-गजल-
उसकी बद्दुआओं से बचकर रह पाएगा कैसे कोई
लूटा उसे जिसने वो और नहीं, अपना ही था कोई
जराफत किसी की अब उसे भाए भी तो कैसे
जरीफ से बन गया जारसां वो अपना ही था कोई
उस मकां ए दिल में रहने की हसरतें रहती हैं अधूरी
शिकस्ताहाल किया जिसने वो अपना ही था कोई
किसी की रहबरी में चलना अब उसे मंजूर नहीं
रहबर बनके की राहजनी वो अपना ही था कोई
बारहा कोशिश कर ऐतबार उसका पाए कोई कैसे
लूटा उसे जिसने वो और नहीं अपना ही था कोई
कूच ए खमोशां में भी रही अधूरी दीदार ए आरजू
तुरबत का लुटेरा जरपरस्त अपना ही था कोई
- संजय त्रिपाठी
( रजिया दलवी जी के एक शेर की पंक्ति - " लूटा जिसने वो और नहीं अपना ही था कोई " पर मन की प्रतिक्रिया से उपजी गजल)
रहबरी=पथप्रदर्शन, जराफत=परिहास, जरीफ=दिल्लगीबाज, जारसां=चोट पहुँचाने वाला, कूच ए खमोशां=कब्रिस्तान, जरपरस्त= लोभी
उसकी बद्दुआओं से बचकर रह पाएगा कैसे कोई
लूटा उसे जिसने वो और नहीं, अपना ही था कोई
जराफत किसी की अब उसे भाए भी तो कैसे
जरीफ से बन गया जारसां वो अपना ही था कोई
उस मकां ए दिल में रहने की हसरतें रहती हैं अधूरी
शिकस्ताहाल किया जिसने वो अपना ही था कोई
किसी की रहबरी में चलना अब उसे मंजूर नहीं
रहबर बनके की राहजनी वो अपना ही था कोई
बारहा कोशिश कर ऐतबार उसका पाए कोई कैसे
लूटा उसे जिसने वो और नहीं अपना ही था कोई
कूच ए खमोशां में भी रही अधूरी दीदार ए आरजू
तुरबत का लुटेरा जरपरस्त अपना ही था कोई
- संजय त्रिपाठी
( रजिया दलवी जी के एक शेर की पंक्ति - " लूटा जिसने वो और नहीं अपना ही था कोई " पर मन की प्रतिक्रिया से उपजी गजल)
रहबरी=पथप्रदर्शन, जराफत=परिहास, जरीफ=दिल्लगीबाज, जारसां=चोट पहुँचाने वाला, कूच ए खमोशां=कब्रिस्तान, जरपरस्त= लोभी
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