्ट्रीय कार्यकारिणी से इस्तीफा देकर मोदी के  रंग में भंग डाला. कैसे करके माने भी तो मन मसोसे हुए ही दिखे .  आखिरकार उनको प्रसन्न करने के लिए नरेंद्र मोदी ने रामबाण चलाया. शिवराज सिंह चौहान का अनुकरण करते हुए उन्होंने आडवाणीजी के सार्वजनिक रूप से पैर छुए तब कहीं महीनो बाद जाकर  आडवाणीजी का उन्हें आशीर्वाद मिला. फिर भी यह आशीर्वाद कितना गहन या सतही था यह शोध का विषय हो  सकता है क्योंकि बीच-बीच में आडवाणीजी की नाराजगी दिखाई  दे जाती है. हाल ही में भोपाल जाने को आमादा आडवाणी की बाँह खींचकर राजनाथजी को उन्हें वापस गाँधीनगर लाना पडा. आडवाणीजी के वफादार शिष्य और शिष्याएं भी अपने मत-मतांतर समय-समय पर प्रकट करते रहते हैं. जसवंत सिंह तो ऐसे नाराज हुए कि उन्होंने अतिकुपित बूढे की तरह पैर पीछे खींच लिए ताकि उन्हें छूने का किसी को मौका ही नहीं मिले और फिलहाल बाडमेर में अंगद  की तरह अडे हुए हैं लेकिन वसुंधरा राजे उन्हें ग्रीक माइथोलॉजी का कमजोर एडियों वाला नायक एशिलेस(Achilles) सिद्ध करने पर तुली हुई हैं . 

          कुछ दिनों पहले नरेंद्र मोदी ने मुरली मनोहर जोशी की  संसदीय सीट छीनकर उन्हें भी संत्रस्त कर दिया. जोशीजी ने भी मोदी  समर्थकों के सारे उत्साह पर पानी डालते  हुए कह दिया कि देश में मोदी की कोई लहर नहीं चल रही है,जो लहर है वह भाजपा की  है और गुजरात का विकास  माडल पूरे  देश के  लिए उपयुक्त  नहीं है  हर प्रदेश को अलग-अलग विकास माडल चाहिए. अंततोगत्वा नरेंद्र मोदी ने जोशीजी को प्रसन्न करने के लिए उनका भी सार्वजनिक रूप से पैर छुआ तथा  आगे बढकर अपने बैठने के लिए मंगवाई गई कुर्सी पर भी जोशीजी को बिठा दिया. मोदी को उम्मीद है कि इस प्रकार ब्राह्मण देवता का कोप शांत हो जाएगा. कुल मिला कर नरेंद्र मोदी की पीछे हटकर जीत (Retreat for victory) की यह नीति  दर्शाती है कि वे एक कुशल रणनीतिकार हैं. पर आगे चलकर उन्हें देश की समस्याओं को हल करने के लिए अपना अहं किनारे  रखकर इसी प्रकार के विनम्रता भरे रणनीतिक कौशल का परिचय बारंबार देना होगा.

शनिवार, 19 अप्रैल 2014

क्रोनी कैपिटलिज्म !

          अरविंद केजरीवाल का चित्रण कुछ महीनों पहले जब उद्योग और व्यवसाय के विरोधी के तौर पर होने लगा तब उन्होने विगत 17 फरवरी को आयोजित सी सी आई की बैठक में स्पष्ट किया कि वे क्रोनी कैपिटलिज्म के विरुद्ध हैं न कि कैपटलिज्म के। उन्होंने यह भी कहा कि वे निजी उद्यमों के विरोध में नहीं हैं तथा रोजगार के सृजन में इन उद्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है. उन्होंने उद्यमों में सरकार की भागीदारी का समर्थन न करते हुए सरकार को सुशासन केंद्रित बनाने पर जोर दिया. हालांकि उनके विचार कहाँ तक सच्चे थे यह संदेहास्पद है क्योंकि अपने एक साक्षात्कार के असंपादित अंशों में  अरविंद केजरीवाल पुण्यप्रसून से यह अनुरोध करते हुए दिखाई दिए कि वे प्राइवेट सेक्टर के बारे में उनके विचारों को न प्रसारित करेंं ताकि मिडिल क्लास उनके खिलाफ न जाए. लोकसभा के चुनाव के अपने अभियान के आगाज के साथ ही उन्होने क्रोनी कैपिटलिज्म को बढावा देने का आरोप लगाते हुए और अंबानी तथा अडाणी का बार- बार नाम लेते हुए नरेंद्र मोदी पर हमले तेज किए ।

          संभवत: उनसे ही प्रेरणा लेते हुए राहुल गाँधी ने पिछले कुछ दिनों से उक्त उद्योगपतियों के साथ टाटा का भी नाम लेते हुए नरेंद्र मोदी पर क्रोनी कैपिटलिज्म को प्रोत्साहन देने के आरोप लगाए हैं. लेकिन जब  हम क्रोनी कैपिटलिज्म की बात करते हुए  जिसका वास्तविक आशय राजनीतिज्ञ -पूँजीपति गठजोड से है जहाँ पूँजीपति राजनीतिज्ञों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धन प्रदान करता है और बदले में उनकी नीतियों को प्रभावित करता है या उनसे सुविधाएं लेता है, गहराई में जाते हैं तो यह पाते हैं कि देश में शायद नवगठित "आप" जिसका सत्ता से ज्यादा साबका नहीं रहा और वामपंथियों के एक छोटे  वर्ग को छोडकर कोई भी दल ऐसा नहीं है जो इस पैमाने पर खरा उतरता हो. कांग्रेस पर घोटालों के जो  तमाम आरोप लगे हैं उनके  मूल में भी यही  क्रोनी कैपिटलिज्म है. कई क्षेत्रीय दलों या उनके नेताओं ने  तो सत्ता पा जाने पर  पूँजीपतियों के साथ वस्तुत: जिसे हाथ ऐंठना कहा जाना चाहिए, वैसा करके  धन या अन्य रूप में  लाभ लिया और बदले में उन्हें  सुविधाएं प्रदान कीं . 

          पर यदि कोई राजनीतिज्ञ बिना किसी प्रकार के लालच के अपने प्रदेश की उन्नति, रोजगार के सृजन  और विकास की दर में बढोत्तरी तथा पूँजी आकर्षित करने के लिए सभी उद्योगपतियों के लिए लेवल प्लेइंग  फील्ड  रखते हुए पारदर्शिता के साथ सबको समान रूप से सुविधाएं और छूट उपलब्ध कराता है तो  इसे क्रोनी कैपिटलिज्म की संज्ञा नहीं दी जा सकती, बल्कि इसे प्रशासनिक कौशल के तौर पर लिया जाना चाहिए .देश की विशाल आबादी और विशेषकर नौजवानों  के लिए उम्मीद की किरण उच्च आर्थिक विकास दर से पैदा होगी जिसके लिए औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाना तथा उद्यम, व्यवसाय  एवं पूँजीनिवेश के लिए अनुकूल वातावरण का सृजन किया जाना आवश्यक है.

          इस सबके साथ ही क्रोनी कैपिटलिज्म पर जो निसंदेह राजनीति में पूँजी के बढते महत्व के साथ  भारतवर्ष में फला- फूला है,  अंकुश लगाना आवश्यक है .यह एक ओर  तो भ्रष्टाचार को बढावा देता है तथा राजनीतिज्ञ  को भ्रष्ट बनने के लिए  प्रोत्साहित करता है, वहीं दूसरी ओर पूँजी का एकत्रीकरण प्रभावशाली पूँजीपतियों , भ्रष्ट राजनीतिज्ञों तथा अफसरों के बीच कर समाज में असमानता में बढोत्तरी करता है. लोगों को अवसरों तथा अधिकारों की समान रूप से उपलब्धता  तथा लेवल प्लेइंग फील्ड से वंचित कर यह अंततोगत्वा देश की विकासदर को भी खींचकर नीचे की तरफ ले आता है. पिछले वर्षों के क्रोनी कैपिटलिज्म का परिणाम वर्तमान में हमारे सामने है. इसलिए  हमारे देश की आने वाली नई सरकार  को इसे रोकने के लिए समुचित विधायी एवम कानूनी उपाय करने होंगे तथा सभी के लिए समान अवसर  की प्रणाली रखने हेतु पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी.


गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

भारतीयता, हिंदुस्तानियत और धर्मनिरपेक्षता

          आज कोई कह रहा है  कि भारतीयता खतरे में है,कोई कह रहा है कि हिंदुस्तानियत खतरे में है और  कोई कह रहा है कि धर्मनिरपेक्षता खतरे में है. लोग इन्हें बचाने की अपीलें कर रहे हैं.  ऐसे लोगों से मेरा कहना है कि वे भारतवर्ष की समुत्थान शक्ति (Resilience)  को कम करके आँक रहे हैं. वे इस  देश को कमतर आँक रहे हैं. इस देश की धर्मनिरपेक्षता कोई मिट्टी का ढूहा नहीं जिसे कोई एक लात मार कर गिरा देगा.

          यह देश उन तमाम लोगों से बहुत बडा और महान है जो स्वयं को इसका भाग्यविधाता समझ रहे हैं. कोई खुद को कितना भी बडा समझता हो, किसी में वह कुव्वत नहीं है कि इस देश को नाजीकाल का जर्मनी बना देगा या किसी खास समुदाय को कुचल देगा या फिर सारे भ्रष्टाचार के बावजूद गद्दी सँभाले रहेगा. इस देश की अधिकांश जनता सीधी-सादी है  जिसे दो वक्त की रोटी और पहनने को कुछ मोटा-झोटा चाहिए. इतने में ही वे संतुष्ट रहते हैं. हाँ पिछले बीस-पचीस वर्षों में जो नवजवान पीढी तैयार हुई है वह  जरूर जीवन की बेहतरी चाहती है और यथास्थितिवाद से संतुष्ट नहीं है. मध्यवर्ग भी महत्वाकांक्षी  हो गया है और 'कोउ नृप होय हमहि का हानी' की भावना को त्याग कर  बेहतर शासन व्यवस्था की आकांक्षा में वोट देने के लिए भी निकलने लगा है तथा इन दो वर्गों की मानसिकता में परिवर्तन के कारण वह जनता भी प्रभावित हुई है जो कुछ भी मिल जाए, प्रसन्न रहा रहती  थी और परिवर्तन की आकांक्षी हो गई है. 

           पर  कोई कुछ भी  करे यह सीधे-सादे लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे ऐसा नहीं है. इंदिरा गाँधी , जिन्हें इन सीधे-सादे लोगों ने बहुत ही प्यार दिया था,जब निरंकुश बनने लगीं तो इन्होंने उन्हें अर्श से फर्श पर ला दिया. राजीव गाँधी को इन्होंने रिकार्डतोड बहुमत दिया पर जब बोफर्स तोप को लेकर भ्रष्टाचार के  आरोप  लगे तो इन्होंने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया, आजादी के बाद  पिछले तिरसठ वर्षों में इस देश ने बार-बार दिखाया है कि समय के साथ-साथ यहाँ का लोकतंत्र अपनी सारी सीमाओं के बावजूद और सुदृढ एवं समझदार बना है तथा यह प्रक्रिया अभी भी चल रही  है. 

          यह देश धार्मिक होने के बावजूद धर्मनिरपेक्ष इसलिए है कि यहाँ के लोग स्वभाव से  ही धर्मनिरपेक्ष हैं. धर्मनिरपेक्षता उनका स्वभाव है, उनका चुनाव नहीं. यह स्वभाव स्थाई  है जिसे  बदला नहीं जा सकता और इस पर सदियों से  तमाम आघात होने के बावजूद यह यह यूँ ही बना हुआ है  . वे मंदिर को देखकर सर झुकाते हैं तो पीर बाबा की मजार  देखकर सजदा भी करते  हैं.  हो  सकता है कि  इस देश के सीधे  लोगों में से कभी कुछ लोग भावनाओं में बह जाएं या किसी के कहने से भरमा  जाएं तो भी वे  बडी ही जल्दी अपनी गलती का अहसास भी कर लेते हैं और उसे सुधार लेते हैं. जिस भी राजनीतिज्ञ को इस देश  के मूल स्वभाव  "सर्वधर्म समभाव" का ज्ञान है   वह कभी भी इस स्वभाव पर प्रहार करने  की हिमाकत  नहीं करेगा क्योंकि इसका उसे  क्या परिणाम भुगतना पडेगा वह उसे मालूम है. सभी जानते हैं कि देश  की जनता बेहतर भविष्य,विकास और सुरक्षा के लिए वोट दे  रही है किसी धर्म अथवा संप्रदाय को आगे बढाने या फिर किसी धर्म या संप्रदाय  के साथ दोयम  दर्जे का व्यवहार करने के  लिए नहीं. औरंगजेब जैसा प्रबल शासक भी अपना कट्टरपंथी एजेंडा तब तक नहीं लागू कर सका था जब तक मिर्जा राजा जयसिंह और राजा जसवंत सिंह जिंदा  थे. इसलिए यदि आज की परिस्थितियों में किसी का कोई छिपा कट्टरपंथी एजेंडा है तो भी वह उसे लागू नहीं कर सकता. प्रत्येक दक्षिणपंथी को दक्षिण छोडकर केंद्र की तरफ देखना पडेगा क्योंकि उसे मालूम है  कि इसी से वह  उस जगह मजबूती से खडा हो पाएगा जो उसे जनता की कृपा से मिली है. यदि किसी को भी इस प्रकार का मुगालता होगा कि जनता ने विकास के लिए वोट न देकर किसी प्रकार के ऐसे  एजेंडे के लिए वोट दिया है  जो इस देश के मूल स्वभाव के विरुद्ध है  तो यह जनता उसे सबक सिखाने में  देर नहीं करेगी.

          इसलिए जो लोग "भेडिया आया,भेडिया आया ' की तर्ज पर भारतीयता ,हिंदुस्तानियत तथा धर्मनिरपेक्षता को खतरे में बता रहे हैं उनसे मेरी अपील है कि अनावश्यक जनता को डरवाने का प्रयास  न कर नकारात्मकता  से बचें तथा जनता से सकारात्मक पहलुओं की चर्चा कर सकारात्मक  आधारों पर वोट देने की अपील  करें.

मंगलवार, 15 अप्रैल 2014

विकास का टॉफी माडल बनाम गैरविकास का लॉलीपाप माडल!

विकास का टॉफी माडल बनाम गैरविकासवाद का लॉलीपाप माडल
राहुल गाँधी ने सोमवार 14 अप्रैल को औरंगाबाद में विकास के नरेंद्र मोदी के गुजरात माडल की चर्चा करते हुए उसे विकास का टाफी मॉडल बताया है. उनका इसके पीछे तर्क यह है कि एक टाफी के औसत रेट रु. 1 प्रति की समान दर रू  1/- प्रति वर्गमीटर की दर से गुजरात में  अडानी ग्रुप को रू.300 करोड में 45000 एकड जमीन दे दी गई. राहुल ने यह भी कहा कि टाटा समूह को नैनो फैक्टरी लगाने के लिए 10,000 करोड का लोन दिया गया. आज  जबकि  सभी प्रगतिशील देश और प्रदेश अपने यहाँ रोजगार के सृजन हेतु कल-कारखाने एवम उद्यम की जरूरत को समझते हुए पूँजीनिवेश को प्रोत्साहित कर रहे हैं तथा उद्योगपतियों एवं उद्यमियों को अनेक रियायतें मुहैया करवा रहे हैं और पूँजी  भी  वहीं जा  रही है  जहाँ  उन्हें  अधिक सुविधाएं   और  रियायतें मिल रही हैं तब ऐसा कहने का यही मतलब समझ में आता है कि उद्योगपतियों को गाली देकर तथा उन्हें प्रोत्साहन देने  वाले राजनीतिज्ञों को उनका हितैषी दर्शाकर स्वयं को पाक-साफ जताया जाए तथा कुल मिलाकर जनता को भरमाया जाए. इस दृष्टिकोण के अनुसार तो  वही राजनीतिज्ञ भले हैं जिन्होंने जातिवाद  की  गोटियाँ खेलीं और उत्तरप्रदेश तथा बिहार जैसे प्रदेशों में कुछ नहीं किया तथा इन  राज्यों का विकास  करने के बजाय इन्हें और रसातल में पहुँचाया.

 पिछले दस वर्षों में नरेगा ,गैस सब्सिडी ,कर्ज माफी ,शिक्षा और खाद्य सुरक्षा अधिकार जैसी लेमनचूस जनता को थमाई जाती रही है. इसे गैरविकास का लालीपाप माडल कहा जाना चाहिए क्योंकि इस व्यवस्था में जनता को अपने पैरों पर खडी होने के काबिल बनाने की कोशिश करने के बजाय  उसे ऐसा बनाए रखने का प्रयास किया गया जिसमें जनता सदैव लालीपाप पाने  की चाह में राजनीतिज्ञों की तरफ तरफ लालसा भरी निगाहों से देखती रहे और उन्हें वोट देती रहे . इस लालीपाप माडल की अधिकांश लालीपाप वास्तविकता में इनके पीछे-पीछे करप्शन फैलने के कारण अर्थव्यवस्था के लिए रिसाव बिन्दु (लीकिंग प्वाइंट ) सिद्ध हुई हैं। राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलौत ने तरह-तरह की रेवडियाँ बाँटकर विकास के  लालीपाप माडल को अपनी पराकाष्ठा पर पहुँचा दिया था पर राजस्थान की जनता ने इस लालीपाप माडल को पूरी तरह नकार दिया. दूसरी ओर टाफी माडल  वाले  नरेंद्र  मोदी को गुजरात की  जनता तीन बार से लगातार  चुन रही है जो यह दर्शाता है कि  विकास का टाफी माडल  उस लालीपाप माडल  से  बेहतर है जो वास्तविकता में गैरविकासवाद  का  माडल  है.

चलते-चलते
स्नेही बडी बहन या बडे भाई, छोटे भाई  या बहन का हमेशा ख्याल रखते हैं. बचपन में वे उसे टाफी-बिस्कुट खिलाते हैं पर वयस्क हो जाने पर भले  ही वे उसे किसी  गलती पर  डाँट  दें तो  भी उसकी  गलती को माफ कर देते हैं. पर प्रियंका ने सार्वजनिक रूप से वरुण को निगलने के लिए कडवी गोलियाँ दे दी हैं. मेरी आँखों के सामने आज भी वह छवि अंकित है जब इंदिरा गाँधी की चिता को अग्नि देते समय उनके परिवार के सभी सदस्य वहाँ मौजूद थे और प्रियंका ने वरूण की उँगली पकड रखी थी. पर आज जब प्रियंका ने विश्वासघात की बात कह दी है तो सवाल यह उठता है कि क्या गाँधी परिवार में अलग रह रही छोटी बहू का और उसके बेटे का ख्याल रखा जाता था ,क्या उनकी खोज-खबर ली जाती थी और गाहे-बगाहे उनकी कोई मदद की जाती थी अन्यथा जब रास्ते तभी अलग हो गए थे तो आज  रास्ता अलग होने की शिकायत कैसी. और जब रास्ते अलग हो जाएं तो बकौल किसी शायर के-" जब भी मिलें किसी मोड पर मुस्करा कर मिलें ,और कुछ नहीं तो दोस्ती का हक अदा हो जाएगा."   

शनिवार, 12 अप्रैल 2014

कारगिल युद्ध के दौरान चार्ली मुस्लिम कम्पनी का बहादुरी भरा योगदान!

          यह कोई काल्पनिक कथा नहीं बल्कि सत्य  युद्ध घटना है जो यह साबित करती है कि हर भारतवासी किसी भी धर्म या जाति  का हो पहले भारतीय है .

          सन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान बटालिक सबसेक्टर में खालूबार पर्वत श्रेणी की चोटी 5250 पाक घुसपैठियों के कब्जे में थी और दुर्जेय सिद्ध हो रही थी. जब भी भारतीय सेना आगे बढने का प्रयास करती दुश्मन उन्हें आगे नहीं बढने दे रहा था. ऐसी स्थिति में इस चोटी पर कब्जा करने का काम 22 ग्रेनेडियर्स की चार्ली मुस्लिम कम्पनी को सौंपा गया. पाक  घुसपैठियों को खदेडने  के लिए इस कंपनी ने 30 सैनिकों के साथ मेजर अजीत सिंह के नेतृत्व में रात के अँधेरे में तीव्र आक्रमण किया. पर दुश्मन ने उनका उनका उतना ही तीव्र प्रतिरोध किया. लडाई शुरू होने के दो घंटे के भीतर 10 भारतीय सैनिक शहीद हो गए और अट्ठारह भारतीय सैनिक घायल हो गए. मेजर अजीत सिंह ने एक युद्ध रणनीति के तहत सैनिकों को पीछे हटकर पहाडी चट्टानों के पीछे शरण लेकर  विश्राम करने और फिलहाल लडाई रोक देने का निर्देश दिया.

          इसी दौरान नायक जाकिर हुसैन ने आकर  मेजर अजीत सिंह को सैल्यूट किया और फिर  से आक्रमण शुरू करने की इजाजत माँगी . मेजर अजीत ने, जो स्वयं भी सर में चोट लगने के कारण घायल  थे अन्य सैनिकों के साथ भी विचार- विमर्श किया. सभी फिर से आक्रमण करने के पक्ष में थे. रात 2.00 बजे फिर से आक्रमण शुरु किया गया.  इस बार सैनिक चुपचाप चोटी  के समीप तक चढने में कामयाब रहे और जैसे ही वे एकदम नजदीक पहुँच गए, उन्होंने " अल्लाह-हो-अकबर" का युद्धघोष किया. चोटी पर जमे पाक घुसपैठियों ने पाकिस्तानी सेना से मदद के लिए कुमुक माँगी थी और उन्होंने भारतीय सैनिकों का युद्धघोष सुनकर यह  समझा कि सहायतार्थ पाक सैनिक आ गए  हैं. उन्होंने कोई प्रतिरोध नहीं किया बल्कि कुछ ने भारतीय सैनिकों को चोटी पर चढने में मदद भी की. पर जब चोटी पर पहुँच कर भारतीय  सैनिकों ने फायरिंग करते हुए हमला शुरु कर दिया तो वे भौंचक्के रह गए . पर बात समझ  में आ जाने पर उन्होंने भारतीय सैनिकों का तीव्र प्रतिरोध किया. हालांकि भारतीय सैनिकों के आरंभिक हमले से दुश्मन की रक्षा पंक्ति कमजोर हो गई थी तथापि पाकिस्तानी घुसपैठिए संख्या बल में भारतीय सैनिकों से अधिक थे  और लडाई के दौरान स्ट्रेटिजकली बेहतर  स्थान पर भी थे. उनके पास पर्याप्त हथियार और गोला-बारूद था.  भारतीय सैनिक कंपनी के दस जवान  पहले ही शहीद हो चुके थे  और अट्ठारह जवान घायल थे फिर भी वे अपने देश के लिए हिम्मत और हौसले के साथ लडते रहे और यह लडाई अगले तीन दिनों तक चलती रही.

          दुश्मन की मदद करने के लिए पाक  कुमुक आ गई पर भारतीय सैनिकों ने उन्हें नजदीक भी नहीं फटकने दिया  और लगातार लडते रहे. भारतीय सैनिक दो भागों में विभाजित होकर लड रहे थे. एक टुकडी जहाँ दुश्मन पर हमला कर रही थी वहीं दूसरी दुश्मन के लिए आने वाली  मदद को   रोक रही  थी.  नायक आबिद हुसैन ने पूरे बहत्तर घंटों तक मशीनगन संभाले रखी और दुश्मन की मदद के लिए आने वाली कुमुक को रोके रखा. आखिरकार दुश्मन की फायरिंग की जद में  आकर वे शहीद हो गए पर  मौत  को गले लगाने के बाद  भी उनका हाथ और उनकी उँगलियाँ ट्रिगर से हटी नहीं. भारतीय  फौज को मदद के लिए कुमुक चाहिए थी और लडाई की तीसरी रात 1/11 गुरखा राइफल्स ने उन्हें यह मदद देने के लिए खालूबार की तरफ बढना  शुरू किया. पूरी रात चढाई करने के बाद गुरखा राइफल्स के सैनिक चार्ली मुस्लिम कंपनी तक पहुँच पाए. इस समय तक भोर हो गई थी  और निर्देशों के मुताबिक उन्हें दिन में आराम करने  के बाद अगली रात दुश्मन  पर हमला करना था.  पर मुस्लिम चार्ली कंपनी के अपने भाइयों को बुरी तरह घायल अवस्था में  देखकर उनका खून खौल उठा और उन्होंने दिन में ही "आयो गुरखाली" का युद्धघोष  करते हुए अपनी खुकरियाँ चमकाते हुए दुश्मन पर हमला कर दिया. दुश्मन ने उन्हें रोकने के लिए भारी फायरिंग शुरू  की, पर अब न चार्ली मुस्लिम  कंपनी रुकने वाली थी और न ही गुरखे रुकने वाले थे. पाक घुसपैठियों के पैर उखडने लगे और अंततोगत्वा उन्होंने मैदान छोडकर भागने में अपनी भलाई समझी पर भारतीय सैनिकों नें उनमें से एक को भी बचकर जाने नहीं दिया और वे सभी खेत रहे.

          कुल मिला कर यह कि हमारे देश की सेना हिंदू,मुस्लिम, सिख या ईसाई के तौर पर नहीं बल्कि भारतीय सेना के तौर पर  लडती है और इसमें धर्म की बात लाने वालों की बुद्धि पर तरस ही खाया जा सकता है.