एक सहकर्मी के आग्रह पर उनके बेटे के लिए लिखी गई कविता
- चिंपूजी की शादी (बाल-गीत) -
एक पेड़ पर रहते थे एक बंदरिया और बंदरजी
कुछ दिन बीते पैदा हो गए उनके छोटे चिंपूजी॥
मम्मी- पापा का लाड़ पा चिंपूजी हो गए बड़े शैतान
दिन भर धमाचौकड़ी करते, छोडें न कोई पेड़-मकान ॥
बंदरिया ने कहा एक दिन कहा करेंगे तुमको पाजी
बंदर ने कहा सुधर जाओ तो कहा करेंगे राजाजी ॥
चिंपूजी बोले सुधर जाऊँगा मम्मीजी और पापाजी
शर्त यही है ला दो एक दुल्हनिया मेरे लिए छोटीजी ॥
बंदर-बंदरिया ने कई जगह फिर शादी की बात चलाई
पर हर वानर-वानरी बोले, लड़का दुष्ट बहुत है भाई ॥
बंदर और बंदरिया के पास आए एक सूटेड-बूटेड दम्पति
हैट उतार कर बोले मैं हूँ मिस्टर मंकी, ये है मिसेज मंकी ॥
हमारी बिटिया बी ए यानी बड़ी एक्सपर्ट, हो चुकी सयानी
शादी कर देंगे चिम्पू से, शर्त है आप बना कर रखें रानी ॥
बंदर-बंदरिया बोले आपकी बेटी हुई हमारी,भर दी हामी
बैंड-बाजे संग चली बारात,नाचे बिल्ली मौसी कुत्ता टामी ॥
बारात लौटी तब दुल्हनिया को चिंंपूजी ने काटी चुटकी
दुल्हनिया चीखी- खौं-खौं ,दूल्हा चिंपू लगता है सनकी ॥
मैं जा रही हूँ तुरंत मायके अपने मम्मी-पापा के पास
जब तक नहीं सुधरेगा चिंपू,डालूँगी न मैं इसको घास ॥
-संजय त्रिपाठी
- चिंपूजी की शादी (बाल-गीत) -
एक पेड़ पर रहते थे एक बंदरिया और बंदरजी
कुछ दिन बीते पैदा हो गए उनके छोटे चिंपूजी॥
मम्मी- पापा का लाड़ पा चिंपूजी हो गए बड़े शैतान
दिन भर धमाचौकड़ी करते, छोडें न कोई पेड़-मकान ॥
बंदरिया ने कहा एक दिन कहा करेंगे तुमको पाजी
बंदर ने कहा सुधर जाओ तो कहा करेंगे राजाजी ॥
चिंपूजी बोले सुधर जाऊँगा मम्मीजी और पापाजी
शर्त यही है ला दो एक दुल्हनिया मेरे लिए छोटीजी ॥
बंदर-बंदरिया ने कई जगह फिर शादी की बात चलाई
पर हर वानर-वानरी बोले, लड़का दुष्ट बहुत है भाई ॥
बंदर और बंदरिया के पास आए एक सूटेड-बूटेड दम्पति
हैट उतार कर बोले मैं हूँ मिस्टर मंकी, ये है मिसेज मंकी ॥
हमारी बिटिया बी ए यानी बड़ी एक्सपर्ट, हो चुकी सयानी
शादी कर देंगे चिम्पू से, शर्त है आप बना कर रखें रानी ॥
बंदर-बंदरिया बोले आपकी बेटी हुई हमारी,भर दी हामी
बैंड-बाजे संग चली बारात,नाचे बिल्ली मौसी कुत्ता टामी ॥
बारात लौटी तब दुल्हनिया को चिंंपूजी ने काटी चुटकी
दुल्हनिया चीखी- खौं-खौं ,दूल्हा चिंपू लगता है सनकी ॥
मैं जा रही हूँ तुरंत मायके अपने मम्मी-पापा के पास
जब तक नहीं सुधरेगा चिंपू,डालूँगी न मैं इसको घास ॥
-संजय त्रिपाठी