अरविंद केजरीवाल का चित्रण कुछ महीनों पहले जब उद्योग और व्यवसाय के विरोधी के तौर पर होने लगा तब उन्होने विगत 17 फरवरी को आयोजित सी सी आई की बैठक में स्पष्ट किया कि वे क्रोनी कैपिटलिज्म के विरुद्ध हैं न कि कैपटलिज्म के। उन्होंने यह भी कहा कि वे निजी उद्यमों के विरोध में नहीं हैं तथा रोजगार के सृजन में इन उद्यमों की भूमिका महत्वपूर्ण है. उन्होंने उद्यमों में सरकार की भागीदारी का समर्थन न करते हुए सरकार को सुशासन केंद्रित बनाने पर जोर दिया. हालांकि उनके विचार कहाँ तक सच्चे थे यह संदेहास्पद है क्योंकि अपने एक साक्षात्कार के असंपादित अंशों में अरविंद केजरीवाल पुण्यप्रसून से यह अनुरोध करते हुए दिखाई दिए कि वे प्राइवेट सेक्टर के बारे में उनके विचारों को न प्रसारित करेंं ताकि मिडिल क्लास उनके खिलाफ न जाए. लोकसभा के चुनाव के अपने अभियान के आगाज के साथ ही उन्होने क्रोनी कैपिटलिज्म को बढावा देने का आरोप लगाते हुए और अंबानी तथा अडाणी का बार- बार नाम लेते हुए नरेंद्र मोदी पर हमले तेज किए ।
संभवत: उनसे ही प्रेरणा लेते हुए राहुल गाँधी ने पिछले कुछ दिनों से उक्त उद्योगपतियों के साथ टाटा का भी नाम लेते हुए नरेंद्र मोदी पर क्रोनी कैपिटलिज्म को प्रोत्साहन देने के आरोप लगाए हैं. लेकिन जब हम क्रोनी कैपिटलिज्म की बात करते हुए जिसका वास्तविक आशय राजनीतिज्ञ -पूँजीपति गठजोड से है जहाँ पूँजीपति राजनीतिज्ञों को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से धन प्रदान करता है और बदले में उनकी नीतियों को प्रभावित करता है या उनसे सुविधाएं लेता है, गहराई में जाते हैं तो यह पाते हैं कि देश में शायद नवगठित "आप" जिसका सत्ता से ज्यादा साबका नहीं रहा और वामपंथियों के एक छोटे वर्ग को छोडकर कोई भी दल ऐसा नहीं है जो इस पैमाने पर खरा उतरता हो. कांग्रेस पर घोटालों के जो तमाम आरोप लगे हैं उनके मूल में भी यही क्रोनी कैपिटलिज्म है. कई क्षेत्रीय दलों या उनके नेताओं ने तो सत्ता पा जाने पर पूँजीपतियों के साथ वस्तुत: जिसे हाथ ऐंठना कहा जाना चाहिए, वैसा करके धन या अन्य रूप में लाभ लिया और बदले में उन्हें सुविधाएं प्रदान कीं .
पर यदि कोई राजनीतिज्ञ बिना किसी प्रकार के लालच के अपने प्रदेश की उन्नति, रोजगार के सृजन और विकास की दर में बढोत्तरी तथा पूँजी आकर्षित करने के लिए सभी उद्योगपतियों के लिए लेवल प्लेइंग फील्ड रखते हुए पारदर्शिता के साथ सबको समान रूप से सुविधाएं और छूट उपलब्ध कराता है तो इसे क्रोनी कैपिटलिज्म की संज्ञा नहीं दी जा सकती, बल्कि इसे प्रशासनिक कौशल के तौर पर लिया जाना चाहिए .देश की विशाल आबादी और विशेषकर नौजवानों के लिए उम्मीद की किरण उच्च आर्थिक विकास दर से पैदा होगी जिसके लिए औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहन दिया जाना तथा उद्यम, व्यवसाय एवं पूँजीनिवेश के लिए अनुकूल वातावरण का सृजन किया जाना आवश्यक है.
इस सबके साथ ही क्रोनी कैपिटलिज्म पर जो निसंदेह राजनीति में पूँजी के बढते महत्व के साथ भारतवर्ष में फला- फूला है, अंकुश लगाना आवश्यक है .यह एक ओर तो भ्रष्टाचार को बढावा देता है तथा राजनीतिज्ञ को भ्रष्ट बनने के लिए प्रोत्साहित करता है, वहीं दूसरी ओर पूँजी का एकत्रीकरण प्रभावशाली पूँजीपतियों , भ्रष्ट राजनीतिज्ञों तथा अफसरों के बीच कर समाज में असमानता में बढोत्तरी करता है. लोगों को अवसरों तथा अधिकारों की समान रूप से उपलब्धता तथा लेवल प्लेइंग फील्ड से वंचित कर यह अंततोगत्वा देश की विकासदर को भी खींचकर नीचे की तरफ ले आता है. पिछले वर्षों के क्रोनी कैपिटलिज्म का परिणाम वर्तमान में हमारे सामने है. इसलिए हमारे देश की आने वाली नई सरकार को इसे रोकने के लिए समुचित विधायी एवम कानूनी उपाय करने होंगे तथा सभी के लिए समान अवसर की प्रणाली रखने हेतु पारदर्शिता को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी.
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