-गजल-
वो नदी वो शजर की छाँव छोड आए हैं हम
जब से शहर के इस जंगल में रहने आए हैं हम
वो दुवाओं सी आबोहवा वहाँ छोड़ आए हैं हम
हवा में जहर और शोर बरपा यहाँ पाए हैं हम
मुस्कुराए पर किसी से नाता न जोड़ पाए हैं हम
भागते वक्त की चाल के साथ न दौड़ पाए हैं हम
मौसम को बदलने से न अब तलक रोक पाए हैं हम
पाँव न कुचलें कोई ये परवाह कहाँ छोड़ पाए हैं हम
अपनेपन और मुहब्बत से मुँह मोड़ आए हैं हम
'संजय' वहाँ कितनों का दिल तोड़ आए हैं हम
वो नदी वो शजर की छाँव छोड आए हैं हम
जब से शहर के इस जंगल में रहने आए हैं हम
वो दुवाओं सी आबोहवा वहाँ छोड़ आए हैं हम
हवा में जहर और शोर बरपा यहाँ पाए हैं हम
मुस्कुराए पर किसी से नाता न जोड़ पाए हैं हम
भागते वक्त की चाल के साथ न दौड़ पाए हैं हम
मौसम को बदलने से न अब तलक रोक पाए हैं हम
पाँव न कुचलें कोई ये परवाह कहाँ छोड़ पाए हैं हम
अपनेपन और मुहब्बत से मुँह मोड़ आए हैं हम
'संजय' वहाँ कितनों का दिल तोड़ आए हैं हम
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें