नैरोबी के वेस्टगेट माल में सोमाली आतंकवादी संगठन अल-शबाब के हाथों निरीह नागरिकों की हत्या जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं ,यह सोचने के लिए विवश करती है कि इस्लाम के नाम पर चलाए जा रहे आतंकी अभियानों का इलाज क्या है. पश्चिमी देशों द्वारा दी गई संज्ञा और उनके अनुकरण पर अन्यत्र भी इन्हें इस्लामी आतंकवाद कह कर संबोधित किया जा रहा है पर मैं इसे इस्लामी आतंकवाद के स्थान पर इस्लाम के नाम पर आतंकी अभियान कहना बेहतर समझता हुँ क्योंकि यह संगठन अपनी आतंकी गतिविधियों के लिए इस्लाम के नाम का बेजा इस्तेमाल कर रहे हैं. पैगम्बर मुहम्मद साहब ने इस्लाम के प्रसार के लिए जो भी लडाइयाँ लडीं वे आमने-सामने लडीं, कभी किसी पर पीठ पीछे वार नहीं किया. व्यर्थ के खून खराबे की अपेक्षा उन्होने हिजरत करना उचित समझा. पर इस्लाम के नाम पर आतंकी अभियान चला रहे लोग पीठ पीछे से ही वार करते हैं और पैगम्बर मुहम्मद की शिक्षाओं के विपरीत महिलाओं,बच्चों,बूढों तथा अपाहिजों पर भी वार करने में नहीं हिचकते. रविवार को पाकिस्तान के पेशावर में "आल सेंट्स चर्च" पर किए गए हमले में मारे गए लोग ज्यादातर गरीब ईसाई थे जो चर्च में मिलने वाले भोजन की आस में चर्च के लान में इकट्ठा हुए थे. हमला फिदाईनों द्वारा किया गया था जब कि फिदाईन गतिविधि इस्लाम की शिक्षाओं के विपरीत है. पर पाकिस्तान में किए जाने वाले हमले अधिकांशतया फिदाईनों द्वारा ही किए जाते हैं. इस्लाम धर्म के कई रहनुमा कह चुके हैं इस्लाम इस प्रकार की गतिविधियों की इजाजत नहीं देता. पर इस्लाम के नाम पर आतंक का खेल बदस्तूर जारी है.
इस्लाम के नाम पर चल रहे आतंक को तीस वर्षों से ऊपर हो गए हैं. इसकी विधिवत शुरुआत सन उन्नीस सौ अस्सी के पास अफगानिस्तान में रूसी हस्तक्षेप के साथ हुई. हालांकि इसके पहले भी अल-फतह जो फिलीस्तीनियों के अधिकारों के लिए संघर्षरत था तथा जम्मू काश्मीर में जे के एल एफ आतंकवादी गतिविधियां कर चुके थे पर इनका दायरा और उद्देश्य क्षेत्र विशेष तक सीमित होने के कारण इन्हें इस्लाम के साथ जोडना अनुचित होगा. सन उन्नीस सौ अस्सी के समय सोवियत रूस का प्रतिकार करने के लिए पश्चिमी ताकतों ने विभिन्न इस्लामी देशों से लडाकों को अफगानिस्तान आकर सोवियत रूस एवं उसके द्वारा समर्थित अफगान शासन के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया. इस कार्य में पश्चिम जगत का मुख्य सहायक इस्लामी देश पाकिस्तान था जिसे अफगानिस्तान सरकार के विरुद्ध संघर्ष के लिए बेस के तौर पर इस्तेमाल किया गया. पश्चिम जगत ने धन,सैनिक साजो सामान तथा हथियार मुहैया करवाने के अलावा व्यापक सैनिक प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की. इन्ही इस्लामी सैनिक लडाकों के समूहों ने कालांतर में अल-कायदा और तालिबान को जन्म दिया जिन्होने अफगानिस्तान से सोवियत समर्थित अफगान सरकार का पतन होने के बाद अपनी सारी ऊर्जा और शक्ति सैद्धांतिक विरोधों के चलते पश्चिम जगत के विरुद्ध केंद्रित कर दी और उनके लिए भस्मासुर बन गए. अल-कायदा द्वारा ट्विन टावर पर हमला करने के बाद ही यू.एस.ए. स्थिति की गंभीरता को समझ सका और अल-कायदा तथा अफगान तालिबानियों के खिलाफ लडाई शुरू की. पर इसके लिए एक बार फिर पाकिस्तान को ही बेस के तौर पर इस्तेमाल किया गया. तालिबानियों का एक समूह इस कारण पाकिस्तान के विरुद्ध हो गया और वहाँ हमले आयोजित करने लगा तथा पाकिस्तान के लिए भस्मासुर की भूमिका निभा रहा है.
पाकिस्तान ने पश्चिम जगत से मिली सहायता के एक बडे हिस्से को जम्मू काश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों को बढावा देने तथा वहां दहशत फैलाने वाले समूहों को तैयार करने के लिए किया. आगे चलकर भारत विरोधी आतंकवादी गतिविधियों का संचालन पाक सेना का गुप्तचर संगठन आई.एस.आई. करने लगा जिसने भारत में आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने के लिए अनेक समूह तैयार किये और "थाउजैंड कट्स" की नीति कार्यान्वित की.परिणामस्वरूप इस्लाम के नाम पर होने वाली आतंकी गतिविधियों का भारत सबसे बडा शिकार है.
आज इस्लाम के नाम पर आतंक फैलाने वाले संगठन कैंसर का रूप अख्तियार कर चुके हैं जिन्होने पूरे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है. इनके अनेक रूप,नाम और शाखाएं हैं. अमेरिका में 9/11 की घटना के बाद कोई बडी आतंकवादी घटना नहीं घटी है पर भारत जैसे देश क्या करें जो अमेरिका जितने सक्षम नहीं हैं तथा आतंकवाद की नर्सरी पाकिस्तान के पडोसी होने के कारण इसकी जद और चपेट में सबसे पहले आते हैं.
भारतवासियों तथा पश्चिम एशिया के निवासियों में पश्चिमी जगत विशेषकर अमेरिका के लोग फर्क नहीं कर पाते हैं. इस कारण इस्लाम के नाम पर होने वाली आतंकी गतिविधियों के कारण अमेरिका जैसे देशों में इस्लामी जगत के प्रति जो नफरत का भाव पनप रहा है उसका भी शिकार भारतीय हो रहे हैं. हाल में ही कोलम्बिया युनिवर्सिटी के एक फैकल्टी प्रभजोत सिंह पर उन्हें "ओसामा","टेररिस्ट" आदि कह कर हमला किया गया. अमेरिका में विशेषकर सिखों पर ऐसे कई हमले हो चुके हैं. मिस अमेरिका चुनी गई भारतीय मूल की नीना के बारे में भी नस्ली टिप्पणियाँ की गईं. कुल मिलाकर भारतवासियों के लिए इधर कुआँ उधर खाईं वाली स्थिति है.
मैंने अपनी बात की शुरुआत में प्रश्न उठाया था कि इस्लाम के नाम पर चलाए जा रहे आतंकी अभियानों का इलाज क्या है .लोगों के इस पर अलग-अलग विचार होंगे. पर मुझे लगता है कि इस बीमारी का सबसे कारगर इलाज भी इस्लाम में ही निहित है. यदि मुस्लिम धार्मिक संस्थान तथा धार्मिक रहनुमा सामान्य तौर पर आतंकवाद को इस्लाम के खिलाफ बता देने के बजाय हर आतंकवादी घटना होने के बाद उसके खिलाफ फतवा जारी करें, घटित आतंकवादी घटना को इस्लामी शिक्षाओं के खिलाफ घोषित करें तथा इनमें भाग लेने वालों के इस्लाम से निष्कासन की व्यवस्था करें तो मेरे विचार से इन पर काफी कुछ काबू पाया जा सकता है.
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