विगत 27 सितम्बर,2013 को पीपुल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टीज द्वारा सन 2004 में दाखिल किए गए एक मामले पर अपना निर्णय देते हुए माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने चुनाव आयोग को निर्देश दिया कि मतदाताओं को चुनाव मतपत्र /ई वी एम पर NOTA ( नन आफ दि एबव ) अर्थात इनमें से कोई नहीं का विकल्प दिया जाए ताकि ऐसे मतदाता जो चुनाव में खडे किसी भी उम्मीदवार को चुनने के पक्ष में नहीं हैं अपने मताधिकार का प्रयोग करते हुए सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार कर सकें. माननीय सर्वोच्च न्यायालय के इस निर्णय को चुनाव सुधारों की दिशा में एक बडा कदम मानते हुए इसका काफी स्वागत किया गया.
तदनुसार चुनाव आयोग ने आगामी चुनावों के संबंध में व्यवस्था की है कि काली पृष्ठभूमि में सफेद अक्षरों में NOTA लिखा रहेगा तथा जो मतदाता सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करना चाहें वे इसके आगे बटन दबा कर ऐसा कर सकेंगे.
उक्त व्यवस्था करते समय चुनाव आयोग ने शायद इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है कि हमारे देश में एक बडी संख्या निरक्षर मतदाताओं की है और जो मतदाता साक्षर हैं उनमें भी आवश्यक नहीं है कि सबको अंग्रेजी का ज्ञान हो. मूलत: इसी बात को ध्यान में रखते हुए चुनावों में विभिन्न दलों एवं प्रत्याशियों के लिए चुनाव-चिह्न की व्यवस्था की गई है ताकि अनपढ मतदाता भी अपना मत अपनी इच्छानुसार सही जगह पर डाल सकें. इसे ध्यान में रखते हुए NOTA के लिए किसी चिह्न का प्रयोग करना अधिक उपयुक्त होता. इसके लिए ठेंगा ( सामने की चार उँगलियाँ मुडी हुई तथा अँगूठा ऊपर की तरफ सीधा खुला हुआ ) जिसे हमारी संस्कृति में 'कुछ भी नहीं' का प्रतीक माना जाता है अथवा फिर 0 (शून्य का चिह्न) जैसा कोई चिह्न प्रयोग में लाया जा सकता था. पुनश्च केवल अंग्रेजी में लिखे NOTA का विकल्प देकर संविधान की धारा 343 की स्पिरिट का भी उल्लंघन किया गया है जिसके तहत हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास की बात की गई है. आखिरकार NOTA का विकल्प सभी भारतीयों के लिए है, न कि केवल अंग्रेजी जानने वाले भारतीयों के लिए . इस बात को मद्देनजर रखते हुए चुनाव आयोग के लिए यह अधिक उपयुक्त होगा कि वह NOTA के कार्यान्वयन के लिए अंग्रेजी में लिखे हुए NOTA के स्थान पर किसी चिह्न की व्यवस्था करे जिसे साक्षर और निरक्षर तथा किसी भी भाषा का ज्ञान रखने वाले भारतीय समझ सकें .
तदनुसार चुनाव आयोग ने आगामी चुनावों के संबंध में व्यवस्था की है कि काली पृष्ठभूमि में सफेद अक्षरों में NOTA लिखा रहेगा तथा जो मतदाता सभी उम्मीदवारों को अस्वीकार करना चाहें वे इसके आगे बटन दबा कर ऐसा कर सकेंगे.
उक्त व्यवस्था करते समय चुनाव आयोग ने शायद इस तथ्य पर ध्यान नहीं दिया है कि हमारे देश में एक बडी संख्या निरक्षर मतदाताओं की है और जो मतदाता साक्षर हैं उनमें भी आवश्यक नहीं है कि सबको अंग्रेजी का ज्ञान हो. मूलत: इसी बात को ध्यान में रखते हुए चुनावों में विभिन्न दलों एवं प्रत्याशियों के लिए चुनाव-चिह्न की व्यवस्था की गई है ताकि अनपढ मतदाता भी अपना मत अपनी इच्छानुसार सही जगह पर डाल सकें. इसे ध्यान में रखते हुए NOTA के लिए किसी चिह्न का प्रयोग करना अधिक उपयुक्त होता. इसके लिए ठेंगा ( सामने की चार उँगलियाँ मुडी हुई तथा अँगूठा ऊपर की तरफ सीधा खुला हुआ ) जिसे हमारी संस्कृति में 'कुछ भी नहीं' का प्रतीक माना जाता है अथवा फिर 0 (शून्य का चिह्न) जैसा कोई चिह्न प्रयोग में लाया जा सकता था. पुनश्च केवल अंग्रेजी में लिखे NOTA का विकल्प देकर संविधान की धारा 343 की स्पिरिट का भी उल्लंघन किया गया है जिसके तहत हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विकास की बात की गई है. आखिरकार NOTA का विकल्प सभी भारतीयों के लिए है, न कि केवल अंग्रेजी जानने वाले भारतीयों के लिए . इस बात को मद्देनजर रखते हुए चुनाव आयोग के लिए यह अधिक उपयुक्त होगा कि वह NOTA के कार्यान्वयन के लिए अंग्रेजी में लिखे हुए NOTA के स्थान पर किसी चिह्न की व्यवस्था करे जिसे साक्षर और निरक्षर तथा किसी भी भाषा का ज्ञान रखने वाले भारतीय समझ सकें .
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