रानी और श्वेता दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन के चौखंडी स्थित प्राइमरी स्कूल की नौ वर्षीय छात्राएं हैं.इन बच्चों को दिल्ली म्युनिसिपल कार्पोरेशन और इंटैक के तत्वावधान में उनके स्कूल की विरासत पर एक फिल्म बनाने का काम सौंपा गया था.इन बच्चों को इंटैक द्वारा अपने वर्कशाप में फिल्म बनाने के मूलभूत तथ्यों से परिचित कराया गया. बच्चों ने पहले अपने स्कूल के सबसे पुराने वृक्ष पर फिल्म बनाने की सोची. बाद में उन्हें लगा कि क्यों न उनके स्कूल की सफाई कर्मचारी फूलवती जो तैंतीस वर्षों से स्कूल में काम कर रही थीं तथा सेवानिवृत्त होने वाली थीं, पर फिल्म बनाई जाए. बच्चों की प्रधानाध्यापिका तथा अध्यापकों ने बच्चों को इसके लिए प्रोत्साहित किया तथा उनका मार्गदर्शन भी किया. इन बच्चों ने फिल्म बनाई जिसमें शुरुआत में फूलवती को स्कूल में झाडू लगाते हुए दिखाया जाता है ,बाद में रानी फूलवती का साक्षात्कार लेती है तथा फिल्म, फूलवती की सेवानिवृत्ति के अवसर पर विदाई समारोह के साथ समाप्त होती है. इस फिल्म को हैदराबाद में आयोजित अट्ठारहवें अंतर्राष्ट्रीय बाल फिल्म महोत्सव में भेजा गया जहाँ आई हुई लगभग छ: सौ प्रविष्टियों में से इस फिल्म को सर्वश्रेष्ठ बालनिर्देशक श्रेणी में दूसरा पुरस्कार मिला.
यह दोनों ही बच्चे गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं.एक के पिता सफाई कर्मचारी हैं तथा मां घरों में काम करती हैं.दूसरी के पिता सिक्यूरिटी गार्ड हैं. बच्चों की सोच ,सहजता तथा सृजनात्मकता काबिल-ए-तारीफ है तथा इस तथ्य की पुष्टि करती है कि प्रतिभा किसी वर्गविशेष की बपौती नहीं है. बच्चों ने अपनी जिस सोच के अंतर्गत एक जीते जागते इंसान को जो उनके विद्यालय की स्वच्छता को सुनिश्चित करता था तथा उन्हें बहुत प्यार करता था विरासत का प्रतीक माना,वह उनकी मौलिक सूझ-बूझ की परिचायक है. इन बच्चों ने बडे सहज भाव से बताया कि कैसे उन्हें हैदराबाद के जिस होटल में वे रुके थे, सोफे तथा गद्दों पर कूदने में मजा आया, स्नान के लिए गर्म और ठंडे दोनों प्रकार के पानी की व्यवस्था तथा नाश्ते और खाने के लिए भाँति-भाँति के व्यंजन उनके लिए आश्चर्यप्रद थे तथा शुरू में वे बडे-बडे स्कूलों से आए हुए बच्चों को देखकर नर्वस थे. बच्चों के शिक्षकों ने उन्हें सहज भाव से रहने तथा बातचीत का मंत्र दिया था जो उनके बहुत काम आया विशेषकर तब, जब उनकी फिल्म पुरस्कृत होने पर लोग उनका साक्षात्कार करने के लिए आने लगे. बच्चों ने लोगों द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न करने पर कह दिया कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती और फिर लोगों ने उनसे हिंदी में प्रश्न पूछे तथा उन्होंने हिंदी में ही जवाब दिए. बच्चों का कहना है कि उनके हौसले बुलंद हुए हैं तथा उन्होंने स्वयं को किसी भी प्रकार के भय से दूर रखना सीख लिया है.
काश कि हम रानी और श्वेता की तरह गरीब पृष्ठभूमि के हर बच्चे के मन में यह धारणा घर करवा पाते कि वह विशिष्ट है तथा गरीबी,असमानता और अभाव उसके सपनों के साकार होने में बाधक नहीं हैं. रानी और श्वेता के बताए अनुसार वे इस बात को समझ गए हैं ,पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि उनकी अवस्था अभी बहुत कम है और उनके लिए यह महज शुरुआत भर है. ऋणात्मक स्थिति में रहते हुए संघर्ष करने पर हौसला बनाए रखने केलिए सदैव सजग रहना पडता है तथा मन के जरा भी कमजोर पडते ही नकारात्मकता सर उठाने लगती है जिसका सर कुचलने के लिए सदैव तत्पर रहना पडता है.
यह दोनों ही बच्चे गरीब पारिवारिक पृष्ठभूमि से हैं.एक के पिता सफाई कर्मचारी हैं तथा मां घरों में काम करती हैं.दूसरी के पिता सिक्यूरिटी गार्ड हैं. बच्चों की सोच ,सहजता तथा सृजनात्मकता काबिल-ए-तारीफ है तथा इस तथ्य की पुष्टि करती है कि प्रतिभा किसी वर्गविशेष की बपौती नहीं है. बच्चों ने अपनी जिस सोच के अंतर्गत एक जीते जागते इंसान को जो उनके विद्यालय की स्वच्छता को सुनिश्चित करता था तथा उन्हें बहुत प्यार करता था विरासत का प्रतीक माना,वह उनकी मौलिक सूझ-बूझ की परिचायक है. इन बच्चों ने बडे सहज भाव से बताया कि कैसे उन्हें हैदराबाद के जिस होटल में वे रुके थे, सोफे तथा गद्दों पर कूदने में मजा आया, स्नान के लिए गर्म और ठंडे दोनों प्रकार के पानी की व्यवस्था तथा नाश्ते और खाने के लिए भाँति-भाँति के व्यंजन उनके लिए आश्चर्यप्रद थे तथा शुरू में वे बडे-बडे स्कूलों से आए हुए बच्चों को देखकर नर्वस थे. बच्चों के शिक्षकों ने उन्हें सहज भाव से रहने तथा बातचीत का मंत्र दिया था जो उनके बहुत काम आया विशेषकर तब, जब उनकी फिल्म पुरस्कृत होने पर लोग उनका साक्षात्कार करने के लिए आने लगे. बच्चों ने लोगों द्वारा अंग्रेजी में प्रश्न करने पर कह दिया कि उन्हें अंग्रेजी नहीं आती और फिर लोगों ने उनसे हिंदी में प्रश्न पूछे तथा उन्होंने हिंदी में ही जवाब दिए. बच्चों का कहना है कि उनके हौसले बुलंद हुए हैं तथा उन्होंने स्वयं को किसी भी प्रकार के भय से दूर रखना सीख लिया है.
काश कि हम रानी और श्वेता की तरह गरीब पृष्ठभूमि के हर बच्चे के मन में यह धारणा घर करवा पाते कि वह विशिष्ट है तथा गरीबी,असमानता और अभाव उसके सपनों के साकार होने में बाधक नहीं हैं. रानी और श्वेता के बताए अनुसार वे इस बात को समझ गए हैं ,पर यह भी ध्यान देने योग्य है कि उनकी अवस्था अभी बहुत कम है और उनके लिए यह महज शुरुआत भर है. ऋणात्मक स्थिति में रहते हुए संघर्ष करने पर हौसला बनाए रखने केलिए सदैव सजग रहना पडता है तथा मन के जरा भी कमजोर पडते ही नकारात्मकता सर उठाने लगती है जिसका सर कुचलने के लिए सदैव तत्पर रहना पडता है.
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें