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सोमवार, 25 मई 2020

निराला जी की जीवनसंगिनी मनोहरा देवी का स्पेनिश फ्लू महामारी में निधन एवं उनके जीवन पर प्रभाव

निराला जी को कवि बनाने वाली जीवनसंगिनी मनोहरा देवी का  उनके जीवन पर प्रभाव 


कितने वर्णों में, कितने चरणों में तू उठ खड़ी हुई,

कितने बंदों में, कितने छंदों में तेरी लड़ी गई,

कितने ग्रंथों में, कितने पंथों  में देखा, पढ़ी गई-

             तेरी अनुपम गाथा

मेरे कवि ने देखे तेरे स्वप्न सदा अविकार

          --अनामिका, प्रिया में निराला जी


        सन 1918-19 के दौरान भारत में फैली स्पेनिश फ्लू महामारी में देश के कम से कम एक करोड़ बीस लाख  से एक करोड़ तीस लाख के बीच जन काल के ग्रास में समा गए थे। उस समय के मुंबई प्रांत और संयुक्त प्रांत की एक बड़ी आबादी को इस महामारी ने प्रभावित किया था। हिंदी साहित्य में छायावाद के स्तंभ कवियों में से एक माने जाने वाले महाप्राण निराला का पूरा परिवार इस महामारी की चपेट में आ गया था।


         निराला जी का परिवार उन्नाव जिले के गढ़ाकोला गांव का निवासी था, यद्यपि वे अपने पिताजी के साथ बंगाल के महिषादल में रहा करते थे जहां उनके पिता पं. राम सहाय तिवारी, महिषादल के राजा की सेवा में थे । निराला जी की विदुषी पत्नी मनोहरा देवी  का मायका रायबरेली नगर से 25 किलोमीटर दक्षिण डलमऊ कस्बे में था। एक संभ्रांत परिवार से संबंध रखने वाले उनके पिता पंडित रामदयाल स्वयं विद्वान थे और विद्वज्जनों का सम्मान करते थे । मनोहरा देवी की माता का नाम पार्वती देवी था । साहित्यानुरागी मनोहरा रामचरित मानस पर विशेष अधिकार रखती थीं। वे हारमोनियम एवं सितार बहुत अच्छा बजाती थीं तथा उनके द्वारा किया जाने वाला रामचरित मानस का सस्वर पाठ लोगों के मन को हर लेता था। निराला जी ने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास "कुल्लीभाट" में लिखा है कि उन्होंने महिलाओं के बीच में पत्नी को जब  "श्री रामचंद्र कृपालु भजु मन, हरण भव भय दारुणम् " गाते हुए सुना ( जब वे उनसे तीन-चार दिनों की प्रथम भेंट के चंद दिनों बाद पहली बार ससुराल गए थे। निराला जी के गांव के आसपास प्लेग की महामारी फैले होने के कारण मनोहरा देवी के पिताजी उन्हें ससुराल के लिए विदा करने के पश्चात शीघ्र वापस लिवा लाए थे ) तो लगा कि जैसे उनके गले में मृदंग बज रहे हैं। निराला जी लिखते हैं- "श्रीमती जी का गाना अच्छा, हिंदी अच्छी। मेरी इन दोनों विषयों की ताली तब तक नहीं खुली। संसार में हारने की सी लाज नहीं। स्त्री सृष्टि की सबसे बड़ी हार है, पुरुष की जीत की सबसे बड़ी प्रमाण-प्रतिमा, इससे मैं हारा।"  साहित्य और संगीत पर पत्नी का अधिकार देख ,निराला जी ने वापस कोलकाता जाने का निश्चय कर अपने पिताजी को पत्र द्वारा सूचित कर दिया और ससुराल वालों को भी बता दिया ।


         बंगाल में पालन-पोषण होने तथा बंगला माध्यम से शिक्षा-दीक्षा होने के कारण निराला जी स्वाभाविक रूप से बंगला भाषा एवं संस्कृति को श्रेष्ठ समझते थे तथा बंगला को अपनी मातृभाषा के समान समझकर उस पर गर्व भी करते थे। मनोहरा देवी के रामचरितमानस पाठ ने निराला जी को यह सोचने के लिए विवश किया कि हिंदी, बंगला से कमतर नहीं है। यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मनोहरा देवी ने निराला जी को हिंदी के सौंदर्य का ज्ञान कराया और विधिवत हिंदी का अध्ययन करने के लिए प्रेरित किया। 


         बंगला संस्कृति में  रचे-बसे निराला तदानुरूप सामिष थे और बाल्यकाल से ही विद्रोही प्रकृति के होने के कारण बहुत सी प्रचलित मान्यताओं का विरोध करते थे तथा उनके विपरीत आचरण करते थे। मनोहरा देवी सनातनी ब्राह्मण संस्कारों में रची बसी थीं। उन्होंने निराला जी के सामने तमाम सारे धर्मग्रंथों के उद्धरण रखकर उन्हें बताया कि वह मांसभक्षण कर पाप के भागी बन रहे हैं। निराला जी ने पाप के भय से मांसभक्षण छोड़ दिया। इसके कुछ दिनों बाद एक बुजुर्ग ब्राह्मण ने निराला जी से उनके शरीर पर छा रही दुर्बलता का कारण पूछा। निराला जी ने इसका कारण मांसाहार छोड़ना बताया तथा यह भी बता दिया कि उन्होंने मांसाहार पाप के भय से छोड़ा है। बुजुर्ग ब्राह्मण ने निराला जी से कहा कि वे मांसाहार किया करें, कान्यकुब्ज ब्राह्मणों के लिए यह पाप नहीं है। इस पर निराला जी ने बुजुर्ग ब्राह्मण से लिखित उद्धरण मांगा। बुजुर्ग ब्राह्मण ने उनसे कहा कि वंशावली में लिखा हुआ है, वह इसे देख लें। तत्पश्चात निराला जी ने पुन: मांस खाना आरंभ कर दिया। मनोहरा देवी ने उनसे कहा कि वे जिस दिन भी मांस खाएंगे, बहुत सारे प्रतिबंध होंगे जिनका उन्हें पालन करना होगा। निराला जी ने कहा कि वे रोज ही मांस खाएंगे। मनोहरा देवी ने कहा कि फिर उन्हें मायके भेज दिया जाए। स्वयं निराला जी ने उल्लेख किया है कि इसके पश्चात यदि वे चार महीने निराला जी के पास रहतीं तो आठ महीने मायके में रहतींं। इस सबने मनोहरा देवी की निर्बलता में योगदान दिया था और जब स्पेनिश फ्लू की महामारी आई तो उनका शरीर उसे सह पाने के लायक नहीं रह गया था।


         परंतु हिंदी साहित्य को निराला जैसा महाकवि प्रदान करने का श्रेय निश्चित रूप से मनोहरा देवी को ही है, जिन्होंने पति को हिंदी को जानने-समझने और उसका अध्ययन करने की चुनौती दी। इस पृष्ठभूमि ने कालांतर में निराला जी को हिंदी के शीर्षस्थ साहित्यकार और कवि के रूप में स्थापित करने का बीजारोपण किया । यह कहना अनुचित न होगा कि मनोहरा देवी का स्थान उनके जीवन में प्रकाशस्तंभ के समान है तथा उन्होंने निराला जी के  जीवन को उसी प्रकार नई दिशा दिखाई जिस प्रकार विद्योत्तमा ने कालिदास को और रत्नावली ने तुलसीदास को एक नए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया । 


        निराला जी ने "कुल्लीभाट" में लिखा है-  श्रीमती जी मेरे अधिकार में पूरी तरह नहीं आ रही थीं, अर्थात शिष्यत्व स्वीकार नहीं कर रही थीं, वह समझती थीं कि मैं और जो कुछ जानता  होऊं, हिंदी का पूरा गंवार हूं। …….मुझे भी श्रीमती जी की विद्या की थाह नहीं थी। आखिर, एक दिन बात लड़ गई। 

मैंने कहा - "तुम हिंदी-हिंदी करती हो, हिंदी में क्या है"

उन्होंंने कहा- "जब तुम्हें आती ही नहीं तब कुछ नहीं है"। मैंने कहा - " हिंदी मुझे नहीं आती?"

उन्होंने कहा- "यह तो तुम्हारी जबान बतलाती है। बैसवाड़ी बोल लेते हो। तुलसीकृत रामायण पढ़ी है, बस? तुम खड़ी बोली को क्या जानते हो ?"

…….श्रीमती जी पूरे उच्छवास से खड़ी बोली के धुरंधर साहित्यिकों के नाम गिनाती गईं।


         निराला जी की अवस्था उस समय 16 वर्ष की थी। अत: यह घटना सन 1896 में उनके जन्म को देखते हुए सन् 1912 की होनी चाहिए। ' राम की शक्ति पूजा' में राम की प्रेरणा के रूप में सीता जी का चित्रण तथा ' तुलसीदास' में तुलसीदास जी की प्रेरणा रूप में रत्नावली का चित्रण - दोनों पर ही निराला जी के मन में बसी मनोरमा देवी की प्रेरणात्मक छवि का प्रभाव है। मनोरमा देवी की प्रेरणा से निराला जी ने अच्छी तरह से हिंदी व्याकरण सीखा और हिंदी में रचना लेखन का प्रयास आरंभ किया । अपने आत्मकथात्मक उपन्यास "कुल्लीभाट" में निराला जी ने 'सरस्वती' और 'मर्यादा' पत्रिकाएं मंगा कर , पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी को गुरु मानकर एकलव्य की तरह अच्छी तरह हिंदी व्याकरण सीखने का उल्लेख किया है- " पढ़कर भाव अनायास समझने लगा, पर लिखने में अड़चन   पड़ती थी। ब्रजभाषा या अवधी, जो घर की जबान थी, खड़ी बोली के व्याकरण से भिन्न है।……..लेकिन मेहनत सब कुछ कर सकती है। मैं रात दो-दो, तीन-तीन बजे तक सरस्वती लेकर एक-एक वाक्य संस्कृत, अंग्रेजी और बंगला व्याकरण के अनुसार सिद्ध करने लगा।"


         उन्होंने 'जूही की कली' कविता , जो उनकी प्रथम प्रकाशित कविता है , की रचना  मनोहरा देवी के जीवन काल में ही की और इसे छपने के लिए सरस्वती पत्रिका में भेजा। पर पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा यह रचना अस्वीकृत कर दी गई और कालांतर में यह माधुरी पत्रिका में छपी। मनोहरा देवी के निधन के उपरांत रची गई उनकी कविताओं में युवा मन का श्रंगारिक जोश नहीं दिखाई पड़ता है। वहां पर विरह, अतीत, छायावाद, विप्लव और क्रांति के स्वर ही मिलते हैं। 


         ससुराल आने - जाने के सिलसिले में ही निराला जी का परिचय डलमऊ कस्बे के ही कुल्ली भाट से हुआ जो उनके मित्र बन गए। अपने आत्मकथात्मक उपन्यास "कुल्लीभाट" का नायक उन्होंने इनको ही बनाया ।


         सन 1918 में स्पेनिश फ्लू महामारी का शिकार होकर निराला जी की प्रेरणा मनोहरा देवी उनके जीवन से सदा के लिए विदा हो गईं। मनोरमा देवी का इलाज करने वाले डॉक्टर ने निराला जी को बताया कि उनके फेफड़े कफ से जकड़ गए थे और उन्होंने दवा आदि लेने से इनकार कर दिया था। स्पेनिश फ्लू महामारी ने निराला जी के जीवन को किस प्रकार प्रभावित किया इसका उल्लेख उन्होंने अपने उपन्यास "कुल्लीभाट" में किया है- 


" इसी समय इनफ्लुएंजा का प्रकोप हुआ । पिताजी एक साल पहले गुजर चुके थे इसीलिए नौकरी की थी। नहीं तो हर लड़के की तरह दुनिया को सुखमय देखते रहने के स्वप्न लिए रहता, कम से कम लिए रहूंगा, यही सोचता था।


तार आया - तुम्हारी स्त्री सख्त बीमार है, अंतिम मुलाकात के लिए आओ।' मेरी उम्र तब बाईस  साल थी। स्त्री का प्यार उसी समय मालूम दिया जब वह स्त्रीत्व छोड़ने को थी। अखबारों से मृत्यु की भयंकरता  मालूम हो चुकी थी। गंगा के किनारे आ कर प्रत्यक्ष की। गंगा में लाशों का ही जैसे प्रवाह हो। ससुराल जाने पर मालूम हुआ,  स्त्री गुजर चुकी है ; दादाजाद बड़े भाई देखने के लिए आकर बीमार होकर घर गए हैं। मैं दूसरे ही दिन घर के लिए रवाना हुआ। जाते हुए रास्ते में देखा,  मेरे दादाजाद बड़े भाई साहब की लाश जा रही है। रास्ते में चक्कर आ गया। सिर पकड़ कर बैठ गया।


घर जाने पर भाभी बीमार पड़ी दिखीं। पूछा, " तुम्हारे दादा को कितनी दूर ले गए होंगे?"  मैं चुप हो गया। उनके चार लड़के और एक दूध-पीती लड़की थी। उस समय बड़ा लड़का मेरे साथ रहता था, बंगाल में पढ़ता था। घर में चाचा जी अभिभावक थे। भाई साहब की लाश निकलने के साथ चाचा जी भी बीमार पड़े । मुझे देखकर कहा, "तू यहां क्यों आया?"


पारिवारिक स्नेह का वह दृश्य कितना करुण और हृदयद्रावक था,  क्या कहूं? स्त्री और दादा के वियोग के बाद हृदय पत्थर हो गया।  रस का लेश न था। मैंने कहा, "आप अच्छे हो जाएं, तो सबको लेकर बंगाल चलूं।"


उतनी उम्र के बाद यह मेरा सेवा का पहला वक्त था। तब से अब तक किसी-न-किसी रूप से फुर्सत नहीं मिली।  दादा के गुजरने के तीसरे दिन भाभी गुजरीं। उनकी दूध-पीती लड़की बीमार थी। रात को उसे साथ लेकर सोया। बिल्ली रात-भर आफत किए रही। सुबह उसके प्राण निकल गए। नदी के किनारे उसे ले जाकर गाड़ा ।  फिर चाचाजी ने प्रयाण किया। गाड़ी गंगा तक जैसे लाश ही ढोती रही। भाभी के तीन लड़के बीमार पड़े । किसी तरह सेवा-शुश्रूषा से अच्छे हुए। इस समय का अनुभव जीवन का विचित्र अनुभव है। देखते-देखते घर साफ हो गया। जितने उपार्जन और काम करने वाले आदमी थे, साफ हो गए। चार लड़के दादा के, दो मेरे।  दादा के सबसे बड़े लड़के की उम्र 15 साल, मेरी सबसे छोटी लड़की साल-भर की। चारों ओर अंधेरा नजर आता था।


घर से फुर्सत पाने पर मैं ससुराल गया। इतने दु:ख और वेदना के भीतर भी मन की विजय रही। रोज गंगा देखने जाया करता था। एक ऊंचे टीले पर बैठकर लाशों का दृश्य देखता था। मन की अवस्था बयान से बाहर। डलमऊ का अवधूतटीला काफी ऊंचा, मशहूर जगह है।  वहां गंगाजी ने एक मोड़ ली है। लाशें इकट्ठी थीं। उसी पर बैठकर घण्टों वह दृश्य देखा करता था। कभी अवधूत की याद आती थी, कभी संसार की नश्वरता की।


एक दिन पूछ-पूछ कर कुल्ली वहां पहुंचे।  पहले दुखी थे, मेरे लिए संवेदना लिए हुए थे, देख कर मुस्कुरा दिए- बड़ी निर्मल मुस्कान। मैंने देखा वह सच्चा मित्र है।


कुल्ली ने कहा, " मैं जानता हूं, आप मनोहर को बहुत चाहते थे। ईश्वर चाह की ही जगह मार देता है, होश कराने के लिए। आप मुझसे ज्यादा समझदार हैं, और मैं आपको क्या समझाऊं ?  पर यह निश्चित रूप से समझिएगा, भोग होता है, अच्छा वह है, जिसका अंत अच्छा हो।"


मैं अवधूत की कुटी की गड़ी ईंटें देख रहा था। कुल्ली ने कहा, "यहां आप क्यों आए हैं? क्योंकि मृत्यु का दृश्य आपने देखा है।  मृत्यु के बाद मन शांति चाहता है। जो मर गए हैं, वे भी शांति प्राप्त कर चुके हैं। यह अवधूत-टीला है। बहुत पहले यहां एक अवधूत रहते थे।  बस्ती से यह जगह कितनी दूर है! मरघट से भी दूर है, यानी अवधूत मृत्यु के बाद जैसे पहुंचे हों। यहां जैसे शांति-ही-शांति हो।"


कुल्ली की बात बड़ी भली मालूम दी। बड़ा सुंदर तत्व जैसे निहित था।  मुझे बड़ा आश्वासन मिला। ऐसी बात इधर मैंने किसी से नहीं सुनी थी।


कुल्ली ने कहा, "चलिए,  रामगिरि महाराज के मठ में दर्शन कीजिए। आप वहां हो तो आए होंगे? "


मैंने कहा, " नहीं ।"


कुल्ली उठे। उनके साथ मैं भी चला गया।


         अपने जीवन की प्रेरणास्रोत के रूप में मनोरमा देवी का उल्लेख करते हुए निराला जी ने लिखा है- जिसकी हिंदी के प्रकाश से, प्रथम परिचय के समय, मैं आंखें नहीं मिला सका, लजाकर हिंदी की शिक्षा के संकल्प से  कुछ काल बाद देश से विदेश (बंगाल- महिषादल) पिता के पास चला गया था, और उस हिंदी-हीन प्रान्त में बिना शिक्षक के 'सरस्वती' की प्रतियां ले कर पद-साधना की, और हिंदी सीखी थी; जिसका स्वर गृहजन,परिजन और पुरजनों की सम्मति में मेरे (संगीत) स्वर को परास्त कर देता था; जिसकी मैत्री की दृष्टि  क्षण-मात्र में मेरी रुक्षता को देखकर मुस्कुरा देती थी, जिसने अंत में अदृश्य होकर, मुझसे मेरी पूर्ण परिणीता की तरह मिलकर मेरे जड़ हाथ को अपने चेतन हाथ से उठाकर दिव्य श्रृंगार की पूर्ति की, वह सुदक्षिणा स्वर्गीया प्रिया प्रकृति दिव्यधामवासिनी हो गई।


गीतिका में उन्होंने लिखा है-

रंग गई पग-पग धन्य धरा

हुई जग जगमग मनोहरा

श्रंगार, रहा जो निराकार,

रस कविता में उच्छ्वसित धार।


सरोज स्मृति में-

गाया स्वर्गीया प्रिया संग-

भरता प्राणों में राग- रंग


परिमल, निवेदन में-

एक दिन थम जाएगा रोदन

तुम्हारे प्रेम अंचल में।

लिपट स्मृति बन जाएंगे कुछ कन

कनक सींचे नयन जल में।


परिमल, प्रिया के प्रति में-

एक बार भी यदि अजान के

अंतर से उठ आ जातीं तुम

एक बार भी प्राणों की तम

छाया में आ कह जातीं तुम

सत्य हृदय का अपना हाल

कैसा था अतीत वह,अब यह

बीत रहा है कैसा काल


        निराला जी लिखते हैं- "कभी अवधूत की याद आती थी, कभी संसार की नश्वरता की । अब पिताजी नहीं,माताजी नहीं, पत्नी नहीं, केवल मैं हूं! केवल मैं! केवल मैं!!" निराला जी ने सारे दुखों से उबर कर स्वयं को संभाला और अपने भविष्य के जीवन संघर्ष में लग गए -

 अभी न होगा मेरा अंत

अभी -अभी ही तो आया है

मेरे वन में मृदुल बसंत।

मेरी जीवन का यह जब प्रथम चरण

इसमें कहां मृत्यु है जीवन ही जीवन

अभी पड़ा है आगे सारा  यौवन !

स्वर्ण किरण करलोलों पर

बहता रहे यह बालक मन



        रोजी- रोटी का संघर्ष, स्वयं को एक साहित्यकार के रूप में स्थापित करने का संघर्ष और परिवार के बच्चों के पालन-पोषण का संघर्ष। बेटे रामकृष्ण और बेटी सरोज की देखभाल करते हुए वे पत्नी से विछोह को भूले हुए थे-

"खण्डित करने को भाग्य-अंक

देखा भविष्य के प्रति अशंक"


         साहित्य के क्षेत्र में आरंभिक  असफलताओं के बादमु क्त छंद और सौंदर्य बोध के बल पर निराला जी ने स्वयं को हिंदी साहित्य के चर्चित कवि के रूप में स्थापित कर लिया। उनका विरोध करने वाले भी थे पर अपने विद्रोही स्वभाव के बलबूते वे उन्हें जवाब देने में  सक्षम थे। अन्य छायावादी कवियों की भांति उनकी कविता पर निराशा नहीं हावी थी , उसमें आशा का स्वर था। परंतु पुत्री सरोज के विवाहोपरांत सन् 1935 में उसका बीमारी से देहावसान हो जाने पर पहली बार निराला जी के काव्य में निराशा के स्पष्ट स्वर दिखाई देते हैं। सरोज स्मृति में लिखी उनकी सुप्रसिद्ध पंक्तियां हैं - 

दु:ख ही जीवन की कथा रही

क्या कहूं आज जो नहीं कही

कन्ये मत कर्मों का अर्पण

करता तेरा तर्पण।





मंगलवार, 19 मई 2020

वर्ष 1918 में भारतवर्ष में स्पेनिश फ्लू का प्रकोप

वर्ष 1918 में भारतवर्ष में स्पेनिश फ्लू का                                 प्रकोप

       द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान वर्ष 1918 में दुनिया के विभिन्न देशों में एक विशेष प्रकार के फ्लू ने भयानक महामारी के रूप में फैलना आरंभ कर दिया था। इस फ्लू को स्पेनिश फ्लू का नाम दिया गया पर इसका अर्थ यह नहीं कि इसका आरंभ स्पेन से हुआ। एक विचार के अनुसार स्पेन के प्रथम विश्वयुद्ध में निरपेक्ष रहने के कारण तथा  स्वतंत्र रूप से रिपोर्टिंग होने के कारण वहां के मामले अधिक प्रकाश में आए और इसे स्पेनिश फ्लू का नाम दे दिया गया। परंतु इस बीमारी ने महामारी का रूप पहले अमेरिका के कन्सास में लिया और वहां से यह बीमारी यूरोप पहुंची तथा यूरोप से इसका आगमन भारत में हुआ। पर प्रथम विश्व युद्ध के दौरान सेंसरशिप होने के कारण यूरोप के इंग्लैंड, फ्रांस जर्मनी आदि देशों ने अपने यहां महामारी की बात छुपाई और सही आंकड़े प्रकाश में नहीं आने दिए। एक स्थान से दूसरे स्थान पर सैनिकों के आवागमन ने इस बीमारी के फैलने में अपना योगदान दिया। भारतवर्ष में इस महामारी की शुरुआत जून 1918 में हुई और 1920 तक यह कभी अधिक प्रकोप और कभी कम प्रकोप के साथ देश में बनी रही। 

        प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेने वाले सैनिकों को लेकर एक जलयान मई,1918 के अंत में लौटा था जिसने मुंबई बंदरगाह पर लंगर डाला। ऐसा माना जाता है कि इस जलयान में संक्रमित सैनिक थे। उनके द्वारा यह महामारी जून, 1918 में मुंबई  और फिर मुंबई से अगस्त 1918 तक पूरे देश में फैल गई। ब्रिटिश सरकार इस बात से सहमत नहीं थी कि यह बीमारी सैनिकों की लाई हुई थी। सरकार का कहना था कि सैनिक ही मुंबई में आकर संक्रमित हो गए थे। सितंबर के अंतिम सप्ताह में मुंबई में यह महामारी  अपने चरम पर पहुंच गई और अनेक मुंबई वासियों के लिए जानलेवा सिद्ध हुई। मध्य अक्टूबर में मद्रास (आज का चेन्नई शहर) और मध्य नवंबर में कोलकाता में इस महामारी ने कहर ढाया।

        इस बीमारी ने सबसे अधिक 20 से 40 की उम्र की युवा जनसंख्या को प्रभावित किया। मरने वालों में महिलाओं का प्रतिशत अपेक्षाकृत अधिक था।  इसका कारण यह था कि उन दिनों महिलाओं की खुराक समुचित नहीं होती थी और कमजोर होने के कारण प्रतिरोधक क्षमता के अभाव में वे आसानी से इसका शिकार बन गईं। 1918 की एक सैनिटरी कमिश्नर रिपोर्ट के अनुसार मुंबई और चेन्नई दोनों ही स्थानों पर 1 सप्ताह के भीतर 200 से अधिक मौतें हुईं। 

        इस वर्ष मानसून भी असफल रहा जिसके कारण अकाल जैसी परिस्थितियां बन गईं। लोगों के पास खाद्य सामग्री का अभाव हो गया। खाने के अभाव में लोग कमजोर हो गए थे। इनमें से  रोजगार की तलाश में बहुत से लोग गांव से शहर की तरफ आए। यह शहर सघन आबादी वाले थे और वहां पर परिस्थितियां बहुत अच्छी नहीं थीं। इस स्थिति ने महामारी के प्रकोप को बढ़ाने में और अधिक योगदान दिया।

        महात्मा गांधी का साबरमती आश्रम भी इस बीमारी की चपेट में आ गया और वे स्वयं जो उस समय 48 वर्ष के थे, इस बीमारी से संक्रमित हो गए। उन्होंने कहा - जीवित रहने में जैसे सारी रुचि समाप्त हो गई है। इस पर एक स्थानीय समाचार पत्र ने लिखा- गांधी जी का जीवन उनका नहीं है,यह भारत का है। इस दौरान गांधीजी ने  पूरी तरह द्रव खाद्य पदार्थों का सेवन किया और वे तथा उनका आश्रम इससे मुक्ति पाने में सफल रहे।

        महामारी ने भारतवर्ष में रहने वाले ब्रिटिश जनों और भारतीयों के बीच का अंतर बिल्कुल स्पष्ट कर दिया था। ब्रिटिश जन इस महामारी से विशेष प्रभावित नहीं हुए। संभवतः इसका कारण यह था कि वे साफ, खुले,हवादार और बड़े घरों में रहते थे। जिन कामों के लिए बाहर निकलने की जरूरत होती, उन कामों को वे नौकरों के माध्यम से संपन्न करवाते थे। समाज के शासक वर्ग और आम जनता के बीच ऐसे भी संपर्क कम ही था।

        देश में ब्रिटिश शासन डेढ़ सौ वर्षो से चल रहा था। पर उस समय की स्वास्थ्य प्रणाली इस बीमारी से निपटने में अक्षम सिद्ध हुई। इस प्रकार की धारणा है कि इस बीमारी के कारण हुई मौतों, उपजे दुख और आई  आर्थिक तंगी ने भारतवर्ष में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध प्रतिकूल भावनाओं के प्रतिफलन में विशेष योगदान दिया। राष्ट्रवादी विचारधारा के एक समर्थक ने लिखा- किसी भी सभ्य देश की सरकार ने बिना कुछ किए धरे अपनी जिम्मेदारियों को इस प्रकार छोड़ नहीं दिया होता, जैसा कि इस भयानक और जानलेवा महामारी के समय ब्रिटिश भारत की सरकार ने किया।

        भारतीय जनता का अनुभव ब्रिटिश जन से अलग था। उस समय प्रकाशित एक पत्र के अनुसार भारतीय जनता ने इतना कठिन समय पहले कभी नहीं देखा था। हर तरफ रूदन ही रूदन था। पूरे देश भर में कोई ऐसा गांव या शहर नहीं था जहां लोगों ने बड़ी संख्या में अपनों को न खोया हो। पंजाब के सैनिटरी कमिश्नर ने लिखा -- शहरों की गलियां मृतकों और मर रहे लोगों से भरी पड़ी थीं। हर तरफ आतंक और भ्रम की स्थिति थी।

       उत्तर भारत और पश्चिमी भारत में इस बीमारी का कहर खासतौर पर बरपा हुआ, विशेषकर मुंबई  तथा संयुक्त प्रांत में। वहां पर मृत्यु दर 4.30 से 6% के मध्य रही। दक्षिण भारत और पूर्व भारत में असर थोड़ा कम था, क्योंकि वहां पर वायरस कुछ देर से पहुंचा था  । इन क्षेत्रों में मृत्यु दर 1.5 से 3% के बीच रही। सितंबर 1918 से दिसंबर 2019 के बीच श्मशानों में 150 से 200 के बीच शव प्रतिदिन आते थे। श्मशान घाट और कब्रिस्तान शवों से पट गए थे। कई स्थानों पर लाशों को उठाने वाला कोई नहीं था और ऐसे लोग गिद्धों तथा सियारों का ग्रास बन गए।

       महामारी के प्रकोप के कारण वर्ष 1919 में भारत की जन्म दर में लगभग 30% की गिरावट आई। इसके परिणामस्वरूप 1911 से 1921 के दशक के लिए भारतवर्ष की जनसंख्या वृद्धि की दर 1.2% रही जो पूरे ब्रिटिश शासन काल में सबसे कम वृद्धि दर थी।


        पूरी महामारी के दौरान कुल मिलाकर 1 करोड़ 20 लाख से 1 करोड़ 30 लाख  के बीच तक लोग कालकवलित हुए। एक अन्य अनुमान के अनुसार प्राण खोने वालों की संख्या 1 करोड़ 70 लाख तक थी और देश की आबादी का 5% से 6% तक स्वर्ग सिधार गए। उस समय पूरी दुनिया की आबादी डेढ़ अरब थी । अनुमानत: पूरी दुनिया में 50 करोड़ लोग इस महामारी से प्रभावित हुए थे तथा 5 से 10 करोड़ के बीच लोगों ने अपने प्राण गंवा दिए। आंकड़े बहुत स्पष्ट न होकर विभिन्न आधार लेकर अनुमान द्वारा निर्धारित किए गए हैं, क्योंकि उस समय  विभिन्न देशों ने इस फ्लू के कारण होने वाली मौतों के आंकड़े छिपाने का प्रयास किया। होने वाली मौतों में भारतीयों का हिस्सा उनकी आबादी के हिस्से के अनुपात में बहुत अधिक था।


        बाद में एक सरकारी समीक्षा रिपोर्ट में तत्कालीन ब्रिटिश भारतीय सरकार की भूमिका पर सवाल उठाते हुए व्यवस्था में सुधार और इसमें विस्तृत भागीदारी की सिफारिश की गई। समाचार पत्रों में इस बात को लेकर सरकार की आलोचना की गई कि महामारी के समय में भी ब्रिटिश भारत की  सरकार का प्र‌शासन संभालने वाले, चारों तरफ फैली महामारी और जनता की तकलीफों की उपेक्षा करते हुए हिल स्टेशनों में अपना समय बिताते रहे। उन्होंने लोगों को भाग्य के भरोसे छोड़ दिया था। 'पेल राइडर : दि स्पेनिश फ्लू ऑफ 1918 ऐन्ड हाऊ इट चेन्ज्ड दि वर्ल्ड' की लेखिका लारा स्पिनी के अनुसार मुंबई के अस्पतालों के सफाई कर्मचारियों ने फ्लू का इलाज करवा रहे ब्रिटिश सैनिकों से दूरी बनाकर रखी । उनके दिमाग में 1886 एवं 1914 के बीच फैले प्लेग और उस दौरान ब्रिटिश जनों द्वारा भारतवासियों की उपेक्षा की स्मृति थी, जिसके कारण 80,00000 भारतीय काल का ग्रास बन गए थे। स्पिनी के अनुसार ब्रिटिश प्रशासन भारतीयों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के प्रति गंभीर नहीं था एवं उपेक्षा का भाव रखता था। स्पेनिश फ्लू की महामारी  तथा इसके कारण होने वाले विनाश के लिए वे बिल्कुल तैयार नहीं थे। प्रथम विश्व युद्ध के कारण देश के बहुत से डॉक्टर और मेडिकल स्टाफ युद्ध स्थलों पर चले गए थे, अतः देश में उनकी भी कमी थी। इस सबकी एक बड़ी कीमत देश को तथा सामान्य जन को चुकानी पड़ी।


        उस समय देश में महामारी से लड़ने में एनजीओ तथा स्वयंसेवियों एवं उनकी संस्थाओं ने विशेष भूमिका निभाई। उन्होंने औषधालय  और छोटे-छोटे अस्पताल खोले जहां मरीजों के इलाज की व्यवस्था की गई। शवों को हटाने की और उनके दाह संस्कार तथा दफनाने की व्यवस्था की गई। कपड़े और दवाओं का वितरण किया गया तथा इस सबके लिए पैसे भी जुटाए गए। कई स्थानों पर नागरिकों द्वारा एंटी इन्फ्लूएंजा कमेटी बनाई गईं। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार - भारतवर्ष के इतिहास में इसके पहले कभी भी विपदा काल में समाज के शिक्षित तथा बेहतर स्थिति  रखने वाले लोग, इतनी बड़ी संख्या में अपने गरीब भाइयों की मदद के लिए आगे नहीं आए थे।



सन 1918 की स्पेनिश फ्लू महामारी और सन 2020 की कोविड महामारी में समानताएं


        सन 1918-19 की फ्लू महामारी तथा सन 2020 की कोविड-19 महामारी दो अलग-अलग तरह के संक्रमण हैं, फिर भी हमें स्थितियों में कुछ समानताएं दिखाई देती हैं और कुछ सीखने लायक बातें भी हैं।


        स्पेनिश फ्लू महामारी का कारण एच वन एन वन वायरस का एक स्ट्रेन था। पर इस वायरस के विषय में उस समय कोई भी जानकारी नहीं थी। साथ ही एंटीबायोटिक दवाओं की भी खोज उस समय तक नहीं हो पाई थी। आज सार्स कोविड-19 वायरस के बारे में भी हमें बहुत अच्छी जानकारी नहीं है। साथ ही इसके लिए किसी औषधि अथवा टीके की जानकारी भी अब तक नहीं हो पाई है। प्रयास चल रहे हैं। फिर भी सन 1918 से स्थिति इस मायने में थोड़ा बेहतर है कि कुछ दवाओं का सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। दूसरे वर्ष 1918 में युवा जनसंख्या महामारी से बड़े स्तर पर प्रभावित हुई थी जबकि इस बार वृद्ध लोग इससे अधिक प्रभावित हो रहे हैं।

       उस समय देश के सबसे घनी जनसंख्या वाले नगरों में से एक मुंबई संक्रमण का केंद्र बना था, जहां से पूरे देश में संक्रमण फैला। वर्तमान में देश में कोविड-19 महामारी की शुरुआत मुंबई से तो नहीं हुई, पर मुंबई इस महामारी के संक्रमण का देश में सबसे बड़ा केंद्र बना हुआ है और इस बात की प्रचुर संभावना है कि यदि वहां पर संक्रमण नियंत्रण में नहीं आता है तो पूरे देश से कोविड-19 का संक्रमण समाप्त होने के जल्दी कोई आसार नहीं हैं।

        जून 1918 के अंत में मुंबई में फ्लू महामारी के कारण मृत्यु दर 75 व्यक्ति प्रति दिन की थी, जो सितंबर, 1918 में 230 व्यक्ति प्रति दिन तक पहुंच गई और 3 गुनी हो गई थी। कोविड-19 के संदर्भ में वर्तमान वर्ष 2020 में जहां 1 अप्रैल को मुंबई में कोविड-19 से संक्रमित लोगों की संख्या 437 थी वही 18 मई को लगभग डेढ़ महीने के बाद यह संख्या 5242 है, जो दर्शाती है कि डेढ़ महीने में संक्रमित लोगों की संख्या 12 गुनी हो चुकी है।

        सन 1918 में किसी प्रकार के औपचारिक लॉकडाउन की घोषणा नहीं की गई थी परंतु कार्यालयों और कल-कारखानों में लोगों लोगों की उपस्थिति अत्यधिक कम हो गई थी। कुछ समाचार पत्रों ने लोगों को घर से बाहर न निकलने का सुझाव दिया था। टाइम्स ऑफ इंडिया ने उन्हें भीड़भाड़ वाले स्थानों मेला, त्यौहार, थियेटर, स्कूल-कालेज, सभा हॉल, सिनेमा और पार्टियों तथा भीड़ से भरे वाहनों में जाने से बचने के लिए कहा। वर्तमान समय की ही भांति यह सलाह दी गई थी कि फ्लू का संक्रमण मानव संसर्ग तथा  नाक और मुंह के रास्ते निकले कणों से फैलता है अतः किसी के निकट आने से बचा जाए। लोगों को बंद कमरों के बजाय खुले और हवादार स्थानों पर विश्राम करने ,पौष्टिक भोजन करने तथा व्यायाम करते रहने की भी सलाह दी गई। वर्ष 1918 में संयुक्त राज्य अमेरिका के कुछ स्थानों पर महामारी को नियंत्रित रखने के लिए आज की ही तरह सैनिटेशन,मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का अनुपालन करने के लिए कहा गया। 

        आज जब हम कोविड-19 का सामना कर रहे हैं,  देश में वर्ष 1918 की तरह कोई विदेशी शासन नहीं है बल्कि  लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत केंद्र स्तर पर तथा प्रांतों के स्तर पर चुनी हुई सरकारे हैं। वे अपनी तरफ से स्थिति को संभालने के लिए भरसक जो भी प्रयत्न बन पड़ रहा है,  कर रही हैं। पर देश के नागरिक के तौर पर हम सबका भी यह कर्तव्य है कि एक शताब्दी पहले की ही तरह जो देशवासी बेहतर स्थिति में हैं, उन लोगों की मदद करें जिन्हें इसकी जरूरत है।  निसंदेह अब तक बहुत से लोगों ने संस्थाओं के स्तर पर तथा अपने व्यक्तिगत स्तर पर इस दिशा में अपना योगदान दिया है। पर आगे चलकर संक्रमण के और भी बढ़ने की संभावना है तथा उस स्थिति में इसकी और भी जरूरत रहेगी।









बुधवार, 13 मई 2020

Movement of people under the shadow of Corona

      Movement of people under the                     shadow of Corona


         I don't know about specialists, but per se my observation, I was sure that lockdown will only slow rate of proliferation and as proliferation increases albeit slowly, people living in congested and not very clean atmosphere and conditions would be greater at risk and become a fresh source of proliferation. People can't be made to stay at a place where they have gone basically  to earn their livelihood, beyond a limit when the source of livelihood itself has become dry.


         That is happening now. In slums effective social distancing is not possible at all. The best option would have been to allow people in the beginning of lockdown,  to move to their native places with a provision for a quarantine period at home. It would have decongested slums and the situation would have been less threatening there. Initially, poor people were not that much infected also, as in the initial phase the main source of infection were visitors coming from other countries or Indians/NRIs coming from outside. 


         Now slums and poor localities have become infected and people are being allowed to move. This step is while too late for such localities, native places where people are moving to, would be at greater  peril now. I could imagine this situation in the beginning, but the Govt. and advisors might have been optimistic . Hard measures and risk taking are hallmarks of the present Central Govt. So the Govt. didn't hesitate in asking the people to stay put where they were although with a good sense, yet lacking in farsightedness. In this whole process the marginalised section of society was ignored.


         We are sitting pretty at our home, but I shudder thinking about those who have so far been at mercy of others in the lands which are not their own,  and where they have been to serve others and earn livelihood for themselves. While some have been fortunate enough to travel by train or bus , many of them are moving now towards their homes on foot, in a rickety carriage, rickshaw or auto rickshaw, ready to go 1200 and 1500 KMs along with their families facing all the hardships on the way. Some are moving hidden in a goods carrier truck as if they are escaping a war ravaged country. The initial optimism and calculation has proven wrong now. I had written about the need to get slums evacuated and possibility of their becoming a source of infection,  to my friend Ravhuvansh Mani ji when he asked about options for the poor in the beginning of this lockdown. 


         I'm not blaming anyone. In total unfamiliar crisis situations our assumption may go wrong. I think so far if we have not done very good , we have not done bad either. Yet,  I feel our approach should have been more humanistic , especially with the marginal section of society. Many a times I fear if Mumbai is going to become another Wuhan or Newyork. The day cases crossed 60,000 mark in India, I couldn't sleep properly in the night feeling that  the situation may now go out of hand for us. Lockdown is the only hope for Indians but the problem is that one day this lockdown has to be lifted.

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

Tabligi Jamat Markaz and KOVID 19

Tabligi Jamat Markaz and KOVID 19

         After Tabligi Jamat Markaz Case, suddenly I see that many people have discovered communal angle in  COVID-19 Epidemic. Some are equating Tabligi Jamat, responsible for sudden spike in Covid 19 Cases in the country as 180 cases of newly reported 386 cases on Ist of April 2020 belong to Markaz ,  with common muslim community. There are many who are defending Markaz. For this purpose they are posting a copy of letter of Markaz written on 24th of March to the authorities. Some are quoting Manjnu Ka Tila Gurudwara matter where 200 people, who had taken shelter ,  were evacuated. Some have posted photos of mobs at Anand Vihar, someone has posted photographe of Chhath celebration by a small mob at a place in Bihar. One person has written that there are 40,000 people hiding at Tirupati. Some of these allegations are unsubstantiated. Whether substantiated or unsubstantiated such incidence can not justify a big congregation at Markaz including foreigners during lockdown period.One mistake can't be used to justify another mistake.  Social distancing and other safety measures were not followed at the congregation which was unlae in the light of orders issued by Delhi State Govt. Not only this, participants were inspired to not follow precautions for KOVID 19 as those were against Islam. The congregation included representatives from different states of the nation. Many of them have become afflicted with COVID 19 , some have died also.Definitely many have returned to their native places as carriers of COVID 19. It is also questionable that more than 300 Muslim Maulanas from foreign countries had come to India on tourist visa but intelligence as well as law & order agencies were unable to find  out real purpose of their visit to India. While office holders of Markaz are definitely responsible for this blunder, state authorities as well as law and order agencies also can't escape their responsibility. It is probable that they wanted to avoid a showdown with a minority community organisation as that might have snowballed into a communal issue.

        Markaz is a hardline Muslim community organisation and there are many Muslims who don't subscribe to it's ideology, so those equating it with general Muslim  community are also doing a disservice by adding a communal angle to the COVID 19 epidemic. 

         COVID 19 Disease doesn't choose it's prey by caste or religion. It doesn't distinguishes between individuals. Whether a Hindu or  Muslim if infected, if not isolated and quarantined , is bound to infect others including Hindus as well as Muslims. So everybody should behave responsibly and if he doesn't others including law enforcing agencies should step in to stem the rot.

मंगलवार, 31 मार्च 2020

KOVID 19 Lockdown in India :Problem of Migrant Labours & Workers

             People who have left Delhi in hordes after 21 days of lockdown are not afraid of any invading army or enemy in form of religious bigots during riots as happened after partition, rather it is losing their source of income, looming uncertainty and fear of epidemic that is driving the people towards their homes. When they have lost livelihood there is logically no reason for them to stay there as that was the reason for their migration. They are rejecting the life of living like a beggar dependent on Govt. alms. Had the Govt. fixed some amount as allowance just as NAREGA labour charges, situation might have been different.

       Problem of daily wage earners was imminent and  the Govt. should have anticipated it and planned for it.

        Normally people should have been given  one or two days time to leave before transport means were stopped. However,  the Govt. wanted a lockdown and sudden decisions are a hallmark of Modi Govt , therefore such an option was probably not considered at all. Modi ji is capable of taking hard decisions and more so ever he believes that people are ultimately going to back him. He believed that people would abide by what he says. Maybe he also considers the whole country as one and I think that is the reason he didn't expect that people would make efforts to leave their place of work on a large scale. 

     In a country of 13 billions , such incidences on  some scale are imminent and doesn't make the decision of lockdown a failure. People who doesn't want to stay in Delhi or their place of work and want to leave for home should be allowed to do so. Here also some planning is required. Social distancing should have been maintained and isolation , even when people reach home, would have been required.

           State Govt. should not reject their own people as some are doing due to fear of epidemic. Rather they should allow them to come and follow proper medical protocol.  Halfzarred manner of taking the problem and efforts to solve as it comes, is creating problems. If Indian people from foreign countries would not have been brought home , people would have blamed the Govt. of leaving its own people helpless on foreign shores. In case of Indian pilgrims who have been brought to the country from Iran,  people would have blamed the Govt. of communal bias.Just as Central Govt. didn't reject its own citizens, State Govt.s should also not reject their own people and rather allow them to come and follow medical protocols.

बुधवार, 27 नवंबर 2019

संसदीय राजभाषा समिति के निरीक्षण


                               संसदीय राजभाषा समिति 

                                                    व्यर्थ है करना खुशामद रास्तों की
                                                    काम सफर के आते अपने पांव
-   माननीय श्री  सत्य नारायण जटिया जी द्वारा संसदीय राजभाषा समिति के निरीक्षण के समय उद्धृत

समिति का गठन 1976 में किया गया।

इस समिति के अध्यक्ष गृह मंत्री होते हैं तथा भारत सरकार द्वारा समिति के उपाध्यक्ष एवं संयोजक नियुक्त किए जाते हैं।

वर्तमान में समिति के अध्यक्ष श्री अमित शाह गृह मंत्री हैं तथा उपाध्यक्ष श्री भर्तृहरि महताब हैं।

समिति की कुल सदस्य संख्या 30 होती है।

इनमें से 20 सदस्य लोकसभा से तथा 10 सदस्य राज्यसभा से होते हैं।

उप समितियां 3 तथा एक आलेख एवं साक्ष्य  उपसमिति होती है।

प्रत्येक उप समिति में 10 सदस्य होते हैं


समिति द्वारा अब तक 13000 से अधिक केंद्रीय सरकार कार्यालयों का निरीक्षण किया जा चुका है जिसमें उपक्रम तथा निगम भी शामिल हैं।

800 से अधिक कार्यालयों से मौखिक साक्ष्य जुटाए गए हैं।

समिति राष्ट्रपति महोदय के समक्ष अपनी सिफारिशें प्रस्तुत करती है, जिनके 8 खंड अब तक प्रस्तुत किए जा चुके हैं।

समिति का जोर एवं टिप्पणियां प्राय:  निम्नलिखित बातों पर होती हैं-

  • लोक +भाषा/संवाद +तंत्र= लोकतंत्र
  • संसदीय समिति प्रश्नावली राजभाषा के क्षेत्र में आपके काम का आईना है।
  • क्षमता का उपयोग नहीं।
  • क्षमता है पर विकास नहीं।
  • संसाधन है पर उपयोग नहीं।
  • लक्ष्य की तरफ दौड़ में दमदारी नहीं।
  • आत्म चिंतन की जरूरत है।
  • व्यक्तिगत कुशलता को संपूर्णता में परिवर्तित करना है।
  • समझना है। समझे बिना परिणाम नहीं।
  • मात्र लक्ष्य प्राप्त कर संतुष्ट हो जाना पूर्णता नहीं । ध्येय शत-प्रतिशत का होना चाहिए।
  • खानापूर्ति से उद्देश्य पूरा नहीं होता।
  • सरल हिंदी का प्रयोग कर हिंदी को बढ़ावा दें।

                         विभागाध्यक्ष
  • नियमों की जानकारी सबको होनी चाहिए विशेषकर विभागाध्यक्ष को।
  •  विभागाध्यक्ष इनकी जानकारी रखने का प्रयास नहीं करते। 
  • विभागाध्यक्ष स्वयं हिंदी में कार्य नहीं करते। 
  • विभागाध्यक्ष संसदीय समिति प्रश्नावली के पृष्ठ 32 से 44 का अध्ययन ठीक से करें इनमें नियमों तथा अधिनियम की जानकारी दी गई है।यदि वे इनका अध्ययन कर लेते तो उन्हें संसदीय समिति के सामने लज्जाजनक स्थिति का सामना नहीं करना पड़ता।
  • विभागाध्यक्ष नियम 12 के अंतर्गत समुचित उपाय नहीं करते। नियमों की अवहेलना पर कार्रवाई नहीं की जाती। कमजोर प्रशासक का आदर नहीं होता है। आदेशों का पालन करवाएं। काम में कसावट लाइए।

                    अधिकारी
  • प्रवीणता प्राप्त अधिकारियों द्वारा स्वयं अपने स्तर पर हिंदी में पर्याप्त काम नहीं किया जाता है।स्रोत का प्रवाह सदैव ऊपर से नीचे की तरफ होता है इसे ध्यान में रखा जाए।
  • प्रवीणता प्राप्त अधिकारियों द्वारा अपने स्तर पर डिक्टेशन हिंदी में नहीं दिए जा रहे हैं।
  • धारा 3 (3) पर हस्ताक्षर करने वाले अधिकारी अपने दायित्व का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे हैं। धारा 3 (3) के कागजात द्विभाषी न होने पर उन्हें अनुमोदन न प्रदान किया जाए।
  • अधिकारियों की बैठक बुलाकर उन्हें हिंदी में काम करने के लिए निर्देशित किया जाए तथा इस संबंध में अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक प्रकार से करने के लिए कहा जाए।

       राजभाषा कार्यान्वयन समिति
  • राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष एवं सदस्यों का लक्ष्य शत-प्रतिशत कम हिंदी में करना होना चाहिए।
  • बैठकें नियमित रूप से ठीक 3 महीने के अंतराल पर होनी चाहिए।
  • बैठक की अध्यक्षता करने हेतु अध्यक्ष अवश्य समय निकालें।



प्रवीणता प्राप्त अधिकारी एवं कर्मचारी तथा प्रशिक्षण प्राप्त लिपिक एवं आशुलिपिक
  • प्रवीणता प्राप्त एवं कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर्मचारियों द्वारा उनके अनुपात के अनुसार हिंदी में काम नहीं । इच्छाशक्ति का अभाव दिखाई देता है।
  • नियम 10(4) के अंतर्गत अधिसूचना जारी किए जाने एवं 8(4) के अंतर्गत आदेश जारी किए जाने के बावजूद अधिकारी एवं कर्मचारी हिंदी में काम नहीं कर रहे हैं। इस प्रकार संसाधनों का उपयोग ठीक प्रकार से नहीं किया जा रहा है। इनकी बैठक बुलाकर हिंदी में काम करने का निर्देश दिया जाए।
  • हिंदी में प्रशिक्षित लिपिकों तथा आशुलिपिकों से हिंदी में काम नहीं लिया जा रहा है,      इस प्रकार प्रशिक्षित मानव संसाधन का समुचित उपयोग नहीं किया जा रहा है। उन्हें हिंदी में काम करने के लिए निर्देशित किया जाए।
  • इनकी क्षमता का दोहन किया जाए।

                 कंप्यूटर
  • कंप्यूटर पर प्रशिक्षण में कमी नहीं होनी चाहिए। कंप्यूटर कार्यशालाएं आयोजित की जाएं।
  • कंप्यूटर पर प्रशिक्षित कर्मचारियों से हिंदी में पर्याप्त काम लिया जाए। उनकी बैठक बुलाकर उन्हें हिंदी में काम करने के लिए कहा जाए।

                 पुस्तकालय
  • पुस्तकालय के लिए बजट निर्धारित किया जाए।
  • 50% व्यय हिंदी पुस्तकों एवं साहित्य पर अवश्य किया जाए।

                  विज्ञापन
विज्ञापनों पर किए जाने वाले कुल व्यय का 50% हिंदी विज्ञापनों पर अवश्य किया जाए।

                  जांच बिंदु
  • जांच बिंदुस्थापित किए जाएं।
  • इनकी कार्यप्रणाली को प्रखर बनाया जाए।

                  अनुभाग
  • अधिक से अधिक अनुभागों को हिंदी में काम करने के लिए विनिर्दिष्ट किया जाए।

                    उपेक्षा
  • नियमों की अवहेलना पर कार्रवाई नहीं।
  • काम न करने वालों को परिणाम का डर होना चाहिए। औषधि का उपयोग करें जेब में न रखें।
  • किसी भी व्यक्ति को या अधिकारी को नोटिस नहीं दी गई।
  • उपेक्षा का भाव दिखाई देता है।
  • भीतर से एहसास जगाए स्वयं को बदलें।


संसदीय राजभाषा समिति के निरीक्षण के पहले केन्द्र सरकार के किसी भी मंत्रालय, विभाग, संबद्ध और अधीनस्थ कार्यालय/उपक्रम/संस्थान को समिति की निरीक्षण प्रश्नावली भरनी होती है जो उनकी अथवा राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध रहती है। समिति  द्वारा अपने निरीक्षण के दौरान उठाई जाने वाली आपत्तियां प्रमुखता निम्नवत होती हैं-
                                                                           भाग-।

    सामान्य जानकारी 

5 पृष्ठों में कुल 9 बिंदुओं के अंतर्गत जानकारी मांगी जाती है।
  • कार्यालय से संबंधित सामान्य जानकारियों के अलावा अधिकारियों एवं कर्मचारियों के ज्ञान की स्थिति
  • इनमें प्रशासनिक कार्यों से संबंधित अधिकारियों कर्मचारियों के ज्ञान की अलग से स्थिति
  • प्रवीण एवं कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त अर्थात हिंदी जानने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों में कितने कितना प्रतिशत तक हिंदी में काम करते हैं।
  • प्रवीणता प्राप्त अधिकारियों में कितने 
-कितना प्रतिशत हिंदी में काम करते हैं 
-कितना प्रतिशत कंप्यूटर पर हिंदी में काम करते हैं
-और कितना प्रतिशत हिन्दी में डिक्टेशन देते हैं।
  • पहले किए गए निरीक्षण, दिए गए आश्वासन और उन पर की गई अनुवर्ती कार्रवाई का ब्यौरा


                                                                       भाग-।।

     राजभाषा अधिनियम एवं नियम के अनुपालन की  स्थिति

कुल पृष्ठों में बिंदुओं के अंतर्गत जानकारी मांगी गई है।

  • राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 3(3) के अंतर्गत जारी किए कागजातों का अलग- अलग श्रेणी में विवरण
-यदि उल्लंघन हुआ है तो कौन अधिकारी उत्तरदाई है तथा क्या कार्रवाई की गई
  • नियम के अंतर्गत जारी किए गए पत्रों का तथा संबंधित जांच बिंदु का विवरण
-यदि नियम का उल्लंघन हुआ है तो क्या कार्रवाई की गई
  • नियम 10 (4 )से संबंधित सूचना तथा यदि कार्यालय को अधिसूचित करने में देरी हुई है तो उसका कारण
  • नियम 8(4) से संबंधित सूचना
  • यदि व्यक्तिगत आदेश जारी नहीं किए गए तो क्या कारण हैं
-क्या आदेशित कर्मचारी अपना काम हिंदी में कर रहे हैं यदि नहीं, तो इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई तथा
- 8(4) का अनुपालन कराने के लिए क्या मॉनिटरिंग व्यवस्था स्थापित की गई है
  • कोड,मैनुअल आदि के द्विभाषीकरण की स्थिति तथा इससे संबंधित जांच बिन्दुओं का विवरण
  • रजिस्टरों के द्विभाषीकरण की स्थिति तथा उनमें प्रविष्टियों से संबंधित जानकारी
  • विभिन्न स्टेशनरी आइटम के द्विभाषीकरण से संबंधित जानकारी तथा जांच बिंदुओं का ब्यौरा      । जांच बिंदु स्तर पर कार्रवाई,यदि कार्रवाई नहीं की गई तो क्या कारण है
  • नियम 12 के अंतर्गत राजभाषा संबंधी अधिनियम एवं नियम का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए विभागाध्यक्ष द्वारा क्या कदम उठाए गए हैं और इस संबंध में मानीटरिंग की क्या व्यवस्था की गई है।


                                                               भाग-।।।

संसदीय राजभाषा समिति के प्रतिवेदन के प्रथम खंडों पर राष्ट्रपति  जी द्वारा  किए गए आदेशों और राजभाषा विभाग द्वारा हिंदी के प्रगामी प्रयोग के संबंध में समय-समय पर जारी किए गए आदेशों के बारे में की गई अनुवर्ती कार्रवाई।

पूरी प्रश्नावली का यह सबसे बड़ा भाग है। कुल 18 पृष्ठों में 24 बिंदुओं के अंतर्गत संबंधित जानकारी मांगी गई है।

  • केवल क  एवं ख क्षेत्र के कार्यालयों के लिए ) निर्देशानुसार इन क्षेत्रों में अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का उत्तर भी हिंदी में दिया जाना है। 
-केंद्र सरकार के कार्यालयों,बैंकों,प्रमुख संस्थानों एवं उनके अधीनस्थ कार्यालयों से अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों के उत्तर की स्थिति। 
-क और ख क्षेत्र में राज्य सरकार के कार्यालयों तथा व्यक्तियों को भेजे गए पत्रों की स्थिति
-क ख एवं ग क्षेत्र में केंद्र सरकार के मंत्रालयोंविभागों, कार्यालयों एवं उपक्रमों तथा     संस्थानों को भेजे गए पत्रों की अलग-अलग क्षेत्रवार स्थिति 
-यदि अनुपालन नहीं हुआ है तो क्या कारण है

  • कार्यालय द्वारा अपनी ओर से लिखे गए पत्रों से संबंधित विवरण
-क और ख क्षेत्र की राज्य सरकारों और गैर सरकारी व्यक्तियों को भेजे गए पत्र
  • क ख एवं ग क्षेत्र में स्थित केंद्रीय सरकार के कार्यालयों उपक्रमों एवं संस्थानों को भेजे गए पत्रों का विवरण
-क्या हिंदी पत्राचार बढ़ाए जाने के लिए कदम उठाए गए हैं
-,ख एवं ग क्षेत्रों को भेजे जाने वाले पत्रों के लिए जांच बिंदुओं का विवरण तथा उनके स्तर पर की गई कार्रवाई
-यदि लक्ष्य पूरा नहीं किया गया है तो क्या इस वर्ष लक्ष्य प्राप्त किया जाएगा और यदि नहीं तो कब तक प्राप्त कर लिया जाएगा।
  • क एवं ख क्षेत्रों को भेजे जाने वाले पत्रों के लिफाफों पर पते हिंदी में लिखा जाना तथा इस संबंध में जांच बिंदुओं का विवरण।
  • यांत्रिक सुविधाओं अर्थात कंप्यूटरों से संबंधित विवरण 
-यूनिकोड फोंट युक्त कंप्यूटरों की संख्याहिन्दी कार्य का प्रतिशत।
-विभिन्न क्षेत्रों में प्रयोग में लाए जाने वाले कंप्यूटरों की संख्या,सॉफ्टवेयरों  का विवरण तथा हिंदी में किए जा रहे कार्य का प्रतिशत 
-यदि कोई विशेष सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाया जाता है तो क्या उस पर हिंदी में काम किया जा सकता हैयदि नहीं तो कब तक संभव होगा?
-कितने अधिकारियों कर्मचारियों से कंप्यूटर पर कार्य करना अपेक्षित है तथा
जो अधिकारी एवं कर्मचारी हिंदी में कंप्यूटर पर कार्य करने में सक्षम नहीं हैंउन्हें इस दिशा में प्रवीण बनाने के लिए क्या कार्रवाई की जा रही है?
जो प्रशिक्षित हैं उनमें से कितने अपना कितना काम हिंदी में करते हैं!
-सभी कंप्यूटरों पर कब तक हिंदी में काम होने लगेगा?
  • वेबसाइट का विवरण, क्या वह  द्विभाषी है और सामग्री को अद्यतन करते समय हिंदी सामग्री को अद्यतन करने के लिए व्यवस्था है या नहीं।

  • हिंदी प्रशिक्षण संबंधी सुविधाएं तथा उनके माध्यम ।  पिछले वर्ष के दौरान कितने अधिकारियों कर्मचारियों को इनके अंतर्गत प्रशिक्षण दिया गया?
  • संगठन में प्रशिक्षण व्यवस्था तथा प्रशिक्षण पाठ्यक्रम सामग्री में एवं प्रशिक्षण देने के लिए हिंदी का प्रयोग। यदि पूरी तरह से ऐसा नहीं किया जा रहा है तो यह कब तक कर लिया जाएगा
  • लिपिक टाइपिस्ट एवं 
  • आशुलिपिक से संबंधित विवरण - कितने प्रशिक्षित हैं तथा उन में कितने अपना काम हिंदी में अधिकांश रूप से या कभी-कभी करते हैं।
-यदि प्रशिक्षित लिपिकों एवं आशुलिपिकों का हिंदी में काम करने के लिए पूरी तरह उपयोग नहीं हो रहा है तो इसका क्या कारण है?
यदि टंकण और आशुलिपि के क्षेत्रों में लोग हिंदी प्रशिक्षण के लिए शेष हैं तो उनके प्रशिक्षण के लिए क्या कार्यक्रम बनाया गया है?
  • राजभाषा कर्मचारियों से संबंधित जानकारी
  • विधि संबंधी सूचना
  • शब्दकोशशब्दावलीसहायक साहित्य तथा उनके अधिकारियों एवं अनुभागों को वितरण से संबंधित विवरण
  • पुस्तकालय तथा पुस्तकों की खरीद से संबंधित विवरण
  • फार्मों से संबंधित विवरण
  • भर्ती एवं पदोन्नति परीक्षाओं से संबंधित विवरण
  • सेवा पुस्तिकाओं में प्रविष्टियों तथा इस संबंध में जांच बिंदु से संबंधित विवरण
  • राजभाषा कार्यान्वयन समिति तथा उसकी बैठकों से संबंधित विवरण
क्या उनमें वार्षिक कार्यक्रम पर कोई चर्चा की गई
राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष और सदस्य कितना प्रतिशत कार्य हिंदी में करते हैं?
  • नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति से संबंधित विवरण
  • राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकों के अलावा अन्य विभागीय बैठकों,सम्मेलनों तथा संगोष्ठियों का विवरण
-क्या इनकी कार्य सूची तथा कार्यवृत्त हिंदी / द्विभाषी में जारी किए गए तथा
कितने में हिंदी के प्रगामी प्रयोग पर चर्चा की गई?
  • टिप्पण आलेखन के प्रोत्साहन के उपाय
-कार्यशाला का आयोजन तथा उनमें भाग लेने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या
-प्रोत्साहन पुरस्कार योजना का लाभ उठाने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों की संख्या
-उपर्युक्त दोनों में भाग लेने वाले तथा पुरस्कृत अधिकारियों एवं कर्मचारियों में से अपना कार्य 50% या अधिक करने वालों की संख्या - जो ऐसा नहीं करते हैं उनके ऐसा न करने का कारण और इस संबंध में की गई कार्रवाई का ब्यौरा
  • वर्ष के दौरान आयोजित समारोह तथा राजभाषा सम्मेलन और निमंत्रण पत्र आदि हिंदी में अथवा द्विभाषी रूप में जारी किए गए या नहीं
  • प्रकाशनों से संबंधित विवरण
  • क्या समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री की समीक्षा की गई है और 
-कमियों को दूर करने के लिए राजभाषा विभाग के निर्देशों के अनुरूप कार्य किया जा रहा है अथवा नहीं 
यदि नहीं तो कारण बताइए।

                                                                  
                                                                 भाग -  ।V
                                    
                                                                      विविध

इस भाग में कुल पृष्ठों के अंतर्गत  9 बिंदुओं के अंतर्गत जानकारी मांगी गई है।
  • मानक मसौदों की संख्या
  • कार्यालय स्तर पर जारी विज्ञापन
  • विभिन्न प्रकार के निरीक्षण
-कितनी रिपोर्ट हिंदी में तैयार की गईं
-कितनी निरीक्षण रिपोर्टों में राजभाषा के प्रयोग संबंधी अनुदेश दिए गए
-मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा निरीक्षण
-कार्यालय के अधिकारियों द्वारा अधीनस्थ कार्यालयों का निरीक्षण
  • हिंदी में काम करने के लिए विनिर्दिष्ट अनुभाग
  • हिंदी दिवस सप्ताह पखवाड़े का आयोजन
-इस दौरान राजभाषा के प्रयोग में भी प्रगति की समीक्षा। समीक्षा का विवरण तथा अनुवर्ती कार्रवाई
-हिंदी टिप्पण पत्राचार में बढ़ोतरी हेतु उठाए गए विशेष कदम तथा उनका विवरण
-लागू विशेष प्रोत्साहन योजनाओं का विवरण
-हिंदी दिवस एवं पखवाड़े के दौरान अन्य दिनों की अपेक्षा कार्यालय में हिंदी टिप्पण एवं पत्राचार में कितने प्रतिशत वृद्धि हुई
  • टिप्पणियां
-कुलहिंदी में पूरे वर्ष भर के दौरान
-विभागाध्यक्ष के द्वारा वर्ष के दौरान लिखी गई टिप्पणियां कुल तथा हिंदी में
  • पत्राचार
-कुलहिंदी में पूरे वर्ष भर के दौरान
-कार्यालय प्रमुख द्वारा पूरे वर्ष के दौरान भेजे गए पत्र कुल तथा हिंदी में
  • राजभाषा नीति के कार्यान्वयन में समस्याएं तथा उनका समाधान किस प्रकार किया जाता है
  • राजभाषा नीति के कार्यान्वयन एवं प्रचार-प्रसार के लिए किए गए ऐसे विशेष कार्यों का ब्यौरा जिनकी सूचना अन्यत्र न दी जा सकती हो।


                                           विभिन्न भागों पर   पूछे जाने वाले प्रश्न

                                                    भाग-। पर संभावित प्रश्न


1.प्रवीणता प्राप्त समस्त अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा अपना पूरा काम हिंदी में क्यों नहीं किया जाता है और जिनके द्वारा अपना पूरा काम हिंदी में नहीं किया जाता है, ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के विरुद्ध क्या अनुशासनिक कार्रवाई की गई? क्या उनसे किसी प्रकार का स्पष्टीकरण मांगा गया?

2.आपके यहां प्रवीणता प्राप्त तथा कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त अधिकारी एवं कर्मचारी पर्याप्त संख्या में हैं। इसके बावजूद उनके द्वारा हिंदी में किए जाने वाला काम का प्रतिशत उस अनुपात में नहीं है। ऐसा क्यों है? यह सभी अधिकारी एवं कर्मचारी अपना काम हिंदी में करें इसके लिए आप ने क्या कदम उठाए हैं?

3.उप सचिव एवं उससे उच्च स्तर के अधिकारी हिंदी में प्रवीणता प्राप्त होने पर भी अपना काम अधिकांशत या हिंदी में क्यों नहीं करते हैं? क्या उन्हें इस संबंध में कोई निर्देश दिया गया। इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई है?

4.प्रवीणता प्राप्त अधिकारियों की संख्या पर्याप्त होते हुए भी उनके द्वारा पर्याप्त मात्रा में डिक्टेशन हिंदी में क्यों नहीं दिया जाता है? इसमें बढ़ोतरी के लिए क्या उपाय किए गए?

5.यदि पहले  किए गए निरीक्षणों के बाद दिए गए आश्वासनों पर अनुवर्ती कार्रवाई नहीं की गई है तो उसका क्या कारण है?

6.यदि आलेख एवं साक्ष्य उपसमिति के साथ विचार-विमर्श के दौरान आश्वासन दिए गए तो उन पर अनुवर्ती कार्रवाई की गई या नहीं और यदि नहीं तो ऐसा क्यों है?

                                                          भाग-।। पर संभावित प्रश्न


7.यदि राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा ( 3 ) का उल्लंघन ……...क्षेत्र में किया जा रहा है तो ऐसा क्यों हैक्या इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी को इस विषय में किसी प्रकार की सलाह दी गई या किसी प्रकार का कदम उठाया गया?

8.करारों के अन्तर्गत संविदा की भी गणना करें। ऐसा न करना गलती है।

9.राजभाषा नियम का यदि किसी प्रकार उल्लंघन किया गया है तो इस विषय में क्या कार्रवाई की गईक्या इस बारे में जांच बिंदु बनाए गए हैं?

10.क्या कार्यालय नियम 10 ( 4) के अंतर्गत अधिसूचित किए जाने की पात्रता प्राप्त कर चुका है और यदि ऐसा है तो क्या नियम 10 ( 4) के अंतर्गत कार्यालय को अधिसूचित किया गयायदि नहीं तो क्योंयदि ऐसा करने में किसी प्रकार की देरी हुई है तो उसका कारण क्या है?

11.क्या नियम 10 (4) के अंतर्गत अधिसूचित होने की स्थिति में नियम 8 (4) के अंतर्गत प्रवीणता प्राप्त अधिकारियों तथा कर्मचारियों के लिए हिंदी में टिप्पण एवं प्रारूप लेखन कार्य करने संबंधी व्यक्तिगत आदेश विभागाध्यक्ष के हस्ताक्षर से जारी किए गए यदि नहीं तो क्यों?

12.यदि नियम 8 (4) के अंतर्गत आदेश जारी किए गए तो इस प्रकार आदेशित अधिकारी तथा कर्मचारी क्या अपना काम हिंदी में कर रहे हैं यदि नहीं तो इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई या की जानी प्रस्तावित है?

13.क्या नियम 8 (4) का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु किसी प्रकार की मॉनिटरिंग व्यवस्था लागू की गई है?

14.क्या कार्यालय के स्थानीय,  मंत्रालय / विभाग अथवा कार्यालय द्वारा निर्धारित या अन्य मंत्रालयों द्वारा निर्धारित नियमावली / कोड मैनुअल द्विभाषी रूप में हैंयदि नहीं तो ऐसा क्यों और इसके लिए क्या कार्रवाई की जा रही है?
क्या इस बारे में कोई जांच बिंदु बनाया गया है?

15.क्या रजिस्टरों के प्रारूप एवं शीर्षक आदि तथा नामपट्ट आदि द्विभाषी हैंयदि नहीं तो क्यों?

16.यदि सभी रजिस्टरों में प्रविष्टियां हिंदी में नहीं की जाती है तो ऐसा क्यों है और कब से ऐसा किया जाएगा?

17.क्या मुहर आदि स्टेशनरी आइटम द्विभाषी रूप में बनवाए गए हैं यदि नहीं तो ऐसा क्यों हैइस संबंध में क्या जांच बिंदु बनाए गए हैं,  उनका ब्यौरा दीजिए। जांच बिंदु स्तर पर इस बारे में क्या कार्रवाई की जा रही है?


18.राजभाषा नियम 12 के अंतर्गत अपने उत्तरदायित्व का पालन करने हेतु कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान ने राजभाषा संबंधी नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने हेतु क्या कदम उठाए हैंऔर इस संबंध में उन्होंने मॉनिटरिंग की क्या व्यवस्था की है?                                                     

                                                                   
                                                     भाग-।।।  पर संभावित प्रश्न

19.'' और '' क्षेत्रों में अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का भी उत्तर हिंदी में दिया जाना है। यदि इसका पूर्णतया पालन नहीं किया जा रहा है तो ऐसा क्यों है और कब तक इसका अनुपालन कर लिया जाएगा?

20., ख और ग क्षेत्रों में स्थित कार्यालयों द्वारा स्वयं भेजे  गए पत्राचार के संबंध में क्या निर्धारित लक्ष्य क्रमशः 100%,100% तथा 65% / 55% को यदि नहीं प्राप्त किया गया तो ऐसा क्यों है ? ग क्षेत्रों में यदि लक्ष्य को प्राप्त कर लिया गया है तो भी उससे आगे बढ़कर काम करने का प्रयास किया जाए।

21.क्या हिंदी में पत्राचार बढ़ाए जाने के विषय में कोई आवश्यक कदम उठाया गया? यदि नहीं तो क्यों?

22.क्या निश्चित मात्रा में पत्राचार को सुनिश्चित करने के लिए जांच बिंदु बनाए गए हैं? यदि हां, तो उसका ब्यौरा । नियमों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए जांच बिंदु स्तर पर क्या कार्रवाई की गई?

23.क्या वार्षिक कार्यक्रम में दिए गए लक्ष्य को इस वर्ष पूरा कर लिया जाएगा ? यदि नहीं, तो कब तक पूरा किया जाएगा?

24.क्या '' और '' क्षेत्रों को भेजे जाने वाले पत्रों के लिफाफे पर पता हिंदी में लिखा जाता है ? यदि नहीं तो क्यों ,और इसका अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए क्या जांच बिंदु बनाए गए हैं तथा उनके द्वारा क्या कार्रवाई की गई ?

25.क्या कार्यालय में सभी कंप्यूटर यूनिकोड समर्थित हैं ? यदि नहीं तो क्यों ?

26.प्रशासनिक , लेखा, प्रचालन से संबंधित तथा अन्य कार्यों में उपयोग के लिए कौन सा सॉफ्टवेयर प्रयोग में लाया जाता है और इन पर कितना प्रतिशत कार्य हिंदी में किया जा रहा है? यदि कर्मचारियों के प्रवीणता स्तर को देखते हुए कंप्यूटर पर हिंदी में किए जाने वाले कार्य का प्रतिशत कम है तो ऐसा क्यों है?

27.क्या कंप्यूटर पर कार्य करने के लिए किसी विशेष सॉफ्टवेयर को प्रयोग में लाया जाता है? यदि हां, तो क्या इस पर हिंदी में कार्य करना संभव है और यदि इस पर हिंदी में कार्य करना संभव नहीं है तो कब तक इसे हिंदी में कार्य करने की योग्य बना लिया जाएगा?

28.आपके यहां कंप्यूटर पर हिंदी में कार्य करने के लिए कितने  अधिकारियों तथा कर्मचारियों का प्रशिक्षित होना अपेक्षित है? यदि सभी प्रशिक्षित नहीं है तो इन सभी के प्रशिक्षण का कार्य कब तक पूरा कर लिया जाएगा?

29.अधिकारियों और कर्मचारियों द्वारा कंप्यूटर पर अपने हिंदी में काम का प्रतिशत कम है तो ऐसा क्यों है और इसे बढ़ाने के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं तथा कब तक अधिकांश या पूरा काम हिंदी में किया जाने लगेगा?

30.कार्यालय की वेबसाइट यदि द्विभाषी रूप में नहीं उपलब्ध है तो क्यों ? क्या यह अद्यतन है? इसे कब-कब अद्यतन किया जाता है?

31.यदि वेबसाइट के संबंध में किसी कंपनी के साथ  करार किया गया है तो क्या अंग्रेजी सामग्री को उस पर अद्यतन करते समय हिंदी सामग्री को भी अद्यतन करने का प्रावधान है?

32.क्या हिंदी प्रशिक्षण संबंधी सुविधाएं उपलब्ध हैं? यदि नहीं तो क्यों?

33.संगठन में  संचालित किए जाने वाले प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों की  सामग्री क्या द्विभाषी रूप में है?  यदि नहीं, तो इसका कारण क्या है? समस्त प्रशिक्षण पाठ्य-सामग्री को कब तक द्विभाषी रूप में कर लिया जाएगा?

34.क्या प्रशिक्षण संस्थानों में हिंदी माध्यम से प्रशिक्षण दिए जाने संबंधी राजभाषा विभाग के आदेशों का समुचित पालन नहीं किया जा रहा है ? यदि नहीं तो क्यों और कब तक यह कार्य पूरा कर लिया जाएगा?

35.हिंदी लिपिकों तथा आशुलिपिकों के टंकण तथा आशुलिपि प्रशिक्षण संबंधी 100% लक्ष्य को क्या पूरा कर लिया गया है ? यदि नहीं तो इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए क्या कार्यक्रम बनाया गया है और कब तक इसे पूरा कर लिया जाएगा?

36.हिंदी में प्रशिक्षित सभी लिपिक तथा आशुलिपिक अपना पूरा/अधिकांश कार्य हिंदी में क्यों नहीं करते हैं? इस दिशा में प्रगति करने के लिए क्या उपाय किए गए हैं?

37.क्या राजभाषा कार्यान्वयन का कार्य संपन्न करने के लिए अधिकारियों तथा कर्मचारियों की संख्या निर्धारित मानक के अनुसार है? यदि नहीं तो क्यों और कब तक इसे निर्धारित मानक के अनुसार भर लिया जाएगा? यदि संबंधित पद खाली पड़े हैं तो इन्हें कब तक भर लिया जाएगा?

38.क्या शब्दकोष  तथा अंग्रेजी- हिंदी शब्दावलियों  का वितरण समस्त अधिकारियों तथा अनुभागों को कर दिया गया है । यदि नहीं तो कब तक इस कार्य को पूरा कर लिया जाएगा?

39.पुस्तकालय के लिए हिंदी पुस्तकों की खरीद के लिए 50% व्यय यदि नहीं किया जा रहा है तो क्यों? यदि लक्ष्य नहीं प्राप्त किया जा सका है तो इस संबंध में लक्ष्य को कब तक प्राप्त कर लिया जाएगा?

40.यदि भर्ती तथा पदोन्नति परीक्षाओं और साक्षात्कारों में उम्मीदवारों को हिंदी का विकल्प नहीं दिया गया है, तो कब तक इसे उपलब्ध करा दिया जाएगा?

41. यदि समस्त सेवा अभिलेखों तथा पुस्तिकाओं में हिंदी/ द्विभाषी रूप में प्रविष्टि किए जाने के प्रावधान को पूरा नहीं किया गया है तो कब तक ऐसा कर लिया जाएगा? क्या इस संबंध में जांच बिंदु बनाए गए हैं यदि नहीं तो क्यों?

42.क्या राजभाषा कार्यान्वयन समिति का गठन जारी दिशा-निर्देशों के अनुसार किया गया है? यदि नहीं तो कब तक इसे पूरा कर दिया जाएगा?

43.क्या राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक नियमित रूप से 3 महीने के अंतराल पर की जाती है और क्या इसकी अध्यक्षता विभागाध्यक्ष स्वयं करते हैं ? यदि नहीं तो इसके क्या कारण हैं और कब तक इसे पूरा कर लिया जाएगा ?

44.क्या वार्षिक कार्यक्रम पर राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठक में चर्चा की गई?

45.राजभाषा कार्यान्वयन समिति के अध्यक्ष एवं सदस्य अपना कितने प्रतिशत कार्य हिंदी में करते हैं? इनके द्वारा हिंदी में किए जाने वाले कार्य का प्रतिशत कम क्यों है? विभागाध्यक्ष स्वयं क्यों हिंदी में कम काम करते हैं?उन्हें अपने काम से दूसरों के लिए उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए।

46.क्या आपके नगर में नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति है और क्या उसमें आपके विभागाध्यक्ष भाग लेते हैंयदि नहीं भाग लेते हैं तो क्यों?

47.क्या नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति के कार्यवृत्त पर कार्रवाई की जाती है? यदि नहीं की गई तो क्यों?

48.वर्ष भर के दौरान आयोजित विभागीय बैठकों /सम्मेलनो तथा संगोष्ठियों में कितनों की कार्यसूची तथा कार्यवृत्त हिंदी में/ द्विभाषी रूप में जारी किए गएयदि इस संबंध में दिशा निर्देशों का अनुपालन नहीं किया गया तो क्यों?

49.क्या हिंदी कार्यशालाओं का नियमित रूप से प्रत्येक 3 महीने के अंतराल पर आयोजन किया गया ? यदि नहीं तो क्यों और इस संबंध में भविष्य में अनुपालन हेतु क्या कदम उठाए जाएंगे?

50.विभागीय प्रोत्साहन पुरस्कार योजनाओं में भाग लेने वाले अधिकारियों तथा कर्मचारियों की संख्या यदि कम है तो क्यों? इसमें बढ़ोत्तरी के लिए क्या उपाय किए जा रहे हैं?

51.हिंदी कार्यशालाओं तथा प्रोत्साहन पुरस्कार योजनाओं में भाग लेने वाले कितने अधिकारी एवं कर्मचारी अपना 50% या अधिक काम हिंदी में करते हैं? यदि सभी ऐसा नहीं कर रहे हैं तो इस स्थिति को सुधारने के लिए क्या उपाय किए गए?

52.वर्ष के दौरान आयोजित कितने समारोहों में निमंत्रण पत्र आदि द्विभाषी रूप में मुद्रित करवाए जाने का अनुपालन किया गया ?यदि ऐसा नहीं किया गया तो क्यों?

53.कार्यालय/ संगठन के कितने प्रकाशन द्विभाषी/  हिंदी रूप में होते हैं? यदि यदि सभी द्विभाषी रूप में नहीं होते हैं तो इस लक्ष्य को कब तक प्राप्त कर लिया जाएगा?

54.क्या हिंदी और अंग्रेजी के लेखकों तथा संपादकों को समान रूप से वेतनमान एवं पारिश्रमिक दिया जाता है? यदि नहीं तो क्यों?

55.क्या संसदीय राजभाषा समिति के समक्ष प्रस्तुत की जाने वाली सामग्री की समीक्षा की गई है और जो भी कमियां पाई गई हैं उन्हें दूर करने के लिए क्या राजभाषा विभाग द्वारा जारी निर्देशों का अनुपालन किया जा रहा है ? यदि नहीं, तो क्यों?


                                          भाग -  V पर संभावित प्रश्न

56.आपके यहां सभी मानक मसौदे द्विभाषी/ हिन्दी क्यों नहीं हैं? (यदि नहीं हैं तो)

57.50% से कम विज्ञापन द्विभाषी/  हिंदी में क्यों जारी किए गए? ( यदि ऐसा है तो) 

58.समस्त प्रकार के निरीक्षण की रिपोर्टें द्विभाषी/ हिंदी में क्यों नहीं तैयार की गईं?

59.निरीक्षण रिपोर्टों में राजभाषा के उपयोग संबंधी निर्देश क्यों नहीं दिए गए? (यदि नहीं दिए गए तो)

60.कुल अनुभागों में से कितने अनुभाग हिंदी में कार्य करने के लिए विनिर्दिष्ट किए गए हैं तथा इनकी संख्या यदि कम है तो क्यों ? पर्याप्त क्यों नहीं है ? इनकी संख्या बढ़ाइए।

61.हिंदी दिवस / पखवाड़े के दौरान राजभाषा के प्रयोग में कितनी प्रगति हुई ? क्या समीक्षा कर कोई कार्रवाई की गई ?यदि हां तो उसका ब्यौरा संलग्न करें। क्या इस दौरान हिंदी टिप्पण/ पत्राचार में बढ़ोत्तरी हेतु विशेष कदम उठाए गए ?

62.विशेष प्रोत्साहन योजनाएं समुचित रूप में क्यों नहीं लागू की गईं? (यदि नहीं लागू की गईं तो)

63.हिंदी पखवाड़े के दौरान अन्य दिनों की अपेक्षा हिंदी टिप्पण/पत्राचार में कितने प्रतिशत वृद्धि हुई?

64.विभागाध्यक्ष के तौर पर आपके द्वारा लिखी गई हिन्दी टिप्पणियों तथा पत्राचार का प्रतिशत कम है। इसमें और अधिक बढ़ोतरी करने के लिए प्रयास करना अपेक्षित है।