देश के तमाम लोग कह रहे हैं कि एन. श्रीनिवासन साहब बी. सी. सी. आई. के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दें. पर आखिर क्यों ? जमाई के द्वारा किया गया पाप श्वसुर के सर क्यों मढ रहे हैं आप लोग ? जमाई तो सदियों से श्वसुर की लुटिया डुबोते आए हैं. सबसे पहले तो प्राचीनकाल में "स्यामंतक" हीरे की खोज में निकले हमारे भगवान श्रीकृष्ण ने जाम्बवान को मुष्टियों के प्रहार से अधमरा कर दिया फिर उनकी सुपुत्री जाम्बवती को अपनी अर्धांगिनी बनाने के लिए भी सहमति प्रदान कर दी. कालांतर में पृथ्वीराज चौहान दिनदहाडे शेष भारत के राजाओं के सामने इस बात को नजरअंदाज करते हुए कि जयचंद उनका मौसेरा भाई था और इस नाते संयोगिता रिश्ते में उनकी भतीजी ही थी, संयोगिता को घोडे पर बिठाकर भगा ले गए; भले ही देश के हक में उनकी इस हरकत का अंजाम बुरा हुआ. आधुनिक इतिहास के आरंभिक दौर में मीर कासिम ने मीरजाफर को बंगाल की नवाबी से बेदखल करवा कर गद्दी कब्जियाई और ज्यादा पीछे न जाएं तो यही कोई बीस-इक्कीस साल पहले चंद्राबाबू नायडू ने एन.टी रामाराव का तख्तापलट कर खुद मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल ली. अगर भगवान श्रीकृष्ण को छोड दें जिन्होने खुल्लमखुल्ला जाम्बवान को चैलेंज किया था (आखिर वो तो भगवान थे न), तो बाकी सबने श्वसुरों को इस बात का कोई इमकान न होने दिया कि वे पलीता लगाने वाले हैं और जब आतिशबाजी शुरू हुई तो पहले तो उन्हें(श्वसुरजन को ) यह समझ में ही नहीं आया कि कि उसका कर्ता-धर्ता कौन है. तो कुल कहने का आशय यह है साहब, कि ये सोलह आने संभव है कि बेटे समान प्रिय दामाद क्या कर रहा है इसका कुछ भी भान श्रीनिवासनजी को न रहा हो. आप कहते हैं कि कोडाइकोनाल में दो दिन पहले तक तो दोनो साथ-साथ थे और आनंद मना रहे थे. तो आप कहते रहिए साहब!अब आप क्या उम्मीद करते हैं कि पृथ्वीराज, मीर कासिम और चंद्राबाबू की श्रेणी का दामाद अपने तुरुप के पत्ते श्वसुरजी को दिखाकर कहेगा-" पिताजी देखिए ,अगली चाल में मैं इसे डालने वाला हूँ." तो साहब आप श्रीनिवासन साहब की इस बात पर पूरा भरोसा रखिए कि वह दामाद जिसे उन्होने विवादों से बचने के लिए चेन्नई सुपर किंग के मालिक के रूप में प्रचारित करवा रखा था, लाखों-करोडों रूपए आई पी एल की बेटिंग पर लगा रहा था,फिक्सिंग कर रहा था पर उन्हें कुछ भी मालूम नहीं था. जब बंसल साहब का भांजा करोडों का लेन-देन कर रहा था और बंसल साहब को कुछ भी मालूम नहीं था तो यह कोई अजूबे की बात नहीं कि श्रीनिवासन साहब को कुछ भी मालूम नहीं था. अब इस देश में यही हो रहा है , माँ-बाप और सास-श्वसुर की पूरी एक जमात धृतराष्ट्र बन चुकी है. उनके बेटे, दामाद, भतीजे और भांजे उनकी नाक के नीचे क्या कर रहे हैं उन्हे मालूम नहीं रहता.मांएं कहती हैं -उनका बेटा भोला भाला है,वो कोई गलत काम कर ही नहीं सकता. न यकीन हो तो पिछले चर्चित बलात्कार के मामलों में सारे आरोपियों की मांओं के बयान पढ लीजिए. तो साहब मैं बार-बार कहता हूँ कि श्रीनिवासन साहब को यह बिलकुल मालूम नही था कि उनका दामाद क्या कर रहा है.
फिर मेरियप्पन का कहना है कि उसे दारापुत्र विंदू ने बहकाया
है.बच्चा है बेचारा, आ गया बहकावे में! श्रीनिवासन साहब का कहना है कि
मेरियप्पन क्रिकेट एंथूसिएस्ट है. इतना भी आप लोग नहीं समझते. वह तो अपने
एंथूसियाज्म में महज कौतूहलवश चेन्नई सुपर किंग की टीम के साथ-साथ घूम
रहा था. अब अगर लोग उसे चेन्नई सुपर किंग का मालिक समझने लगे ,राजीव
शुक्ला उसे यही मान कर ई-मेल भेजने लगे तो इसमें न तो श्रीनिवासन की कोई
गलती है और न ही मेरियप्पन की .
आप कहते हैं कि अगर श्रीनिवासन साहब को दामाद की करतूतों के
बारे में नहीं भी मालूम था तो भी वह नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दें. आखिर
क्यों दें भाई? कौन है इस देश में जो नैतिक आधार पर इस्तीफा दे रहा है?
लालबहादुर शास्त्री की बात करते हो,अरे वो जमाना चला गया भाई! क्यों पुरानी
बातों को कलेजे से चिपकाए बैठे हो? भूल जाओ नैतिकता-फैतिकता! अब तो जब तक
कुर्सी पर से धकियाया नहीं जाता या हाथ पकड कर ऐंठा नहीं जाता तब तक कोई
कुर्सी नही छोडता. फिर श्रीनिवासन साहब ही आपको मिले हैं नैतिकता का पाठ
पढाने के लिए. जब इस आई. पी. एल. का आगाज ही नीलामी के साथ होता है
जिसमें खिलाडियों पर बोली लगती है और जिसे पहली बार देख कर एक नीलाम हो
रहे विदेशी खिलाडी ने कहा था-"आई वाज फीलिंग लाइक ए काऊ",तो किस नैतिकता
की बात आप करते हैं? आई.पी.एल. की सफलता के पीछे मार्केटिंग के सारे
नुस्खे हैं. मार्केटिंग का मूलमंत्र है- पैसा लगाओ और पैसा कमाओ ,उसके लिए
जो भी हथकंडा जरूरी हो अपनाओ :फनफेयर ,चीयरलीडर और पार्टियाँ ,ये सब वही
तो हथकंडे थे. आई. पी. एल. तो एक बिकाऊ माल है,खाली स्पोर्ट्स-स्पोर्ट्स आप
क्या लगाए बैठे हो? श्रीनिवासन साहब का कहना है -"आई कांट बी बुलडोज्ड इन
टू रिजाइनिंग". तो आप लोगों को ये मालूम नहीं है कि श्रीनिवासन साहब खुद
बुलडोजर हैं. आपकी क्या औकात कि उन्हें बुलडोज करें. ये उनकी ही हैसियत थी
कि उन्होंने ये कानून ही बदलवा दिया था कि बी. सी. सी. आई. के
पदाधिकारी आई. पी. एल. टीमों के मालिक नहीं बन सकते. तो साहब वे अपनी
मनमर्जी करते हैं और ये उनकी आदत में शुमार है. बी. सी. सी. आई. के किसी
सदस्य या पदाधिकारी की हिम्मत उनके आगे चूँ करने की नहीं है. उसे उन्होंने
कौरवों की सभा में तब्दील कर दिया है जहाँ बडे-बडे दिग्गज बैठे हैं पर सारी
नैतिकता भूल कर चुपचाप बैठे हैं. वे राजनीतिक सूरमा भी जो बात-बात पर
प्रतिद्वंदी दल के लोगों से इस्तीफे की माँग करते हैं.
श्रीनिवासन साहब ने जब कहा कि कानून अपना काम करेगा और दोषियों
को सजा मिलेगी तो उन पर भरोसा करना चाहिए था और न्यायालय को इसमें दखल देने की क्या जरूरत थी, भले ही उनके दामाद के बारे में
आने वाली रिपोर्ट और उनकी आई. पी. एल. टीम (दुनिया जानती है कि चेन्नई
सुपर किंग किसकी टीम है) के बारे में उन्हें खुद ही फैसला करना था. आप लोगों को खामखाँ उनकी नीयत पर शक नहीं करना चाहिए था. उन्हें शेरशाह सूरी की श्रेणी का मानिए
जिसने अपने बेटे द्वारा किसी की पत्नी के ऊपर थूक दिए जाने पर उसके लिए भी
इसी तरह के बर्ताव का प्रावधान किया था. भले ही आज के भारत में इस तरह के
सारे आश्वासन झूठे साबित हो रहे हों पर आप जगजीत सिंह की गाई गजल के
मुताबिक झूठे वादे पर यकीन करके अपनी उम्र बढा लीजिए. आखिर आने वाले साल तक
आप ये सारी बातें भूल चुके होंगे और किसी न किसी आई. पी. एल. टीम को
सपोर्ट कर उसकी जय-जयकार में लगे होंगे.इस देश में तमाम सारे गम हैं और
क्रिकेट तथा आई पी एल का कांबीनेशन उन गमों को भुलाने की सबसे अच्छी दवा
है.
अब इस न्यायिक व्यवस्था को क्या कहा जाए जिसने आज खुल्लमखुल्ला श्रीनिवासन साहब का नाम उजागर कर उन पर तोहमत लगा दी है.
अब इस न्यायिक व्यवस्था को क्या कहा जाए जिसने आज खुल्लमखुल्ला श्रीनिवासन साहब का नाम उजागर कर उन पर तोहमत लगा दी है.
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