गजल
( यह गजल मेरे मित्र विक्रम सिंह जी की सपत्नीक उजबेकिस्तान यात्रा पर आधारित है )
उनको तो हर तरफ रकीब दिखाई देते हैं
पर हमको वो खुशनसीब दिखाई देते हैं ॥
रश्क क्यूँ न करे ये दुनिया तुम पे ऐ दोस्त
जब यूँ वो तुम्हारे करीब दिखाई देते हैं ॥
जब भी जेहन में उठने लगते हैं चंद सवाल
उनके चेहरे ही हमें मुजीब दिखाई देते हैं॥
उजबेकों के बीच राजा-रानी हिंदुस्तानी
कुछ वाकये बेहद अजीब दिखाई देते हैं ॥
जिस वतन में भी मिल जाएं अदबनवाज
वहीं हमें लोग लिए तहजीब दिखाई देते हैं ॥
नायाबों की महफिल में कहाँ जाएं "संजय"
यूँ भी हम आदमी बेतरतीब दिखाई देते हैं ॥
-संजय त्रिपाठी
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