मोदीजी द्वारा गाँधी - जयंती से आरंभ किए गए स्वच्छता अभियान के संदर्भ में माननीय प्रधानमंत्रीजी का ध्यान समाज के एक वर्गविशेष की तरफ दिलाना चाहता हूँ जो समाज में हाशिए पर होने के बावजूद इस कार्य में सर्वाधिक योगदान करता है.यह तबका है कूडा-कचरा बीनने वालों का. चार पैसे पाने की आशा में इस वर्ग के लोग इस कार्य के साथ संलग्न बीमारियों के खतरे की परवाह किए बिना कचरा बीनने के काम में लगे रहते हैं. कई बार इनमें बच्चे होते हैं जिन्हें शायद बाल श्रम नियंत्रण कानून के अनुसार काम नहीं करना चाहिए पर पेट की आग इन्हें काम करने के लिए मजबूर करती है. आज से आठ-नौ वर्ष पूर्व मैं बरेली में रहा करता था. मेरे घर से कुछ आगे जाकर म्युनिसिपैलिटी की कचरागाडी का एक कैरियर रहा करता था जिसमें लोग कचरा डाला करते थे .बहुत सा कचरा बाहर भी निकल कर पडा रहता था एक परिवार भोर में ही आकर वहाँ कचरा बीनने में लग जाता था. एक बुजुर्ग जो शायद बच्चों का पिता था और साथ में चार-पाँच छोटे बच्चे रहते थे. यह बच्चे उक्त स्थान पर कचरा बीनने के बाद शायद पास-पडोस के दूसरे कचरे के ढेरों की तरफ चले जाते थे. बच्चे श्याम वर्ण के होने के बावजूद सुंदर थे और उन्हें देखकर मैं सोचता कि शायद यही जरा साफ-सुथरे और किसी विद्यालय में होते तो कितने अच्छे लगते. एक दिन मेरी श्रीमतीजी कुछ कचरा उक्त स्थान पर डालने गईं और जब उन बच्चों को कचरा छाँटते देखा तो व्यथित हुईं क्योंकि वहाँ बहुत सी ऐसी सामग्री पडी थी जो बच्चों को नहीं छूना चाहिए. इसके बाद मेरी श्रीमतीजी उन बच्चों को बुलाकर कई बार खाने-पीने का सामान दे दिया करती थीं.
मैं माननीय प्रधानमंत्रीजी से अनुरोध करता हूँ कि स्वच्छता के कार्य में इस वर्ग के लोगों द्वारा किए जा रहे योगदान को देखते हुए ( भले ही वे ऐसा मजबूरीवश कर रहे हों ) इन्हें बूट तथा दस्ताने आदि प्रदान किए जाएं तथा इन्हें सुरक्षित ढंग से कचरा बीनने का तरीका बताया जाए. साथ ही इनके बच्चों के लिए अनौपचारिक रूप से शिक्षा देने की व्यवस्था की जाए क्योंकि इनके लिए औपचारिक रूप से विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करना शायद पारिवारिक हालातों के कारण संभव न हो. साथ ही कचरे का संग्रहण यदि आरंभिक या घरों के स्तर से ही चार भागों : 1.-सामान्य कचरा , 2.- बायोडिग्रेडेबल 3.- जूठन एवं खाद्य 4.- जोखिम वाले पदार्थ (Hajarduous material)_ में अलग-अलग किया जाए तथा ऐसा करने के बारे में लोगों को शिक्षित किया जाए तो यह कचरा बीनने वालों के साथ-साथ गाय एवं एवं अन्य पशुओं के लिए भी अच्छा होगा जो खाद्य सामग्री के साथ तमाम सारा पॉलिथिन खा जाते हैं. इन कार्यों हेतु एन. जी. ओ. संस्थाओं की मदद ली जा सकती है.साथ ही म्युनिसिपैल्टियों को भी इस दिशा में सक्रिय प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.
मैं माननीय प्रधानमंत्रीजी से अनुरोध करता हूँ कि स्वच्छता के कार्य में इस वर्ग के लोगों द्वारा किए जा रहे योगदान को देखते हुए ( भले ही वे ऐसा मजबूरीवश कर रहे हों ) इन्हें बूट तथा दस्ताने आदि प्रदान किए जाएं तथा इन्हें सुरक्षित ढंग से कचरा बीनने का तरीका बताया जाए. साथ ही इनके बच्चों के लिए अनौपचारिक रूप से शिक्षा देने की व्यवस्था की जाए क्योंकि इनके लिए औपचारिक रूप से विद्यालयों में जाकर शिक्षा ग्रहण करना शायद पारिवारिक हालातों के कारण संभव न हो. साथ ही कचरे का संग्रहण यदि आरंभिक या घरों के स्तर से ही चार भागों : 1.-सामान्य कचरा , 2.- बायोडिग्रेडेबल 3.- जूठन एवं खाद्य 4.- जोखिम वाले पदार्थ (Hajarduous material)_ में अलग-अलग किया जाए तथा ऐसा करने के बारे में लोगों को शिक्षित किया जाए तो यह कचरा बीनने वालों के साथ-साथ गाय एवं एवं अन्य पशुओं के लिए भी अच्छा होगा जो खाद्य सामग्री के साथ तमाम सारा पॉलिथिन खा जाते हैं. इन कार्यों हेतु एन. जी. ओ. संस्थाओं की मदद ली जा सकती है.साथ ही म्युनिसिपैल्टियों को भी इस दिशा में सक्रिय प्रयास करने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए.
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