कोलकाता की एक लोकल ट्रेन में सफर करते हुए देखा गया एक वाकया- लोकल में काफी भीड है. जो लोग बैठ सके हैं वे बैठे हैं.शेष खडे हैं . जब भी कोई स्टेशन आता है जितने उतरते नहीं उससे ज्यादा चढ जाते हैं. बैठे हुए लोगों की दो पंक्तियों के बीच में तीन नवयुवक खडे हैं तथा उनके साथ एक बूढा व्यक्ति खडा है. अपना गंतव्य नजदीक आने के कारण कोई व्यक्ति खडा हो जाता है तथा खाली हुई जगह पर बूढे को बिठा देता है. खडे हुए नौजवान विरोध शुरु कर देते हैं- हम पहले से खडे हैं,हमें जगह देनी चाहिए थी. कोई बांगला में बोलता है- "उनी तोर दादू जोन्य,देखते पाच्चिस ना रे की?"( वो तेरे पितामह की तरह हैं ,देख नहीं पा रहे हो क्या?). उनमें से एक नौजवान बांगला बोलने वाले व्यक्ति की तरफ मुखातिब होकर कहता है -"आमि तोमार सने कोथा बोलछी न"(हम तुमसे बात नहीं कर रहे हैं) . उस नौजवान के मुँह से शायद शराब का भभका आता है. इसलिए पहले बांगला बोलने वाला व्यक्ति बुरा सा मुँह बनाते हुए अपनी नाक और मुँह ढकते हुए दूसरी तरफ मुँह घुमा कर कहता है-" सकाले नेशा कोरे ट्रेने उठछीस "(सुबह-सुबह नशा करके ट्रेन में चढते हो). नशा करने वाला नौजवान कहता है-"तोमार बापेर गाडी की?"(तुम्हारे बाप की गाडी है क्या).
नौजवान हिंदीभाषी हैं इसलिए आगे झगडे ने बिहारी बनाम बंगाली का रूप ले लिया.एक व्यक्ति बोला-" आप बिहार के हैं न". अब नौजवान बोला-"तो तुम्हें क्या परेशानी है?". वह व्यक्ति बोला-"आप अपना देश जाइए,बंगाल को गंदा मत कीजिए." नशे में होने के बावजूद नौजवान ने अच्छा उत्तर दिया -" बिहार केनो कोरे जाबो? आमी एइखाने थाकी,एई आमार देश"(बिहार क्यों जाऊँ, मैं यहीं रहता हूँ; यही हमारा देश है). अब एक आदमी अंग्रेजी में बोला- बोला- "यू पीपुल आर लाइक दिस. नो वन कैन मेक यू अमेंड योर वेज"(तुम लोग ऐसे ही हो.कोई भी तुम्हें सुधार नहीं सकता). अब नौजवान अंग्रेजी बोला-" आई स्टे हेयर,आई ऐम बंगाली नाट बिहारी"( मैं यहीं रहता हूँ,मैं बंगाली हूँ बिहारी नहीं).
इसके पश्चात झगडे ने प्रांतीय से राष्ट्रीय रूप ले लिया. एक व्यक्ति जो बोला वह सुनने लायक है- "एई जोन्य मोदी चाई. ओई सबाईके ठीक कोरे देबे" (इसीलिए मोदी चाहिए.वह सबको ठीक कर देगा). एक दूसरा व्यक्ति बोला-"आपनी ठीकेई बोलछेन. मनमोहन-राहुल किछू कोरते पारबेन न. एई देश के मोदी चाई" ( आप ठीक कह रहे हैं . मनमोहन-राहुल कुछ नहीं कर पाएंगे.इस देश को मोदी चाहिए). एक व्यक्ति बोला-" आमार ममता दीदी तो आछे"(हमारी ममता दीदी तो हैं).अब अन्य व्यक्ति नौजवान की तरफ हाथ उठाकर बोला -"ममता दीदी तो आछे किंतु देखछेन की होच्चे?"(ममता दीदी तो हैं किंतु देख रहे हैं क्या हो रहा है?). एक नया व्यक्ति बोला-"सोत्ति कोथा बोलछेन दादा"(सही बात कह रहे हैं भाई).
कुल बात का लब्ब-ओ-लुबाब यह कि लोगों को लग रहा है कि सीधी उँगलियों से घी नहीं निकल रहा है और इसके लिए टेढी उँगली चाहिए.
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