ऐसा लगता है कि हम भारतवासी बेवकूफ बनने के लिए ही पैदा हुए हैं.शायद इसकी वजह है कि हम भारतवासी जरूरत से ज्यादा होशियार हैँ.है न कैसा विरोधाभास?पर इसमें विरोधाभास कुछ भी नहीं है.दरअसल हम खुद को होशियार समझ कर दूसरे को बेवकूफ बनाने में लगे रहते हैं.पर कमोबेश देश में एक जमात ऐसी भी है जिसे हर कोई बेवकूफ बनाने की जुगत में रहता है.वह है इस देश की गरीब जनता.कहते हैं कि गरीब की जोरू सबकी भाभी होती है.नेतागण उसे सब्जबाग दिखाते हैं नरेगा के,गैस सब्सिडी के,कर्ज माफी के ,शिक्षा और खाद्य सुरक्षा के अधिकार के.कुल लब्बोलुबाब यह है कि गरीब जनता को कुछ न कुछ दिखा कर ललचाते रहो,कुछ टुकडे उसके हाथ में गिराते रहो और उस कार्टून की तरह जिसमें किसी गाडी का कोचवान गाडी में श्वानों को जोतकर उनके आगे कुछ हड्डी के टुकडे एक लीवर संचालित छड से लटका कर उन्हे उठाता गिराता रहता हैऔर इस प्रकार श्वानों को दौडाता रहता है तथा अपनी गाडी चलाता रहता है वैसे ही अपनी गाडी चलाते रहो.पर उसे इसे इस काबिल बनाने की कोशिश मत करो कि वह अपने पैरों पर खडी हो जाए .बस उसे ऐसा बनाए रखो कि वह तुम्हारी तरफ लालसा भरी निगाहों से देखती रहे. उसे याद कराओ कि वह किस धर्म का है और उसकी जाति क्या है और उस धर्म तथा जाति के पैरोकार आप ही हैं ताकि वह आपकी ही जय-जयकार करे,आपको ही अपना हितैषी समझे और बेवकूफ बनकर आपको वोट देता रहे.
नेताओं के बाद बेवकूफ बनाने के लिए सुदीप्त सेन जैसे लोग हैं जो पैसा दिन दूना रात चौगुना होने का ख्वाब दिखा कर जनता को बेवकूफ बना रहे हैं.जिन लोगों की पूरी जिंदगी की कमाई पच्चीस-तीस हजार रूपए है वे जल्द से जल्द पैसा दोगुना होने के लालच में और जिनके पास और ज्यादा है वे रईस की श्रेणी में आ जाने के लालच में सुदीप्त सेन जैसे लोगों के पास अपना पैसा रख रहे हैं और जिस दिन सुदीप्त जैसों का खेल खत्म हो जाता है उनमें से अनेक हताशा और निराशा में आत्महत्या कर लेते हैं.पर खेल खेलने के लिए फिर कोई नया आ जाता है और कमजोर याददाश्त वाली जनता फिर से जाल में फंसने और बेवकूफ बनने के लिए तैयार रहती है.राजकपूर की फिल्म 'मेरा नाम जोकर' के डायलाग -ये दुनिया एक सर्कस है,के अनुरूप सर्कस का खेल जारी रहता है.
जनता को बेवकूफ बनाने में जो कमी रह जाती है उसे हमारे भाई लोग पूरा करते हैं.आप कहेंगे कौन से भाई.अरे यही दाऊद भाई और टाइगर मेमन भाई और इनके जैसे और भाई .हमारी भारत सरकार इन भाई लोगों के कारनामों और ठिकानों से वाकिफ होते हुए भी इनका आज तक कुछ बिगाड नही पाई. अब भाई लोगों ने पढे-लिखे और न पढे-लिखे ,अमीर और गरीब सभी श्रेणी के भारतीयों को बेवकूफ बनाने के लिए नायाब तरीका निकाला है,क्योंकि उन्हे मालूम है कि क्रिकेट के शौकीन ये सभी हैं.सो साहब बेटिंग के रैकेट चलाओ,स्पाट फिक्सिंग कराओ,क्रिकेटरों को धन और सुंदरी का संयोग उपलब्ध कराओ,बाकी काम धमका कर और ब्लैकमेलिंग कर पूरे हो ही जाएंगे .जनता बेवकूफ बनती रहेगी,सब कामकाज छोड कर क्रिकेट के मैच देखेगी, क्रिकेट पर परिचर्चा करेगी और भाई लोग क्रिकेटरों के साथ-साथ अपनी जेबें गरम कर अपनी पौ-बारह करते रहेंगे.बेटिंग के रैकेट में उलझे क्रिकेटर उनसे ज्यादा होशियार हैं जो इस चक्कर में नही पडे.उन्हे मालूम है कि इस काम में दोनो ही हाथों में लड्डू है.अगर पकडे भी गए तो कोई बात नही.जनता की याददाश्त कमजोर है.दस साल के बाद कोई न कोई पार्टी एम.पी. का टिकट दे देगी और जनता भी सब कुछ भूल कर वोट दे देगी और साहब आप देश के भाग्यविधाता-भाग्यनिर्माता की श्रेणी में आ जाएंगे.
हमारे दूसरे पडोसी के बारे में क्या कहा जाए. उसको मालूम है कि आमने-सामने लडेगा तो पटखनी खा जाएगा.इसलिए वह समय-समय पर हमे चिकोटी काटता रहता है.कभी धीरे से तो कभी जोरों से.इतना जोर से कि हमारे खून निकल आता है.कभी हमारे सर पर टीप लगा देता है और कभी हमारे सर पर गरम-गरम पानी डाल देता है,इतना गरम कि हम जल जाते हैं. .पर साहब हम शांति और अहिंसा के अग्रदूत, हम उसे झिडकने- डाँटने के सिवाय कुछ नही करते.हमें उसका स्वभाव बच्चों जैसा लगता है इसलिए हम उसे बस यही बताते हैं कि अच्छे बच्चे ऐसा नही करते.बहुत हुआ तो कह देते हैं- मार देंगे,हाँ.वैसे अमेरिकी खुफिया विभाग का कहना है कि हमें मालूम है कि उसके पास खतरनाक असलहे हैं.इसीलिए हम उसे बच्चा मान कर उसकी हरकतें नजरंदाज करते हैं.
तो चलिए बेवकूफ बनने और बनाने का खेल जारी रखते हैं.
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