~-गजल-~
तेरे अफसाने से दिल में ये पिघलता सा क्या है
तेरे अफसाने से दिल में ये पिघलता सा क्या है
कौन सा गुबार ये हलक में अटकता सा क्या है
घूँघट में छिपे चेहरे पर दफन कितनी शिकनें हैं
परदे से बाहर आने को ये मचलता सा क्या है
जुगनू है, गुहर है या फिर दर्द ए आब कह लो
नम आँखों से ये रह-रह ढलकता सा क्या है
दिलोदिमाग के मोम को ये किसने दे दी आँच
सीने के अंदर ये कुछ-कुछ टहकता सा क्या है
बजाए नींद के आँखों में अश्क आ जाएं हुजूर
कहानियाँ ये कैसी विधाता रचता सा क्या है
ढला हुआ मंजर एक बार फिर से जिंदा हो गया
उसकी कलम से'संजय'जादू छलकता सा क्या है
-संजय त्रिपाठी
(आदरणीय कमलाकान्त त्रिपाठी जी द्वारा इन दिनों लिखे जा रहे उपन्यास से प्रेरित होकर)
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