-गजल-
नए हैं कई चेहरे जो अनजाने दिखाई देते हैं
पर कुछ तो हैं पहचाने जो अपने दिखाई देते हैं।।
हसरत से देखता हूँ अपने उस पुराने घर को
ईद बिना भी लोग बेइंतिहा शाद दिखाई देते हैं।।
सारे के वो सारे हैं बाजार-ए-शहर के बख्शी
आज उनके हाथ बख्शीशों से भरे दिखाई देते हैं।
जीत का सेहरा जब बँधा है सर पर उनके
आज जनाब वो फैजमआब दिखाई देते हैं ।।
लालींलब कितने थे देखे उस हुस्न भरे नगर में
आज हमें फराखसीने भी दिखाई देते हैं।।
उस शहर में कभी फलकजनाब थे "संजय"
जहाँ अब फरहमंद फलकताज दिखाई देते हैं।।
-संजय त्रिपाठी
नए हैं कई चेहरे जो अनजाने दिखाई देते हैं
पर कुछ तो हैं पहचाने जो अपने दिखाई देते हैं।।
हसरत से देखता हूँ अपने उस पुराने घर को
ईद बिना भी लोग बेइंतिहा शाद दिखाई देते हैं।।
सारे के वो सारे हैं बाजार-ए-शहर के बख्शी
आज उनके हाथ बख्शीशों से भरे दिखाई देते हैं।
जीत का सेहरा जब बँधा है सर पर उनके
आज जनाब वो फैजमआब दिखाई देते हैं ।।
लालींलब कितने थे देखे उस हुस्न भरे नगर में
आज हमें फराखसीने भी दिखाई देते हैं।।
उस शहर में कभी फलकजनाब थे "संजय"
जहाँ अब फरहमंद फलकताज दिखाई देते हैं।।
-संजय त्रिपाठी
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