इन दिनों आई.बी. और सी.बी.आई. के
बीच जिस तरह की उठा-पटक चल रही है उससे ऐसा लगता
है कि सुजॅय घोष यदि उससे प्रेरणा लें तो
जल्दी ही कहानी-3 का निर्माण करने में सफल होंगे. सुजॅय घोष ने एक वर्ष
पूर्व कहानी नाम की छोटे बजट की फिल्म का निर्माण किया था जिसमें नामी-गिरामी
कलाकार के रूप में एकमात्र विद्या बालन थीं.
फिल्म में अन्य भूमिकाएं नए कलाकारों या टालीवुड के बांगला फिल्मों में काम करने वाले कलाकारों द्वारा निभाई गईं थीं. इस
फिल्म की सफलता से उत्साहित होकर सुजॅय घोष द्वारा कहानी-2 का निर्माण किया
जा रहा है.
हिंदू नायक और मुस्लिम नायिका
को केंद्र बिंदु में रखकर फिल्म बनाना हमारे
फिल्म निर्माताओं का प्रिय विषय रहा है.
जावेद शेख उर्फ प्रणेश पिल्लै के पिता का कहना है कि मेरे बेटे का दोष सिर्फ इतना
है कि उसने एक मुस्लिम लडकी से प्यार किया था और प्यार
की खातिर उसने धर्म-परिवर्तन कर लिया था.
दूसरी जो बात उन्होने कुछ दिन पहले कही
वह यह
कि उनका बेटा एक पुलिस इन्फॉर्मर था
तथा वह किसी पुलिस अधिकारी का बहुत करीबी था जिससे उसे आशा थी कि वह उसे व्यवसाय
आरंभ करने में मदद करेगा. यह पढकर स्वत:
कहानी फिल्म के इंटेलीजेंस अधिकारी खान का यह कथन याद आ जाता है – ‘मिलन दामजी हमारा
आदमी था,वह हमारे लिए काम करता था. बाद में वह हमारे दुश्मनों से मिल गया और उनके लिए
काम करने लगा,ऐसा कभी-कभी हो जाता है मिसेज बागची!’ कहानी में यह भी दर्शाया
गया था कि इंटेलीजेंस के कुछ उच्चाधिकारी ही दुश्मनों से मिले हुए हैं. कहानी
फिल्म देखने के बाद यह तथ्यों से परे और लेखक/निर्देशक की कल्पना की उडान मात्र लगा था पर अब लगता है कि ऐसा हकीकत
में भी हो सकता है.गृह मंत्रालय के पूर्व अधिकारी मणि का कहना मात्र यही नहीं है कि सी.बी.आई. ने जबरन उनसे एक बयान पर दस्तखत करवाए बल्कि उनके अनुसार एक सी बी आई अधिकारी ने यहाँ तक कहा कि संसद पर हमला तथा मुंबई में समुद्र के रास्ते आतंकवादियों का आकर हमला करना तत्कालीन सरकारों द्वारा प्रायोजित थे.
सियासी खेल की यह कहानी-3 देश की सुरक्षा व्यवस्था के बारे में
गंभीर सवाल खडे करती है. पुलिस इससे पहले
भी ऐसे एन्काउंटर करती रही है जिनकी वास्तविकता पर संदेह प्रकट किया गया है या
रहा है. इनका शिकार कई बार शातिर अपराधी
तो कभी-कभी निर्दोष जन भी हुए हैं. पर इस तरह के मामले में शामिल होने के लिए खुले
तौर पर आई.बी. का नाम पहली बार आ रहा है. अगर आई बी निर्दोष लोगों को
एनकाउंटर का शिकार बनाने में शामिल थी तो
उसके पीछे क्या झूठी वाह-वाही पाने की, या फिर और कौन सी मंशा थी और अगर जो मारे गए वे सचमुच आतंकवादी थे या
उनके खेल में शामिल थे जैसा कि आई.बी. का कहना है और इसकी पुष्टि में रिचर्ड हैडली
की स्वीकारोक्ति है (या नही है) तो सच जो भी है उसे सामने क्यों नही लाया जा रहा है. पंजाब में आतंकवाद के दमन के लिए
के.पी.एस. गिल ने हर तरह के अस्त्र का प्रयोग किया था. उन्हे पद्मश्री से सम्मानित
किया गया. तब सरकार ने नहीं सोचा कि वह एक
उदाहरण स्थापित कर रही है और आज उसके मानदंड अलग हो गए हैं. आई.बी. के चीफ आसिफ
इब्राहिम सत्ता के उच्चतम स्तर तक अपने अधिकारी
को बचाने के लिए जा
चुके हैं पर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर पा रहे
हैं.
पूर्व गृह सचिव आर.के.सिंह
के शब्दों में जिस दिन देश की एक सुरक्षा
एजेंसी दूसरी को कटघरे में खडा करेगी वह देश के
लिए दुर्भाग्य का दिन होगा. शायद हम
उन्ही दिनों के दौर से गुजर रहे हैं
. सच सियासत का शिकार
है. ऐसे में सुजॅय घोष को कहानी-3 का निर्माण कर सच्चाई को सामने लाना
चाहिए.
चलते-चलते :- सी.बी.आई.का कहना है कि किसी पुलिस वाले ने डी.आई.जी.बनजारा को सफेद दाढी और काली दाढी के बारे में बात करते सुना था.सुजॅय घोष यदि फिल्म बनाएं तो पटकथा को और रुचिकर बनाने के लिए इसमें एक खिचडी दाढी वाला आदमी भी जोड देना चाहिए.
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