दिल्ली में दिसंबर में घटित घटना और अब अप्रैल में घटित घटना में अनेक समान बिंदु हैं. दोनों में ही अपराधियों ने शराब का सेवन किया था.वे सेलिब्रेशन के मूड में थे.दोनों ही समूह वैश्याओं की तलाश में थे पर अंतत:उन्होने अपना शिकार मासूम बच्चियोँको बनाया-पहले समूह ने एक वयस्क बच्ची को और दूसरे ने एक शिशु बच्ची को.दोनों ही समूह शिक्षा के संस्कार से वंचित स्कूल ड्राप-आउट के थे और दिहाडी या ऑड जॉब करने वालों के थे,हाँ पहले समूह में एक फिजिकल ट्रेनर भी था,पर निश्चय ही वह कुसंगति में पड गया था.दोनों ही समूह पहले भी इस प्रकार के अपराध में लिप्त हो चुके थे.एक अन्य समानता जो महज संयोगवश हो सकती है ,वह यह है कि दोनों में ही शिकार बच्चियाँ गरीब तबके की थीं.पहले समूह के डिस्पोजल पर एक बस भी थी पर दूसरे समूह के पास ऐसा कोई साधन नही था इसलिए उन्होने सबसे आसान शिकार पडोसी की अबोध बच्ची को चुना.दूसरे समूह ने शराब का सेवन करने के साथ-साथ ब्ल्यू फिल्म भी मोबाइल पर देखी(समाज में टेक्नॉलॉजी के प्रसार और गरीब तबके तक उसकी पहुँच का यह भी एक रूप है) और यह सब यह दर्शाता है कि यौन अपराधों को जन्म देने वाली कॉकटेल किस तरह तैयार होती और असर करती है.
इसके साथ मैं आरुषी कांड का भी उल्लेख करना चाहूँगा क्योंकि इस कॉकटेल के अंश वहाँ भी मिलते हैं.डॉक्टर दम्पति के घर में काम करने वाला नौकर जो स्वयं अपनी तथा आरुषी की हत्या के कारकों में से एक था,भी शिक्षा के संस्कार से वंचित स्कूल ड्राप-आउट था तथा छोटे-मोटे काम की तलाश में मेट्रो शहर में रह रहा था.नौकर हेमराज के कमरे में पुलिस को "थ्री मिस्टेक्स आफ माइ लाइफ" की एक प्रति मिली.हेमराज इस पुस्तक को पढ नही सकता था, अत: सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि यह पुस्तक कौन पढ रहा था.निश्चय ही आरुषी को इस पुस्तक को पढने योग्य परिपक्व नही माना जा सकता.अब कोलकाता में कल घटी घटना का उल्लेख करते हैं.छ: वर्ष की एक छोटी बच्ची एक शिक्षिका के यहाँ ट्यूशन पढने जाती थी.कल वहाँ जब वह गई तो शिक्षिका नही थी.शिक्षिका के चौदह वर्ष के बेटे ने उस बच्ची के साथ जबरदस्ती कर डाली.फिलहाल पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया है. मध्यमवर्गीय तबके के एक अल्पवय किशोर या किशोरी को जो एक्स्पोजर इन दिनों अपने चारों तरफ मिल रहा है( जिसकी चर्चा मैंने अपनी पिछली पोस्ट-क्षरित हो रही नैतिकता, में की थी) उसमें ऐसे अपराध में उसका संलग्न हो जाना आश्चर्य का विषय नही है.
मेरा कुल कहने का आशय यह है कि जहाँ हम अपराधियों को मृत्युदंड देने की या फिर उन्हे अरब देशों की भाँति दंडित करने की माँग कर रहे हैं वहीं अपराधों को जन्म देने वाली काकटेल को भी तैयार होने से रोकने की दिशा में विचार करें ताकि अपराध को जड से खत्म करने की दिशा में काम किया जा सके.
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