कल मुझे ख्याली पुलाव राम जी मिले । कहने लगे -" तुम्हें भारत की प्रगति के बारे में कुछ पता है।"
"अरे ख्याली सर जी! मंगल गृह तक तो अपना यान पहुँच ही गया था। क्या इसके आगे किसी और भी ग्रह पर हमारा झंडा गड गया है ? मैंने कहा।
" तुम रहोगे भोंदू के भोंदू ही" ख्यालीजी मुझ पर टिप्पणी करते हुए आगे बोले- " अरे मैं गाँवों की प्रगति की बात कर रहा हूँ।"
" गाँवों में कौन सी प्रगति हो रही है ख्यालीजी ? आपने सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट नहीं पढी ? गावों में 75% परिवारों की आय प्रति महीने पाँच हजार रूपए से भी कम है। एक तिहाई आबादी भूमिहीन है।आधी आबादी गरीब है और मेहनत- मजदूरी पर गुजर - बसर करती है। "
" इसीलिए तो कह रहा हूँ कि तुम्हारे जैसे आकडों में उलझने वाले लोग भोंदू हैं जिनको सिक्के का एक ही पहलू दिखाई देता है। अरे बुद्धू , मैं बात कर रहा हूँ आधुनिकता की,मॉडर्निटी की ,इसमें हमारे गाँव और वहाँ रहने वाले लोग आगे निकल रहे हैं ।"
" ख्याली पुलाव राम जी ! गाँव आज भी जातिप्रथा और ढकोसलों के शिकार हैं। आप कैसी आधुनिकता और मॉडर्निटी की बात कर रहे हैं? क्या दो-चार घरों में टी वी लग जाने से या फिर कुछ लोगों के पास मोबाइल आ जाने से गाँव आधुनिक हो गए?"
" अरे भैया तुम नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट पढो जिसके आधार पर हमारे कृषिमंत्रीजी ने राज्यसभा में किसानों की आत्महत्या के लिए पारिवारिक समस्याओं, बीमारी,बेरोजगारी, संपत्ति के झगडों और दहेज प्रथा के साथ-साथ ड्रग के सेवन,नशाखोरी ,कैरियर बनाने या प्रोफेशनल जीवन की समस्याओं, प्यार के किस्सों, शादी के तय न हो पाने या रद्द हो जाने, बाँझपन या नपुंसकता और सामजिक ख्याति में गिरावट जैसे कारण गिनाए हैं।"
" तो ख्याली पुलाव रामजी आपने समाचारपत्रों में यह नहीं पढा कि कांग्रेस सहित सभी सभी विरोधी दलों ने कृषिमंत्रीजी के बयान को संवेदनहीन बताया है!"
" अमां क्या बात करते हो? किसान की आत्महत्या के कारणों में दहेज प्रथा, प्यार के किस्सों, बाँझपन और नपुंसकता , शादी का न हो पाना या रद्द हो जाना जैसे कारणों को यू. पी. ए. सरकार भी पहले 2013 में बता चुकी है।"
" लेकिन किसान बेचारा तो कभी असमय बारिश हो जाने से फसल बरबाद हो जाने और कभी बारिश न होने से परेशान है। कई बेचारे तो रोजगार की तलाश में गाँव छोडकर बाहर चले गए हैं और जहाँ भी हैं किसी तरह रहते और गुजारा करते हैं। उनके पास प्यार-व्यार करने के लिए टाइम कहाँ है? यह बात अलबत्ता सुनी है कि जो किसान रोजी की तलाश में परदेश चले जाते हैं वो अपने गाँव,बच्चों और बहुरिया की याद में 'मोरे देसवा कै चमकै लिलार बिरना ' जैसे लोकगीत गुनगुनाते हैं और ऐसे ही उनकी बहुरिया भी गाँव में ही 'पनिया के जहाज से पल्टनिहा बन के अइहा हो ' जैसा कोई लोकगीत गा के दिन गुजार लेती है। इससे आगे गाँव में प्यार का मामला बढने की खबर तो कभी सुनी नहीं ख्याली पुलाव रामजी!"
" लगता है तुम न फिल्में देखते हो और न ही कुछ साहित्य वगैरह पढते हो। फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी 'पंचलैट' और उपन्यास 'मैला आँचल' पढो तब तुम्हें पता लगेगा कि गाँव में अभाव में भी कैसे प्यार पनपता है। "
" वह तो सब उपन्यास - कहनियों की बात है ख्याली राम जी। 'बाबरनामा' में भारत के किसानों की दीन- हीन दशा और वेशभूषा का जो वर्णन बाबर ने किया है ,मुझे तो गाँव जाने पर आज भी वही गरीबी कई कोनों में पसरी दिखाई देती है। जिसके पेट में अन्न नहीं , जो दो वक्त की रोटी के जुगाड में लगा है ,तन पर ढंग के कपडे नहीं , अपनी खेती-बारी की चिंता में आसमान की तरफ देखा करता है , वो बेचारा प्यार कैसे करेगा?"
" 'नदिया के पार' फिल्म देखो फिर तुम्हें पता चल जाएगा गाँव में लोग प्यार कैसे करते हैं, चंदन-गुंजा और ओमकार के प्यार का त्रिकोण कैसे बनता है !"
" ख्याली सरजी , मैंने तो केशव प्रसाद मिश्र का ओरिजिनल उपन्यास 'कोहबर की शर्त' ही पढ रखा है जिस पर यह फिल्म बनी है। उस उपन्यास की मूल कहानी ही फिल्म में पूरी तरह बदल दी गई है। मूल उपन्यास में गुंजा की बडी बहन और ओमकार की पत्नी के देहांत के बाद गुंजा की शादी चंदन से नहीं, बडे भाई ओमकार से हो जाती है। न गुंजा कुछ कह पाती है न चंदन कुछ बोल पाता है। गुंजा और चंदन अवसाद में जीने लगते हैं। फिर गाँव में महामारी फैलती है। जिसमें चंदन का पूरा परिवार खत्म हो जाता है।"
" अब आया ऊँट पहाड के नीचे! क्या कहा बेटा तुमने, गुंजा और चंदन अवसाद में जीने लगते हैं! और अवसाद में जीने का नतीजा क्या होता है बेटा? साइकोलॉजी पढी है तुमने? बिना समझे-बूझे बोला नहीं करो!"
" ख्याली सरजी मैं आपका इशारा समझ गया । पर अवसाद का एक वही परिणाम नहीं होता जो आप सोच रहे हैं। आदमी अवसाद से बाहर भी निकल सकता है। बस पॉजिटिव थिंकिंग की दरकार होती है।"
" बेटा गाँव में न साइकोलॉजिस्ट बैठा है और न ही साइकियाट्रिस्ट! वहाँ अवसाद का एक ही नतीजा होता है-आत्महत्या! गाँव में लोगों की पॉजिटिव थिंकिंग एक बार बनती है जब नेता लोग चुनाव के समय आते हैं और तरह-तरह के सब्जबाग दिखाते हैं। इलेक्शन खतम और किसान के अवसाद भरे दिन लौट आते हैं। अब मैं तो ये कहूँगा कि 'नदिया के पार' फिल्म बनाने वाले ने ही कहानी नहीं बदली, मूल उपन्यासकार ने भी ' कोहबर की शर्त' में गाँव की ओरिजनल कहानी बदल दी है। गाँव में लोग अवसाद के बाद आत्महत्या करते हैं महामारी से नहीं मरा करते। बेटा ,ये सोलह आने सच है कि किसान प्यार की वजह से मरता है। और जानते हो किसके साथ प्यार की वजह से?"
मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था। मैंने मत्थे पर बल डालकर ख्याली पुलाव रामजी की तरफ देखा।
ख्याली पुलाव रामजी समझ गए कि मैं उनके साथ बहस में हार गया हूँ, वे आगे जारी हो गए - " अवसाद के साथ प्यार की वजह से ! तो हमारे मंत्रीजी ने गलत नहीं कहा है। लोगों की समझ का फेर है। अच्छा चलता हूँ।"
ख्याली पुलाव रामजी गुनगुनाते हुए जाने लगे- " राधा मोहन शरणं। सत्यं शिवं सुंदरम् । ग्रामस्य इति वृत्तांतं"
मैं ख्याली पुलाव राम जी को जाते देखता रहा।